(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 493/2012
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, महामाया नगर द्वारा परिवाद सं0- 79/2008 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.02.2012 के विरुद्ध)
बजरंग शीतगृह प्रा0लि0 विर्रा पोस्ट के0जी0डब्लू0 सासनी जिला महामायानगर (हाथरस) द्वारा डायरेक्टर रमेश चन्द्र वर्मा।
..........अपीलार्थी
बनाम
होरी लाल पुत्र उदयवीर सिंह नि0 बघराया पोस्ट बघराया जिला महामायानगर।
..........प्रत्यर्थी
समक्ष:-
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
माननीया डॉ0 आभा गुप्ता, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से : श्री ओ0पी0 दुवेल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक:- 11.05.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 79/2008 होरी लाल बनाम शीतगृह स्वामी, बजरंग शीतगृह प्रा0लि0 में जिला उपभोक्ता आयोग, महामाया नगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 07.02.2012 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
2. संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी के शीतगृह में दि0 19.02.2008 को 156 पैकेट लाट सं0- 1532 तथा 96 पैकेट लाट सं0- 1533 रखा था प्रत्येक पैकेट में 50 कि0ग्रा0 आलू थे। अपीलार्थी/विपक्षी ने उक्त आलू शीतगृह के खुले मैदान में रखवा दिए थे जिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने आपत्ति की थी, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू खराब न होने का आश्वासन दिया जिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने विश्वास कर रसीद लेकर घर चला आया। दि0 14.03.2008 को मूल कुमार के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को यह जानकारी मिली कि उसका आलू खुले मैदान में धूप में रखा है। दि0 15.03.2008 को जब प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षी के शीतगृह पर पहुंचा तो उसने आलुओं को खुले मैदान में रखे हुए देखा, जिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी से आपत्ति की। विशेष अनुरोध पर अपीलार्थी/विपक्षी ने आलुओं को चैम्बर में रखवाया और आश्वासन भी दिया कि आलू नहीं सड़ेगा। यदि आलू सड़ जाता है तो उसकी कीमत प्रत्यर्थी/परिवादी को दी जायेगी। दि0 21.09.2008 को प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज पर गया तो अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी से कहा कि यदि लाट सं0- 1532 के 158 पैकेट के आलुओं को बेचना चाहता है तो वह सही रेट पर विक्रय करा देगा। अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी से निकासी की पुस्तक पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने हस्ताक्षर कर दिया। दि0 29.09.2008 को प्रत्यर्थी/परिवादी पुन: अपीलार्थी/विपक्षी के शीतगृह पर गया तो अपीलार्थी/विपक्षी ने सस्ते रेट का बहाना बना कर एक सप्ताह रुकने के लिए कहा। अपीलार्थी/विपक्षी ने पुन: निकासी की बुक पर हस्ताक्षर करा लिए। प्रत्यर्थी/परिवादी दि0 15.10.2008 को पुन: शीतगृह पर गया तो अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा कि प्रत्यर्थी/परिवादी के दोनों लाटों के आलू खराब होने के कारण किसी व्यापारी ने नहीं खरीदे हैं अपने आलू ले जाओ और शीतगृह का भाड़ा जमा कर दो। अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के आलुओं को खुली धूप में रखा था। शीतगृह की मशीन खराब होने के कारण और चैम्बरों में पर्याप्त मात्रा में गैस न छोड़ने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी का आलू सड़ गया जो अपीलार्थी/विपक्षी की घोर लापरवाही का द्योतक है, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
3. अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपने वादोत्तर में प्रत्यर्थी/परिवादी को उपभोक्ता होना स्वीकार किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने द्वारा दिलाये गये नोटिस दि0 20.11.2008 में दिए गए समय का इंतजार किए बिना वाद दायर कर दिया। अपीलार्थी/विपक्षी उक्त नोटिस का जवाब तैयार करा रहा था कि अपना आलू शीतगृह से उठा लो, किन्तु उससे पहले ही परिवाद की नोटिस प्राप्त हो गई। प्रत्यर्थी/परिवादी ने लाट सं0- 1533 में 96 पैकेट रखे थे जिनमें से 01 पैकेट सैम्पल हेतु रखा था शेष 95 पैकेट का 130/-रू0 पैकेट के हिसाब से सौदा कर दिया था और प्रत्यर्थी/परिवादी ने आलू बेच दिया था तथा पैसा शीतगृह में जमा कर दिया था। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी आलू के भाव बढ़ने का इंतजार करता रहा, आलू का भाव इतना गिर गया कि शीतगृह का भाड़ा भी अदा करना कठिन हो गया। प्रत्यर्थी/परिवादी आलू उठाने नहीं आया जब कि अपीलार्थी/विपक्षी बार-बार सूचना देता रहा, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी को कोई नोटिस नहीं दिया। शीतगृह का भाड़ा 54/-रू0 प्रति पैकेट था। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा आलू न उठाने तथा शीतगृह का भाड़ा न देने के कारण अपीलार्थी/विपक्षी ने शेष बचा आलू शीतगृह के नियम के अनुसार नीलाम कर दिया जिसका पैसा प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में जमा कर दिया, अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद खण्डित किए जाने योग्य है।
4. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को आलू की कीमत अंकन 18,034/-रू0 आदेश की तिथि से 30 दिन के अन्दर अदा करे तथा 2,000/-रू0 परिवाद व्यय भी अदा करें, जिससे व्यथित होकर अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गई है।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री ओ0पी0 दुवेल को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया।
6. इस वाद में उभयपक्ष के मध्य विवाद का प्रश्न यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी शीतगृह में आलुओं का रखा जाना दोनों पक्षों को स्वीकार है कि अपीलार्थी/विपक्षी का कथन यह है कि आलू की निकासी के समय आलू का रेट इतना अधिक गिर गया था कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने इसे वापस लेना उचित नहीं समझा, अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का आलू शीतगृह द्वारा बेच दिया गया। बेचे गये आलू के मूल्य में से भाड़े आदि का किराया समायोजित करने के उपरांत धनराशि देना अपीलार्थी/विपक्षी ने स्वीकार किया।
7. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा आलू न निकालने के सम्बन्ध में साक्ष्य की विवेचना करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बेचे गए आलू की रसीद आदि प्राप्त नहीं की गई है। आलुओं की निकासी के सम्बन्ध में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से गेटपास की छायाप्रति प्रस्तुत की गई, जिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी के कोई हस्ताक्षर नहीं पाये गए। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा आलू की निकासी होना भी साबित नहीं होता है।
8. उपरोक्त साक्ष्य का अवलोकन करते हुए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने वर्ष 2008 की आलू के रेट 250/-रू0 प्रति कुन्तल के हिसाब से आलू का भाव प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलवाया जाना उचित पाया और इसमें से आलुओं का भाड़ा एवं बोरे की कीमत काटकर शेष धनराशि आज्ञप्त की। निष्कर्ष में कोई त्रुटि नहीं प्रतीत होती है।
9. अपीलार्थी की ओर से आपत्ति यह भी उठायी गई कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने आलू का रेट अत्यधिक लगाया है जब कि वर्ष 2008 में आलुओं का रेट गिर जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को दी जाने वाली धनराशि अत्यधिक है। इस कारण विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग का निष्कर्ष उचित नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से वर्ष 2008 में आलुओं के रेट अथवा इस सम्बन्ध में उद्यान अधिकारी की कोई रिपोर्ट इत्यादि प्रस्तुत नहीं की गई। इस सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार के वेबसाइट Desagri.gov.in में प्रदान किए गए कृषि उत्पादों के मूल्यों की सूची का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2008 में मा0 केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी आलू की सपोर्ट प्राइस 257/-रू0 दी गई है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने 250/-रू0 प्रति कुन्तल आलुओं का मूल्य रखा है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी न्यूनतम सपोर्ट प्राइस से कम ही है। उक्त वेबसाइट के एग्रीकल्चर प्राइस इन इंडिया 2008-09 कृषि उत्पादों की तालिका सं0- 2.22 में उ0प्र0 में वर्ष 2008 में मैनपुरी 266/-रू0 तथा मैनपुरी सफेद आलू का दाम 266/-रू0 अंकित है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा आलुओं की दर निश्चित की गई है जो उचित प्रतीत होती है। उक्त मामला हाथरस जनपद का है एवं इस इलाके में किस्म मैनपुरी सफेद आलू का मूल्य जो दिलवाया गया है वह उचित है, अत: प्रश्नगत निर्णय में कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय व आदेश पुष्ट होने योग्य एवं अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
10. अपील निरस्त की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (डॉ0 आभा गुप्ता)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-3