जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 706/2019 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-01.07.2019
परिवाद के निर्णय की तारीख:-29.09.2022
डॉ0 अक्षय शरण अवस्थी पुत्र श्री डी0एस0 अवस्थी निवासी 2/215 विकास खण्ड गोमती नगर, लखनऊ-226015
............परिवादी।
बनाम
1. अध्यक्ष, हिन्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज ()सफेदाबाद बाराबंकी उ0प्र0-225003 ।
2. निदेशक शेखर हास्पिटल प्रा0लि0 रजि0 आफिस बी ब्लाक चर्च रोड, इन्दिरा नगर लखनऊ 226016 ।
............विपक्षीगण।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत विपक्षीगण से 1,50,000.00 रूपये सिक्योरिटी मनी वापस दिलाये जाने, 1,00,000.00 रूपये इन्टर्नशिप सिक्योरिटी के नाम से वसूली गयी राशि 60,000.00 रूपये मानसिक, आर्थिक एवं शारीरिक उत्पीड़न की क्षतिपूर्ति हेतु तथा 50,000.00 रूपये वाद व्यय मय 18 प्रतिशत वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज सहित दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षीगण के संस्थान में एम0बी0बी0एस0 कोर्स हेतु दाखिला लिया जिसका शुल्क 9,20,000.00 रूपये दिनॉंक 10.08.2012 को रसीद संख्या 5000 द्वारा अदा किया गया था जिसमें रजिस्ट्रेशन के नाम पर 20,000.00 रूपये ई लर्निंग चार्ज के नाम पर 25000.00 रूपये हास्टल फीस 75000.00 रूपये ट्यूशन फीस एवं 6,50,000.00 रूपये तथा सिक्योरिटी फीस के नाम पर 1,50,000.00 रूपये लिया गया था और उक्त सिक्योरिटी फीस 1,50,000.00 रूपये कोर्स पूरा होने के पश्चात् वर्ष 2017 में शिक्षार्थी को वापस होनी थी।
3. वर्ष 2017 में एम0बी0बी0एस0 कोर्स पूरा होने पर जब उक्त सिक्योरिटी फीस वापसी की मॉंग परिवादी ने की तो विपक्षीगणों ने पेड इंटर्नशिप के नाम से दिनॉंक 13.04.2017 को रसीद संख्या 00244 द्वारा पुन: सिक्योरिटी मनी के नाम पर रूपया जमा करा लिया जो इंटर्नशिप पूर्ण होने के पश्चात् शिक्षार्थी को वापसी योग्य थी।
4. विपक्षीगणों द्वारा की जा रही अनुचित लूट खसोट, अव्यवस्था, उत्पीड़न, हीला हवाली व गलत बयानी व निम्नस्तर की इंटर्नशिप को देखते हुए विपक्षीगण से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर उनकी सहमति व आदेश पर परिवादी ने यू0एच0एम0 (उर्सला हार्समैन) हास्पिटल कानपुर से नाम पेड सीट से बिना किसी छात्रवृत्ति के पूर्ण भुगतान करके इंटर्नशिप 2018 में पूर्ण की।
5. परिवादी द्वारा विपक्षीगण से उक्त 1,50,000.00 रूपये सिक्योरिटी फीस + 1,00,000.00 रूपये इंटर्नशिप, सिक्योरिटी फीस बार बार मॉगने पर भी वापस नहीं किया और आज आओ, कल आओ तथा फाइल गुम हो गयी है आदि का बहाना बनाकर लगातार परिवादी का उत्पीड़न कर शुल्क वापसी में हीला हवाली करने लगे तथा कैरियर बर्बाद करने की धमकी दी गयी तो परिवादी ने दिनॉंक 19.03.2019 को प्रार्थना पत्र के माध्यम से शुल्क वापसी की मॉंग की परन्तु विपक्षीगण द्वारा कुछ नहीं करने पर दिनॉंक 15.05.2019 को अपने अधिवक्ता द्वारा 15 दिन के अन्दर शुल्क वापसी हेतु विधिक नोटिस भेजा जिसका जवाब विपक्षीगण द्वारा नहीं दिया गया और न ही आज तक कोई शुल्क वापस किया गया। परिवाद का नोटिस विपक्षीगण को भेजा गया।
