surendra kumar filed a consumer case on 18 Jul 2017 against HDFC in the Kanpur Nagar Consumer Court. The case no is cc/229/2013 and the judgment uploaded on 27 Feb 2018.
श्रीमती सुधा यादव........................................सदस्या
उपभोक्ता वाद संख्या-229/2013
सुरेन्द्र कक्कड़ पुत्र स्व0 षिव नारायण कक्कड़ निवासी चार्टेड एकाउन्टेंट वी0पी0 आदित्या एण्ड कंपनी 15/198ए सिविल लाइन्स, कानपुर नगर।
................परिवादी
बनाम
एच0डी0एफ0सी0 बैंक लि0 प्रधान कार्यालय मन्निकम रोड़ अमीनजी करारी चेन्नई-600029 षाखा कार्यालय सिविल लाइन्स कानपुर नगर-208001 द्वारा षाखा प्रबन्धक एच0डी0एफ0सी0 बैंक षाखा सिविल लाइन्स कानपुर नगर-208001
...........विपक्षी
परिवाद दाखिला तिथिः 15.04.2013
निर्णय तिथिः 07.02.2018
डा0 आर0एन0 सिंह, अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःः निर्णयःःः
1. परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षी के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करते हुए बतौर रू0 1,00,000.00 क्षतिपूर्ति दिलायी जाये, विपक्षी को यह भी आदेषित किया जाये कि परिवादी के लोन लिमिट एकाउन्ट में लगाया गया ब्याज, दण्ड ब्याज अथवा फर्जी प्रविश्टियां समाप्त करके, यदि कोई बकाया है, तो उसकी वास्तविक गणना करके, परिवादी से प्राप्त करके, ऋण खाता बन्द करें, परिवादी को दण्ड ब्याज से तथा विपक्षी के द्वारा अर्थ उत्पीड़न से बचाया जाये और परिवाद व्यय दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी ने विपक्षी से एकाउन्ट क्रेडिट कार्ड नं0-5176524200245930 प्राप्त किया था। जिसमें क्रेडिट लिमिट रू0 27,000.00 थी, जिसमें दिनांक 25.07.11 को कुल देय धनराषि रू0 26,616.64 बकाया थी। दिनांक 25.07.11 को विपक्षी के षाखा प्रबन्धक द्वारा संग्रहकर्ता ने अंचल कार्यालय लखनऊ
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बातकर फुल एण्ड फाइनल सेटेलमेंट के तहत रू0 26000.00 जमा करने को कहा था। जिस पर परिवादी द्वारा दिनांक 05.08.11 को रू0 26000.00 का भुगतान रसीद सं0-25367312 के द्वारा जमा किया गया। इस प्रकार यदि विपक्षी का कथन मान भी लिया जाये तो मात्र रू0 616.64 ही षेश परिवादी पर देय था। उपरोक्त के सम्बन्ध में विपक्षी के पत्र दिनांकित 20.11.11 के उत्तर में परिवादी द्वारा पत्र दिनांक 12.12.11 को तथा ईमेल दिनांक 14.12.11 के द्वारा विपक्षी से समायोजन हेतु कहा। किन्तु विपक्षी ने समायोजन नहीं दिखाया। विपक्षी ने परिवादी द्वारा दिनांक 05.08.11 को जमा की गयी धनराषि रू0 26000.00 को दिनांक 06.08.11 को परिवादी के खाते में जमा की और माह अगस्त और सितम्बर 2011 में ओवर लिमिट फीस/वित्त प्रभाज जैसे तमाम तरह के खर्चे परिवादी के खाते में लगा दिये, जो भुगतान होने के बाद नहीं लग सकते थे। विपक्षी ने परिवादी के स्पश्टीकरण पर बिना विचार किये हुए पुनः दिनांक 12.01.12 को एक आपत्तिजनक भाशायुक्त पत्र परिवादी को लिखा, जिसका उत्तर परिवादी द्वारा दिनांक 10.02.12 को संलग्नो सहित भेजा और दिनांक 10.02.12 को ईमेल से भी स्पश्टीकरण भेजा। विपक्षी ने अपने अधिवक्ता के द्वारा नोटिस दिनांक 15.02.12 परिवादी को भेजी, जिसके प्रस्तर-2 में दिये गये प्रस्ताव के अनुसार परिवादी ने दिनाक 29.02.12 को एच.डी.एफ.सी. बैंक के प्रतिनिधि/ अधिकारी फरहत सिद्दकी से संपर्क कर उन्हें सारे तथ्यों से अवगत कराया। उन्होंने सारे प्रपत्र देखकर कहा मांगी जा रही धनराषि उचित नहीं है। विपक्षी के अधिवक्ता श्री एस0के0 राय के पत्र दिनांकित 15.02.12 के प्रस्तर-2 में सुझाये गये एच.डी.एफ.सी. बैंक लीगल मैनेजर श्री सैय्यद मुज्जम अली से उनके फोन पर दिनांक 02.03.12 तथा 09.03.12 को परिवादी ने कई बार संपर्क किया। उनके व्यस्त होने के कारण उनकी सलाह पर उनके सहायक से बात की तो उन्होंने परिवादी के कार्ड की प्रिंट आउट निकालकर परिवादी से वार्ता करने का आष्वासन दिया। विपक्षी बैंक के लीगल मैनेजर श्री सैय्यद मुज्जम अली ने दिनांक 19.03.12 के द्वारा तक कोई कार्यवाही नहीं की तो परिवादी ने पत्र दिनांक 19.03.2012
