Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/232/2012

MEERA SINGH - Complainant(s)

Versus

HOME SOLUTION - Opp.Party(s)

09 Sep 2022

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/232/2012
( Date of Filing : 14 Mar 2012 )
 
1. MEERA SINGH
.
...........Complainant(s)
Versus
1. HOME SOLUTION
.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya PRESIDENT
 HON'BLE MS. sonia Singh MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 09 Sep 2022
Final Order / Judgement

        जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।

            परिवाद संख्‍या:-   232/2012                                             उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्‍यक्ष।

                    श्री अशोक कुमार सिंहसदस्‍य।

         श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्‍य।             

परिवाद प्रस्‍तुत करने की तारीख:-14.03.2012

परिवाद के निर्णय की तारीख:-09.09.2022

श्रीमती डॉ0 मीरा सिंह, पत्‍नी श्री पी0के0 सिंह निवासी 3/72 बहार बी, सहारा स्‍टेट, जानकीपुरम, लखनऊ।

                                                  ..............परिवादिनी।                                             

                     बनाम

प्रबन्‍धक, होम सोलूशन्‍स (इण्डिया) लि0, होम टाउन, फिनिक्‍स मॉल, आलमबाग लखनऊ।                                               ............विपक्षी।

 

परिवादी के अधिवक्‍ता का नाम:-श्री अमित जायसवाल।

विपक्षी के अधिवक्‍ता का नाम:-श्री बीरेन्‍द्र प्रसाद सिंह।

                                                    

आदेश द्वारा-श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्‍य।

 

                               निर्णय

1.   परिवादिनी ने प्रस्‍तुत परिवाद धारा 12 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत विपक्षी से क्रय किया गया सोफा सेट बदल कर दूसरा सही सोफा सेट दे या परिवादिनी को सोफे की कीमत 20,298.00 रूपये दिनॉंक 12.07.2009 से वास्‍तविक अदायगी तक 18 प्रतिशत ब्‍याज, मानसिक, शारीरिक प्रताड़ना व आर्थिक नुकसान 50,000.00 रूपये, एवं वाद व्‍यय 5,500.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्‍तुत किया है।

2.   संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने विपक्षी के लुभावने प्रचार से प्रभावित होकर दिनॉंक 12.07.2009 को एक सोफासेट अल्‍पलाइन 20,298.00 रूपये में क्रय किया। सोफा खरीदने के सात आठ माह के बाद ही सोफे में खराब आ गयी जिसकी सूचना परिवादिनी ने विपक्षी को तुरन्‍त दिया। विपक्षी को सूचित करने के उपरान्‍त भी विपक्षी के कारीगर सोफा ठीक करने नहीं आए जबकि विपक्षी ने आश्‍वासन दिया था कि सोफा मैकेनिक जाकर ठीक कर देगा।

3.   विपक्षी द्वारा जब कोई सुनवायी नहीं की गयी तो परिवादिनी ने सितम्‍बर 2011 में विपक्षी के मुख्‍य कार्यालय में मेल द्वारा शिकायत दर्ज करायी गयी। मेल करने के उपरान्‍त विपक्षी के मिस्‍त्री दिनॉंक 09.10.2011 को रिपोर्ट लिखी तथा परिवादिनी ने असन्‍तुष्‍ट होकर रिपोर्ट लिखी। विपक्षी से परिवादिनी ने आग्रह किया कि खराब सोफा बदल कर नया सोफा दे दें या परिवादिनी की धनराशि अपना खराब सोफा लेकर वापस कर दें, लेकिन विपक्षी ने न तो सोफा ठीक करवाया और न ही धनराशि वापस किया। विपक्षी के इस कृत्‍य से परिवादिनी को घोर मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्‍ट हुआ।

4.   विपक्षी की ओर से अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत करते हुए परिवाद पत्र की पोषणीयता पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाया है तथा अवगत कराया है कि शिकायत विपक्षी के यहॉं लगभग दो वर्ष के बाद दर्ज कराया था। जबकि परिवादी द्वारा वस्‍तु की खरीददारी दिनॉंक 12.07.2009 को की गयी है और वस्‍तु की गारन्‍टी 08.07.2010 को समाप्‍त हो गयी है। इसलिये परिवाद पोषणीय नहीं है और कमियों के लिये विपक्षी उत्‍तरदायी नहीं माना जा सकता है।

