Uttar Pradesh

StateCommission

A/3040/2016

Smt. Sugnadha - Complainant(s)

Versus

HDFC Ergo General Insurance Co. Ltd - Opp.Party(s)

Arti Pushkar

15 Feb 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/3040/2016
(Arisen out of Order Dated 04/11/2016 in Case No. C/60/2015 of District Ghaziabad)
 
1. Smt. Sugnadha
Ghaziabad
...........Appellant(s)
Versus
1. HDFC Ergo General Insurance Co. Ltd
Mumbai
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 15 Feb 2018
Final Order / Judgement

                                                                                                                                           सुरक्षि‍त

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

 

                                                                                                   अपील संख्‍या 3040/2016

 

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या- 60/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 04-11-2016 के विरूद्ध)

 

श्रीमती सुगन्‍धा पत्‍नी श्री राजीव कुमार पता जी 4/82 सेक्‍टर 2 वैशाली गाजियाबाद।

                                                                                      अपीलार्थी/परिवा‍दिनी

बनाम

 

1- दीपक एस० पारेख, चेयरमैन, एच0डी0एफ0सी0 एरगो जी0आई0सी0 लि0, रजि0 आफिस एट फर्स्‍ट फ्लोर 165-66 ब्‍लैकवे रिक्‍लेमेशन एच0टी0 पारेख मार्ग चर्च गेट मुम्‍बई 400020

2- मैनेजर/इन्‍चार्ज एच0डी0एफ0सी0 लि0, ग्राउन्‍ड फ्लोर सेक्‍टर 10, अंसल प्‍लाजा वैशाली, गाजियाबाद, यू0पी0 201001

3- मैनेजर/इन्‍चार्ज एच0डी0एफ0सी0 लि0,(हब) आउटर रिंग रोड, दि कैपिटल कोर्ट, पालम मार्ग, मुनरिका नई दिल्‍ली।

4- नोडल आफिसर, ग्रीवेंस रिर्डसल आफीसर, एच0डी0एफ0सी0 एरगो जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0, सेक्‍टर 18 नोएडा, यू0पी0

                                                                                                                                        प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण

समक्ष:-

 माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :      विद्वान अधिवक्‍ता, सुश्री आरती पुष्‍कर

प्रत्‍यर्थी सं0 2, एवं 3 की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्‍ता श्री विकास                              

                                                                   अग्रवाल

प्रत्‍यर्थी सं0 1 और 4 की ओर से:      कोई उपस्थित नहीं।

 

 

दिनांक: 28-03-2018

 

2

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

                                                                                                     निर्णय

 

परिवाद संख्‍या 60 सन् 2015 श्रीमती सुगन्‍धा बनाम मैनेजर, एच0डी0एफ0सी0 एरगो जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0 व तीन अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 04-11-2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवादिनी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद खारिज कर दिया है जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवादि‍नी ने अपील प्रस्‍तुत की है।

     अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता सुश्री आरती पुष्‍कर और प्रत्‍यर्थीगण संख्‍या 2 और 3 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री विकास अग्रवाल उपस्थित आए हैं। प्रत्‍यर्थीगण संख्‍या 1 और 4 की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।

     मैंने अपीलार्थी एवं प्रत्‍यर्थीगण संख्‍या 2 और 3 के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुना है एवं आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन

किया है।  

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादिनी श्रीमती सुगन्‍धा ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उनके पति श्री राजीव कुमार टी.वी. 18, ब्रोडकास्‍ट लिमिटेड एक्‍सप्रेस ट्रेड टावर प्‍लाट नं० 15-16, सेक्‍टर 16-ए नोएडा यू०पी० में इंजीनियर के तौर पर कार्यरत थे और होम सुरक्षा प्‍लस पालिसी नं० 00009307000100  दिनांक  12-10-2009 को  लिया था  जो दिनांक         

3

 

11-10-2014 तक पॉंच साल के लिए वैध थी। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी के पति द्वारा उपरोक्‍त पालिसी लिये जाने के समय मेडिकल जांच की आवश्‍यकता नहीं थी।

परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी का कथन है कि‍ उसके पति ने विपक्षी संख्‍या 2 एच0डी0एफ0सी0 लि0, से 11,00,000/- रू० का ऋण अपनी उपरोक्‍त बीमा पालिसी को बन्‍धक रखकर नवम्‍बर 2012 में लिया था और ऋण लेने के पश्‍चात वह ऋण की मासिक किश्‍त 10,038/- का भुगतान नियमित रूप से करते रहें हैं। बाद में मासिक किश्‍त की यह धनराशि बढ़ाकर 11,346/- रू० प्रति माह कर दी गयी जिसका बराबर भुगतान अपीलार्थी/परिवादिनी के पति नियमित रूप से अपनी मृत्‍यु तक करते रहे हैं।

परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी का कथन है कि‍ उसके पति की दिनांक 21-04-2013 को अचानक हार्ट अटैक के कारण मृत्‍यु हो गयी। तब अपीलार्थी/परिवादि‍नी ने विपक्षी संख्‍या 1 के यहॉं 11,35,892/- रू० का दावा क्‍लेम नं० एच०सी० 13-14/32 दिनांकित 29-08-2013 के द्वारा प्रस्‍तुत किया। परन्‍तु विपक्षी संख्‍या 1 ने अपीलार्थी/परिवा‍दिनी का दावा स्‍वीकार नहीं किया और कोई कार्यवाही करने से इस आधार पर इन्‍कार कर दिया कि‍ अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपने पति के अस्‍पताल में भर्ती किये जाने संबंधी अभिलेख प्रस्‍तुत नहीं किये हैं, जबकि‍ अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपने पति की मृत्‍यु के सम्‍बन्‍ध में आवश्‍यक अभिलेख पहले ही प्रस्‍तुत कर दिये थे। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवा‍दिनी का कथन है कि‍ उसके पति की मृत्‍यु अस्‍पताल ले जाते समय रास्‍ते में ही हो गयी थी। अत: उन्‍हें अस्‍पताल में भर्ती नहीं किया जा सका था।

 

4

 

परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादि‍नी का कथन है कि‍ विपक्षी संख्‍या 1 द्वारा उसका दावा स्‍वीकार न किये जाने के कारण उसने विधिक नोटिस विपक्षीगण संख्‍या 1 ता 3 को भेजा फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी का कथन है कि‍ उसे विपक्षी संख्‍या 1 का जो पत्र दिनांक 19-09-2013 एवं दिनांक 13-02-2014 मिला है उसमें उसका दावा अस्‍वीकार करने का निम्‍न कारण अंकित किया गया है:-"Since no diagnosis could be made by the doctors in absence of investigation report and also postmortem was not done, diagnosis MYOCARDIA INFACTION cannot be ruled out, Hence case is recommended for repudiation.”

परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी संख्‍या 1 ने अपीलार्थी/परिवादिनी का बीमा दावा गलत तौर पर अस्‍वीकार किया है अत: उसने विवश होकर परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

संशोधन के द्वारा परिवाद पत्र में जोड़ी गयी धारा 21 ए में अपीलार्थी/परिवादिनी ने कहा है कि‍ उसने अपने प्रश्‍नगत बीमा दावा के सम्‍बन्‍ध में परिवाद बीमा लोकपाल के यहॉं प्रस्‍तुत किया था जिसमें लोकपाल ने एवार्ड दिनांक 29-12-2014 पारित किया है और प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी को निर्देशित किया है कि‍ वह अपीलार्थी/परिवादिनी के क्‍लेम की धनराशि के 75 प्रतिशत का भुगतान उसे करें। अत: प्रत्‍यर्थी बीमा कम्‍पनी ने एवार्ड के अनुपालन में 8,51,919/- रू० की धनराशि का भुगतान अपीलार्थी/परिवादिनी को चेक के माध्‍यम से किया है जिसे अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपने लोन खाता में जमा कर दिया है। अपीलार्थी/परिवादिनी ने कहा है कि वह बीमा लोकपाल के

 

5

एवार्ड से संतुष्‍ट नहीं है। उसका बीमा दावा 100 प्रतिशत स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

विपक्षीगण संख्‍या 1 और 4 की ओर से संयुक्‍त लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया है जिसमें उन्‍होंने कहा है कि‍ परिवादिनी ने परिवाद में विपक्षी संख्‍या 1 श्री दीपक पारेख को गलत ढंग से पक्षकार बनाया है।

लिखित कथन में विपक्षीगण संख्‍या 1 और 4 की ओर से कहा गया है कि‍  परिवाद पत्र की संशोधित धारा 21ए में यह स्‍वीकार किया गया है कि‍ ओम्‍बुड्समैन (लोकपाल) द्वारा पारित एवार्ड दिनांक 29-12-2014 के द्वारा एच0डी0एफ0सी0 एरगो जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0, को अपीलार्थी/परिवा‍दिनी के क्‍लेम का 75 प्रतिशत भुगतान करने हेतु निर्देशित किया गया है और अपीलार्थी/परिवादिनी को 8,51,919 /- रू० का भुगतान चेक के द्वारा  अवार्ड के अनुसार कर दिया गया है। विपक्षीगण संख्‍या 1 और 4 ने लिखित कथन में कहा है कि‍ अपीलार्थी/परिवादिनी ने कान्‍सेंट लेटर साइन किया है जिसमें उसने ओम्‍बुड्समैन अवार्ड स्‍वीकार किया है और फुल एण्‍ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में उपरोक्‍त धनराशि प्राप्‍त किया है। अत: अब अपीलार्थी/परिवादिनी और किसी धनराशि की मांग करने से कानूनन वर्जित है।

