राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या– 1620/2005 सुरक्षित
( जिला उपभोक्ता फोरम आगरा द्वारा परिवाद सं0-206/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-11-2004 के विरूद्ध)
1-यू0पी0 हाऊसिंग एण्ड डेव्लपमेंट बोर्ड, द्वारा हाऊसिंग कमिश्नर, 104, एम0जी0 मार्ग, लखनऊ।
2-एस्टेट मैंनेजमेंट आफिसर, सिकन्दराबाद योजना, यू0पी0 हाऊसिंग एण्ड डेव्लपमेंट बोर्ड आगरा।
..अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
हिमॉशू पचौरी, पुत्र श्री रवीन्द्र पचौरी निवासी केयर आफ श्रीमती आशू रानी पचौरी, सहायक महिला विकास अधिकारी ब्लाक ऐत्यादपुर, आगरा।
.......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थिति: श्री एन0एन0 पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : कोई नहीं।
दिनांक- 19-02-2016
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
अपीलकर्ता ने यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम आगरा द्वारा परिवाद सं0-206/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-11-2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
“परिवाद स्वीकृत कर विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि आदेश पारित होने के 60 दिन के अन्दर परिवादी की पंजीकरण धनराशि में से कटौती से बची शेष धनराशि 12,280-00 रूपये पर दिनांक 07-11-1998 से तथा 75000-00 रूपये पर जमा करने की तिथि से तथा पूर्व पंजीकरण धनराशि 5000-00 रूपये पर जमा करने की तिथि से 09 प्रतिशत साधारण दर से वार्षिक ब्याज लगाकर परिवादी को वापस करें। यदि उक्त धनराशि में से कोई धनराशि वापस कर दी गई हो उसे समायोजित किया जावे।
निर्धारित अवधि में आदेश का पालन न करने पर आदेश की तिथि से उपरोक्त समस्त धनराशि पर 12 प्रतिशत साधारण ब्याज वार्षिक दर से भुगतान होने तक देय होगी”
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि विपक्षी के यहॉ 5,000-00 रूपये जमा कराकर भवन के लिए आवेदन किया। विपक्षी ने दुर्बल आय वर्ग का भवन संख्या 472 सेक्टर 4 सिकन्दराबाद योजना आगरा में आवंटित किया। परिवादी के आवेदन पर विपक्षी ने दो कमरे वाला भवन संख्या 317 सेक्टर बी में आवंटित कर दिया तथा पंजीकरण धनराशि 5000-00 रूपये के अलावा 15,000-00 रूपये और जहमा करा दिया। परिवादी ने भवन की एक मुश्त कुल धनराशि जमा कराने हेतु विपक्षी को पत्र लिखकर जानकारी चाही, लेकिन विपक्षी विभाग के
(2)
कार्यालय से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। परिवादी ने पंजीकरण धनराशि 5000-00 रूपये के अलावा दिनांक 17-06-1998 तक 95,000-00 रूपये और जमा करा दिया, लेकिन विपक्षी ने जमा धनराशि की बावत न कोई स्टेटमेंट दिया न भवन पर कब्जा दिया तथा जमा धनराशि में से किश्तों की धनराशि काटना शुरू कर दिया। परिवादी ने प्रार्थना की है कि भवन कब्जा विपक्षी से दिलाया जावे, कब्जा देने की स्थिति में जमा धनराशि को समायोजित कर शेष धनराशि व ब्याज बताया जावे, जिसे जमा कराकर रजिस्ट्री करा सके अथवा जमा धनराशि मय 18 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज से वापस की जावे तथा क्षतिपूर्ति दिलायी जावे।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष विपक्षीगण उपस्थित आये और अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया, जिसमें कहा गया है कि परिवादी ने दिनांक 09-12-1997 को एल0पी0जी0 भवन संख्या 317/4 बी किश्तों के आधार पर लेने की सहमति दी, जिसके आधार पर आवंटन पत्र संख्या- 4706 दिनांक 11-12-1997 से भवन आवंटित किया गया। आवंटन पत्र में भवन की कीमत का भुगतान किस प्रकार करना है, अंकित था। परिवादी ने भवन की कीमत का भुगतान किश्तों में करना स्वीकार किया तथा दिनांक 28-01-90 को 50,000-00 रूपये का भुगतान किया। आवंटन पत्र दिनांक 11-12-1997 की शर्तो के अनुसार परिवादी को दिनांक 31-12-1997 तक 43115-00 रूपये भवन की कीमत में तथा पट्टा किराया आदि जमा करना था, लेकिन निर्धारित समय में जमा नहीं किया न कब्जा लेने की बावत आवश्यक कागजात की औपचारिकताओं को पूरा किया। परिवादी ने दिनांक 31-01-1998 को 50,000-00 रूपये विपक्षी परिषद के खाते में जमा करायें, लेकिन औपचारिकताओं को पूरा नहीं किया। दिनांक 11-09-1998 को विपक्षीगण ने परिवादी को नोटिस देकर आवंटन पत्र की शर्तो को पूरा करने को कहा, जिससे भवन पर कब्जा दिया जा सके, लेकिन परिवादी के सुनवाई न करने पर दिनांक 07-11-1998 को आवंटन निरस्त कर परिवादी को सूचित किया गया। विपक्षीगण का कथन है कि विपक्षी सं0-1 ने दिनांक 09-11-1998 को पत्र भेजकर परिवादी से भुगतान करने व औपचारिकताओं को पूरा करने को कहा गया तथा दिनांक 18-12-1998 को भी पत्र लिखा गया, लेकिन परिवादी ने न नोटिस व पत्र के अनुसार भुगतान किया न औपचारिकताओं को पूरा किया। दिनांक 08-06-2000 को भी पत्र लिखकर बकाया धनराशि की बावत परिवादी को सूचित किया, लेकिन परिवादी ने शेष भुगतान कर कब्जा लेने की बावत कोई प्रयास नहीं किया। यह भी कहा गया है कि परिवादी का परिवाद कालबाधित है। परिवादी उपभोक्ता नहीं है। परिवादी ने भवन आवंटन शर्तो का पालन नहीं किया है, इसलिए परिवाद पोषणीय नहीं है, खण्डित होने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एन0एन0 पाण्डेय, उपस्थित है। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया। अपील आधार एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
(3)
अपीलकर्ता के तरफ से यह कहा गया कि आवंटन निरस्त करने के बाद परिवादी द्वारा 75,000-00 रूपये अपने मर्जी से जमा किया गया है और जिला उपभोक्ता फोरम ने जो 75,000-00 रूपये पर 09 प्रतिशत ब्याज लगाया है, वह न्यायोचित नहीं है, उसे समाप्त किये जाने की याचना की गई।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुनने के उपरान्त एवं केस के तथ्यों परिस्थितियों को देखते हुए हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा जो 75,000-00 रूपये पर 09 प्रतिशत का ब्याज लगाया गया है, वह विधि सम्मत् है, उसमें हस्तक्षेप किये जाने की आवश्यकता नहीं है। अपीलकर्ता की अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
तद्नुसार अपीलकर्ता की अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
(आर0सी0 चौधरी) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु.
कोर्ट नं05