जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 167/2007 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-16.03.2007
परिवाद के निर्णय की तारीख:-01.02.2023
Dileep Kumar son of Sunder Lal, Resident of 30, Samaudipur P.S. Gazipur, Distt-Lucknow.
.............Complainant .
VERSUS
1. General Manager, ICICI Lombard General Insurance Companny Ltd. Zenith House, Keshavrao Khadya Marg, Opp Race Course, Mahalaxmi, Mumbai-400034.
2. Manager, ICICI Lombard General Insurance Sahanjaph Road, Hazratganj, Lucknow.
3. Manager/Owner, UNITED MOTORS AND GENERAL FABRICATORS, TELCO, Authorised Service Centre Automobile Engineers and Body Builders Khurramanagar, Picnic spot Road, Vikas Nagar, Lucknow-226002.
.............OPPOSITE PARTIES.
परिवादीगण के अधिवक्ता का नाम:-श्री प्रकाश चन्द्रा।
विपक्षीगण के अधिवक्ता का नाम:-श्री बृजेन्द्र चौधरी।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत विपक्षी से 3,64,610.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज, मानसिक उत्पीड़न व वाद व्यय के रूप में 50,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी वाहन संख्या यू0पी0 32 बी0आर0 5003 का स्वामी है। उक्त कार को वर्ष 2005 में क्रय किया गया था, जिसका इन्जन नम्बर एवं चेसिस नम्बर respectively PB 2591 and PA 9725 था, जो कि आई.सी.आई.सी.आई. कम्पनी लोम्बार्ड से बीमित था जिसका पालिसी नम्बर 3001/1255897/00/000 था तथा जिसकी वैधता दिनॉंक 15 नवम्बर, 2006 तक थी।
3. दिनॉंक 29.10.2006 को आई0आई0एम0 ट्रेन्गिल रोड पर 11.00 बजे जब ड्राइवर सहित नौआ खेड़ा से अपने भतीजे का जन्म दिवस मनाने के बाद लौट रहा था तो दुर्घटना कारित हो गयी। वाहन के आगे एक ट्रक चल रहा था और गाय का बछड़ा आगे आ जाने के कारण दुर्घटना हो गयी। ड्राइवर का वैध लाइसेन्स था। सर्वेयर को सूचना दी गयी। बीमा कम्पनी द्वारा सर्वेयर को उस जगह भेजा गया। सर्वेयर के कहने पर टेल्को आर्थराइज्ड सर्विस सेन्टर आटोमोबाइल इंजीनियर्स एवं बॉडी बिल्डर्स, खुर्रमनगर पिकनिक स्पॉट रोड, विकास नगर लखनऊ पर ले जाया गया, जहॉं गाड़ी की मरम्मत का खर्च 2,00,289.16 रूपये आ रहा था, बताया गया।
4. परिवादी के भाई द्वारा गाड़ी का क्लेम इन्श्योरेंस कम्पनी में दाखिल किया गया। परन्तु उक्त क्लेम को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि वाहन वाणिज्यिक रूप में इस्तेमाल हो रहा था जो कि विधि विरूद्ध है। दुर्घटना के संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट 27.02.2007 को लिखायी गयी थी। 11 माह का समय वर्तमान में व्यतीत हो चुका है जिससे कि वाहन का मूल्य भी अत्यधिक कम हो गया है। वर्ष 2005 में 3,64,610.00 रूपये था और यह कहा गया कि 3,64,610.00 रूपये आई0डी0बी0 वैल्यू और दिलायी जाए।
5. विपक्षीगण द्वारा अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि परिवादी द्वारा झूठा मुकदमा दाखिल किया गया है और इन्वेस्टीगेशन के दौरान यह पता चला कि दुर्घटना संदिग्ध है। क्योंकि इनके पिता का स्टेटमेंट दूसरा लिखाया गया है और घटना की सूचना दिनॉंक 27.02.2007 को दी गयी है, वह भी गलत है। परिवादी द्वारा बीमा की शर्तों का उल्लंघन किया गया है, इसलिए परिवादी को कोई भी वाद का कारण उत्पन्न नहीं हुआ है, क्योंकि वाहन का इस्तेमाल कामर्शियल रूप में किया जा रहा था। परिवाद झूठे तथ्यों के आधार पर दाखिल किया गया है।
6. संशोधन के बाद अपने अतिरिक्त कथन में यह कहा गया कि गलत तथ्यों के समायोजन संशोधन के बाद किया गया है और आई0डी0बी0 प्राप्त करने का अधिकारी भी नहीं है।
