kamlesh kumar filed a consumer case on 12 Feb 2015 against i.c.i.c.i. insurance in the Tonk Consumer Court. The case no is cc/68/2012 and the judgment uploaded on 12 Mar 2015.
कमलेश कुमार बनाम आई.सी.आई.सी.आई. प्रूडेन्शियल लाईफ इन्श्योरेंस कं0लि0
परिवाद संख्या 68/2012
12.02.2015
दोनों पक्षों को सुना जा चुका है। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
परिवादी ने विपक्षी कम्पनी का संक्षेप में यह सेवादोष बताया है कि उसके टोंक स्थित एजेन्ट के जरिए निर्धारित प्रीमियम अदा करके बीमा पाॅलिसी संख्या 09349081 ली गई थी जिसकी बीमा अवधि में परिवादी सडक दुर्घटना में गम्भीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया जिसका ईलाज टोंक, जयपुर के अस्पतालो में कराया गया उसके बाॅंये पेर में चोट के कारण 55 प्रतिशत की स्थायी अयोग्यता आ गई तथा उसकी कार्य क्षमता में 100 प्रतिशत की कमी हो गई। विपक्षी कम्पनी को सभी आवश्यक दस्तावेजात के साथ क्लेम प्रस्तुत किया गया जिसे मनमाने तरीके से दिनांक 14.02.2011 को निरस्त कर दिया गया जिससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप व शारीरिक कष्ट हुआ।
विपक्षी कम्पनी के जवाब का सार है कि प्रकरण इस मंच के सुनवाई अधिकार में नही है क्योंकि विपक्षी का कार्यालय अथवा वाद कारण इस मंच के स्थानीय क्षेत्राधिकार में नही है। परिवादी ने दिनांक 02.08.2011 को पैसो की आवश्यकता बताकर पाॅलिसी सरेण्डर करके विपक्षी कम्पनी द्वारा चैक संख्या 504529 से प्रेषित राशि 44,219.61/- रूपये प्राप्त कर लिए उसके पश्चात बीमा संविदा अस्तित्व में नही रही। परिवाद बाद में प्रस्तुत किया गया जो चलने योग्य नही है। परिवादी के द्वारा प्रस्तुत प्रपोजल फार्म पर उसे इस स्मार्ट -किड-न्यू यूनिट लिंक्ड पाॅलिसी जारी की गई जिसका दस्तावेज सभी शर्तो एवं नियमो सहित जरिए डाक भेज कर यह अवगत कराया गया कि प्राप्ति के 15 दिवस के अन्दर वह सन्तुष्ट नही होने की अवस्था में पाॅलिसी निरस्त कराकर दिया गया प्रीमियम प्राप्त कर सकता है, परन्तु परिवादी ने इस विकल्प का उपयोग नही किया तथा पाॅलिसी की शर्तो व नियमो से सन्तुष्ट होकर जारी रखा, जिसमें यह स्पष्ट उल्लेख था कि एक्सीडेंट एवं डिसएबीलिटी बेनिफिट राईडर के अन्तर्गत अपंगता सम्पूर्ण अर्थात 100 प्रतिशत एवं स्थाई होने पर ही लाभ देय है। परिवादी के क्लेम की जांच में पाया गया कि उसकी अपंगता सम्पूर्ण अर्थात 100 प्रतिशत नही होकर मात्र 55 प्रतिशत थी इसलिए पाॅलिसी की शर्तो के अन्तर्गत उक्त लाभ देय नही था जिसकी सूचना परिवादी को पत्र द्वारा प्रेषित कर दी गई तथा पाॅलिसी सरेण्डर करने पर नियमानुसार देय राशि का भुगतान उसने प्राप्त कर लिया। इन तथ्यों को जानबूझकर छिपाया है सेवा में कोई कमी नही की।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा क्लेम खारिज करने के पत्र, क्लेम स्टेटमेन्ट, पाॅलिसी, पहचान-पत्र, अस्पताल में भर्ती डिस्चार्ज होने का प्रमाण-पत्र, मेडिकल बोर्ड का प्रमाण-पत्र, प्रथम सूचना रिपोर्ट, चोट प्रतिवेदन, प्रपोजल फार्म आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की है। विपक्षी कम्पनी ने साक्ष्य में अधिकृत अधिकारी गोरी आवलकर के शपथ-पत्र के अलावा प्रपोजल फार्म, पोलिसी, उसकी नियम शर्ते आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की है।
हमने विचार किया।
प्रश्न उठता है कि क्या विपक्षी कम्पनी ने पाॅलिसी की शर्तो के अनुसार परिवादी के दुर्घटना में आई चोटो के बाबत ईलाज खर्चे की अदायगी नही करके सेवा में कमी की है ?