6. विपक्षीगण ने उपस्थित होकर अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया तथा कथन किया कि 1,50,000.00 रूपये सिक्योरिटी फीस कोई होने के पश्चात् 2017 में वापस होना था से इनकार किया, तथा यह कहा कि सिक्योरिटी मनी के नाम पर धनराशि जमा नहीं करायी गयी बल्कि इंटर्नशिप फीस जमा की थी। परिवादी द्वारा इंस्टीट्यूट की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से गलत आरोप लगाये जा रहे हैं। परिवादी द्वारा दाखिल दस्तावेज संख्या 04 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि पारिवारिक परिस्थितियों के चलते परिवादी ने इंटर्नशिप यू0एच0एम0 चिकित्सालय कानपुर से किये जाने का अनुरोध किया था। पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेजों से भी स्पष्ट है कि परिवादी ने स्वयं यह स्वीकृत किया है कि परिवादी के माता पिता का रोड दुर्घटना में गंभीर चोटे आयी थी जिस कारण उनकी देखभाल के लिये इंटर्नशिप कानपुर से करने का अनुरोध किया था।
7. परिवादी द्वारा भेजे गये नोटिस दिनॉंकित 15.05.2019 पर परिवादी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं। परिवादी को कोई वाद का कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। परिवादी को विपक्षीगण के मेडिकल कालेज से इंटर्नशिप किया जाना था जिसके लिये परिवादी ने कुल 2,50,000.00 रूपये इंटर्नशिप फीस जमा करनी थी जिसके लिये परिवादी ने सिक्योरिटी मनी में 1,50,000.00 रूपये व अलग से दिनॉंक 12.04.2017 को 1,00,000.00 रूपये इंटर्नशिप मनी के लिये जमा किया था।
8. दिनॉंक 31.03.2017 को परिवादी द्वारा एक प्रार्थना पत्र इस आशय का दिया गया जिसमें कहा गया कि परिवादी के माता पिता को सड़क दुर्घटना में गंभीर चोटे आयी हैं जिस कारण कानपुर में स्थित जिला अस्पताल से इंटर्नशिप करना चाहता है। उक्त प्रार्थना पत्र पर दिनॉंक 13.04.2017 को नो ड्यूज एकाउन्ट विभाग द्वारा लिख दिया गया जिस पर दिनॉंक 17.04.2017 को एन0ओ0सी0 दी गयी। प्रार्थना पत्र दिनॉंकित 31.03.2017 में कोई सिक्योरिटी मनी को वापस करने की प्रार्थना नहीं की गयी और एन0ओ0सी0 लेने से पहले 1,00,000.00 रूपये जमा किया जो यह साबित करता है कि परिवादी द्वारा मेडिकल कालेज के नियमों को स्वीकार करके एन0ओ0सी0 प्राप्त की गयी और कोई भी आपत्ति नहीं की गयी।
9. अनापत्ति प्रमाण पत्र दिनॉंक 17.04.2017 को दिया गया था। उसके बाद लगभग एक साल बाद दिनॉंक 04.04.2018 को एक प्रार्थना पत्र इस आशय का दिया गया कि परिवादी को मूल मार्कशीट व दस्तावेज वापस कर दिये जाये। इस प्रार्थना पत्र में परिवादी द्वारा कोई सिक्योरिटी मनी व इंटर्नशिप फीस वापसी की मॉंग नहीं की गयी। इसके बावजूद भी परिवाद द्वारा विपक्षी के हिन्द मेडिकल कालेज से भी कुछ समय के लिये शुरूआत में इंटर्नशिप की गयी। दिनॉंक 03.04.2018 को जो मेडिकल रजिस्ट्रेश्न सर्टिफिकेट परिवादी को दिया गया उसमें स्पष्ट रूप से वर्णित है-“ Undergone rotatry training from 01-04-2017 to 31-03-2018 at Hind Institute of Medical Sciences & Hospital, Barabanki and UHM Hospital, Kanpur” अर्थात इंटर्नशिप हिन्द मेडिकल कालेज से भी की गयी।
