राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२२२८/२००६
(जिला मंच, आगरा द्वारा परिवाद संख्या-३२१/१९९९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-०८-२००६ के विरूद्ध)
१. केनरा बैंक, कमला नगर ब्रान्च, आगरा।
२. केनरा बैंक, आर0ओ0, एम0जी0 रोड, सिविल लाइन्स, आगरा।
३. केनरा बैंक, ४, सप्रू मार्ग, हजरतगंज लखनऊ।
४. केनरा बैंक, हैड आफिस ११२, जे0सी0 रोड, बंग्लौर (कर्नाटक)।
............ अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
श्रीमती हेम गुप्ता पत्नी श्री एच0सी0 गुप्ता निवासी ई-७५९, कमला नगर, आगरा द्वारा अटॉर्नी श्री एच0सी0 गुप्ता पुत्र श्री प्रभु दयाल गुप्ता निवासी ई-७५९, कमला नगर, आगरा। ............ प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एस0एम0 रॉयकवार विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से उपस्थित: नवीन कुमार तिवारी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- ०९-११-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, आगरा द्वारा परिवाद संख्या-३२१/१९९९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-०८-२००६ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसका बचत खाता सं0-९२४२ अपीलार्थी की कमला नगर शाखा जनपद आगरा में है। परिवादिनी ने अपने इस खाते से चेक सं0-१६७०१५ मु0 ३०,०००/- रू० एवं चेक सं0-१६७०१६ मु0 ५०,०००/- रू० का श्री अजय तत्कालीन निवासी सी-१४, आलोक नगर, जयपुर हाउस, आगरा के नाम जारी किए किन्तु ये चेक, प्राप्तकर्ता को दिए
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जाने से पूर्व ही खो गये। अत: दिनांक ०३-०७-१९९७ को परिवादिनी ने अपीलार्थी की सम्बन्धित शाखा में इन चेकों का भुगतान रोके जानेहेतु पत्र प्रेषित किया। इस पत्र की प्राप्ति वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक द्वारा स्वीकार की गई। तदोपरान्त परिवादिनी के पति श्री एच0सी0 गुप्ता ने व्यक्तिगत रूप से चेकों का भुगतान रोके जाने से सम्बन्धित भेजे गये पत्र के विषय में सम्बन्धित वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक से भी जानकारी प्राप्त की। वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक द्वारा सूचित किया गया कि पत्र प्राप्त हो चुका है एवं तद्नुसार कम्प्यूटर में फीडिंग कर दी गई है। उनके द्वारा यह भी सूचित किया गया कि इस सन्दर्भ में परिवादिनी के खाते से २०/- रू० भी काटे गये। इसके बाबजूद दिनांक १८-०८-१९९७ को अपीलार्थी बैंक द्वारा इन चेकों का भुगतान कर दिया गया। अत: अपीलार्थी बैंक द्वारा लापरवाही किए जाने एवं सेवा में त्रुटि कारित किया जाना अभिकथित करते हुए परिवाद जिला मंच में चेकों की धनराशि की मय ब्याज अदायगी तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया गया।
अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रेषित किया गया। अपीलार्थी बैंक के कथनानुसार परिवादिनी ने चेक सं0-१६७०१५ का भुगतान रोके जाने के सन्दर्भ में कोई सूचना बैंक को उपलब्ध नहीं कराई बल्कि चेक सं0-१६७०१६ तथा १६७०१७ का भुगतान रोके जाने के सम्बन्ध में पत्र प्रेषित किया। अपीलार्थीगण का यह भी कथन है कि स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने चेक जारी किए जाने में लापरवाही की। जारी किए गये चेक बीयरर थे तथा २०,०००/- रू० से अधिक के भुगतान हेतु जारी किए गये थे। प्रत्यर्थी/परिवादिनी व्यवसाय करती है। २०,०००/- रू० से अधिक का चेक एकाउण्ट पेयी ही जारी किया जा सकता है। अपीलार्थी बैंक का यह भी कथन है कि जिस व्यक्ति के नाम प्रश्नगत चेक जारी किए गये उसका नाम व पता पूछे जाने के बाबजूद प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया। वस्तुत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने मिली भगत से बैंक को नुकसान पहुँचाने हेतु समस्त कार्यवाही की। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि
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अपीलार्थी द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई। अपीलार्थी के अधिकारियों ने विवाद को निबटाने का भरसक प्रयास किया किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी एवं उसके पति ने मामले का निबटारा कराए जाने में कोई सहयोग प्रदान नहीं किया।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा अपीलार्थीगण को आदेशित किया कि वे प्रश्नगत दोनों चेकों की धनराशि ८०,०००/- रू० परिवादिनी के बचत खाते से धनराशि निकालने की तिथि से सम्पूर्ण अदायगी तक ०९ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज लगाकर जमा करें तथा परिवादिनी को मानसिक उत्पीड़न की बाबत् २,०००/- रू० तथा २,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में अदा करें। निर्धारित अवधि में आदेश का पालन न करने पर आदेश की तिथि से ८०,०००/- रू० पर बसूल होने तक १२ प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज देय होगा।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई।
हमने अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0एम0 रॉयकवार एवं प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
प्रश्नगत प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का बचत खाता सं0-९२४२ अपीलार्थी बैंक में है। इस खाते के संचालन हेतु चेक बुक जारी की गई थी। परिवादिनी ने चेक सं0-१६७०१५ अंकन ३०,०००/- रू० एवं चेक सं0-१६७०१६ अंकन ५०,०००/- रू० अजय नाम के व्यक्ति के नाम जारी किए थे। परिवादिनी के कथनानुसार प्राप्तकर्ता श्री अजय को चेक दिए जाने से पूर्व ये चेक कहीं खो गये, अत: पत्र दिनांकित ०३-०७-१९९७ द्वारा परिवादिनी ने चेकों का भुगतान रोके जाने हेतु प्रार्थना पत्र अपीलार्थी बैंक को प्रेषित किया। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि चेकों के भुगतान रोके जाने से सम्बन्धित पत्र द्वारा चेक सं0-१६७०१६ एवं १६७०१७ का भुगतान रोके जाने के निर्देश दिए गये। चेक सं0-१६७०१५ का भुगतान रोके जाने हेतु कोई निर्देश अपीलार्थी बैंक को नहीं दिया गया। अपीलार्थी बैंक प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित ०३-०७-१९९७ प्राप्त
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करना स्वीकार करता है किन्तु अपीलार्थी का यह कथन है कि इस पत्र के माध्यम से चेक सं0-१६७०१६ एवं १६७०१७ का भुगतान रोके जाने हेतु खाताधारक द्वारा निर्देश दिए गये थे। चेक सं0-१६७०१५ का भुगतान रोके जाने हेतु कोई निर्देश नहीं दिये गये थे। अपीलार्थी ने अपने लिखित तर्क की धारा-६ में यह अभिकथित किया है कि अपीलार्थी बैंक ने चेक सं0-१६७०१६ का मूल्य ५०,०००/- रू० का भुगतान परिवादिनी को परिवाद योजित करने से पूर्व देना चाहा किन्तु परिवादिनी तथा उसके अटॉर्नी ने उक्त धनराशि प्राप्त करने से मना कर दिया।
अपीलार्थी ने अपील मेमो के साथ प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी को प्रेषित पत्र दिनांकित ०३-०७-१९९७ की फोटोप्रति दाखिल की है, जिसके द्वारा निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादिनी को निम्नलिखित सूचना अपीलार्थी के शाखा प्रबन्धक को प्रेषित की :-
‘’ निवेदन है कि हमारे खाता संख्या ९२४२ जिसकी चेक बुक से दो चेक जिनका नं0 क्रमश: १६७०१६ तथा १६७०१७ है गलती से कहीं गिर गये हैं। अत: आपसे प्रार्थना है कि उक्त चेकों का भुगतान किसी भी हालत में न किया जाये। ‘’