7. परिवादी ने साक्ष्य में शपथ पत्र, प्राइवेट कार पैकेजिंग पालिसी शेड्यूल, प्रीमियम कम्प्यूटेशन टेबल, इन्श्योरेंस कवर नोट, इस्टीमेट, एवं नोटिस की प्रति दाखिल किया है।
8. उल्लेखनीय है कि इस प्रकरण को अदम पैरवी में निरस्त भी किया गया है, जिसके सापेक्ष में अपील भी दाखिल की गयी है और अपील दाखिल करने के बाद दिनॉंक 27.07.2017 को माननीय राज्य आयोग द्वारा पुन: गुणदोष के आधार पर निस्तारित किये जाने हेतु संस्थित किया गया। अपील के अवलोकन से विदित है कि निर्णय दिनॉंकित 21.08.2009 और 22.11.2019 के आदेश के अनुपालन में यह परिवाद दाखिल किया गया है। इस प्रकरण का एक बार निस्तारण न्यायालय से हो चुका है और पुन: काफी समय तक अपील न्यायालय में लम्बित होने के उपरान्त अपीलीय न्यायालय के बाद पुन: गुणदोष के आधार पर निर्णय पारित किये जाने हेतु आदेश पारित किया गया है।
9. मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
10. परिवादी का कथानक है कि परिवादी वाहन संख्या यू0पी0 32 बी0आर0 5003 का स्वामी है। उक्त कार को वर्ष 2005 में क्रय किया गया था, जिसका इन्जन नम्बर एवं चेसिस नम्बर respectively PB 2591 and PA 9725 था, जो कि आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड से बीमित था जिसका पालिसी नम्बर 3001/1255897/00/000 था तथा जिसकी वैधता दिनॉंक 15 नवम्बर, 2006 तक थी।
11. परिवादी दिनॉंक 29.10.2006 को आई0आई0एम0 ट्रेन्गिल रोड पर 11.00 बजे जब ड्राइवर सहित नौआ खेड़ा से अपने भतीजे का जन्म दिवस मनाने के बाद लौट रहा था तो दुर्घटना कारित हो गयी। वाहन के आगे एक ट्रक चल रहा था और गाय का बछड़ा आगे आ जाने के कारण दुर्घटना हो गयी। ड्राइवर का वैध लाइसेन्स था। सर्वेयर को सूचना दी गयी। बीमा कम्पनी द्वारा सर्वेयर को घटना स्थल पर भेजा गया। सर्वेयर के कहने पर टेलको आर्थराइज्ड सर्विस सेन्टर आटोमोबाइल इंजीनियर्स एवं बॉडी बिल्डर्स, खुर्रमनगर पिकनिक स्पॉट रोड, विकास नगर लखनऊ पर ले जाया गया, और मरम्मत का खर्च 2,00,289.16 रूपये आ रहा था, बताया गया जिसके भुगतान हेतु इन्श्योरेंस कम्पनी को प्रस्ताव भेजा गया परन्तु इन्श्योरेंस कम्पनी द्वारा यह कह कर क्लेम को निरस्त कर दिया कि वाहन को कामर्शियल वाहन के रूप में संचालन किया जा रहा था, जबकि वाहन का रजिस्ट्रेशन इन्श्योरेंस कम्पनी द्वारा प्राइवेट वाहन के रूप में लिया गया था।
12. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि संबंधित वाहन दुर्घटना के समय बीमित था जो कि प्राइवेट कार के रूप में बीमित था। परिवादी का यह कथानक है कि परिवादी जब ड्राइवर सहित नौआ खेड़ा से अपने भतीजे का जन्म दिवस मनाने के बाद लौट रहा था तो दुर्घटना कारित हो गयी। जबकि विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि वाहन कामर्शियल प्रयोजन में इस्तेमाल किया जा रहा था। इस तथ्य को साबित किये जाने का भार कि वाहन कामर्शियल के रूप में संचालित किया जा रहा था विपक्षी के ऊपर है।
13. विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि झूठा मुकदमा लिखाया गया है। इन्वेटीगेशन के दौरान यह पाया गया कि दुर्घटना संदिग्ध है, क्योंकि इनके पिता द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनॉंक 27.02.2007 को दी गयी है, जिसमें बीमा की शर्तों का उल्लंघन किया गया है।