10. परिवादी ने दो साल बाद फीस वापसी हेतु गलत व असत्य वाक्यात पर प्रार्थना पत्र देना शुरू किया जो परिवादी की बुरी मंशा को स्पष्ट करता है। परिवाद परिसीमा से बाधित है। परिवाद से स्पष्ट है कि परिवाद में विधि एवं तथ्यों के जटिल प्रश्नों का निर्धारण किया जाना आवश्यक है जिसको निर्णीत करने का अधिकार मात्र सिविल न्यायालय को प्राप्त है। परिवाद पर हस्ताक्षर परिवादी के नहीं हैं तथा विपक्षी संख्या 01 व 02 एक ही हैं। परिवादी का परिवाद सव्यय निरस्त होने योग्य है।
11. परिवादी ने अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में फीस की रसीद, इन्टर्नशिप हेतु स्वीकृत के संबंध में पत्र, महानिदेशक द्वारा प्रेषत पत्र, नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट, इन्टर्नशिप ट्रेनिंग कम्पटीशन सर्टिफिकेट, रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, रिफन्ड किये जाने हेतु पत्र तथा विपक्षी द्वारा अपने कथानक के समर्थन में ऋचा मिश्रा, चेयरपर्सन, हिन्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज का शपथ पत्र, तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट, पत्र परिवादी, मेडिकल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, आदि दाखिल किया गया।
12. मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीन किया।
13. परिवादी द्वारा यह परिवाद 1,50,000.00 रूपये सिक्योरिटी मनी व 1,00,000.00 रूपये इंटर्नशिप के लिये विपक्षी द्वारा लिया गया कुल धनराशि 2,50,000.00 रूपये की वापसी हेतु यह परिवाद संस्थित किया गया है।
14. संक्षेप में कथानक यह है कि परिवादी ने एम0बी0बी0एस0 कोर्स में दाखिला हेतु विपक्षी के संस्थान में 9,20,000.00 रूपये दिया था। उक्त फीस में 2,50,000.00 रूपये सिक्योरिटी मनी थी, जो कोर्स पूरा होने के पश्चात् परिवादी को वापस की जानी थी। सिक्योरिटी मनी मागने के बाद विपक्षीगण द्वारा इंटर्नशिप के नाम से दिनॉंक 13.04.2017 को पुन: सिक्योरिटी मनी के रूप में धनराशि जमा कर ली गयी, जो कोर्स पूरा होने के पश्चात विपक्षी से वापस होने योग्य है। उक्त धनराशि बार बार मांगे जाने पर हीला हवाली की गयी। विपक्षीगण की निम्न स्तर की इंटर्नशिप को देखते हुए विपक्षीगण से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर उर्सला हार्समैन हास्पिटल कानपुर में वर्ष 2018 में इंटर्नशिप को पूरा किया। विपक्षीगण द्वारा 2,50,000.00 रूपये जमा होने के संबंध में कहा गया और यह कहा गया कि इंटर्नशिप के लिये कुल 2,50,000.00 रूपये फीस जमा कर दी थी। इसी के लिये परिवादी द्वारा सिक्योरिटी की मद में 2,50,000.00 दिनॉंक 13.04.2017 को जमा किया।
15. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी विपक्षीगण के यहॉं मेडिकल एम0बी0बी0एस0 की पढ़ाई की उसके बाद इंटर्नशिप करने हेतु फीस जमा किया। अर्थात कुल 2,50,000.00 रूपये फीस जिसमें काशनमनी भी थी। परिवादी ने निम्न स्तर की इंटर्नशिप को देखते हुए अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किया और अपनी इंटर्नशिप को उर्सला हार्समैन हास्पिटल कानपुर से किया।