5.   विपक्षी द्वारा सभी आरोपो और कथनों से इनकार किया गया है और परिवाद के कथनों को गलत ठहराते हुए परिवादिनी को प्रमाण देने के लिये कहा है। परिवादिनी को परिवाद के हक से वंचित करता है जो उन्‍होंने इस आयोग से मॉंग की है, क्‍योंकि यह परिवाद इस आयोग के क्षेत्राधिकार से बाहर है। इसलिये यह परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है। परिवादिनी द्वारा विपक्षी को प्रताडि़त करने के उद्देश्‍य से यह परिवाद दाखिल किया गया है जो केवल उसके स्‍वार्थ के हितों के संरक्षण के लिये दायर किया गया है। इसके अतिरिक्‍त परिवादिनी द्वारा सेवा में कमी के मामले को प्रमाणित करने में विफल है, इसलिये विपक्षी को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 26 के अन्‍तर्गत क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी भी नहीं है।

6.   विपक्षी का कथन है कि परिवादी ने विपक्षी से सोफासेट दिनॉंक 12.07.2009 को खरीदा था और दिनॉंक 18.07.2009 को मामूली शिकायत की जिसे तत्‍काल सुधार कर दिया गया था और समस्‍या समाप्‍त हो गयी थी। परिवादी का यह कहना कि उनकी कई शिकायत हैं बिल्‍कुल गलत और निराधार है और उससे इनकार किया जाता है। परिवादिनी द्वारा दिनॉंक 18.07.2009 को केवल एक काल किया गया था जो अंतिम था। विपक्षी का कथन है कि परिवादिनी द्वारा उसके दो साल बाद जब वारन्‍टी समाप्‍त हो गयी थी पुन: शिकायत की गयी और सोफा में कमी बतायी गयी। इस शिकायत पर भी मरम्‍मत करने वाले मिस्‍त्री को भेजा गया था, परन्‍तु परिवादिनी कोई शुल्‍क भुगतान करने को तैयार नहीं थी और मरम्‍मत शुल्‍क के बिना वारन्‍टी के बाद मरम्‍मत संभव नहीं हो सकती।

7.   निशुल्‍क मरम्‍मत केवल वारन्‍टी अवधि में ही दी जा सकती है। विपक्षी का कथन है कि वारन्‍टी अवधि के बाद कोई दायित्‍व और जिम्‍मेदारी निशुल्‍क मरम्‍मत की नहीं होती है। परिवादिनी विलम्‍ब के लिये स्‍वयं जिम्‍मेदार है और परिवादिनी ने सेवा में कमी को प्रमाणित करने में विफल रही है, इसलिये यह परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है और किसी भी क्षतिपूर्ति के दावे की हकदार नहीं है। विपक्षी का कथन है कि इसी आधार पर इस परिवाद को भारी भुगतान पर निरस्‍त किया जाये।

8.   परिवादिनी ने अपने कथन/परिवाद के समर्थन में शपथ पत्र एवं सोफा खरीदने की रसीद एवं मेल भेजे जाने का प्रपत्र आदि दाखिल किया है।

9.   विपक्षी की ओर से शपथ पत्र तथा आपत्ति एवं साक्ष्‍य प्रस्‍तुत किया गया है और लिखित कथन के तथ्‍यों एवं तर्को को पुन: दोहराया है और अवगत कराया है कि परिवादिनी का परिवाद पोषणीय नहीं है और परिवादिनी के कथनों को गलत ठहराते हुए कहा है कि परिवादिनी ने केवल अपने स्‍वार्थ की पूर्ति के लिये ही यह परिवाद प्रस्‍तुत किया है जो सत्‍य से परे है।

