Rajasthan

Jalor

C.P.A 63/2013

Indra Devi - Complainant(s)

Versus

HDFC ERGO,Junral Insurace Comp. Ltd. etc. - Opp.Party(s)

Dilip Sharma

31 Mar 2015

ORDER

न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर

पीठासीन अधिकारी

अध्यक्ष:-  श्री  दीनदयाल प्रजापत,

सदस्यः-   श्री केशरसिंह राठौड

सदस्याः-  श्रीमती मंजू राठौड,

      ..........................

1.इन्द्रादेवी धर्मपत्नि श्री लक्ष्मीनारायणजी, उम्र- 55 वर्ष, जाति अग्रवाली, निवासी- 434 अग्रवाल कोलोनी, स्टेशन रोड, भीनमाल, तहसील-भीनमाल, जिला-  जालोर।

 

...प्रार्थीयां।

                                   बनाम

1. HDFC   ERGO,जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड,

 6 जी फ्लोर, लीला बिजनेस पार्क, अन्धेरी कुर्ला रोड, अन्धेरी ईस्ट मुम्बई -400059

2.राजेश  मोटरकार्स प्राईवेट लि0  ।. 83 रोड नं0 1,

मेवार इण्डस्ट्रीयल ऐरिया, मादरी, उदयपुर 313002        

 

..अप्रार्थीगण।

                                सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 63/2013

परिवाद पेश करने की  दिनांक:-15-04-2013

अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता  संरक्षण  अधिनियम ।

उपस्थित:-

1.            श्री दिलीप कुमार शर्मा,  अधिवक्ता प्रार्थीयां।

2.            श्री  तिलोकचन्द मेहता, अधिवक्ता अप्रार्थी सं0 1,

3.            श्री तरूण सोलंकी, अधिवक्ता अप्रार्थी संख्या- 2,

  निर्णय     दिनांक:  31-03-2015

1.              संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थीयां का वाहन जिसके रजिस्ट्रेशन नम्बर-   R.J. 16  C.A. 1919    इन्जन नम्बर- CFW 153996  चैसिस नम्बर-  WVWF 11607BTO 71931 हैं। उक्त वाहन  बीमा पाॅलिसी संख्या-2311200101932701000 के जरिये  बीमित अवधि दिनांक 09-07-2012  से दिनांक 08-07-2013 तक बीमित था, जो प्रार्थीयां ने प्रिमियम राशि रूपयै  9572/- अदा कर बीमा करवाया था। उक्त वाहन प्रार्थीयां ने अप्रार्थी संख्या- 2 से खरीदा था। तथा प्रार्थीयां का उक्त बीमित वाहन दिनांक 01-02-2013 को आकस्मिक रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसकी सूचना उसी समय अप्रार्थी संख्या- 1 बीमा कम्पनी को दी, तथा वाहन अप्रार्थी संख्या 2 के यहां ठीक करने के लिए सुपर्द करके आये। जहां पर अप्रार्थी , संख्या- 1 बीमा कम्पनी का  सर्वेयर आया, तथा अप्रार्थी संख्या- दो ने आकस्मिक घटी घटना के नुकसान का एस्टीमेट बनाकर बीमा कम्पनी के प्रतिनिधि को दिया। बीमा कम्पनी के प्रतिनिधि ने कहा था कि घटना से घटे सारे नुकसान की भरपाई हो जायेगी, बाद में अप्रार्थी संख्या 2 के यहंा से प्रार्थीयां को फोन आया कि इजंन में खराबी आ गई हैं। इजंन पूरा तैयार करना पडेगा। प्रार्थीयां की ओर से अप्रार्थी संख्या - 2 को ओलबंा भी दिया गया, कि गाडी नई हैं, बिना पूछे ईजंन कैसे खोला हैं, तो अप्रार्थी संख्या 2 के प्रतिनिधि ने कहा कि  बीमा कम्पनी को सभी नुकसान बता दिया हैं, सर्वेयर ने सभी जानकारी ले ली हैं, नुकसान बीमा कम्पनी भर देगी।  लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बीमा कम्पनी का प्रतिनिधी राशि स्वीकृत करने अप्रार्थी संख्या- 2 के यहंा नहीं पहुंचा और महंगी गाडी पडी-पडी वहां खुली हुई खराब हो रही थी, तब बीमा कम्पनी को फोन कर व पत्र लिखकर आग्रह किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, बीमा कम्पनी ने लगातार सेवा मेें कमी की, महंगी गाडी खराब हो रही थी। अप्रार्थीगण ने प्रार्थीयां की मजबूरी का अनुचित फायदा उठाया, अप्रार्थी संख्या - 2 ने बिल भरने की स्वीकृति प्रार्थीयां से लेकर , गाडी तैयार ठीक की बता रहे हैं। अप्रार्थी संख्या- 2 ने अनुचित व्यापार किया, अप्रार्थी संख्या- 1 ने भी गाडी खराबी को ठीक करने की स्वीकृति नहीं देकर सेवा में कमी बरती हैं। अप्रार्थी संख्या- 2 ने प्रार्थीयां को मजबूर कर स्वीकृति ली हैं, अप्रार्थी संख्या-2 गाडी ठीक करने की एवज में प्रार्थीयां के 1,96,000/-रूपयै का बिल बनाया, व बिल देने पर ही गाडी देने की बात कही। बीमा कम्पनी बिल की राशि अदा नहीं कर रही हैं, अप्रार्थीगण के व्यवहार से प्रार्थीयां को मानसिक वेदना एवं आर्थिक क्षति हुई हैं। इसप्रकार प्रार्थीयां ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व अप्रार्थीगण संख्या- 1 से बीमा क्लेम राशि 1,96,000/-रूपयै मय विधिक ब्याज के दिलाने एंव अप्रार्थी संख्या- 2 से मानसिक पीडा व आर्थिक क्षति के 50,000/-रूपयै, तथा सेवा त्रुटि के अप्रार्थीगण से , आर्थिक क्षति के 50,000/-रूपयै, परिवाद पेश करने का आर्थिक खर्च 10,000/-रूपयै मय ब्याज  दिलाये जाने हेतु यह परिवाद जिला मंच में पेश किया गया हैं।

