राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-1680/2011
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-425/2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-08-2011 के विरूद्ध)
अशफाक खान पुत्र जमालुद्दीन निवासी 11/2 बी-टाइप आवास विकास-1, कानपुर नगर। ......... अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम
1. आईसीआईसीआई बैंक लि0, दि माल रोड कानपुर नगर द्वारा मैनेजर।
2. श्री तिरुपति मोटर्स द्वारा पार्वती बंगला रोड कोहना कानपुर नगर द्वारा प्रोपराइटर/पार्टनर। .......... प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री आलोक सिन्हा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित: श्री प्रशान्त कुमार विद्वान अधिवक्ता के कनिष्ठ
सहायक अधिवक्ता श्री हेमंत कुमार।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।
दिनांक :- 08-07-2024.
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-15 के अन्तर्गत, जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-425/2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-08-2011 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में परिवादी का कथन इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी नं० 1 से वित्तीय ऋण प्राप्त कर विपक्षी नं० 2 से हीरोहाण्डा मोटर साइकिल खरीदी थी परिवादी ने प्राप्त ऋण को नियमानुसार अदा कर दिया। अब विपक्षी का कोई बकाया नहीं है। किसी प्रकार की धनराशि बकाया न होने के कारण परिवादी की मोटर साइकिल का पंजीकरण प्रमाण पत्र तथा अनापत्ति प्रमाण पत्र विपक्षी द्वारा जारी
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नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण परिवादी को वाहन चालने में असुविधा होती है। इस सम्बंध में परिवादी का कई बार चालान हो चुका है। विपक्षीगण द्वारा पंजीकरण प्रमाण पत्र तथा अनापत्ति प्रमाण पत्र न दिये जाने के कारण परिवादी ने विपक्षी को नोटिस जारी की, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं मिला। अतः परिवादी द्वारा उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी नं० 2 ने अपना जवाब दावा प्रस्तुत करते हुए विद्वान जिला आयोग के समक्ष यह कथन किया कि विपक्षी नं० 2 का कोई सम्बंध विपक्षी नं० 1 से नहीं है। प्रश्नगत अभिलेख विपक्षी के पास नहीं हैं। परिवादी ने विपक्षी नं० 2 के विरूद्ध कोई आरोप नहीं लगाया है। इस प्रकार परिवादी किसी प्रकार की धनराशि विपक्षी नं० 2 से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत वाद विपक्षी नं० 2 के विरुद्ध निरस्त किया जाए।
विपक्षी सं0-1 द्वारा कोई जवाब दावा प्रस्तुत नहीं किया गया।
बहस के दिन जिला आयोग के समक्ष पक्षकार अनुपस्थित थे। अतः पक्षकारों को बहस हेतु दिया गया समय समाप्त किया गया।
विद्वान जिला आयोग ने पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों के अवलोकन के उपरान्त अपने निष्कर्ष यह उल्लिखित किया कि परिवादी तथा विपक्षीगण के मध्य मुख्य रूप ग्रह विवाद है कि क्या परिवादी ऋण ली गयी धनराशि के अदा करने के कारण परिवादी पंजीकरण प्रभाण पत्र और अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी ने प्रश्नगत मोटर साइकिल का कोई नम्बर अपने परिवाद पत्र में अंकित नहीं किया है। परिवादी के कथनों से स्पष्ट होता है कि हीरा हाण्डा मोटर साइकिल के लिए विपक्षी नं० 1 से ऋण प्राप्त कर विपक्षी नं 2 से खरीदा था। विपक्षीगण के पास पंजीकरण प्रमाण पत्र होने के सम्बंध में कोई अभिलेख परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी ने ऐसा कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया है. जिससे यह स्पष्ट हो सके कि पंजीकरण प्रमाण पत्र विपक्षीगण के यहां जमा है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत्त विक्रय पत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी
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ने दिनांक 26.09.03 को हीरो हाण्डा मोटर साइकिल खरीदी थी, लेकिन इस अभिलेख में कहीं भी पंजीकरण प्रमाण पत्र विपक्षीगण के पास होने की बात अंकित नहीं है। परिवादी ने ऐसा कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि परिवादी ने प्रश्नगत मोटर साइकिल का पंजीकरण नियमानुसार कराया था। ऐसी अवस्था में पंजीकरण अभिलेख वापस किये जाराने का कोई औचित्य नहीं है। यह परिवादी का दायित्व है कि मोटर साइकिल खरीदने के पश्चात् उसका पंजीकरण सम्बंधित कार्यालय से नियमानुसार कराये। इससे विपक्षीगण का कोई सम्बंध नहीं है। जहां तक अनापत्ति प्रमाण पत्र का सम्बंध है. परिवादी ने इस सम्बंध में किसी प्रकार के अनुतोष की मांग नहीं की है। परिवादी ने केवल यह वाद क्षतिपूर्ति प्राप्त करने को सम्बंध में प्रस्तुत किया है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर विद्वान जिला आयोग ने परिवादी को किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति का अधिकारी न पाते हुए परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध निरस्त कर दिया।
हमारे द्वारा केवल अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा पत्रावली का सम्यक् रूप से परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
मूल रूप में परिवाद फाइनेंसर आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक तथा विक्रेता तिरूपति मोटर्स के विरूद्ध योजित किया गया था। परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण ने पंजीकरण प्रमाण पत्र एवं ऋण अदा हो जाने पर अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान नहीं किया। विद्वान जिला आयोग ने परिवादी को किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी न मानते हुए परिवाद को खारिज कर दिया। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत विक्रय पत्र से स्पष्ट होता है कि उसने हीरो होण्डा मोटरसाईकिल खरीदी थी। परिवादी का यह दायित्व था कि वह मोटरसाईकिल का पंजीयन नियमानुसार कराता। इससे विपक्षीगण का कोई सम्बन्ध नहीं है।
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प्रत्यर्थी सं0-1 बैंक द्वारा प्रश्नगत वाहन का केवल फाइनेंस किया गया था। उसके द्वारा पंजीकरण प्रमाण पत्र दिए जाने का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता है और पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जिससे यह स्पष्ट माना जा सके कि विपक्षीगण का दायित्व था कि वे वाहन का पंजीकरण कराते। इस सम्बन्ध में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 40 निम्नवत् उल्लिखित है, जिसमें यह उल्लिखित है कि वाहन स्वामी का दायित्व पंजीकरण कराने का होता है :-
40. Registration, where to be made.—Subject to the provisions of section 42, section 43 and section 60, every owner of a motor vehicle shall cause the vehicle to be registered by a registering authority in whose jurisdiction he has the residence or place of business where the vehicle is normally kept
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि वाहन का पंजीकरण कराने का दायित्व परिवादी का था और विपक्षीगण द्वारा पंजीकरण प्रमाण पत्र दिए जाने का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता है, जैसा कि परिवाद पत्र में मांगा गया था।
तदनुसार पीठ के अभिमत में विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत है और उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-425/2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-08-2011 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थीगण द्वारा यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत कोई धनराशि जमा की गई हो तो वह सम्पूर्ण धनराशि मय अर्जित ब्याज के सम्बन्धित जिला आयोग को विधि अनुसार एक माह में प्रेषित कर दी जाए
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ताकि विद्वान जिला आयोग द्वारा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश के सन्दर्भ में उक्त धनराशि का विधि अनुसार निस्तारण किया जा सके।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
दिनांक :- 08-07-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-3.