10.  पत्रावली का परिशीलन किया तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध तथ्‍यों एवं साक्ष्‍यों का परीक्षण किया जिससे प्रतीत होता है कि परिवादिनी ने विपक्षी के लुभावने प्रचार से प्रभावित होकर दिनॉंक 12.07.2009 को एक सोफा सेट अलपाइन 20,298.00 रूपये में क्रय किया जो सात आठ महीने बाद खराब हो गया। उक्‍त खराबी के बारे में विपक्षी को सूचित किया गया, परन्‍तु कोई भी सोफा ठीक करने नहीं आया। तत्‍पश्‍चात सितम्‍बर 2011 में विपक्षी को मेल द्वारा शिकायत किया तब विपक्षी का मिस्‍त्री दिनॉंक 09.10.2011 को आया, परन्‍तु परिवादिनी उससे संतुष्‍ट नहीं हुई और सोफा बदलने के लिये कहा, परन्‍तु परिवादिनी के अनुसार विपाी ने न तो सोफा ठीक कराया और न ही उसे बदला।

11.  परिवादिनी ने आरोप लगाया कि विपक्षी का कार्य अनुचित व्‍यापार प्रक्रिया का है जिससे उसे घोर मानसिक, आर्थिक व शारीरिक कष्‍ट झेलना पड़ा। विपक्षी द्वारा अवगत कराया गया कि परिवादिनी द्वारा दिनॉंक 12.07.2009 को सोफा खरीदा और जब दिनॉंक 18.07.2009 को शिकायत की तो उसे ठीक करा दिया गया और समस्‍या समाप्‍त हो गयी थी। विपक्षी ने कहा कि परिवादिनी उसके दो साल के बाद सोफा में कमी बतायी तब भी सोफा ठीक करने वाले मिस्‍त्री को भेजा गया, परन्‍तु मरम्‍मत वारन्‍टी के बाद होने के कारण मरम्‍मत शुल्‍क मॉंगा गया तो परिवादिनी ने शुल्‍क देने से मना कर दिया जिसके कारण मरम्‍मत संभव नहीं हो सका।

12.  विपक्षी का कथन है कि निशुल्‍क मरम्‍मत वारन्‍टी अवधि में ही की जा सकती है और वारन्‍टी के बाद विपक्षी का मरम्‍मत का दायित्‍व नहीं होता है। विपक्षी का यह भी कथन है कि परिवादिनी का क्षतिपूर्ति एवं अन्‍य दावा गलत है और उनके द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है।  किसी वस्‍तु की खरीद के मामले में यदि उस वस्‍तु में खरीद के बाद खराबी आती है तो विक्रेता का वारन्‍टी अवधि में उसे निशुल्‍क मरम्‍मत का दाचित्‍व होता है, और यदि वस्‍तु ठीक होने लायक न हो यह या उसमें बनावट की त्रुटि हो जिससे उपभोक्‍ता उस वस्‍तु को सही ढंग से इस्‍तेमाल नहीं कर पा रहा हो तो विक्रेता का दायित्‍व होता है कि उस वस्‍तु को बदल कर नया सेट उपलब्‍ध कराये। वारन्‍टी के बाद विक्रेता मरम्‍मत शुल्‍क मांगने का हकदार होता है। ऐसे मामले में उपभोक्‍ता को वस्‍तु की मरम्‍मत के लिये भुगतान करना चाहिए।

13.  पत्रावली में उपलब्‍ध तथ्‍यों के परिशीलन से प्रतीत होता है कि परिवादिनी द्वारा दिनॉंक 12.07.2009 को विपक्षी के यहॉं से सोफा सेट खरीदा गया था और जो ईमेल आई की कापी तथा जॉब कार्ड की छायाप्रति अपने साक्ष्‍य में संलग्‍न की है वह सितम्‍बर, 2011 और अक्‍टूबर, 2011 की है। अत: यह सभी साक्ष्‍य वारन्‍टी अवधि के बाद के हैं। अर्थात यदि सोफा दिनॉंक 12.07.2009 को क्रय किया गया था और वारन्‍टी दो साल की थी तो वारन्‍टी अवधि दिनॉंक 11.07.202011 तक वैध थी, परन्‍तु परिवादिनी ने जो शिकायत ईमेल तथा जॉबकार्ड की प्रति संलग्‍न की है वह सितम्‍ब एवं अक्‍टूबर 2011 की है, जो वारन्‍टी अवधि के बाद की हैं। परिवादिनी का सोफा यदि दिनॉंक 11.07.2011 के पूर्व खराब हुआ होता तो विक्रेता का दाचित्‍व था कि वह उसे निशुल्‍क ठीक कराता और यदि ठीक करने योग्‍य नहीं था, जैसा कि परिवादिनी का कथानक है तो विक्रेता को उक्‍त सोफा बदलने की जिम्‍मेदारी बनती थी।

