राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२८१८/२०१२
(जिला मंच, जालौन द्वारा परिवाद सं0-७६/२०११ में पारित आदेश दिनांक ०२-०७-२०१२ के विरूद्ध)
ब्रान्च मैनेजर, इलाहाबाद बैंक, ब्रांच अकबरपुर इटौरा, जिला जालौन।
........... अपीलार्थी/विपक्षी सं0-२.
बनाम
१. हेममाला पत्नी स्व0 भूरे लाल, ग्राम अकबरपुर इटौरा, परगना कालपी, जिला जालौन। ...........प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
२. ब्रान्च मैनेजर, नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0, ९८-सिविल लाइन्स, जिला-झॉंसी।
...........प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-१.
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री शरद कुमार शुक्ला विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से उपस्थित: श्री आर0के0 मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-१ की ओर से उपस्थित: सुश्री रेहाना खान विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- १४-१०-२०१५.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, जालौन द्वारा परिवाद सं0-७६/२०११, हेममाला बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 व अन्य में पारित आदेश दिनांक ०२-०७-२०१२ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति स्वर्गीय भूरे लाल का खाता संख्या ६३४ अपीलार्थी बैंक में था तथा उसे किसान क्रैडिट कार्ड सं0-१४०६७९ दिनांक ०९-०७-२००४ आबंटित किया गया था। किसान क्रैडिट कार्ड जारी करते समय भूरे लाल का सामूहिक बीमा प्रत्यर्थी सं0-२ बीमा कम्पनी से ०१-०० लाख रूपया का कराया गया। उक्त किसान क्रैडिट कार्ड का वर्ष २००७ से २०१० तक की अवधि के लिए नवीनीकरण किया गया था। बीमा की अवधि के मध्य भूरेलाल की मृत्यु हो गयी, जिसके कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने बीमा दावे के लिए समस्त औपचारिकताऐं पूर्ण करके बैंक में तथा बीमा कम्पनी में प्रार्थना पत्र दिया, किन्तु उसके बीमा दावे का भुगतान नहीं किया गया। अत: परिवादिनी ने परिवाद
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सं0-९७/२००९, हेममाला बनाम नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी व अन्य जिला मंच में योजित किया, जो दिनांक १३-१२-२०१० को निर्णीत किया गया तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को निर्देशित किया गया कि वह एक माह के अन्दर विपक्षी बैंक में प्रपत्र उपलब्ध कराए एवं विपक्षी बैंक को निर्देशित किया कि वह परिवादिनी के पति के किसान क्रैडिट कार्ड के अन्तर्गत व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा का लाभ दिलाये जाने हेतु बीमा कम्पनी के यहॉं बीमा दावा एक माह में प्रेषित करें। यह भी आदेशित किया गया कि परिवादिनी यदि विपक्षीगण के आदेश से क्षुब्ध होती है तो वह जिला मंच में आने के लिए स्वतन्त्र है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने इस निर्णय के अनुपालन में अपना बीमा दावा प्रस्तुत किया, किन्तु प्रत्यर्थी सं0-२ बीमा कम्पनी ने बीमा दावे का भुगतान इस आधार पर नहीं किया कि मृतक भूरेलाल का बीमा विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं नहीं था तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी से यह अपेक्षा की कि वह बीमा पालिसी से सम्बन्धित अभिलेख उपलब्ध कराये। अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी बैंक एवं प्रत्यर्थी सं0-२ बीमा कम्पनी के विरूद्ध पुन: बीमा की धनराशि के भुगतान एवं मानसिक तथा शारीरिक उत्पीड़न के सम्बन्ध में क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु प्रश्नगत परिवाद योजित किया।