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इस पत्र द्वारा प्रेषित सूचना में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने चेक सं0-१६७०१५ का भुगतान रोके जाने के सम्बन्ध में कोई सूचना अपीलार्थी बैंक को प्रेषित नहीं की और न ही यह विवरण प्रेषित किया है कि यह चेक किसके नाम जारी किये गये और किस तिथि को जारी किये गये। इस प्रकार स्वयं परिवादिनी ने प्रश्नगत चेक जारी किए जाने वं उनका भुगतान रोके जाने के सम्बन्ध में पर्याप्त सतर्कता नहीं बरती। बैंक से यह अपेक्षा किया जाना कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी से अपने स्तर से यह सूचना प्राप्त करता कि यह चेक किस दिनांक को जारी किए गए तथा किस व्यक्ति के नाम जारी किए गए तथा किस नम्बर के चेकों के सन्दर्भ में चेकों के भुगतान रोके जाने हेतु सूचना प्रेषित की गई है, का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। यदि स्वयं परिवादिनी खाताधारक द्वारा चेक सं0-१६७०१५ का भुगतान रोके जाने हेतु कोई निर्देश अपीलार्थी बैंक को प्रेषित
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नहीं किए गये तथा क्योंकि यह चेक बीयरर चेक थे, अत: चेक सं0-१६७०१५ का भुगतान चेकधारक को बैंक द्वारा किए जाने के सन्दर्भ में बैंक की सेवा में कोई त्रुटि नहीं मानी जा सकती।
जहॉं तक चेक सं0-१६७०१६ का प्रश्न है निर्विवाद रूप से इस चेक का भुगतान रोके जाने की सूचना अपीलार्थी बैंक को प्राप्त कराए जाने के बाबजूद इस चेक का भुगतान किया गया अत: यह कृत्य सेवा में त्रुटि माना जायेगा। अपीलार्थी बैंक का यह कथन है कि परिवाद योजित किए जाने से पूर्व अपीलार्थी बैंक ने इस चेक का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्राप्त कराना चाहा किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी तथा उसके पति ने यह भुगतान प्राप्त करने से मना कर दिया। परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किए गये लिखित तर्क में अपीलार्थी के इस कथन से इन्कार किया गया है। यदि वास्तव में अपीलार्थी बैंक द्वारा चेक सं0-१६७०१६ का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी को करना चाहा था गया तब यह धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के बैंक स्थित खाते में जमा की जा सकती थी।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्वान जिला मंच ने परिवाद के दोनों चेकों के भुगतान हेतु आदेशित किया है किन्तु इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दिया कि चेक सं0-१६७०१५ का भुगतान रोके जाने हेतु कोई निर्देश परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी बैंक को प्रेषित नहीं किए गये। अत: चेक सं0-१६७०१५ की धनराशि ३०,०००/- रू० के भुगतान के सन्दर्भ में प्रश्नगत निर्णय निरस्त किए जाने योग्य है।
जहॉं तक देय धनराशि पर निर्धारित ब्याज की दर का प्रश्न है, निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादिनी का खाता, बचत खाता था, अत: ०९ प्रतिशत ब्याज की दर भी हमारे विचार से अधिक है। ०९ प्रतिशत के स्थान पर ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज की अदायगी कराया जाना न्यायोचित होगा। २,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में दिलाए गये हैं। जिला मंच के इस निर्देश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। क्योंकि चेक सं0-१६७०१६ की धनराशि
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५०,०००/- रू० ब्याज सहित परिवादिनी को दिलाई जा रही है, अत: अलग से मानसिक उत्पीड़न की मद में क्षतिपूर्ति दिलाए जाने का कोई औचित्य नहीं होगा। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, आगरा द्वारा परिवाद संख्या-३२१/१९९९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-०८-२००६ अपास्त किया जाता है। परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अपीलार्थी बैंक को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय की तिथि के ४५ दिन के अन्दर चेक सं0-१६७०१६ की धनराशि ५०,०००/- रू० मय ब्याज अदा करे। इस धनराशि पर परिवाद योजित किए जाने की तिथि से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज भी अदा करे। इसके अतिरिक्त अपीलार्थीगण परिवादी को २,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में भी निर्धारित अवधि में अदा करें।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-३.