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द्वारा पुनः सैय्यद मुज्जम अली को पंजीकृत डाक से पत्र भेजा, किन्तु विचार नहीं किया गया। बल्कि पुनः विपक्षी द्वारा एक पत्र दिनांकित 29.03.12 को परिवादी को प्रेशित किया। परिवादी द्वारा उक्त पत्र का जवाब दिनांक 03.05.12 को पंजीकृत डाक से लीगल मैनजर को भेजा गया, किन्तु किसी भी पत्र का उत्तर लिखित रूप से नहीं दिया गया। उक्त लीगल मैनेजर ने वार्ता में अपनी गलती तो स्वीकारी, किन्तु धनराषि के संदर्भ में कोई लिखित स्पश्टीकरण नहीं दिया और न ही डिमान्ड हटायी, जो कि सेवा में कमी का स्पश्ट मामला है। विपक्षी द्वारा रू0 161.64 के स्थान पर रू0 6133.76 का अवैधानिक रूप से वसूली किये जाने का नोटिस भेजा गया। विपक्षी द्वारा दिनांक 17.10.12 को अपने सहायक दीपा हरिगोविन्द अधिवक्ता के माध्यम से परिवादी की नेाटिस का उत्तर परिवादी के अधिवक्ता श्री आर0जी0 पाण्डेय को प्रेशित किया और उक्त नोटिस से स्पश्ट किया कि दिनांक 05.07.11 को मन्थली स्टेटमेंट में दिनांक 25.07.11 तक रू0 26,616.64 बकाया थे। जिसमें दिनांक 05.08.11 को रू0 26,000 जमा किया गया। तो उक्त तिथि तक रू0 616.64 के बजाय रू0 2900.00 बैलेन्स नहीं हो सकता था। क्योंकि कोई भी धनराषि दिनांक 26.07.11 से 05.08.11 तक मात्र 11 दिन में ब्याज रू0 2273.00 मूलधन रू0 616.64 का नहीं हो सकता, यह बैकिंग नियमों के विरूद्ध है और विपक्षी के नोटिस दिनंाक 17.10.12 द्वारा बकाया रू0 7538.88 प्रदर्षित किया तथा कोई भी स्टेटमेंट नहीं दिया गया, विपक्षी की सेवा में स्पश्टीकरण का मामला है। विपक्षी द्वारा गलत डिमांड नोटिस भेजकर परिवादी से अवैध वसूली के लिए बाध्य किया जा रहा है। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3.विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि विपक्षी उत्तरदाता के द्वारा सेवा में कोई कमी कारित नहीं की गयी है। परिवादी का क्रेडिट कार्ड एकाउन्ट को भली-भांति संरक्षित किया गया है। विपक्षी
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के नियम व षर्तों के अनुसार विपक्षी परिवादी से विलम्ब के लिए क्रेडिट सुविधा के लिए अतिरिक्त चार्जेज प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अपनी विधिक जिम्मेदारी के निर्वाह्न से बचने के लिए दूशित मंषा से बनावटी तथ्यों के आधार पर निराधार परिवाद प्रस्तुत किया गया है। परिवादी जानबूझकर विपक्षी की विधिक बकाया धनराषि देने में चूक की गयी है। अतः विपक्षी उत्तरदाता के विरूद्ध परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
4परिवादी की ओर से जवाबुल जवाब प्रस्तुत करके, विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये जवाब दावा में उल्लिखित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और स्वयं के द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों की पुनः पुश्टि की गयी है।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5.परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 15.04.13 व 21.03.16 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्नक कागज सं0-1/1 लगायत् 1/8 दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
6.विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में सैय्यद मुज्जम अली, लीगल मैनेजर का षपथपत्र दिनांकित 05.11.14 एवं अमित कुमार निगम, लीगल मैनेजर का षपथपत्र दिनांकित 07.04.17 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्नक कागज सं0-2/1 लगायत् 2/26 लिखित बहस दाखिल किया है।
निष्कर्श
7.फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं विपक्षी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