विद्वान जिला मंच ने यह निर्णीत करते हुए कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति का दुर्घटना जीवन बीमा उसके किसान क्रैडिट कार्ड के आधार पर अपीलार्थी बैंक ने, लापरवाही के कारण, प्रत्यर्थी सं0-२ बीमा कम्पनी से नहीं कराया। इस प्रकार विद्वान जिला मंच ने अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी किया जाना अवधारित करते हुए अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी बैंक को निर्देशित किया कि वह प्रत्यर्थी/परिवादिनी को ५०,०००/- रू० किसान क्रैडिट कार्ड के आधार पर बीमा न कराये जाने के सम्बन्ध में आदेश के दो माह के अन्दर अदा करे। ऐसा न करने पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी, अपीलार्थी बैंक से दावा दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक ०८ प्रतिशत साधारण सालाना ब्याज भी पाने की अधिकारिणी है। इसके अतिरिक्त परिवादिनी विपक्षी बैंक से १,०००/- रू० परिवाद व्यय भी प्राप्त करने की अधिकारिणी है। इस आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील
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योजित की गयी है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री शरद कुमार शुक्ला तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्रा एवं प्रत्यर्थी सं0-२ बीमा कम्पनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता सुश्री रेहाना खान के तर्क विस्तारपूर्वक सुने तथा पत्रावली का गहनता से अवलोकन किया।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि प्रस्तुत अपील कालबाधित है और कालबाधन के आधार पर ही निरस्त होने योग्य है।
उल्लेखनीय है कि यह अपील प्रश्नगत आदेश दिनांक ०२-०७-२०१२ के विरूद्ध दिनांक १८-१२-२०१२ को योजित की गयी है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किये जाने हेतु प्रार्थना पत्र के साथ श्री प्रकाश शुक्ला तत्कालीन शाखा प्रबन्धक अपीलार्थी बैंक का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। शपथ पत्र के अनुसार प्रश्नगत आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी बैंक को दिनांक २१-०७-२०१२ को प्राप्त हुई। दिनांक ०४-०८-२०१२ में तत्कालीन शाखा प्रबन्धक का स्थानान्तरण हो गया तथा केस की जानकारी न होने के कारण पत्रावली शाखा में नहीं मिल पायी। केस की जानकारी अमीन के आने पर हो पायी, जिसके उपरान्त आवश्यक सूचना सम्बन्धित अधिवक्ता से प्राप्त करके जौनल कार्यालय मामला भेजा गया। जौनल कार्यालय कानपुर ने अधिवक्ता से विधिक राय लेने के उपरान्त अपील योजित करने की अनुमति प्रदान की। इसके उपरान्त नवम्बर, २०१० के अन्त में सम्बन्धित जिला मंच के अधिवक्ता से पत्रावली प्राप्त की गयी तथा उसके उपरान्त लखनऊ में अपने अधिवक्ता को अपील की तैयारी हेतु पत्रावली भेजी गयी। अपीलार्थी ने अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए ११५ दिन के विलम्ब को क्षमा किए जाने की प्रार्थना की है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी बैंक ने अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का सन्तोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया है। इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादिनी
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के विद्वान अधिवक्ता द्वारा निम्नलिखित मामलों में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णयों पर विश्वास व्यक्त किया गया :-
१. मैट लाइफ इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम अदानकी सत्यनारायण, I (2013) CPJ 11A (NC) (CN).
२. ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम किरन कुमार मफतलाल व अन्य, I (2013) CPJ 16 B (NC) (CN).
३. हरियाणा अर्बन डेवलपमेण्ट अथारिटी व अन्य बनाम देश राज यादव, II (2013) CPJ 2 A (NC) (CN).
४. थिरूमाला चिट्स बनाम वेणूकोंदा मधु कुमार, I I (2013) CPJ 22 B (NC) (CN).