 

2.                            प्रार्थीयां केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थीगण को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया गया। जिस पर अप्रार्थी क्रमांक- 1 की ओर से अधिवक्ता श्री तिलोकचन्द मेहता ने एवं अप्रार्थी संख्या- 2 की  ओर से अधिवक्ता श्री तरूण सोलंकी ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थीगण ने प्रथम दृष्टया प्रार्थीयां का परिवाद अस्वीकार कर,  अप्रार्थी संख्या- 1 ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये कि वाहन संख्या-R.J. 16  C.A. 1919 अप्रार्थी संख्या- 1 के यहां बीमित था, तथा प्रार्थीयां का वाहन क्षतिग्रस्त होने की सूचना बीमा कम्पनी को प्राप्त हुई, जिस पर जाॅंचकर्ता अतुल कुमार को नियुक्त किया गया। जाॅंचकर्ता  की रिपोर्ट  के आधार पर प्रार्थीयां के वाहन की कुल क्षति रूपयै  36281/- होना पाया, जिस में से पालिसी क्लोज रूपयै  1000/- कम किये गये और साल्वेज रूपयै  781/- कम किये जाकर प्रार्थीयां को  देय योग्य राशि रूपयै  34,500.44/- बनी, जिसका भुगतान प्रार्थीयां को दिनांक 16-04-2013 को जरिये चैक नम्बर - 521062 के किया जा चुका हैं, लेकिन इस तथ्य को प्रार्थीयां ने इस परिवाद में छिपाया हैं, तथा प्रार्थीयां के वाहन का इंजिन दुर्घटना में क्षतिग्रस्त नहीं हुआ, बल्कि जाॅंचकर्ता ने वाहन के उपयोग से वियर एण्ड टीयर के आधार पर इजंन में खराबी होना पाया। तथा अप्रार्थी नं0 2 ने जाॅंचकर्ता की रिपोर्ट के पश्चात् क्यों वाहन का इंजिन खोला, उसकी जानकारी अप्रार्थी बीमा कम्पनी को नहीं हैं। तथा अप्रार्थी नं0 2 प्रार्थीयां को गलत तवज्जो दे रहा हैं, तथा येन-केन प्रकारेण इंजिन का पैसा बीमा कम्पनी से वसूलने हेतु  प्रयास किया जा रहा हैं।  तथा प्रार्थीयां के वाहन में उत्पन्न खराबी को लेकर अप्रार्थी सं0 1 खर्च राशि अदा करने हेतु उत्तरायी नहीं हैं। इसप्रकार अप्रार्थी क्रमंाक- 1 ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थीयां का परिवाद मय खर्चा खारिज करने का निवेदन किया हैं, तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने पृथक से जवाब परिवाद पेशकर कथन किये, कि दिनांक 02-02-2013 को प्रार्थीयंा का क्षतिग्रस्त वाहन ट्रक पर अप्रार्थी संख्या- 2 के यहंा ठीक होने के लिए आया था। गाडी का आॅयल, चैम्बर क्षतिग्रस्त हो गया था।  