8.उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त प्रस्तर-5 व 6 में वर्णित षपथपत्रीय व अन्य अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। उभयपक्षों की
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ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त साक्ष्यों में से मामले को निर्णीत करने में सम्बन्धित साक्ष्यों का ही आगे उल्लेख किया जायेगा।
9.उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक से प्रष्नगत क्रेडिट कार्ड लिया गया था। उक्त क्रेडिट कार्ड में दी गयी लिमिट का प्रयोग करने के बाद क्रेडिट कार्ड में नियम के अनुसार धनराषि वापस जमा करने में परिवादी डिफाल्टर हो गया, जो कि स्वयं परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में स्वीकार किया गया है। इस सम्बन्ध में परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में कह गया है कि दिनांक 25.07.11 को विपक्षी के षाखा प्रबन्धक द्वारा संग्रहकर्ता ने अंचल कार्यालय लखनऊ बात कर फुल एण्ड फाइनल सेटेलमेंट के तहत रूपये जमा करने को कहा था, जिस पर परिवादी द्वारा दिनांक 05.08.11 को रू0 26000.00 का भुगतान कर दिया गया। विपक्षी द्वारा रू0 26000.00 का भुगतान परिवादी द्वारा किया जाना स्वीकार किया गया है। किन्तु परिवादी के इस कथन को स्वीकार नहीं किया गया है कि विपक्षी द्वारा परिवादी से किसी फुल एण्ड फाइनल सेटेलमेंट के तहत रू0 26000.00 जमा करने को कहा गया था। अब परिवादी को यह सिद्ध करना है कि क्या विपक्षी द्वारा परिवादी के डिफाल्टर होने पर कोई फुल एण्ड फाइनल सेटेलमेंट परिवादी के साथ किया गया? परिवादी द्वारा उपरोक्त के सम्बन्ध में कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में मात्र षपथपत्रीय साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है, जिसका खण्डन विपक्षी के द्वारा प्रति षपथपत्र प्रस्तुत करके किया गया है। विपक्षी का कहना है कि परिवादी के खाते के मासिक विवरण के अनुसार दिनांक 05.07.2011 को परिवादी पर रू0 26,616.64 बकाया था, जो कि परिवादी को दिनांक 25.07.11 तक जमा कर देना था। परिवादी उक्त धनराषि नियत तिथि पर जमा करने में असफल रहा है और इस तरह परिवादी डिफाल्टर हो गया। फलस्वरूप दिनांक 05.08.2011 को अतिरिक्त चार्जेज जोड़कर परिवादी पर रू0 28,657.10 हो गया। परिवादी द्वारा अग्रिम माह के विवरण दिनांक 5.09.11
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के अनुसार रू0 26000.00 दिनांक 06.08.11 को जमा किया गया। इस प्रकार परिवादी पर रू0 2,900.15 अवषेश रह गया। उक्त सम्बन्धित चार्जेज क्रेडिट कार्ड लिमिट षर्तों के अनुसार मासिक रूप से बढ़ते हुए रू0 6,133.76 मासिक विवरण दिनांक 05.03.11 तक हो गया। विपक्षी द्वारा अपने उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में षपथपत्री साक्ष्य के अतिरिक्त, सूची के साथ कागज सं0-2/1 लगायत् 2/26, परिवादी की ओर से क्रेडिट कार्ड लिमिट प्राप्त करने की, की गयी घोशणा प्रस्ताव फार्म तथा मासिक विवरण प्रस्तुत किये गये हैं। जिससे विपक्षी का उपरोक्त कथन प्रमाणित होता है। परिवादी द्वारा विपक्षी द्वारा प्रस्तुत किये गये उपरोक्त प्रलेखीय साक्ष्यों के विरूद्ध कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है।
अतः उपरोक्तानुसार उभपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये षपथपत्री व प्रलेखीय साक्ष्यों के विष्लेशणोपरांत दिये गये निष्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
10. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध खारिज किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
( सुधा यादव ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर फोरम कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
( सुधा यादव ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्या अध्यक्ष
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