उनका यह भी तर्क है कि उपरोक्त सभी निर्णयों में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को सन्तोषजनक न पाते हुए विलम्ब को क्षमा नहीं किया है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील संख्या-1166/2006 बलवन्त सिंह बनाम जगदीश सिंह तथा अन्य में यह अवधारित किया गया है कि समय-सीमा में छूट दिए जाने सम्बन्धी प्रकरण पर यह प्रदर्शित किया जाना कि सदभाविक रूप से देरी हुई है, के अलावा यह सिद्ध किया जाना भी आवश्यक है कि अपीलार्थी के प्राधिकार एवं नियंत्रण में वह सभी सम्भव प्रयास किए गए हैं, जो अनावश्यक देरी कारित न होने के लिए आवश्यक थे और इसलिए यह देखा जाना आवश्यक है कि जो देरी की गयी है उससे क्या किसी भी प्रकार से बचा नहीं जा सकता था। इसी प्रकार राम लाल तथा अन्य बनाम रीवा कोलफील्ड्स लिमिटेड, AIR 1962 SC 361 पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बावजूद इसके कि पर्याप्त कारण देरी होने का दर्शाया गया हो, अपीलार्थी अधिकार स्वरूप देरी में छूट पाने का अधिकारी नहीं हो जाता है क्योंकि पर्याप्त कारण दर्शाया गया है ऐसा अवधारित किया जाना न्यायालय का विवेक है और यदि पर्याप्त कारण प्रदर्शित नहीं हुआ है तो अपील में आगे कुछ नहीं किया जा सकता है तथा देरी को क्षमा किए जाने सम्बन्धी प्रार्थना पत्र को मात्र इसी आधार पर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि पर्याप्त कारण प्रदर्शित कर दिया गया है तब भी न्यायालय को यह विश्लेषण करने की आवश्यकता है कि न्यायालय के विवेक को देरी क्षमा किए जाने के लिए प्रयुक्त किया जाना चाहिए अथवा नहीं और इस स्तर पर अपील से
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सम्बन्धित सभी संगत तथ्यों पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया जाना चाहिए कि अपील में हुई देरी को अपीलार्थी की सावधानी और सदभाविक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में क्षमा किया जाए अथवा नहीं।
हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आफिस आफ दि चीफ पोस्ट मास्टर जनरल तथा अन्य बनाम लिविंग मीडिया इण्डिया लि0 तथा अन्य, सिविल अपील संख्या-2474-2475 वर्ष 2012 जो एस.एल.पी. (सी) नं0 7595-96 वर्ष 2011 से उत्पन्न हुई है, में दिनांक 24.02.2012 को यह अवधारित किया गया है कि सभी सरकारी संस्थानों, प्रबन्धनों और एजेंसियों को बता दिए जाने का यह सही समय है कि जब तक कि वे उचित और स्वीकार किए जाने योग्य स्पष्टीकरण समय-सीमा में हुई देरी के प्रति किए गए सदभाविक प्रयास के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट नहीं करते हैं तब तक उनके सामान्य स्पष्टीकरण कि अपील को योजित करने में कुछ महीने/वर्ष अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्य में लगे हैं, को नहीं माना जाना चाहिए। सरकारी विभागों के ऊपर विशेष दायित्व होता है कि वे अपने कर्त्तव्यों का पालन बुद्धिमानी और समर्पित भाव से करें। देरी में छूट दिया जाना एक अपवाद है और इसे सरकारी विभागों के लाभार्थ पूर्व अनुमानित नहीं होना चाहिए। विधि का साया सबके लिए समान रूप से उपलब्ध होना चाहिए न कि उसे कुछ लोगों के लाभ के लिए ही प्रयुक्त किया जाए।
आर0बी0 रामलिंगम बनाम आर0बी0 भवनेश्वरी, 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्यू ओखला इण्डस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी, IV (2011) CPJ 63 (SC) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्यायालय को प्रत्येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से स्पष्ट किया है, क्या उसका कोई औचित्य है? क्योंकि देरी को क्षमा किए जाने के सम्बन्ध में यही मूल परीक्षण है, जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्या अपील में हुई देरी स्वाभाविक देरी है। उपभोक्ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किए जाने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए इसे देखा जाना अत्यन्त