व बम्पर एफ0आर0 भी क्षतिग्रस्त हो गया था, तथा वर्कशाप में बाहरी नुकसान को देखते हूए एस्टीमेट बनाया गया व कस्टमर को दिया गया, तथा उनसे इन्श्योरेन्स की फोर्मलिटिज पूरी करने के लिए कहा गया, उक्त सारी कार्यवाही करने के बाद सर्वेयर अतुल डिडवानियां सर्वे करने आये व सारे फोटो लिये, तथा गाडी ठीक करने के आदेश दिये गये। जिस पर सर्वप्रथम  गाडी का आॅयल पम्प चैन्ज किया गया तथा गाडी स्टार्ट की, लेकिन गाडी स्टार्ट नहीं हुई, गाडी का इजंन अन्दर से क्षतिग्रस्त हो गया था, इसकी सूचना तुरन्त प्रार्थीयां व इन्श्योरेन्स कम्पनी दोनो को दी गई। प्रार्थीयां द्वारा इसका खर्चा पूछा तो हमने इंजन के डेमेज पार्ट देखकर इसका खर्चा प्रार्थीयां को बताया, लेकिन इन्श्योरेन्स कम्पनी ने इस कार्य को करने की परमीशन नहीं दी। तथा यह बात हमने प्रार्थीयां को बताई , तथा उनसे जवाब मांगा, तो प्रार्थीयां ने 8-10 दिन में सोच कर बताने का कहा। दो तीन बार कस्टमर  को पूछा तो प्रार्थीयां ने हमे कहा कि गाडी को कम्पलीट ठीक करके दो। तब अप्रार्थी क्रमांक - 2 ने प्रार्थीयां की वाहन पूरी तरह से ठीक करके वाहन की डिलेवरी दिनांक 11-04-2013 को बिल एमाउन्ट रूपयै 1,96,665/- प्राप्त करके दी गई। तथा प्रार्थीयां द्वारा गाडी को चैक करके टैस्ट ड्राईव लेकर उक्त वाहन की डिलेवरी प्राप्त की गई। तथा अप्रार्थी संख्या - 2 द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा में त्रुटि नहीं बरती गई है। न ही अप्रार्थी नं0 2 द्वारा किसी प्रकार का अनुचित  व्यापार एवं व्यवहार किया गया हैं। अगर अप्रार्थी संख्या- 1 ने उक्त नुकसानी के क्लेम दावा का भुगतान प्रार्थीयां  को नहीं किया हैं, तो सेवा में त्रुटि अप्रार्थी संख्या- 1 ने बरती हैं। अप्रार्थी संख्या- 2 ने प्रार्थीयां की किसी भी मजबूरी का कोई फायदा नही उठाया हैं, तथा प्रार्थीयां की स्वीकृति पर उक्त वाहन को ठीक कर के प्रार्थीयां को सुपर्द किया हैं। प्रार्थीयां को क्लेम देने की या न देने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी अप्रार्थी संख्या- 1 की हैं। तथा प्रार्थीयां द्वारा उक्त वाहन उदयपुर से खरीद किया गया हैं।  इस कारण जिला मंच जालोर को सुनने का क्षैत्राधिकार  नहीं है।  इसप्रकार अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थीयां  का परिवाद अप्रार्थी क्रमांक- 2 के विरूद्व गलत आधारो पर पेश होने से खारीज करने एवं कम्पनसेट्री कोस्ट रूपयै 5000/- दिलाये जाने का निवेदन किया हैे।

 

3.           हमने उभय पक्षो को जवाब एवं साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद,  उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिन पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक  हैें:-

 

1   क्या प्रार्थीयां, अप्रार्थीगण की उपभोक्ता हैं ?      प्रार्थीयां

 

2   क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थीयां के क्षतिग्रस्त वाहन को रिपेयर करने

      में  तथा  क्षतिपूर्ति  राशि  प्रदान  करने  में  सेवादोष  कारित

      किया हैं ?                      

