(सुरक्षित)
अपील सं0- 3379/2017
ब्रांच मैनेजर इलाहाबाद बैंक बनाम हृदयानंद व अन्य
आदेश
दिनांक:- 30.11.2018
परिवाद सं0- 69 वर्ष 2013 हृदयानंद बनाम शाखा प्रबंधक इलाहाबाद बैंक शाखा बरहज देवरिया व एक अन्य में जिला फोरम देवरिया द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 18.07.2016 के विरुद्ध यह अपील विपक्षी सं0- 1 बैंक ने अपील हेतु निर्धारित समय-सीमा के बाद विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्तुत किया है। विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के विरुद्ध प्रत्यर्थी/परिवादी ने आपत्ति प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री शरद कुमार शुक्ला और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी सं0- 2 जो परिवाद में विपक्षी सं0- 2 है की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने उभय-पक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपील प्रस्तुत करने में विलम्ब जानबूझकर नहीं किया गया है। विलम्ब परिस्थिति वश हुआ है। विलम्ब क्षमा कर अपील का निस्तारण गुण-दोष के आधार पर किया जाये।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपील एक साल से भी अधिक बाद प्रस्तुत की गई है। विलम्ब क्षमा करने हेतु उचित आधार नहीं है।
मैंने उभय-पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
आक्षेपित निर्णय दि0 18.07.2016 को एकपक्षीय रूप से अपीलार्थी बैंक के विरुद्ध पारित किया गया है। अपील दि0 21.12.2017 को प्रस्तुत की गई है। विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के समर्थन में प्रस्तुत शपथ पत्र में अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब का कारण यह बताया गया है कि ब्रांच मैनेजर ने उचित कार्यवाही नहीं की जिससे परिवाद में एकपक्षीय रूप से आक्षेपित निर्णय अपीलार्थी/बैंक के विरुद्ध पारित किया गया है। अपीलार्थी/बैंक के वर्तमान शाखा प्रबंधक शपथकर्ता राकेश रंजन को आक्षेपित निर्णय एवं उसके निष्पादन की कार्यवाही की जानकारी दि0 13.12.2017 को निष्पादन की कार्यवाही की जानकारी प्राप्त होने के पहले नहीं थी। दिनांक 13.12.2017 को जानकारी होने पर उन्होंने आक्षेपित निर्णय की प्रमाणित प्रति प्राप्त किया है और जोनल कार्यालय से अनुमति लेकर अपील प्रस्तुत किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने आपत्ति प्रस्तुत कर विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र का विरोध किया है।
आक्षेपित निर्णय की जो प्रति अपील के साथ प्रस्तुत की गई है उसमें दिनांक 19.07.2016 को निर्णय की नि:शुल्क प्रति विपक्षी को जारी की गई की प्रविष्टि अंकित है। अपीलार्थी/विपक्षी ने निर्णय की नि:शुल्क प्रति दिनांक 19.07.2016 प्राप्त होने से स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया है। शपथकर्ता राकेश रंजन के शपथ पत्र से स्पष्ट है कि उनसे पहले दूसरे शाखा प्रबंधक बैंक की सम्बन्धित ब्रांच पर थे, परन्तु उनका शपथ पत्र प्रस्तुत कर नि:शुल्क प्रति दिनांक 19.07.2016 बैंक को प्राप्त होने से इनकार नहीं किया गया है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि बैंक को नि:शुल्क प्रति दिनांक 19.07.2016 जारी की गई है और बैंक को आक्षेपित निर्णय की जानकारी रही है। अत: अपील हेतु मियाद दि0 18.08.2016 तक थी, परन्तु अपील मियाद समाप्त होने के एक साल चार महीना बाद प्रस्तुत की गई है। उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि बैंक ने निर्णय की जानकारी होते हुए भी अपील प्रस्तुत नहीं की है। आक्षेपित निर्णय की जानकारी दिनांक 13.12.2017 के पहले अपीलार्थी/बैंक को नहीं थी यह कहना सही नहीं है। परिवाद में अपीलार्थी/बैंक नोटिस तामीला के बाद भी उपस्थित नहीं हुआ है, अत: परिवाद उसके विरुद्ध एकपक्षीय रूप से निर्णीत किया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी सं0- 2 के अधीन पेट्रोल मैन के पद पर कार्यरत रहते हुए अपीलार्थी/बैंक से एक लाख रूपया लोन लिया जिसका भुगतान 3320/-रू0 की 36 किस्तों में होना था। ऋण की सभी किस्तों का भुगतान उसके वेतन से प्रत्यर्थी सं0- 2 के माध्यम से किया गया और अन्तिम किस्त का भुगतान जुलाई 2007 में किया गया। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी दि0 10.10.2011 को सेवानिवृत्त हो गया तब बैंक ने प्रताडि़त कर उससे 53078/-रू0 की धनराशि गलत ढंग से वसूल की है और अभी भी ऋण धनराशि अवशेष दिखाई जा रही है।
अपीलार्थी/बैंक ने जिला फोरम के समक्ष उपस्थित होकर परिवाद का विरोध नहीं किया है। अपीलार्थी/बैंक ने जुलाई 2007 तक प्रत्यर्थी/परिवादी के वेतन से प्रत्यर्थी सं0- 2 के माध्यम से प्राप्त किस्तों का विवरण अपील के साथ प्रस्तुत नहीं किया है। अपील के साथ मात्र प्रत्यर्थी/परिवादी के एकाउंट का स्टेटमेंट प्रस्तुत किया है जो दिनांक 09.03.2009 से 19.12.2017 की अवधि का है। जब कि अपीलार्थी/बैंक को प्रत्यर्थी/परिवादी ने लोन की किस्तें जुलाई 2007 तक जमा करना बताया है। जिला फोरम का निर्णय उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर दोष पूर्ण नहीं दिखता है।
उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि अपील बहुत विलम्ब पूर्ण है और विलम्ब क्षमा कर अपील ग्रहण करने हेतु उचित आधार नहीं है। अत: विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है और अपील काल बाधा के आधार पर अस्वीकार की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0- 1