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आवश्यक है क्योंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्तुत किए जाने के जो प्राविधान दिए गए हैं, उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किए जाने का उद्देश्य रहा है और यदि अत्यन्त देरी से प्रस्तुत की गयी अपील को बिना सदभाविक देरी के प्रश्न पर विचार किए हुए अंगीकार कर लिया जाता है तो इससे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानानुसार उपभोक्ता के अधिकारों का संरक्षण सम्बन्धी उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।
उपरोक्त सन्दर्भित विधिक सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में मैंने अपीलार्थी द्वारा प्रदर्शित उपरोक्त तथ्यों का अवलोकन एवं विश्लेषण किया है और यह पाया है कि स्पष्टतया उपरोक्त सन्दर्भित स्पष्टीकरण सदभाविक स्पष्टीकरण नहीं है, ऐसा स्पष्टीकरण नहीं है जिससे अपीलार्थी अपील योजित किए जाने में हुई देरी से बच नहीं सकता था। दिनांक ०२-०७-२०१२ के विवादित आदेश की सत्य प्रतिलिपि दिनांक २१-०७-२०१२ को प्राप्त कर लिए जाने के उपरान्त भी प्रदत्त सीमा अवधि दिनांक २१-०८-२०१२ तक अपील न किए जाने और दिनांक १८-१२-२०१२ को अर्थात् लगभग ११५ दिन बाद इस अपील को योजित किए जाने का कोई स्पष्ट औचित्य नहीं है। देरी होने सम्बन्धी तथ्य को जिस प्रकार से वर्णित किया गया है, उससे यह नहीं लगता है कि उसके अलावा कोई विकल्प अपील में देरी से बचने का नहीं था। अत: मैं धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 द्वारा प्रदत्त 30 दिन की कालावधि के अवसान के पश्चात् यह अपील ग्रहण किए जाने योग्य नहीं पाता हूँ, क्योंकि अपीलार्थी उस अवधि के भीतर अपील न योजित करने के सम्बन्ध में पर्याप्त कारण के प्रति ऐसा स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने में विफल है, जिससे मेरा समाधान हो सके कि कालावधि के अवसान के पश्चात् अपील ग्रहण की जा सकती है। अत: यह अपील, समय-सीमा से बाधित होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य है।
जहॉं तक गुणदोष के आधार पर प्रस्तुत अपील के निस्तारण का प्रश्न है, अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का मृतक भूरेलाल की उत्तराधिकारी होना प्रमाणित नहीं है, इस तथ्य की ओर विद्वान जिला मंच द्वारा ध्यान नहीं दिया गया। उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी सं0-२ बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा
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योजित परिवाद सं0-९७/२००९ हेममाला बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 व अन्य में पारित निर्णय दिनांकित १३-१२-२०१० की प्रमाणित प्रतिलिपि की फोटोप्रति प्रस्तुत की है। यह निर्णय एवं आदेश प्रत्यर्थी/परिवादिनी को मृतक भूरेलाल की पत्नी मानते हुए पारित किया गया है। इस निर्णय के विरूद्ध अपीलार्थी बैंक द्वारा कोई अपील योजित नहीं की गयी है। इस निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि दिनांक २२-०४-२००९ को ४२,०००/- रू० अपीलार्थी बैंक में प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपने पति के खाते में जमा कराये तथा इस मामले में अपीलार्थी बैंक ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथित किया कि परिवादिनी द्वारा यदि अपने स्वर्गीय पति की बकाया धनराशि की अदायगी की गयी है तो उसका यह विधिक दायित्व था। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का मृतक भूरेलाल की पत्नी होना प्रमाणित नहीं है।
