Shri Moshahid filed a consumer case on 07 Mar 2018 against ICICI Lombard General Insurance Company. Ltd. in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/51/2016 and the judgment uploaded on 14 Mar 2018.
Uttar Pradesh
Muradabad-II
CC/51/2016
Shri Moshahid - Complainant(s)
Versus
ICICI Lombard General Insurance Company. Ltd. - Opp.Party(s)
Shri Santpal Singh
07 Mar 2018
ORDER
परिवाद प्रस्तुतिकरण की तिथि: 25-06-2016
निर्णय की तिथि: 07.03.2018
कुल पृष्ठ-7(1ता7)
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
परिवाद संख्या-51/2016
मुशाहिद पुत्र श्री नत्थू खॉं निवासी ग्राम नहरौली थाना असमोली जिला संभल।
…........परिवादी
बनाम
1-आई.सी.आई.सी.आई. लोमवार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. द्वारा लीगल प्रबन्धक, आई.सी.आई.सी.आई. लोमवार्ड हाउस-414 वीर सावरकर मार्ग निकट सिद्धि विनायक मंदिर, प्रभा देवी, मुम्बई-400025
2-आई.सी.आई.सी.आई. लोमवार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. द्वारा लीगल प्रबन्धक, पार्श्वनाथ प्लाजा, दिल्ली रोड, मुरादाबाद। …..........विपक्षीगण
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षीगण से उसे चोरी गई मोटर साईकिल की बीमित राशि अंकन-52,155/-रूपये 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित दिलायी जाये। परिवाद व्यय की मद में अंकन-5000/-रूपये और मानसिक पीड़ा के लिए अंकन-10,000/-रूपये परिवादी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि दिनांक 14-5-2015 को उसने एक मोटर साईकिल जिसका चेसिस नं.-आईजेए05एफएमएफ1एफ-13121 है, संभल से खरीदी थी। विपक्षीगण से उसने इस मोटर साईकिल का अंकन-52,155/-रूपये के लिए दिनांक 14-5-2015 से 13-5-2016 तक के लिए बीमा कराया। उसी दिन परिवादी मनौटा बाजार करने गया, उसने अपनी मोटर साईकिल दुकान के सामने खड़ी कर दी और सामान लेने लगा, इसी मध्य अज्ञात चोर उसकी मोटर साईकिल चुराकर ले गये। घटना के बाद वह थाना असमोली गया किन्तु उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई, पुलिस वालों ने कहा कि मोटर साईकिल की तुम भी तलाश करो और हम भी तलाश करते हैं। काफी तलाश करने पर जब मोटर साईकिल नहीं मिली तो थाना असमोली जिला संभल में परिवादी की एफ.आई.आर. दिनांक 08-6-2015 को दर्ज हुई। मामले में विवेचना के बाद पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट लगा दी। चोरी से अगले ही दिन परिवादी ने टेलीफोन द्वारा विपक्षीगण को सूचना दे दी थी। परिवादी ने मोटर साईकिल का क्लेम सारी औपचारिकतायें पूर्ण करते हुए प्रस्तुत किया। बार-बार अनुरोध के बावजूद विपक्षीगण ने मोटर साईकिल की बीमा राशि परिवादी को नहीं दी, उसने कानूनी नोटिस भी भिजवाया किन्तु उसके क्लेम का निस्तारण विपक्षीगण ने नहीं किया। परिवादी ने यह कहते हुए कि विपक्षीगण ने सेवा में कमी की है, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
परिवाद के साथ परिवादी ने विपक्षीगण को भेजे गये कानूनी नोटिस, मोटर साईकिल की कैश इंवायस, बीमा सर्टिफिकेट, एफ.आई.आर., अंतिम रिपोर्ट, केस डायरी की छायाप्रतियों और नोटिस भेजने की असल डाक रसीद को दाखिल किया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/4 लगायत 3/17 हैं।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-9/1 लगायत 9/4 दाखिल हुआ, जिसमें परिवाद में उल्लिखित मोटर साईकिल का अभिकथित चोरी की तिथि पर अंकन-52,155/-रूपये के लिए विपक्षीगण से बीमा होना तो स्वीकार किया गया किन्तु शेष परिवाद कथनों से इंकार किया गया। अग्रेत्तर कथन किया गया कि परिवाद असत्य कथनों पर आधारित है, विपक्षीगण ने सेवा प्रदान करने में कोई कमी नहीं की और रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 09-01-2016 द्वारा परिवादी का क्लेम विपक्षीगण द्वारा अस्वीकृत किया जा चुका है। विपक्षीगण का यह भी कथन है कि परिवादी ने विधि विरूद्ध तरीके से लाभ प्राप्त करने के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट में चोरी की तिथि में इन्टरपोलेशन करके उसे 14-5-2016 के स्थान पर 16-5-2015 बनाया है। परिवादी ने एफ.आई.आर. दर्ज कराने में 25 दिन की देरी की और बीमा कंपनी को पालिसी की शर्तों के अनुसार समय से चोरी की सूचना नहीं दी, इस प्रकार परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन किया। विपक्षीगण ने उक्त कथनों के आधार पर परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की है।
परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-10/1 लगायत 10/3 दाखिल किया।
विपक्षीगण की ओर से बीमा कंपनी के मैनेजर लीगल, श्री सिद्धार्थ जैन का साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-11/1 लगायत 11/3 दाखिल हुआ, जिसके साथ बीमा पालिसी की शर्तें, रेपुडिएशन लेटर, एफ.आई.आर., क्लेम फार्म तथा परिवादी द्वारा बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत किये गये शपथपत्र की छायाप्रतियों को बतौर संल्गनक दाखिल किया गया। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-11/4 लगायत 11/14 हैं।
किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
पत्रावली पर उपलब्ध मोटर साईकिल की कैश इनवाइस से प्रकट है कि प्रश्नगत मोटर साईकिल परिवादी ने दिनांक 14-5-2015 को खरीदी थी। पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि यह मोटर साईकिल दिनांक 14-5-2015 से 13-5-2016 तक की अवधि हेतु विपक्षीगण से बीमित थी और इसकी बीमा राशि अंकन-52,155/-रूपये थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट की नकल कागज सं.-3/7 के अनुसार जिस दिन परिवादी ने यह मोटर साईकिल खरीदी थी अर्थात दिनांक 14-5-2015 को यह मोटर साईकिल अज्ञात चोरों द्वारा चोरी कर ली गई। इस मामले में पुलिस ने विवेचना के उपरान्त फाईनल रिपोर्ट लगा दी, विवेचक ने निष्कर्षित किया कि मोटर साईकिल तथा अभियुक्तों का विवेचना के दौरान पता नहीं चल पाया।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली में अवस्थित परिवादी के शपथपत्र कागज सं.-11/14, उसके द्वारा दिये गये क्लेम फार्म कागज सं.-11/10 तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट की छायाप्रति कागज सं.-11/9 को इंगित करते हुए यह कथन किया कि इन अभिलेखों में मोटर साईकिल दिनांक 16-5-2015 को चोरी होना प्रदर्शित किया गया है, जबकि परिवादी अपनी मोटर साईकिल दिनांक 14-5-2015 को चोरी होना बताता है। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का अग्रेत्तर तर्क है कि परिवादी ने विधि विरूद्ध तरीके से क्लेम प्राप्त करने हेतु चोरी की तिथि 14-5-2015 के स्थान पर विपक्षीगण को 16-5-2015 संसूचित की और इस प्रकार विपक्षीगण के साथ फ्रॉड किया। उनका यह भी तर्क है कि परिवादी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाये जाने में लगभग 25 दिन और विपक्षीगण को सूचना देने में लगभग 4 दिन का विलम्ब किया, जबकि बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार परिवादी से अपेक्षित था कि वह चोरी की एफ.आई.आर. तत्काल लिखाकर बीमा कंपनी को भी तुरन्त सूचित करता। विपक्षीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत करते हुए कि परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्तों का भी उल्लंघन किया है, उनके विद्वान अधिवक्ता ने रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 09-01-2016 को सही ठहराया और परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
प्रतिउत्तर में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने इस आरोप का प्रबल प्रतिवाद किया कि उसने मोटर साईकिल चोरी की तरीख 14-5-2015 के स्थान पर 16-5-2015 संसूचित की थी और उसने विपक्षीगण के साथ धोखाधड़ी की। परिवादी पक्ष का यह भी तर्क है कि जिस दिन उसकी मोटर साईकिल चोरी हुई, उसी दिन उसने 100 नम्बर पर पुलिस को मोटर साईकिल चोरी की सूचना दी थी, थाने पर भी उसने एफ.आई.आर. दर्ज कराने का प्रयास किया किन्तु पुलिस ने एफ.आई.आर. दर्ज नहीं की और कहा कि मोटर साईकिल तलाश करो, हम भी तलाश करते हैं, अभी एफ.आई.आर. मत कराओं। परिवादी के अनुसार अन्तत: थाना असमोली, जिला संभल में दिनांक 08-6-2015 को उसकी एफ.आई.आर. दर्ज हुई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि उसने विपक्षीगण को चोरी की सूचना घटना के अगले ही दिन टेलीफोन द्वारा दे दी थी और इस सूचना पर उसका क्लेम MOT NO-04605641 पर दर्ज हुआ। इस प्रकार परिवादी ने बीमा कंपनी को चोरी की सूचना देने में भी विलम्ब नहीं किया। परिवादी की ओर से परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की गई।
पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री और अभिलेखों से हमारा यह सुविचारित मत है कि परिवादी के स्तर से न तो पुलिस को और न ही विपक्षीगण को चोरी की सूचना देने में कोई विलम्ब किया गया और न ही उसने विपक्षीगण के साथ कोई धोखाधड़ी की और ऐसी दशा में विपक्षीगण ने उसका क्लेम अस्वीकृत करके सेवा में कमी की है।
परिवाद के पैरा-1 व 2 के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी का प्रारम्भ से ही यह कथन है कि उसकी मोटर साईकिल दिनांक 14-5-2015 को चोरी हुई। परिवाद के साथ परिवादी ने जो एफ.आई.आर. की नकल कागज सं.-3/7 दाखिल की है, उसमें चोरी की तिथि 14-5-2015 अंकित है। परिवादी ने चोरी के इस मामले में पुलिस द्वारा की गई विवेचना की केस डायरी की छायाप्रति भी परिवाद के साथ दाखिल की। विवेचक के समक्ष उसने जो बयान दिये थे, वे पत्रावली के कागज सं.-3/11 पर दृष्टव्य हैं, विवेचक को भी उसने मोटर साईकिल चोरी की तिथि 14-5-2015 बतायी थी। यदि चोरी की तारीख के संदर्भ में परिवादी द्वारा विपक्षीगण के साथ कोई धोखाधड़ी की गई होती, जैसा कि विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का कथन है तो कदाचित परिवाद पत्र, पुलिस में दर्ज करायी गई एफ.आई.आर. और विवेचक को दिये गये अपने बयानों में परिवादी चोरी की तिथि 14-5-2015 के स्थान पर 16-5-2015 दर्ज कराता किन्तु उसने ऐसा नहीं किया और चोरी की सही तिथि 14-5-2015 ही हर स्तर पर उसने बतायी है। जहां तक विपक्षीगण की ओर से दाखिल एफ.आई.आर. की छायाप्रति कागज सं.-11/9 का प्रश्न है, यह छायाप्रति पूरी तरह पठनीय नहीं है, इसके बावजूद इसकी इबारत में चोरी की तिथि 14-5-2015 ही लिखी है। क्लेम फार्म कागज सं.-11/10 परिवादी के हस्तलेख में नहीं है, शपथपत्र कागज सं.-11/14 भी परिवादी के हस्तलेख में नहीं है। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि विपक्षीगण की ओर से इंगित प्रपत्रों में चोरी की तिथि 14-5-2015 के स्थान पर 16-5-2015 भ्रमवश दर्ज हो गई है। चूंकि प्रारम्भ से ही परिवादी का Stand यही था कि उसकी मोटर साईकिल दिनांक 14-5-2015 को चोरी हुई है, अत: उसके द्वारा तिथि के संदर्भ में विपक्षीगण के साथ कोई धोखाधड़ी किया जाना प्रमाणित नहीं होता है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने में हुई लगभग 25 दिन की देरी तथा विपक्षीगण को चोरी की सूचना देने में हुई 4 दिन की देरी के आधार पर रेपुडिएशन लेटर को सही ठहराने हेतु IV(2012) सीपीजे पृष्ठ-441(एनसी), न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. बनाम त्रिलोचन जाने की निर्णयज विधि में माननीय राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली द्वारा दी गई व्यवस्था का अवलम्ब लिया। हमने इस रूलिंग का अवलोकन किया। उक्त रूलिंग वर्तमान मामले के तथ्यों पर विपक्षीगण की कोई सहायता नहीं कर पाती।
परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथपत्र से परिवाद कथनों का समर्थन करते हुए यह स्पष्ट रूप से कथन किया कि चोरी वाले दिन ही उसने पुलिस को 100 नम्बर पर डायल करके चोरी की सूचना दे दी थी और रिपोर्ट दर्ज कराने वह थाना असमोली भी गया था किन्तु पुलिस ने उसकी एफ.आई.आर. दर्ज नहीं की और कहा कि मोटर साईकिल की तुम भी तलाश करो और हम भी तलाश करते हैं। इस तथ्य का उल्लेख परिवादी ने अपने शपथपत्र कागज सं.-11/14 में भी किया है। इस शपथपत्र का स्टाम्प परिवादी ने दिनांक 20-5-2015 को अर्थात घटना के छठें दिन खरीद लिया था। कहने का आशय है कि बिना किसी देरी के परिवादी ने पुलिस को चोरी की सूचना तो दे ही दी थी, साथ ही एफ.आई.आर. दर्ज कराने का भी उसने प्रयास किया किन्तु पुलिस ने उसकी एफ.आई.आर. उस समय दर्ज नहीं की। अन्तत: उसकी एफ.आई.आर. दिनांक 08-6-2015 को दर्ज हुई। I(2013) सीपीजे पृष्ठ-212(एनसी), यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. बनाम दुर्गा कैरियर्स प्रा.