Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/144/2014

ASHUTOSH KUMAR MISHRA - Complainant(s)

Versus

HDFC BANK - Opp.Party(s)

VIJAY PRAKASH YADAV

06 Dec 2019

ORDER

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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 144 सन् 2014

प्रस्तुति दिनांक 07.08.2014

                                                                                       निर्णय दिनांक 06.12.2019         

आशुतोष कुमार मिश्रा पुत्र राजेन्द्र मिश्रा प्रोपराइटर मेसर्स ए.के. फर्टिलाइजर कस्बा महराजगंज, पोस्ट- महराजगंज तहसील- सगड़ी, जनपद- आजमगढ़ निवासी ग्राम विशुनपुर उर्फ महराजगंज, जनपद आजमगढ़।

..........................................................................................परिवादी।

बनाम

शाखा प्रबन्धक एच.डी.एफ.सी.बैंक लिमिटेड एलवल निकट सेण्ट जैवियर स्कूल काली चौराहा, आजमगढ़।

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उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा राम चन्द्र यादव “सदस्य”

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कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसे अपने फर्म के संचालन के लिए विपक्षी से ऋण प्राप्त करने हेतु नकद उधार ऋण सुविधा सी.सी.एच.लिमिटेड के अन्तर्गत विपक्षी के कार्यालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। विपक्षी हम याची के व्यवसाय एवं कारोबार को देखकर एवं पूर्ण संतुष्ट होकर मुo 15,00,000/- कैश क्रेडिट फैसिलिटी ग्राण्ट किया एवं इसके एवज में हम प्रार्थी/याची का मुo 30,00,000/- की अचल सम्पत्ति गिरवी रख दी। सम्पूर्ण औपचारिकता पूरा करने के बाद दिनांक 25.09.2011 को सी.सी.एच. एकाउन्ट जारी किया। याची व्यवसाय को चलाने के लिए उपरोक्त खाते से पैसे का लेन-देन शुरू किया। लेन-देन 01.10.2011 से प्रारंभ कर नियमित रूप से संचालित होता रहा। बिना किसी वजह के परिवादी को सूचित किए। विपक्षी ने परिवादी का सी.सी.एच. एकाउन्ट से ट्रान्जेक्शन को बन्द कर दिया। वह हम परिवादी द्वारा दिए गए दो बौंकों का भुगतान नहीं किया। परिवादी द्वारा पुनः दो चेक दिनांक 14.03.2012 को 1,80,000/- तथा दिनांक 11.03.2012 को 3,22,000/- रुपया क्रमशः देवमति पाण्डेय एवं अवधेश पाण्डेय के नाम जारी किया। जिसे विपक्षी ने निरस्त कर दिया कि खाते में पर्याप्त पैसा नहीं है। परिवादी ने विपक्षी से मिला व खाते को चालू करने के लिए कहा, लेकिन उसने दिनांक 31.03.2012 को एक पत्र जारी करते हुए एन.ओ.सी. प्राप्त करने के लिए निर्देश दिया। उक्त पत्र                                                     P.T.O.

 

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पूर्णतया अस्पष्ट है। इसके पश्चात् परिवादी ने विपक्षी को नोटिस दिया। अतः विपक्षी को आदेशित किया जाए कि वह परिवादी का सम्पूर्ण नुकसान मय 14% वार्षिक ब्याज की दर से अदा करे और वाद खर्च भी दे।

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

परिवादी द्वारा प्रलेखीय साक्ष्य में देवमति पाण्डेय व अवधेश पाण्डेय के नाम से काटे गए चेक की छायाप्रति, बैंक द्वारा दिए गए नोटिस की छायाप्रति, बैलेन्स सीट दिनांक 31.03.2012 के पत्रों की छायाप्रति, लिस्ट ऑफ सन्ड्री डेब्टर्स प्रस्तुत किया गया है।

कागज संख्या 9/1 विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा गया है कि परिवाद गलत आधार पर दाखिल किया गया है। परिवादी का यह कर्तव्य था कि वह सत्य प्रकट करता। परिवादी कॉमर्शियल मेसर्स ए.के. मिश्रा फर्टिलाइजर्स महराजगंज एवं मिस्टर आशुतोष कुमार मिश्रा पुत्र श्री राजेन्द्र मिश्रा को व्यापार करता है। परिवादी ने 15,00,000/- रुपये कैश क्रडिट लिमिट्स के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत किया था जो कि दिनांक 20.03.2011 को स्वीकृत हो गया। परिवादी को जो धनराशि स्वीकृत की गयी थी वह 3.5% माहवारी ब्याज के साथ तथा ओवर ड्यू इन्ट्रेस्ट 18% दिया गया था। परिवादी का एन.पी.ए. एकाउन्ट बैंक ऑफ बड़ौदा राजेसुल्तान पुर जिला अम्बेडकरनगर तथा यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया ब्रान्च कप्तानगंज जिला आजमगढ़ में चल रहा है, जो कि बन्द नहीं हुआ है जो कि परिवादी द्वारा विपक्षी को सुचित नहीं किया गया था। अतः उपरोक्त परिस्थितियों में दिनांक 21.03.2012 को बैंक ने जिसके सन्दर्भ में बैंक ने दिनांक 31.03.2012 को परिवादी को सूचित कर दिया था। पत्र पाने के बाद परिवादी का यह कर्तव्य था कि वह विपक्षी के पास आता और दोनों बैंकों के तथ्य को प्रस्तुत करता, क्षुब्ध होकर परिवादी रिट पिटीशन नम्बर 22572/2012 मिस्टर ए.के. मिश्रा वर्सेस स्टेट ऑफ यू.पी. एवं अन्य प्रस्तुत किया था, जो कि दिनांक 08.05.2012 को खारिज कर दिया गया। उपरोक्त रिट पिटीशन के निस्तारण के समय माननीय उच्च न्यायालय ने यह पाया कि परिवादी ने धारा-419, 420 आई.पी.सी. एवं 138 निगोशिएबल इन्स्ट्रमेन्ट्स एक्ट के तहत मुकदमा किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि परिवादी ने अपना दायित्व पूरा नहीं किया। परिवादी ने ओरिजनल सूट नं. 290/2012 के माध्यम से ए.के मिश्रा फर्टिलाइजर वर्सेस द ब्रान्च मैनेजर एच.डी.एफ.सी. बैंक एवं अन्य कोर्ट ऑफ सिविल जज, सीनियर डिवीजन                                                    P.T.O.

