जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 213/2018
उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-26.05.2018
परिवाद के निर्णय की तारीख:-12.08.2024
Sri Indrajeet S/o Sri. Kanhaiya Prasad R/o 1/107, Vikrant Khand Gomti Nagar, Lucknow. .............Complainant.
Versus
1. ICICI Prudential Life Insurance Co. Ltd. Registered office-ICICIPrulife Towers 1089, Appasaheb Marathe Marg, Prabha Devi, Mumbai-400025. Through its Managing Director.
2. ICICI Prudential Life Insurance Co. Ltd . Branch office at 1st Floor, Metro Tower Shahnajaf Road, Hazaratganj, Lucknow. Through Branch Manager. ...............Opposite Parties.
परिवादिनी के अधिवक्ता का नाम:-Smt. Pallavi Borgohain.
विपक्षीगण के अधिवक्ता का नाम:-श्री अंग्रेज नाथ शुक्ला।
आदेश द्वारा-श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
निर्णय
1. परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उ0प्र0 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-12 के अन्तर्गत दाखिल किया गया है। परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण से जीवन बीमा हेतु जमा रू0-1,35,000.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने, पत्राचार व अन्य कार्यों के लिये 2,500.00 रूपये, मानसिक उत्पीड़न के लिये 1,00,000.00 रूपये, विधिक फीस के लिये 25,000.00 रूपये तथा अन्य व्यय हेतु 10,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि वर्ष 2009 में वह आई0सी0आई0सी0आई0 के एजेन्ट/कर्मचारी के सम्पर्क में आयी। उन्होंने एक अच्छा रिटर्न देने वाली पालिसी की सिफारिश की जिसमें केवल एक बार किश्त देने की शर्त हो, को लेने की इच्छा जाहिर की। परिवादिनी उनकी गिरफ्त में आयी और उसने दो लाइफ स्टेज एश्योर प्लान विपक्षीगण से पालिसी संख्या-11037765 एवं 10876492 एलॉट करायी तथा जो क्रमश दिनॉंक 28.01.2009 तथा 04.02.2009 को निर्गत की गयी। इनका प्रीमियम क्रमश: 35,000.00 रूपये एवं 1,00,000.00 रूपये परिवादिनी द्वारा भुगतान कर दिया गया। विपक्षीगण ने परिवादिनी को आश्वासन दिया कि आपको एक माह के अन्दर पालिसी डाक्यूमेंट मिल जाएगा और इस पालिसी में 15 दिन का फ्रीलुक पीरियड दिया गया था।
3. परिवादिनी का कथन है कि जब मार्च 2009 में विपक्षीगण द्वारा पॉलिसी बॉड उसे उपलब्ध कराया गया तो परिवादिनी ने दिनॉंक 05.03.2009 को ही एक पत्र विपक्षीगण को फ्रीलुक पीरियड में लिखा कि उसको दी गयी दोनों पॉलिसी निरस्त करके उसे अवगत कराए क्योंकि परिवादिनी पॉलिसी की सेवा शर्तों से संतुष्ट नहीं है, परन्तु विपक्षीगण ने पॉलिसी निरस्त नहीं की। परिवादिनी ने पुन: दिनॉंक 30.06.2011 को एक अनुस्मारक विपक्षीगण को पॉलिसी निरस्तीकरण के लिये भेजा और पहले भेजे गये पत्र में की गयी अपेक्षानुसार बॉड प्राप्त होने के 15 दिन के अन्दर फ्रीलुक पीरियड में पॉलिसी निरस्त करके जमा संहर्ण धनराशि वापस करने का अनुरोध किया गया था। परन्तु विपक्षीगण ने पॉलिसी निरस्तीकरण की कार्यवाही नहीं की और पैसे का भुगतान भी नहीं किया। इस प्रकार विपक्षीगण उ0प्र0 उपभोक्ता अधिनियम 1986 की धारा-2(1) (जी), 2(1) (0) और 2(1)(आर) के तहत सेवा में कमी और अनुचित व्यापार प्रक्रिया के लिये जिम्मेदार हैं।
4. उसके बाद भी परिवादिनी ने विपक्षीगण को अनेकों पत्र, ईमेल आदि दिये और पालिसी निरस्त करने व पूरा पैसा वापस करने का अनुरोध किया परन्तु 03 वर्ष बीत जाने के बाद भी पैसा वापस नहीं किया गया तो परिवादिनी ने एक विधिक नोटिस दिनॉंक 04.10.2017 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षीगण को भेजा। विपक्षीगण द्वारा पॉलिसी की सेवा शर्तों के अनुसार फ्रीलुक पीरियड का भी लाभ नहीं दिया गया जबकि 15 दिन के अन्दर ही पॉलिसी कारण बताते हुए वापस की गयी थी। विपक्षीगण ने निश्चित ही सेवा में कमी और अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनायी है। परिवादिनी ने यह भी अवगत कराया है कि प्रकरण में दिनॉंक 13.10.2017 को परिवाद का कारण उत्पन्न हुआ जब परिवादिनी ने विपक्षी का ई-मेल प्राप्त किया था, वह तब से आज तक प्रभावी है।