16. दोनों पक्षों में विवाद का विषय नहीं है कि एन0ओ0सी0 दिया और यह भी दोनों पक्षों में विवाद नहीं है कि 2,50,000.00 रूपये विपक्षीगण के पास जमा हैं। दिनॉंक 13.04.2017 को नो ड्यूज एकाउन्ट विभाग द्वारा लिखे जाने पर दिनॉंक 17.04.2017 को एन0ओ0सी0 दी गयी। अक्षरश: परिवादी द्वारा दिनॉंक 31.03.2017 को विपक्षीगण को एक पत्र भेजा गया जिसके तहत उर्सला हार्समैन हास्पिटल कानपुर में इंटर्नशिप किये जाने के संबंध में नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट दिया गया जिसमें यह भी लिखा गया कि आपके आदेशानुसार डिप्टी डी0जी0एम0ई0 लखनऊ से परमीशन ली गयी और दिनॉंक 17.04.2017 को नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी किया गया, जो कि विपक्षीगण द्वारा ही जारी किया गया। अर्थात दिनॉंक 31.03.2017 से लेकर 17 अप्रैल तक यह इंटर्नशिप विपक्षीगण के यहॉं की गयी जैसा कि परिवादी का कथानक है। बादहू मेडिकल रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र से यह विदित है कि यह इंटर्नशिप उर्सला हार्समैन से की गयी और उर्सला में इंटर्नशिप 20 अप्रैल से प्रारंभ की गयी। अर्थात जो भी फीस थी जैसा कि परिवादी का कथानक है 2,50,000.00 रूपये जिसमें काशन मनी की फीस थी।
17. यह भी तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेन्ट भी देना था, क्योंकि नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि यह स्टाइपेन्ट पाने के अधिकारी नहीं है।
18. विपक्षीगण के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादी द्वारा न्यायालय को गुमराह किया गया है। विपक्षीगण के अधिवक्ता द्वारा संगली राम बनाम जनरल मैनेजर आदि II 1994 (1) C.P.R. 434 का संदर्भ दाखिल किया गया जिसमें माननीय न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि परिवाद या अपील दाखिल की जाती है तो सर्वप्रथम फोरम को देखा चाना चाहिए कि परिवाद तुच्छ या तंग करने वाला नहीं है।
19. फन-ईस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम केरला राज्य उपभोक्ता फोरम AIR 2006 केरल 319 का संदर्भ दाखिल किया गया जिसमें यह कहा गया कि अगर परिवादी स्वच्छ हाथों से नहीं आता है तो परिवाद को खारिज कर दिया जाए। किशोर कुमार बनाम गुजरात नर्मदा आदि 1992 (2) सी0पी0आर0 250 में भी यही तथ्य माननीय न्यायालय द्वारा कहा गया। केवल कृष्णा आहूजा बनाम जगदीप आदि I (1999) C.P.J. 157, दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग। वी0के0 कपूर बनाम राज चोपड़ा आदि I (1999) C.P.J. 31, (N.C.) , लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन इंडिया बनाम श्रीमती विमलेश कुमारी I (1999) C.P.J. 630 उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ। मैनेजर ओरियन्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम जमाबालन दौराई स्वामी I (1999) C.P.J. 515 तमिलनाडु राज्य उपभोक्ता आयोग, चेन्नई का भी संदर्भ दाखिल किया है। सभी में यह विधि व्यवस्था है कि sampreshan of facts प्रकट नहीं होना चाहिए। अर्थात तथ्यों को पूर्ण रूप से न्यायालय के समक्ष रखना चाहिए तथा कोई भी तथ्य छिपाना नहीं चाहिए।
20. इसी परिप्रेक्ष्य में विपक्षीगण द्वारा यह कहा गया कि परिवादी ने अपने प्रमाण पत्र दिनॉंकित 31.03.2017 में यह अंकित किया है कि वह कानपुर से इंटर्नशिप करना चाहता है क्योंकि उनके माता-पिता का एक्सीडेन्ट हो गया है। परन्तु