14.  FURNITURE FITTING JOB CARD में परिवादिनी द्वारा उल्‍लेख किया गया है कि “THE SOFA SET IS TOTALLY DEFECTIVE ”  और इसमें अनुरोध किया गया है कि इसे तत्‍काल बदल दिया जाये और शिकायत की गयी है कि परिवादिनी ठगा हुआ महसूस कर रही है। परन्‍तु यह जॉब कार्ड दिनॉंक 09.10.2011 का है और वारन्‍टी अवधि के बाद का है। परिवादिनी द्वारा जो ईमेल संलग्‍न किया गया है वह सितम्‍बर, 2011 का है और यह ईमेल द्वारा भेजी गयी शिकायत भी वारन्‍टी अवधि के बाद की है। विपक्षी वारन्‍टी अवधि के बाद निशुल्‍क मरम्‍मत या वस्‍तु के बदलने के दायित्‍व के अन्‍तर्गत नहीं आता है और उसे इसके लिये बाध्‍य नहीं किया जा सकता है।

15.  उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 उपभोक्‍ताओं के हित की रक्षा के दृष्टिगत बनाया गया है परन्‍तु इसका अर्थ कदाचित नहीं है कि उपभोक्‍ता इसका दुरूपयोग करें और विपक्षी पर अपने स्‍वार्थ हित के लिये अनुचित दबाव डाले, उसका शोषण करने के लिये अतिरिक्‍त क्षतिपूर्ति तथा नुकसान की मॉंग के लिये इसका इस्‍तेमाल करें। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के उपबन्‍धों तथा प्रावधानों के द्वारा किसी भी प्रकार से इसके दुरूपयोग की इजाजत नहीं देता है।

16.  परिवादिनी एक उपभोक्‍ता है और उसने एक सोफा विपक्षी के यहॉं से क्रय किया जो दो साल के बाद बिल्‍कुल खराब हो गया सामान्‍य तौर पर इतनी जल्‍दी किसी सोफा का बिल्‍कुल खराब होना दुर्लभ प्रतीत होता है। ऐसा सामान्‍य रूप से नहीं होता है। इसलिये उपभोक्‍ता हितों के अन्‍तर्गत परिवादिनी को वारन्‍टी समान्‍त होने के कारण सोफा के निशुल्‍क मरम्‍मत तथा बदलने एवं क्षतिपूर्ति का हकदार नहीं बनाता है। अधिकतम उपभोक्‍ता (परिवादिनी) के स्‍वाभाविक कष्‍ट के दृष्टिगत अधिकतम विक्रेता (विपक्षी) को निर्देशित किया जा सकता है कि वह परिवादिनी के सोफा को रियायती दरों पर सशुल्‍क अच्‍छे ढंग से मरम्‍मत कर उपयोग लायक बना दे। परिवाद स्‍वीकार करने योग्‍य नहीं पाया जाता है।

                            आदेश

     विपक्षी (विक्रेता) को निर्देशित किया जाता है कि परिवादिनी के सोफा सेट को परिवादिनी से शुल्‍क प्राप्‍त कर उससे सोफा प्राप्‍त होने के 45 दिनों के अन्‍दर मरम्‍मत करना सुनिश्चित करें। परिवादिनी को निर्देशित किया जाता है कि यदि वह अपने सोफा सेट को मरम्‍मत कराना चाहती है तो उसे आदेश प्राप्ति के तत्‍काल बाद विपक्षी (विक्रेता) को उपलब्‍ध करा दें और सशुल्‍क मरम्‍मत करा लें।

 

 

  (सोनिया सिंह)     (अशोक कुमार सिंह )            (नीलकंठ सहाय)

          सदस्‍य              सदस्‍य                  अध्‍यक्ष

                            जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                             लखनऊ।   

आज यह आदेश/निर्णय हस्‍ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।

                                   

   (सोनिया सिंह)     (अशोक कुमार सिंह)               (नीलकंठ सहाय)

         सदस्‍य              सदस्‍य                   अध्‍यक्ष

                            जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                               लखनऊ।          

दिनॉंक: 09.09.2022

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MS. sonia Singh]
MEMBER
 

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