                                                                                                                                प्रार्थीयां  

3 अनुतोष क्या होगा ?      

प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-

 

 क्या प्रार्थीयां, अप्रार्थीगण की उपभोक्ता हैं ?     प्रार्थीयां

 

       उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थीयंा पर हैं, जिसके सम्बन्ध में प्रार्थीयां ने बीमा पाॅालिसी संख्या-2311200101932701000  की प्रति पेश की हैं, जिसमें प्रार्थीयां का वाहन संख्या- R.J. 16  C.A. 1919  प्रार्थीयंा के नाम से दिनांक 09-07-2012  से दिनांक 08-07-2013 तक वाहन की कीमत राशि रूपयै  4,62,852/-  का जोखिम वहन करने हेतु बीमित था, तथा प्रार्थीयां ने प्रिमियम राशि रूपयै  9572/-  अप्रार्थी को अदा कर, उक्त बीमा पाॅलिसी अप्रार्थी क्रमांक- 1 बीमा कम्पनी से प्राप्त करना प्रमाणित हैं। तथा अप्रार्थी क्रमांक- 1 बीमा कम्पनी ने जवाब परिवाद में प्रार्थीयां का वाहन अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहंा बीमित होना स्वीकार किया हैं। तथा प्रार्थीयां ने परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थीयां का उक्त बीमित वाहन दिनंाक 01-03-2013 को दुर्घटना कारित होकर क्षतिग्रस्त हुआ था। जिसे अप्रार्थी क्रमांक- 2 के यहंा ठीक/रिपेयर करवाया, जिसके रिपेयर की राशि के रूपयै  1,96,000/- प्रार्थीयां ने अप्रार्थी क्रमांक- 2 को भुगतान की थी। तथा अप्रार्थी क्रमांक-2 ने जवाब परिवाद में प्रार्थीयां के परिवाद कथनो को स्वीकार करते हूए कहा हैं कि प्रार्थीयां का क्षतिग्रस्त वाहन अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने ठीक/रिपेयर  करके राशि रूपयै  196000/- प्राप्त की थी। इसप्रकार प्रार्थीयां  एवं अप्रार्थीगण के मध्य  ग्राहक-सेवक का सीधा सम्बन्ध  स्थापित होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थीयां उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम  1986 की धारा 2 1 डी के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आती हैं। इसप्रकार प्रथम विवाद बिन्दु का निस्तारण  प्रार्थीयंा के पक्ष में एवं अप्रार्थीगण के विरूद्व  किया जाता हैें।

 

द्वितीय विवाद बिन्दु:-  

    क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थीयां के क्षतिग्रस्त वाहन को रिपेयर करने

     में  तथा  क्षतिपूर्ति  राशि  प्रदान  करने  में  सेवादोष  कारित

     किया हैं ?    

                                                                                                                                प्रार्थीयां 

 

              उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थीयां पर हैं।  जिसके सम्बन्ध में प्रार्थीयां ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र पेश कर कथन किये हैं कि दिनांक 01-02-2013 को प्रार्थीयंा का उक्त वाहन आकस्मिक रूप से दुर्धटनाग्रस्त  हो गया था, तथा घटना की सूचना उसी समय अप्रार्थी संख्या-1 बीमा कम्पनी को दी गई । तथा वाहन अप्रार्थी संख्या- 2 के यहंा ठीक करने के लिए सुपुर्द कर के आये। तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने जवाब परिवाद में कथन किये हैं कि दिनांक 02-02-2013 को प्रार्थीयंा का क्षतिग्रस्त वाहन ट्रक पर अप्रार्थी संख्या- 2 के यहां ठीक होने के लिए आया था। तथा गाडी का आयॅल चैम्बर क्षतिग्रस्त हो गया था। तथा वर्कशाप में बाहरी नुकसान को देखते हूए एस्टीमेट बनाया गया व कस्टमर को दिया गया। तथा अप्रार्थी संख्या- 1 बीमा कम्पनी ने जवाब परिवाद पेश कर कथन किये हैं कि प्रार्थीयां के वाहन का इंजिन दुर्घटना में क्षतिग्रस्त नहीं हुआ, बल्कि जाॅंचकर्ता ने वाहन के उपयोग से वियर एण्ड टियर के आधार पर इंजिन में खराबी होना पाया, तथा जाॅंचकर्ता सर्वेयर अतुल डीडवानियां की सर्वे रिपोर्ट दिनांक 10-04-2013 के अनुसार जाॅंचकर्ता ने दिनांक 05-02-2013 को क्षतिग्रस्त वाहन का सर्वे अप्रार्थी राजेश मोटर्स के यहंा पडी प्रार्थी की क्षतिग्रस्त वाहन की जाॅंच/ सर्वे की थी, जिसमें Engine chamber  sheared,  Cover  oil  sum  pressed, glass w/s-broken, Fr  grill- broken, Carrier  end module broken , Fr  bumper  & grill- broken, head lamp pracket broken,  under  run  bar broken  होना लिखा हैं। तथा जाॅचकर्ता ने प्रथम दृष्टया रिपेयर का एस्टीमेट रूपयै 49,308/- देने के  वक्त इजंन आॅयल Sump होना पाया था। लेकिन बाद में आॅयल Sump को परिवर्तित/ ठीक  करते समय इजंन के अन्दर/ आन्तरिक की खराबी को ठीक करने का ध्यान आया, तब दिनांक 08-03-2013 को पुनः या संशोधित एस्टीमेट रूपयै 1,62,123/- दिया गया था। तथा  अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने भी कहा हैं कि सर्वप्रथम गाडी  का आयल पम्प चैन्ज किया, तथा गाडी स्र्टाट की, लेकिन गाडी स्र्टाट नहीं हुई क्यों कि इंजिन अन्दर से क्षतिग्रस्त था। हमारी राय में सर्वेयर ने वाहन की बाहरी क्षतियों का आंकलन किया हैं, लेकिन इजंन के अन्दर की क्षति हेतु इजंन को खोल कर नहीं देखा था। तथा हमारी राय में जब क्षतिग्रस्त वाहन को सर्विस सेन्टर का मिस्त्री/तकनीशियन ठीक/रिपेयर करता हैं, वहीं वाहन की वास्तविक क्षति कारित होना या उसे ठीक होना बता सकता हैं। तथा सर्वेयर क्षतिग्रस्त वाहन को ठीक/ रिपेयर नहीं कर सकता हैं। वाहन क्षतिग्रस्त होने की उपरी या दिखावटी  दिखने वाली क्षतियों का विवरण लिखित कर सकता हैं, जो दुर्घटना में क्षति होना पाई गई या नहीं पाई गई इसका प्रमाण देता हैं, ताकि कोई फर्जी दुर्घटना बताकर लाभ प्राप्त नहीं कर सके।  तथा प्रार्थीयां ने अप्रार्थी क्रमांक- 2 से वाहन रिपेयर /ठीक करने का बिल रूपयै 1,96,665 दिनांक 30-05-2013 भुगतान करने की प्रति पेश की हैं। तथा अप्रार्थी क्रमांक- 1 बीमा कम्पनी ने प्रार्थीयां के परिवाद पेश करने के बाद प्रार्थीयां के बैंक खाता में जरिये चैक संख्या- 521062 दिनांक 16-04-2013 रूपयै 34,500.44पैसे अदा किये हैं जो वास्तविक क्षति से कम राशि हैं तथा अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने उचित वाहन क्षतिपूर्ति प्रार्थीयां को अदा नहीं कर सेवा प्रदान करने में गलती एवं त्रुटि कारित की हैं जो सिद्व एवं प्रमाणित होता हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थीयां के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण  विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।

 

तृतीय विवाद बिन्दु- 

                                अनुतोष क्या होगा ?           