परिवादी द्वारा दाखिल दस्तावेजों में परिवादी के माता-पिता की दुर्घटना की बात नहीं कही गयी है जो परिवाद पत्र की धारा से भिन्न है तथा यह भी कहा गया कि प्रार्थना पत्र दिनॉंक 31.03.2017 को दिया गया तथा सिक्योरिटी फीस की वापसी व प्रार्थना पत्र दिनॉंक 04.04.2018 में सिक्योरिटी फीस की मॉंग नहीं की। अत: तथ्यों को सही ढंग से नहीं रखा है। यह तथ्य सही है कि दिनॉंक 04.04.2018 में कागजात की मॉंग की गयी है और उसमें अगर सिक्योरिटी फीस नहीं मॉंगी है तो इससे समस्त तथ्य असत्य नहीं हो जाते हैं। वहॉं पर जब विपक्षी स्वयं स्वीकारता है कि परिवादी द्वारा जमा 1,50,000.00 रूपये सिक्योरिटी मनी तथा 1,00,000.00 रूपये इन्टर्नशिप फीस के लिये था। अत: यह तथ्य कन्शीलमेंट ऑफ फैक्ट की श्रेणी में नहीं आता है। अत: उक्त विधि व्यवस्था का लाभ विपक्षीगण प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
21. विपक्षीगण द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादी द्वारा स्वयं इन्टर्नशिप फीस दाखिल की गयी थी जिसमें सिक्योरिटी मनी को समायोजित किया गया था। अत: किसी भी कीमत पर वह पाने का अधिकारी नहीं है और विपक्षी की कोई भी सेवा में कमी नहीं मानी जायेगी। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली आर0डी0चिनोय बनाम सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया First Appeal No. 132/1991 में कहा है। मैने माननीय न्यायालय द्वारा पारित विधि व्यवस्था का ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया जिसमें यह लिखा गया है कि अगर कोई तथ्य परिवादी की जानकारी में है तो सेवा में कमी नहीं मानी जायेगी। फीस जमा कराने और उसकी मांग के बाद भुगतान न करना ऐसा कभी परिवादी सोच भी नहीं सकता है। अत: इस विधि व्यवस्था का लाभ विपक्षी सही पा सकता है।
22. विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया कि परिवादी की ही उपेक्षा थी कि उन्होंने दिनॉंक 28.06.2019 से पूर्व कभी भी फीस की मॉंग नहीं की। अत: वह सहमति व उपेक्षा को दर्शाता है और उपेक्षा अगर परिवादी की रहती है तो वह क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
23. इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने हरियाणा राज्य उपभोक्ता आयोग, चन्डीगढ़ द्वारा एपटेक कम्प्यूटर एजूकेशन बनाम रवि कुमार II (1999) C.P,J. 339 जिसमें यह कहा गया कि अगर उपेक्षा है तो क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। उपेक्षा का अभिप्राय यह है कि जब कोई व्यक्ति से एक सामान्य केयर की आवश्यकता हो और उसे केयर से न लिया गया हो जिससे कि किसी दूसरे व्यक्ति को क्षति हो तो वह लापरवाही की परिभाषा में आता है। यह ऐसा कोई भी कथानक नहीं है।
24. नोड्यूज सर्टिफिकेट दिया गया था और भुगतान हेतु भारतीय परिसीमन अधिनियम में तीन वर्ष की सीमा परिलक्षित की गयी है, तो वह समय से मॉंगा है। इसमें परिवादी की सहमति नहीं समझी जायेगी और यह उपेक्षा की श्रेणी में नहीं आता है।
25. हरियाणा उपभोक्ता आयोग चन्डीगढ़ द्वारा एपटेक कम्प्यूटर एजूकेशन बनाम रवि कुमार II (1999)C.P.J. 339 का सन्दर्भ दाखिल किया गया जो तथ्य एवं परिस्थितियों के कारण लागू नहीं है।