अपीलार्थीगण द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने ऐसा कोई अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे यह प्रमाणित हो कि उसके पति वैध किसान क्रैडिट कार्डधारक थे। उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी ने अपील मेमो में इस तथ्य से इन्कार नहीं किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति मृत्यु के समय वैध किसान क्रैडिट कार्डधारक नहीं थे। मेमो आफ अपील में अपीलार्थी द्वारा यह उल्लिखित किया गया है कि यह तथ्य स्वीकृत है कि अपीलार्थी बैंक में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति का खाता सं0-६३४ था और उनके किसान क्रैडिट कार्ड का नम्बर १४०६७९ दिनांक ०९-०७-२००४ को आबंटित किया गया था। इस कार्ड की ०३ वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद यह कार्य वर्ष २००७ से वर्ष २०१० तक की अवधि के लिए नवीनीकृत किया गया। प्रश्नगत निर्णय के चरण-१२ में यह तथ्य उल्लिखित है कि पूर्व में परिवादिनी द्वारा जो परिवाद सं0-९७/२००९ हेममाला बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0 दाखिल किया गया था, उस परिवाद की पत्रावली में किसान क्रैडिट कार्ड की प्रति व उसके मृतक पति भूरेलाल का मृत्यु प्रमाण पत्र तथा इलाहाबाद बैंक का एक पत्र भी
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दाखिल है, जो मृतक को सम्बोधित है और वह दिनांक०७-०२-२००४ को जारी किया गया था, जिसमें नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी के सामूहिक व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पालिसी के अन्तर्गत मु० १०,००,०००/- रू० एवं ५०,०००/- रू० का इंश्योरेंस कवरेज दर्शाया गया है। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति अपनी मृत्यु के समय किसान क्रैडिट कार्डधारक नहीं थे। अपीलार्थी का यह कथन नहीं है कि किसान क्रैडिट कार्डधारक व्यक्ति का सामूहिक व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा कराया जाना आज्ञापक नहीं था अथवा यह अपीलार्थी बैंक का दायत्वि नहीं था कि उसके यहॉं खाताधारक एवं किसान क्रैडिट कार्डधारक व्यक्ति का दुर्घटना बीमा कराने का दायित्व अपीलार्थी बैंक नहीं था।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रत्यर्थी सं0-२ बीमा कम्पनी को अपीलार्थी बैंक ने १५० कार्डधारकों की बीमा राशि ६७५०/- रू० दिनांक २३-१०-२००७ को भेजी थी, जिसके साथ किसान क्रैडिट कार्डधारकों की सूची संलग्न की गयी। इस सूची में परिवादिनी के मृतक पति भूरेलाल का नाम अंकित नहीं था। अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता यह स्पष्ट नहीं कर सके कि इस सूची में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति भूरेलाल का नाम अंकित क्यों नहीं था तथा भूरेलाल के लिए दुर्घटना बीमा पालिसी से सम्बन्धित बीमा धनराशि अपीलार्थी बैंक द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को अदा क्यों नहीं की गयी ? ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति का दुर्घटना बीमा न कराकर अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है, त्रुटिपूर्ण नहीं माना जा सकता।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति स्व0 भूरेलाल की हत्या होना बतायी गयी है। विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय में इस बिन्दु पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया है कि क्या हत्या बीमा पालिसी के अन्तर्गत भुगतान हेतु आच्छादित होनी मानी जा सकती है ? उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपने पति की हत्या
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कारित करना नहीं बताया गया है और न ही अपीलार्थी का यह कथन है कि मृतक भूरेलाल की हत्या की कथित घटना में भूरेलाल की स्थिति आक्रामक की रही है। ऐसी परिस्थिति में हत्या की घटना को दुर्घटना की श्रेणी में न माने जाने का कोई औचित्य नहीं है। चूँकि अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति का दुर्घटना बीमा न कराया जाना साबित है, अत: ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा बीमा पालिसी से सम्बन्धित अभिलेख उपलब्ध कराए जाने का कोई औचित्य नहीं होगा।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में मेरे विचार से अपील में बल नहीं है। अत: गुणदोष के आधार पर भी यह अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील कालबाधन एवं गुणदोष दोनों ही आधारों पर निरस्त की जाती है।
इस अपील का व्यय-भार पक्षकार अपना-अपना वहन करेंगे।
पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-१,
कोर्ट नं0-१.