5. विपक्षी संख्या 01 व 02 द्वारा उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि परिवादी द्वारा झूठे तथ्यों के आधार पर यह परिवाद दाखिल किया गया है जो खारिज किये जाने योग्य है। मा0 आयोग को इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, क्योंकि विपक्षी द्वारा कहीं भी सेवा में कमी नहीं की गयी है। परिवादी मा0 आयोग के समक्ष स्वच्छ हांथो से नहीं आया है। परिवादी ने अनुचित लाभ लेने के उद्देश्य से प्रस्तुत परिवाद दाखिल किया है। पालिसी लेते समय उन्हें पॉलिसी की सभी सेवा शर्तें बतायी गयी है। प्रपोजल फार्म पर उनके हस्ताक्षर हैं, फिर भी यह कहना कि उनको नहीं मालूम है कि पॉलिसी में भुगतान मोड/किश्ते कितनी अदा करनी हैं।
6. परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में वाद का कारण नहीं बताया है। परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24ए के अन्तर्गत विलंब से दाखिल किया गया है, अत: एडमिट किये जाने योग्य ही नहीं है। विपक्षी द्वारा यह भी कथन किया गया कि परिवादी ने बताया है कि उसे धोखे व फ्राड करके पॉलिसी दी गयी है, ऐसी स्थिति में मा0 आयोग का क्षेत्राधिकार नहीं बनता है। एक बार पॉलिसी जारी होने के बाद यह माना जाता है कि दोनों पक्षों द्वारा आपसी सहमति के बाद प्रपत्रों पर हस्ताक्षर किया है। यह एक समझौता की कार्यवाही है। यह माना जाता है कि पॉलिसी की सेवा शर्तें पढ़कर समझकर ही कोई उस पर हस्ताक्षर करता है, तो यह कहना कि उसको पूरी बात नहीं बतायी गयी उसके साथ धोखा किया गया है, उचित प्रतीत नहीं होता है।
7. विपक्षीगण का यह भी कथन है कि परिवादी ने पॉलिसी की टर्म में चेज करने के लिये विपक्षी से 08 वर्षों बाद झूठे आरोपो व मिससेलिंग कहकर प्रीमियम वापस के लिये प्रयास किया जाता है, जो कि “Irda” की पॉलिसी के अनुसार 01 वर्ष जमा प्रीमियम की धनराशि जब्त कर ली जाती है। पॉलिसी में नियमानुसार कम से कम 03 वर्ष तक प्रीमियम जमा होने पर पॉलिसी लैप्स नहीं होती है। ऐसी स्थिति में कोई रिफंड देय नहीं है। अत: परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। फ्रीलुक पीरियड के संबंध में परिवादी ने मात्र पालिसी के टर्म को चेंज करने का अनुरोध किया था न कि दोनों पॉलिसीज को निरस्त करने के लिये अनुरोध किया गया था। इस प्रकार स्पष्ट है कि फ्रीलुक पीरियड में परिवादी ने विपक्षी से संपर्क कर पॉलिसी निरस्त कराने का कोई ठोस प्रयास ही नहीं किया गया। सम्प्रति पॉलिसी निरस्त किया जाना व रिफंड किया जाना संभव नहीं है। परिवादी द्वारा मात्र 01 प्रीमियम ही जमा किया गया है जिसे नियमानुसार रिफण्ड किया जाना संभव नहीं है।
8. परिवादी ने अपने कथानक के समर्थन में शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में पालिसी सर्टिफिकेट, एप्लीकेशन फार्म, विधिक नोटिस, आदि की छायाप्रतिया दाखिल किया है। विपक्षीगण ने भी शपथ पत्र एवं अन्य अभिलेख दाखिल किया है।
9. आयोग द्वारा उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
10. परिवादी द्वारा विपक्षीगण से दो बीमा पालिसी क्रमश: 11037765 दिनॉंक 28.01.2009 तथा पालिसी संख्या 10876492 दिनॉंक 08.01.2009 को निर्गत की गयी। दोनों का वार्षिक प्रीमियम क्रमश: 35,000.00 रूपये व 1,00,000.00 रूपये है। परिवादी द्वारा प्रपोजल फार्म भरकर दिया गया। उसके बाद पॉलिसी डाक्यूमेंट जनवरी माह के प्रथम सप्ताह 08 जनवरी, 2009 में परिवादी को प्राप्त होता है। परिवादी ने दिनॉंक 13.01.2009 को ही फ्रीलुक पीरियड में विपक्षी को एक पत्र लिख कि इस पालिसी का टर्म 15 से 10 वर्ष करके उसे नयी पालिसी जारी कर दे। दिनॉंक 28.01.2009 को फ्रीलुक एप्लीकेशन भरकर पुन: वह पॉलिसी 10876492 का 15 वर्ष के टर्म को 10 वर्ष में परिवर्तित करने हेतु अनुरोध किया गया जिसे विपक्षी द्वारा दिनॉंक 30.01.2009 को स्वीकार कर लिया गया। विपक्षी द्वारा उसे संशोधित करके उसका संशोधित पॉलिसी प्रपत्र परिवादी को भेज दिया।