 

       जब प्रथम व द्वितीय विवाद बिन्दुओ का निस्तारण प्रार्थीयां के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण के विरूद्व तय हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थीयां के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थीयां विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारीणी हैं, या उसे दिलाई जा सकती हैं। इसके सम्बन्ध में  हमारी राय में प्रार्थीयां ने हस्तगत विवादित वाहन दिनांक 12-07-2011 को नया क्रय किया था, जो क्रय करने के डेढ वर्ष बाद दुर्घटना कारित होकर क्षतिग्रस्त हुआ हैं। तथा प्रार्थीयां ने वाहन की सर्विस  बुक के पृष्ठ की प्रति पेश की हैं, जिसके अनुसार दिनांक 21-11-2012 को प्रार्थीयां ने वाहन की सर्विस करवायी है। उस समय प्रार्थीयां का वाहन 48992 किलोमीटर चल चुका था, तथा प्रार्थीयां का वाहन दुर्घटना के वक्त 54423 किलोमीटर चलने के बाद रोड पर बडे पत्थर से टकराकर क्षतिग्रस्त हुआ हैं, तथा प्रार्थीयां के वाहन के इंजिन के अन्दर पहले से क्षति या खराबी होती, तो वाहन रोड पर नहीं चल सकता था। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यह कहना कि प्रार्थीयंा के इजंन में पहले से ही खराबी थी या टीयंर एण्ड वीयर के कारण इजंन खराब हो  गया था के कथन मानने योग्य नहीं हैं। तथा प्रार्थीयां का वाहन क्रय तिथी से डेढ वर्ष में  54423 किलोमीटर चलने के आधार पर निर्माता कम्पनी की अण्डर वारन्टी अवधि में था, तथा ऐसी दुर्घटना से पूर्व खराबी होती तो, प्रार्थीयंा निर्माता कम्पनी से ठीक कराने की मांग कर सकती थी, लेकिन प्रार्थीयां का वाहन आॅन रोड आकस्मिक दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होने से उसे ठीक/रिपेयर कराने का दायित्व या उसकी क्षतिपूर्ति राशि अदा करने का उत्तरदायित्व अप्रार्थी बीमा कम्पनी का होता हैं या माना जाता हैं। तथा प्रार्थीयां के क्षतिग्रस्त वाहन को रिपेयर कराने का खर्च 1,96,665/-रूपयै हुआ हैं, जिस में से अप्रार्थी क्रमंाक- 1 ने दिनांक 16-04-2013 को रूपयै  34500.44 पैसे ही अदा किये हैं। हमारी राय में प्रार्थीयां के वाहन की आयु के अनुसार क्षति कम आॅंकी गई हैं,   इसलिए प्रार्थीयां को रूपयै 1,00,000/-  अप्रार्थी क्रमांक- 1 से और दिलाये  जाना एवं मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति के रूप में रूपयै 5000/- एवं परिवाद व्यय के रूप में रूपयै 2000/- अप्रार्थी क्रमांक- 1 से दिलाये जाना उचित माना जाता हैं। इस प्रकार प्रार्थीयां का परिवाद आशिंक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य हैं, तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 के विरूद्व कोई सेवादोष कारित होना नहीं पाया जाने से उसे मुक्त करना उचित माना जाता हैं।

आदेश

 

                 अतः प्रार्थीयां ईन्द्रादेवी का परिवाद विरूद्व अप्रार्थी क्र्रमांक-1 HDFC   ERGO, जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड, के विरूद्व आशिंक रूप से स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि निर्णय की तिथी से 30 दिन के भीतर अप्रार्थी बीमा कम्पनी प्रार्थीयां को बीमित वाहन की क्षतिपूर्ति राशि रूपयै 1,00,000/- अक्षरे एक लाख रूपयै मात्र और देवे, तथा मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति के रूप में रूपयै 5000/- अक्षरे पाॅंच हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूप में रूपयै 2000/- अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र भी अदा करे। तथा अप्रार्थी उक्त राशि पर 30 दिन में प्रार्थीयंा को अदा नहीं करने पर प्रार्थीयां उक्त राशि पर  निर्णय तिथी  से तारीख वसूली तक 9 प्रतिशत वार्षिकी दर से ब्याज अप्रार्थी क्रमांक- 1 से प्राप्त करने की अधिकारीणी होगी। अप्रार्थी क्रमांक- 2 के विरूद्व कोई सेवादोष कारित होना नहीं माना जानेे से मुक्त किया जाता हैं।

                निर्णय व आदेश आज दिनांक 31-03-2015 को विवृत मंच में  लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

 

                                  मंजू राठौड       केशरसिंह राठौड          दीनदयाल प्रजापत

                                       सदस्या            सदस्य                       अध्यक्ष

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