 लिखित कथन में विपक्षीगण संख्‍या 1 और 4 की ओर से यह भी कहा गया है कि‍ अपीलार्थी/परिवादिनी ने परिवाद दूषित मंशा से जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

जिला फोरम के समक्ष परिवाद के विपक्षीगण संख्‍या 2 और 3 उपस्थित नहीं हुए हैं और उन्‍होंने कोई लिखित कथन प्रस्‍तुत नहीं किया है।

 

6

 

जिला फोरम ने परिवाद पत्र एवं प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण संख्‍या 1 और 4 के लिखित कथन और उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त यह निष्‍कर्ष निकाला है कि बीमा लोकपाल ने परिवादिनी के साथ न्‍याय किया है। पालिसी की शर्तों से हटकर सहानुभूति के आधार पर 75 प्रतिशत की धनराशि अपीलार्थी/परिवादिनी को दिलाया है जिसे परिवादिनी प्राप्‍त कर चुकी है। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी का परिवाद न्‍याय हित में खारिज किये जाने योग्‍य है।

अपीलार्थी/परिवादिनी की विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय साक्ष्‍य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी की विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि बीमा लोकपाल के आदेश से प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी बाधित है, परन्‍तु अपीलार्थी/परिवादिनी नहीं।

अपीलार्थी/परिवादिनी की विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि अपील स्‍वीकार कर अपीलार्थी/परिवादिनी को प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी से सम्‍पूर्ण बीमित धनराशि ब्‍याज सहित दिलायी जाए।

विपक्षीगण संख्‍या 2 और 3 के विद्वान अधिवक्‍ता का कथन है कि‍ विपक्षीगण संख्‍या 2 और 3 ऋणदाता हैं और अपनी-अपनी अवशेष धनराशि पाने के अधिकारी हैं।

 मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

निर्विवाद रूप से अपीलार्थी/परिवादिनी ने प्रश्‍नगत बीमा क्‍लेम के सम्‍बन्‍ध में परिवाद बीमा लोकपाल के समक्ष प्रस्‍तुत किया है जिसमें लोकपाल ने एवार्ड दिनांक 29-12-2014 पारित किया है। उसके बाद अपीलार्थी/परिवादिनी ने वर्तमान परिवाद जिला फोरम के समक्ष दिनांक 22-05-2015 को प्रस्‍तुत किया

 

7

है। कान्‍सेन्‍ट लेटर जो अपील की पत्रावली का कागज संख्‍या 20 है के द्वारा बीमा लोकपाल के उपरोक्‍त एवार्ड को निम्‍न शब्‍दों में स्‍वीकार किया गया है:-

“I here by give my unconditional acceptance of the Award in full and final settlement in respect of my above complaint.

अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद संख्‍या 13/14-15 में बीमा लोकपाल द्वारा पारित एवार्ड दिनांक 29-12-2014 का संगत अंश निम्‍न है:-

“ I Award as above and direct the RIO to pay 75% of sum insured as exgratia to wards full and final settlement of claim subject to consent of the complainant.”

उल्‍लेखनीय है कि बीमा लोकपाल का प्राविधान Redressal of Public Grievance Rules-1998 जो बीमा अधिनियम 1938 की धारा 114 (1) के अन्‍तर्गत केन्‍द्र सरकार द्वारा बनाया गया है, में है जिसके नियम 16(5) व (6) से स्‍पष्‍ट  है कि‍ बीमा लोकपाल द्वारा दिया गया एवार्ड परिवादिनी द्वारा अपने क्‍लेम के फुल एण्‍ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में स्‍वीकार करने का एक्‍सेप्‍टेन्‍स लेटर देने पर ही बीमा कम्‍पनी द्वारा लागू किया जायेगा।

1998 के उपरोक्‍त नियम के नियम-17 में स्‍पष्‍ट प्राविधान है कि यदि परिवादिनी द्वारा बीमा लोकपाल के एवार्ड को स्‍वीकार करने की सूचना निश्चित समय के अंदर नहीं दी जाती है तो बीमा कम्‍पनी एवार्ड लागू नहीं करेगी।

अपीलार्थी/परिवादिनी ने बीमा लोकपाल के एवार्ड को स्‍वीकार करने के कन्‍सेन्‍ट लेटर को कपटपूर्ण ढंग से प्राप्‍त किया जाना या नाजायज दबाव डालकर प्राप्‍त किया जाना नहीं बताया है और कन्‍सेन्‍ट लेटर से स्‍पष्‍ट है कि

 