14. परिवादी दिलीप कुमार हैं और प्रथम सूचना रिपोर्ट की तहरीर दिलीप कुमार द्वारा ही दी गयी है और दिलीप कुमार के नाम ही कार रजिस्टर्ड है। पिता द्वारा लिखायी गयी है यह गलत तथ्य के आधार पर कहा गया है। यदि मान भी लिया जाए विपक्षी का कथन कि पिता द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखायी गयी है तो इसका कोई प्रभाव मेरे विचार से नहीं पड़ता है, क्योंकि प्रथम सूचना रिपोर्ट कोई भी लिखा सकता है। अत: विपक्षी का यह कोई आधार तर्कपूर्ण नहीं लगता है। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या कामर्शियल रूप में संचालित किया जा रहा था, अर्थात ड्राइवर इनका था और किसके यहॉं उपरोक्त वाहन कामर्शियल के रूप में इस्तेमाल करते हुए वह वाहन ले गया था, यह विपक्षी को साबित करना है। जबकि परिवादी द्वारा अपनी नोटिस में भी यह लिखा गया है कि यह तथ्य गलत है कि कामर्शियल के रूप में वाहन का इस्तेमाल दुर्घटना के समय किया जा रहा था।
15. विपक्षी द्वारा अपने साक्ष्य के तहत दिलीप कुमार के पिता के बयान का तस्करा किया गया है, तथा यह कहा गया कि उन्होंने विपरीत बयान दिया है। उन्हीं के साक्ष्य में सुन्दरलाल का बयान लिखा है जिसमें यह कहा गया है कि
‘ मैं सुन्दर लाल यादव पुत्र स्व0 बसन्त लाल यादव, निवासी इन्द्रानगर बी ब्लाक समोद्दीपुर लखनऊ यह बयान करता हॅूं कि मैं दिलीप कुमार का पिता हॅूं और व्यापार कर विभाग में सरकारी नौकरी करता हॅूं। मेरे लड़के ने एक टाटा इण्डिका कार जिसका नम्बर यू0पी0 32 बी0आर0 5003 है। दिनॉंक 20.10.2006 को हमारा ड्राइवर सुशील कुमार गाड़ी लेकर नाऊवा खेड़ा गॉंव अपने भॉंजे के बर्थडे पर गया था और वह रात्रि में वह अकेला वापस आ रहा था कि रास्ते में आई.आई.एम. चौराहे के पास आगे से चल रहा एक ट्रक जिसने अचानक ब्रेक ले ली हमारा ड्राईवर गाड़ी तुरन्त संभाल न सका और ट्रक से टकरा गया जिससे गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गयी, जबकि ड्राइवर का कोई चोट नहीं आयी। जब एक्सीडेन्ट हुआ था उस वक्त मेरी गाड़ी किसी भी प्रकार से कोई टैक्सी में नहीं थी, उसमें सिर्फ मेरा ड्राइवर था। ड्राइवर के अलावा कोई अन्य व्यक्ति (सवारी) नहीं थी। मेरे परिवार में मेरी पत्नी के अलावा तीन लड़के और एक बहू है जिसके दो बड़े लड़के अपना खुद का व्यापार करते हैं। छोटा लड़का पढ़ता है। मेरे परिवार की समस्त स्रोतों से आय लगभग अटठरह से बीस हजार रूपये पर मन्थ है।’
इससे भी स्पष्ट है कि कामर्शियल रूप में वाहन नहीं चल रहा था और यह साबित होता है कि दुर्घटना हुई थी तथा मरम्मत में जो धनराशि व्यय हुई है, और सर्वेयर की रिपोर्ट के हिसाब से जो धनराशि बनती है वह परिवादी पाने का हकदार है। यह तथ्य कि वाहन का कामर्शियल उपयोग हो रहा था विपक्षी साबित करने में असफल रहा है, तथा विपक्षी द्वारा स्पष्टत: सेवा में कमी की गयी है।
16. परिवाद पत्र के परिशीलन से विदित है कि परिवाद कई बार खारिज हुआ है, तथा राज्य आयोग में भी गया है। राज्य आयोग से आने के उपरान्त परिवाद में पुन: सुनवाई शुरू हुई है। अंतिम बार सुनवाई की तिथि के लिये जब पुन: राज्य आयोग से पत्रावली पुर्नस्थापित हुई है उस दिन से ब्याज दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है। अत: परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि सर्वेयर द्वारा आंकलित धनराशि मुबलिग 2,00,289.00 (दो लाख दो सौ नवासी रूपया मात्र) 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक निर्णय के 45 दिन के अन्दर अदा करेंगें। परिवादी को हुए मानसिक उत्पीड़न के लिये मुबलिग 20,000.00 (बीस हजार रूपया मात्र) एवं वाद व्यय के लिये मुबलिग 10,000.00(दस हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगें। यदि निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
निर्णय की प्रति उभयपक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करायी जाएा
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक-01.02.2023