लि. की निर्णयज विधि में माननीय राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली ने त्रिलोचन जाने की रूलिंग को विचार में लिया और यह व्यवस्था दी कि यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने में देरी का कारण पुलिस की Reluctance रही है तो उस दशा में देरी के आधार पर बीमित का क्लेम अस्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए। दुर्गा कैरियर्स की यह रूलिंग वर्तमान मामले के तथ्यों पर पूरी तरह लागू होती है। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि यदि परिवादी ने घटना वाले दिन ही 100 नम्बर पर डायल करके पुलिस को चोरी की सूचना दी थी तो उसे उक्त सूचना की पी.सी.आर. प्रस्तुत करनी चाहिए थी, जो उसने नहीं की। फोरम के समक्ष कार्यवाहियां समरी प्रकृति की हैं, इनमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधान अक्षरस: लागू नहीं होते, इस दृष्टिकोण से मात्र पी.सी.आर. की प्रति परिवादी द्वारा उपलब्ध न कराया जाना ऐसा कारक नहीं है कि उक्त आधार पर उसका बीमा दावा ही अस्वीकृत कर दिया जाये। हमारे विनम्र अभिमत में पुलिस को सूचना देने में परिवादी के स्तर पर कोई विलम्ब नहीं हुआ।
पत्रावली में अवस्थित विपक्षीगण के पत्र कागज सं.-11/6 व 11/7 के अनुसार परिवादी ने चोरी की सूचना बीमा कंपनी को 4 दिन बाद दी थी। परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथपत्र के पैरा-5 में स्पष्ट रूप से यह कहा है कि उसने चोरी की सूचना बीमा कंपनी को घटना के अगले ही दिन दे दी थी और उसकी सूचना MOT Claim NO-04605641 पर दर्ज हो गई थी। विपक्षीगण ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि परिवादी का क्लेम उन्होंने किस दिन दर्ज किया, ऐसी दशा में यह माने जाने का कारण है कि परिवादी ने बीमा कंपनी को चोरी की सूचना अगले दिन दे दी थी। यदि तर्क के तौर पर यह मान भी लिया जाये कि बीमा कंपनी को सूचना देने में परिवादी के स्तर से 4 दिन की देरी हुई थी, तब भी IV(2017) सीपीजे पृष्ठ-10(एससी), ओम प्रकाश बनाम रिलायन्स जनरल इंश्योरेंस कंपनी की निर्णयज विधि में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुसार इस देरी के आधार पर परिवादी का क्लेम अस्वीकृत नहीं होना चाहिए था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय के पैरा-11 में यह संवीक्षण किया है कि वाहन चोरी के मामले में वाहन स्वामी से यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वह अपने चोरी गये वाहन को तलाश करने के बजाय पहले सीधा जाकर बीमा कंपनी को सूचना दे, स्वाभाविक रूप से पहले वह अपने वाहन को तलाश करेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सामने जो मामला था, उसमें बीमा कंपनी को सूचना देने में 8 दिन का विलम्ब था। ओम प्रकाश की उक्त रूलिंग में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि-
“The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act”.
17.उपरोक्त विवेचन के आधार पर हमारे सुविचारित मत में विपक्षीगण ने परिवादी का बीमा दावा अस्वीकृत करके त्रुटि की है। परिवादी को मोटर साईकिल की बीमा राशि अंकन-52,155/-रूपये 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वाद दायरा तिथि तावसूली विपक्षीगण से दिलाया जाना न्यायोचित दिखायी देता है। इसके अतिरिक्त परिवादी अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्यय भी विपक्षीगण से पाने का अधिकारी है। परिवाद तद्नुसार स्वीकार किये जाने योग्य है।
परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकृत किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण इस आदेश से एक माह के अंदर अंकन-52,155/-रूपये मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद दायरा तिथि तावसूली परिवादी को अदा करें। विपक्षीगण अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्यय भी परिवादी को अदा करें।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
अध्यक्ष
सदस्य
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक: 07-03-2018
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