 

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आजमगढ़ को 30.02.2012 को प्रस्तुत किया गया था जो कि अभी भी लम्बित है। परिवादी ने उपरोक्त परिवाद प्रस्तुत करने की नोटिस नहीं दिया। इसके पश्चात् परिवादी ने विपक्षी से सम्पर्क किया और दिनांक 21.07.2012 को उसके एन.पी.ए. एकाउन्ट उपरोक्त दोनों बैंकों का बन्द करने के लिए दिया, जिसके पश्चात् विपक्षी ने परिवादी की लिमिट्स का परिशीलन किया और उसकी कैश क्रडिट 8,00,000/- रुपये निगमित की गयी। जो कि परिवादी द्वारा स्वीकार किया लेकिन परिवादी ने बैंक ऑफ बड़ौदा , यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया का एन.ओ.सी. प्रस्तुत करने में असफल रहा। कैश क्रेडिट लिमिट्स दिनांक 26.08.2013 को पुनः परिवर्तित की गयी। उपरोक्त नवीनीकरण उसी शर्तों पर दिया गया था, जो पहले थी। परिवादी ने शर्तों को पूरा नहीं किया और उसके विरूद्ध एन.पी.ए. दिनांक 19.11.2013 को आर.बी.आई. गाइड लाइन के अनुसार कर दी गयी। इसके पश्चात् परिवादी से व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क किया गया और उसे नोटिस द्वारा भी सूचित किया गया, लेकिन परिवादी द्वारा उसका उत्तर देने में असफल रहा। विपक्षी ने धारा 3(2) सिक्योरिटाइजेशन एवं रिकान्स्ट्रक्शन ऑफ फाइनेन्सियल असेट्स एण्ड इनफोर्समेन्ट ऑफ सिक्योरिटी इन्ट्रेस्ट एक्ट 2002 के तहत परिवादी को 9,31,662.32 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया। उपरोक्त नोटिस भेजे जाने के 60 दिन के अन्दर परिवादी को उसका अनुपालन करना था, लेकिन परिवादी ने ऐसा नहीं किया। विपक्षी ने धारा-13(4) सिक्योरिटाइजेशन एवं रिकान्स्ट्रक्शन ऑफ फाइनेन्सियल असेट्स एण्ड इनफोर्समेन्ट ऑफ सिक्योरिटी इन्ट्रेस्ट एक्ट 2002 के तहत परिवादी को 60 दिन के अन्दर धनराशि जमा करने के लिए कहा गया लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। दिनांक 17.09.2014 को परिवादी ने बैंक को एक नोटिस बकाया भुगतान के लिए दिया लेकिन उसका कुछ नहीं हुआ। इसके पश्चात् परिवादी डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल इलाहाबाद गया जो मुकदमा वहाँ लम्बित है। चूंकि परिवादी ने कॉमर्शियल ट्रान्जेक्शन किया है। अतः परिवाद इसी आधार पर निरस्त किए जाने योग्य है। परिवादी को कोई नुकसान नहीं हुआ है। इसके अलावा परिवाद पत्र में दिए गए कथन गलत हैं। अतः परिवाद पत्र खारिज किया जाए।

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

विपक्षी द्वारा प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 13/2 सिविल जज के समक्ष प्रस्तुत मुकदमा की सत्यप्रतिलिपि तथा उसके आदेश पत्र की                                                 P.T.O.

 

 

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सत्यप्रतिलिपि प्रस्तुत किया है।

उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। चूंकि परिवादी ने इसी सन्दर्भ में दीवानी न्यायालय में मुकदमा कर रखा है और उसने इलाहाबाद ट्रिब्यूनल में भी मुकदमा कर रखा है। अतः तीन मुकदमें एक ही वाद कारण के लिए नहीं चल सकता है। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।

आदेश

                                              परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 

                                                       राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                           (सदस्य)                         (अध्यक्ष)

                    दिनांक 06.12.2019 

                                               यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

                                                  राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                    (सदस्य)                         (अध्यक्ष)

 

 

 

 

 

 

 

 

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