जहंा तक इस मंच को प्रकरण सुनने का अधिकार नही होने की आपत्ति है इसमें सार नही है क्योंकि परिवादी के अनुसार विपक्षी के टोंक स्थित एजेन्ट ने पाॅलिसी हेतु प्रीमियम प्राप्त किया।
जहां तक पाॅलिसी सरेण्डर करके रकम प्राप्त होने के कारण परिवाद चलने योग्य नही होने की आपत्ति है इसमें भी सार नही है क्योंकि विवाद सरेण्डर वैलयू से सम्बन्धित नही है अपितु पाॅलिसी के अन्तर्गत दुर्घटना एवं अयोग्यता लाभ नही देने से सम्बन्धित है।
जहां तक पाॅलिसी के अन्तर्गत एक्सीडेंट एवं डिसएबीलिटी बेनिफिट राईडर का लाभ नही दिये जाने का प्रश्न है ? पाॅलिसी की शर्तो में स्पष्ट प्रावधान है कि दुर्घटना के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अयोग्यता सम्पूर्ण अर्थात 100 प्रतिशत एवं स्थाई होने की अवस्था में ही उक्त लाभ देय है। पाॅलिसी व उसकी सभी शर्तो का दस्तावेज परिवादी को विपक्षी कम्पनी ने पत्र दिनांक 09.07.2008 से भेजा जिसे स्वंय परिवादी की ओर से प्रस्तुत किया गया है जिसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि परिवादी पाॅलिसी दस्तावेज व उसकी शर्तो से सन्तुष्ट नही है तब वह 15 दिवस में उसे निरस्त करने की प्रार्थना कर सकता है। परिवादी ने उक्त पत्र मिलने के 15 दिवस के अन्दर पाॅलिसी को निरस्त करने की प्रार्थना विपक्षी कम्पनी को भेजने का कोई प्रमाण प्रस्तुत नही किया है जिससे स्पष्ट है कि उसने पाॅलिसी की सभी शर्तो को समझकर पाॅलिसी को जारी रखा। परिवादी ने परिवाद में ही स्पष्ट लिखा है कि दुर्घटना में आई चोटो के कारण उसकी अयोग्यता 55 प्रतिशत की हुई, मेडिकल बोर्ड ने भी उसकी अयोग्यता 55 प्रतिशत होने का प्रमाण-पत्र दिया है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि परिवादी की शारीरिक अयोग्यता 100 प्रतिशत अर्थात सम्पूर्ण नही है और इसलिए वह पाॅलिसी की शर्तो के अन्तर्गत उक्त राईडर का का लाभ प्राप्त करने का अधिकारी नही है। विपक्षी कम्पनी ने उसका क्लेम खारिज करके सेवा में कोई कमी नही की है इसलिए परिवाद खारिज होने योग्य है।
अतः परिवाद खारिज किया जाता है।
आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।
विष्णु कुमार गुप्ता किरण चैरसिया भगवानदास खण्डेलवाल
(सदस्य) (सदस्या) (अध्यक्ष)
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