11. परिवादी का कथानक है कि जब मार्च 2009 में उसे पालिसी बाण्ड उपलब्ध कराया गया तो उसी दिन अर्थात दिनॉंक 05.03.2009 को उसने विपक्षीगण को पत्र लिखा कि उसे दी गयी दोनों पॉलिसी की सेवा शर्तों से वह संतुष्ट नहीं है, उसकी पॉलिसी निरस्त कर पैसा वापस कर दिया जाए। उसके बाद परिवादी द्वारा दिनॉंक 30.06.2011 को एक स्मरण पत्र विपक्षीगण को पुन: उसी आशय का भेजा कि पॉलिसी निरस्त करके उसके द्वारा दिये गये पैसे को उसे रिफण्ड कर दें, परन्तु विपक्षीगण ने पैसा रिफण्ड नहीं किया। अंत में दिनॉंक 04.10.2017 को उसने एक विधिक नोटिस विपक्षीगण को अपने अधिवक्ता के माध्यम से भेजा तथा दिनॉंक 26.05.2018 को मा0 आयोग में परिवाद दाखिल कर दिया।
12. परिवादी द्वारा दिनॉंक 05.03.2009, 30.06.2011 के पत्र पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। विपक्षी ने अपने कथन में इस बात का तश्करा किया है कि उन्हें कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। यह तथ्य विचारणीय है कि पालिसी इशू होने के 15 दिन के अन्दर फ्रीलुक पीरियड माना जाता है। दोनों पालिसी क्रमश 08 जनवरी 2009 तथा 28.01.2009 को इशू होती है। इनका फ्रीलुक पीरियड 08+15=23 जनवरी 2009 तथा 28/1+15=13 फरवरी 2009 तक मान्य है। परिवादी द्वारा अपने पत्र दिनॉंक 17.01.2009 में पालिसी संख्या 10876492 का टर्म 15 वर्ष से घटाकर 10 वर्ष करने का अनुरोध किया गया है। उस पत्र के साथ फ्रीलुक आवेदन भी संलग्न है जिसे विपक्षीगण ने दिनॉंक 30.01.2009 को स्वीकार करते हुए टर्म 10 वर्ष कर दिया था।
13. फ्रीलुक पीरियड समाप्त होने के बाद परिवादी ने जैसा कि परिवाद पत्र में कहा है कि उसने दिनॉंक 05.03.2009 को एक प्रार्थना पत्र पॉलिसी निरस्तीकरण के लिये दिया, परन्तु विपक्षीगण ने कार्यवाही नहीं की। उसके बाद दिनॉंक 30.06.2011 तथा 04.10.2017 द्वारा भी पत्राचार किया। परिवादी के उक्त दो पत्र क्रमश: 05.03.2009 व 30.06.2011 पत्रावली में उपलब्ध नहीं हैं। अत: परिवादी के पालिसी निरस्तीकरण के संबंध में प्रस्तुत साक्ष्य प्रमाणिक नहीं है। परिवादी ने प्रथम पॉलिसी के टर्म में 15 वर्ष की जगह 10 वर्ष की मॉंग की थी जिसे विपक्षी ने स्वीकार करते हुए 10 वर्ष कर दी है। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। बीमा के प्रपोजल फार्म पर परिवादी के हस्ताक्षर हैं तथा पालिसी के प्रीमियम, टर्म व मैच्युरिटी के विवरण भी स्पष्ट रूप से अभिलिखित हैं। इसमें कोई अस्पष्टता परिलक्षित नहीं होती है।
14. परिवादी ने स्वयं अनुरोध करके प्रथम पालिसी के टर्म को 15 वर्ष से कम कराकर 10 वर्ष कराया था तो वह कैसे यह बात कह सकता है कि उसे यह नहीं बताया गया था कि पालिसी में मात्र एक किश्त ही जमा होनी थी। उसे पूरी बात संज्ञान में थी। बीमा पॉलिसी में के “Irda” प्रावधान के अनुसार एक वर्ष जमा प्रीमियम यदि आगे रिन्यूवल नहीं कराया जाता है तो वह पॉलिसी लैप्स की श्रेणी में आती है और वह धनराशि पॉलिसी धारक को वापस नहीं की जा सकती है। कोई पॉलिसी कम से कम 03 वर्ष तक प्रीमियम अदायगी करने पर पेडअप स्कीम के अन्तर्गत आ जाती है, वह लैप्स की श्रेणी में नहीं आती है, बीमा बाण्ड के प्रस्तर-19 में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है। परिवादी द्वारा अपनी दोनों पॉलिसी में मात्र एक बार ही प्रीमियम अदा किया गया है, इसलिए इनका पैसा रिफण्डेबुल नहीं है। अत: परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
दिनॉंक:-12.08.2024 लखनऊ।