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उसने बीमा लोकपाल के एवार्ड को अपने परिवाद के अंतिम  और पूर्ण सेटेलमेंट के रूप में स्‍वीकार किया है। इस कान्‍सेन्‍ट लेटर के बाद एवार्ड के अनुसार परिवादिनी के क्‍लेम की 75 प्रतिशत धनराशि रू0 8,51,919/- का भुगतान प्रत्‍यर्थी बीमा कम्‍पनी ने अपीलार्थी/परिवादिनी को कर दिया है जिसे अपीलार्थी/परिवादिनी ने बिना किसी विरोध के स्‍वीकार किया है। एवार्ड को बिना शर्त पूर्ण एवं अंतिम सेटलमेंट के रूप में स्‍वीकार करने एवं बिना किसी विरोध के एवार्ड के अनुसार भुगतान प्राप्‍त करने के बाद परिवादिनी अपने बीमा दावा की शेष धनराशि के संबंध में परिवाद उपभोक्‍ता सरंक्षण अधिनियम-1986 के अन्‍तर्गत नहीं प्रस्‍तुत कर सकती है। परिवादिनी द्वारा एवार्ड फुल एण्‍ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में स्‍वीकार किये जाने पर बीमा कम्‍पनी द्वारा एवार्ड के अनुसार भुगतान किया जाना सेवा में त्रुटि नहीं है और न अनुचित व्‍यापार पद्धति है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त कर कोई गलती नहीं की है।

अपीलार्थी की विद्वान अधिवक्‍ता ने माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा प्रथम अपील संख्‍या 748/2007 M/s Hira Lall & Son Pvt. Ltd. Vs. M/s Royal Jordanian Airlines, New Delhi & Others में दिया गया निर्णय दिनांकित 12 मार्च 2013 सन्‍दर्भित किया है।

परिवादिनी की विद्धान अधिवक्‍ता ने मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा United India Insurance Co. LTD. Vs. Ajmer Singh Cotton & General Mills and others (1999) 6 Supreme Court Cases-400 के वाद में दिया गया निर्णय भी संदर्भित किया है।

 

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मैंने अपीलार्थी की विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा सन्‍दर्भित उपरोक्‍त दोनों निर्णर्यों का आदरपूर्वक अवलोकन किया है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर वर्तमान वाद के तथ्‍यों के परि‍प्रेक्ष्‍य में अपीलार्थी/परिवादिनी को इन निर्णयों का कोई लाभ नहीं मिल सकता है।

अपीलार्थी की विद्वान अधिवक्‍ता ने एक तर्क यह भी किया है कि परिवाद में पारित आदेश दिनांक 17-02-2016 के द्वारा विपक्षीगण संख्‍या 2 और 3 के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से परिवाद की सुनवाई का आदेश पारित किया गया है परन्‍तु इस सन्‍दर्भ में आक्षेपित निर्णय में कोई उल्‍लेख नहीं है जबकि विपक्षीगण संख्‍या 2 और 3 अपना भुगतान विपक्षीगण संख्‍या 1 और 4 से पाने के अधिकारी हैं। अत: आक्षेपित निर्णय और आदेश इस आधार पर भी दोषपूर्ण है।

मैंने अपीलार्थी की विद्वान अधिवक्‍ता के इस तर्क पर भी विचार किया है।

उपरोक्‍त विवेचना से यह स्‍पष्‍ट है कि‍ अपीलार्थी/परिवादिनी ने बीमा लोकपाल के एवार्ड का पूर्ण और अंतिम रूप से अपने दावे के सेटलमेंट के लिए स्‍वीकार किया है और तदुनसार बीमा कम्‍पनी ने एवार्ड के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी के बीमा दावे का 75 प्रतिशत का भुगतान कर दिया है जिसे अपीलार्थी/परिवादिनी ने बिना किसी विरोध के स्‍वीकार किया है। ऐसी स्थिति में यह स्‍पष्‍ट है कि‍ बीमा कम्‍पनी ने एवार्ड का अनुपालन नियम के अनुसार किया है और सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी का परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत ग्राह्य नहीं है।  इस परिवाद में विपक्षीगण संख्‍या 2 और 3  एवं विपक्षीगण संख्‍या 1 और 4 के

10

दायित्‍व और अधिकार के सम्‍बन्‍ध में कोई निर्णय दिया जाना विधि सम्‍मत नहीं है।

उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हॅूं कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश में हस्‍तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अत: अपील अपीलार्थी/परिवादिनी को इस छूट के निरस्‍त की जाती है कि वह विधि के अनुसार समक्ष न्‍यायालय में अपना दावा प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र है।

अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

             

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

                                                                                                       अध्‍यक्ष                                                            

         

कृष्‍णा, आशु0

कोर्ट नं01

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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