26. विपक्षीगण द्वारा यह कहा गया कि परिवादी ने एक प्रार्थना पत्र दिनॉंक 04.04.2018 को दिया था जिसमें यह कहा गया था कि इन्टर्नशिप अन्य जगह करना चाहता है। विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि प्रस्तुत परिवाद समय सीमा से बाधित है। यह तथ्य सही है कि परिवादी को ही साबित करना है कि परिवाद परिसीमा अधिनियम से बाधित नहीं है और परिसीमा से बाधित रहता है तो उसका क्षेत्राधिकार भी न्यायालय को नहीं रहता है। यह न्यायालय का उत्तरदायित्व है कि स्वयं ही परिसीमा के आधार पर परिवाद खारिज करदे। साथ ही परिवादी पर यह साबित करने का भार होता है कि परिवाद मियाद के अन्दर है। जैसा कि राज्य उपभोक्ता आयोग दिल्ली ने आर0पी0 दीवानवाला बनाम वाइस चेयरमैन, 1992 (2) C.P.R. 279 में कहा कि अगर कोई परिवाद समय से बाधित है तो फोरम कोई भी अनुतोश प्रदान नहीं कर सकता। जैसा कि निम्न दृष्टांतों में भी कहा गया-
1. मेसर्स रमन बनाम ओरियन्टल इंश्योरेंस 1992 (1) C.P.R. 303 राज्य उपभोक्ता आयोग, राजस्थान, जयपुर।
2. ए0जी0 इम्ब्रान्डरी बनाम एडमिनिस्रेटर आदि 1992 (1) C.P.R. 630 राज्य उपभोक्ता आयोग केरल।
3. वी कुंजी थापाथम बनाम जे0एस0 रामामुरथी, 1992 (1) C.P.R. 69 राज्य उपभोक्ता आयोग, मद्रास।
4. 1999 C.P.J. 578, मध्य प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग, भोलपा।
दिनॉंक 19.03.2019 का प्रार्थना पत्र समय सीमा के अन्दर परिवाद दाखिल करने के उदेश्य से दिया गया है, क्योंकि दिनॉंक 17.04.2017 से एन0ओ0सी0 के बाद दिनॉंक 17.04.2019 तक ही परिवाद ला सकते हैं। दिनॉंक 19.09.2019 का अवलोकन किया जो कि रिफन्ड हेतु दाखिल किया गया है जिसमें कि सिक्योरिटी मनी की मॉंग की गयी। पुन:एक पत्र दिनॉंक 26.03.2019 को दिया गया जिसमें 5,00,000.00 रूपये सिक्योरिटी का जिक्र करते हुए 1,00,000.00 रूपये फीस की मॉंग की गयी। 5,00,000.00 रूपये टाइपिंग गलती के कारण लिख गया है। पुन: एक पत्र दिनॉंक 15.05.2019 को भी भेजा गया जिसमें उपरोक्त सभी पत्रों का जिक्र किया गया है।
27. यह परिवाद वर्ष 2019 में दिनॉंक 01.07.2019 को दाखिल किया गया है। परिवादी द्वारा यह कहा गया कि इन्टर्नशिप पूरी करने के बाद वर्ष 2018 के बाद उनसे मौखिक रूप से पैसे की मॉंग करते रहे और जब उनके द्वारा नहीं दिया गया और बहुत परेशान किया गया तब वर्ष 2019 में नोटिस दिया गया और परिवाद दाखिल किया गया जो समय सीमा के अन्तर्गत है।
28. परिवादी द्वारा अपने साक्ष्य के समर्थन में इस तथ्य को कहा गया कि शपथकर्ता द्वारा विपक्षी से 1,50,000.00 रूपये सिक्योरिटी फीस व 1,00,000.00 मॉंग की, जिसमें कहा गया कि मौखिक रूप से रूपयों की मॉंग की। जो तथ्य शपथ पत्र पर दिये गये उसमें जिरह नहीं की गयी। जो तथ्य शपथ पत्र पर है और जिरह नहीं की गयी तो वह स्वीकृत समझा जायेगा। विपक्षी द्वारा कोई जिरह नहीं की गयी और यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा कई बार पैसों की मॉंग की गयी। यह सही है कि उपभोक्ता फोरम एक समरी प्रक्रिया है। अगर सरसरी प्रक्रिया में भी कुछ तथ्य स्पष्ट कराना चाहते हैं तो जिरह की जा सकती है। सन 2018 में इन्टर्नशिप पूरी करने का प्रयास भी करता रहा। इस प्रकार यह प्रकरण लिमिटेशन से बाधित नहीं हैं, क्योंकि यह वाद दिनॉंक 01.07.2019 को दो वर्ष के अन्दर दाखिल किया गया है।
29. विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं है और सिविल न्यायालय को क्षेत्राधिकार है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने राज्य उपभोक्ता आयोग कर्नाटक बंगलौर द्वारा IV 1993 (1) C.P.R. 694 जिसमें कहा गया है कि जहॉं जटिल विषय हो जैसा कि कपट तो उपभोक्ता फोरम का, क्षेत्राधिकार नहीं है। ठीक इसी प्रकार राज्य उपभोक्ता आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा II 1993 (1) C.P.R. 260 में कहा गया है कि कपट डिसेप्शन यह जैसा इस तथ्य में जटिल प्रश्न है, इन प्रश्नों में समरी तौर पर नहीं दिया जा सकता। राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम नई दिल्ली द्वारा I 1992 (1) C.P.R. 34 में जहॉं पर जटिल प्रश्न हो या मिश्रित प्रश्न का उदाहरण हो वहॉं व्यवहार न्यायालय को क्षेत्राधिकार है। यह सही है कि व्यवहार न्यायालय जहॉं पर जिरह की आवश्यकता हो अथवा नहीं, यह कंज्यूमर फोरम है।
30. इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने यह कहा कि परिवाद पत्र में उल्लेख किया गया है कि लूट खसोट व्यवस्था उत्पन्न करने के उद्देश्य से उल्लिखित किया गया है। अत: उत्पीड़न हुआ है तो दीवानी न्यायालय को क्षेत्राधिकार है। परन्तु प्रस्तुत प्रकरण उत्पीड़न का नहीं है। कोई संविदा उत्पीडि़त द्वारा की गयी है तब दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार होता है। अत: उपरोक्त विधि व्यवस्था का लाभ परिवादी प्राप्त नहीं कर सकता। परिवादी द्वारा Frankfinn Institute of Air Versus Aashima Jarial 2019 (2) CPR 396 (NC) का जिक्र किया गया जिसमें यह कहा गया कि अगर फीस जमा की गयी है तो वह उपभोक्ता समझा जायेगा तथा जिसके यहॉं जमा की है तो वह सेवा प्रदाता कहा जायेगा। मंजीत सिंह बग्गा बनाम मैग्मा शराची फाइनेन्स लिमि0 एवं अन्य नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिडर्सल कमीशन, नई दिल्ली 2016 (4) सी0पी0आर0 298 (एन0सी0) दाखिल किया गया जिसमें माननीय आयोग द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि परिवाद को यह कहकर वापस नहीं कराया जा सकता कि प्रस्तुत प्रकरण दीवानी न्यायालय से संबंधित है।
31. विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा यह कहा गया कि परिवादी द्वारा कोई भी ऐसा साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया जिससे कि यह समझा जाए कि विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा जहॉं पर सेवा में कमी नहीं है वहॉं पर परिवाद को खारिज कर देना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने के0 रामदास एवं अन्य बनाम दि असिस्टेन्ट जनरल मैनेजर इण्डियन बैंक एवं चार अन्य स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिडर्सल कमीशन तमिलनाडु मद्रास। मैने विधि व्यवस्था का ससम्मान पूर्वक अवलोकन किया। इसमें यह कहा गया कि जब कभी सेवा में कमी नहीं है और उपेक्षा हो तो परिवाद खारिज कर दिया जायेगा। यह सही है कि जहॉं विपक्षी द्वारा सेवा में कमी नहीं है वहॉं पर परिवाद पत्र खारिज किया जायेगा। परिवादी द्वारा विपक्षी को नोटिस भेजा गया है। उसके बाद भी पैसा नहीं दिया गया है तो सेवा में कमी विपक्षी की मानी जायेगी।
32. विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा तर्क यह भी दिया गया कि नोटिस में परिवादी के हस्ताक्षर नहीं थे, तो नोटिस गैरकानूनी मानी जायेगी।
33. यह तथ्य सही है कि नोटिस में परिवादी के हस्ताक्षर नहीं हैं। उपरोक्त विधि व्यवस्था के अनुसार गैर कानूनी मानी जायेगी, परन्तु उससे यह समझा जायेगा कि पैसे की मॉंग की गयी है, स्वीकृत तथ्य है कि उनके पास 2,50,000.00 रूपये फीस जमा है जिसमें 1,50,000.00 रूपये बतौर काशनमनी थी तथा 1,00,000.00 रूपये इंटर्नशिप करने की थी। अत: कुल 2,50,000.00 रूपये दिये गये। परिवादी ने फ्रैक्लीन सुप्रा में माननीय न्यायालय द्वारा पारित किया गया है कि अगर फीस दी गयी है तो परिवादी उपभोक्ता और विपक्षी सेवा प्रदाता है। जैसा कि विपक्षी का कथन है कि 2,50,000.00 रूपये इंटर्नशिप किये जाने के संबंध में लिये गये, जिसमें कि 1,50,000.00 रूपये काशन मनी थी, और उसी विद्यालय से परिवादी द्वारा यह कहा गया कि एम0बी0बी0एस0 का कोर्स किया गया और यह विवाद का विषय नहीं है कि यह कोर्स उसी संस्था से किया गया और उसी संस्था से इंटर्नशिप करने के लिये 2,50,000.00 रूपये फीस जमा की गयी। अर्थात 1,50,000.00 रूपये जो पढ़ाई समाप्त करने के बाद वापस करना था, उसको सेटआफ करते हुए इंटर्नशिप की फीस ले ली गयी। अत: परिवादी पर कोई भी जायज बकाया तो परिवादी उपभोक्ता माना जायेगा और विपक्षी सेवा प्रदाता माना जायेगा। परन्तु यह सम्पूर्ण फीस एक वर्ष की इंटर्नशिप करने के लिये थी।
34. जैसा कि परिवादी का कथानक है कि उसने 2,50,000.00 रूपये के लिये मौखिक रूप से सूचना मॉंगी और भिन्न भिन्न प्रकार से विपक्षी द्वारा टालमटोल की जा रही थी और उक्त धनराशि विपक्षी के पास है। इस प्रकार विपक्षी से धनराशि मॉंगे जाने पर भुगतान कर देना चाहिए था, परन्तु उनके द्वारा धनराशि वापस नहीं की गयी जो सेवा में कमी है। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी उपभोक्ता है और विपक्षी सेवा प्रदाता, और यह भी विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी द्वारा विपक्षी के यहॉं दिनॉंक-13.04.2017 को इन्टर्नशिप किया है अर्थात विपक्षी के यहॉं इन्टर्नशिप करते हुए उनकी सामग्री एवं उनकी शिक्षा और उनके संस्थान का इस्तेमाल किया है। अत: इस मद में 10,000.00 रूपये परिवादी को भी, विपक्षीगण को देय होगा और इस 10,000.00 रूपये को सेटआफ करते हुए 2,40,000.00 रूपये की धनराशि का भुगतान कराया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
आदेश
35. परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, तथा विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि मुबलिग 2,40,000.00 (दो लाख चालीस हजार रूपया मात्र) 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ परिवाद दायर करने की तिथि से निर्णय के 45 दिन के अन्दर संयुक्त रूप से तथा एकल रूप से अदा करें। परिवादी को हुई मानसिक, शारीरिक, आर्थिक कष्ट की क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय के लिये मुबलिग-25,000.00 (पच्चीस हजार रूपया मात्र) भी अदा करें। यदि निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक 29.09.2022