जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राजस्थान)
परिवाद संख्या - 315/15
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।
रामनाथ सिंह पुत्र श्री बजरंगलाल उम्र 60 साल जाति जाट निवासी ग्राम दुाराना का बास तहसील व जिला झुंझुनू (राज.) - परिवादी
बनाम
एच.डी.एफ.सी. स्टेर्ण्डड लाईफ इन्ष्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड, शाखा कार्यालय औम टावर, केन्द्रीय बस स्टेण्ड के सामने, झुंझुनू जरिये मैनेजर - विपक्षी
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. श्री कुलदीप सिंह, अधिवक्ता - परिवादी की ओर से।
2. श्री अमरसिंह, अधिवक्ता - विपक्षी की ओर से।
- निर्णय - दिनांक: 31.08.2016
परिवादी ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया, जिसे दिनांक 08.09.2015 को संस्थित किया गया।
विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी ने दिनांक 12.02.2013 को स्वयं के जीवन पर बीमा पालिसी के प्रीमियम हेतु विपक्षी को 12,400/-रूपये का भुगतान जरिये चैक संख्या 962181 के किया। विपक्षी बीमा कम्पनी के यहां से परिवादी के पास मैसेज प्राप्त हुआ कि परिवादी की बीमा पालिसी संख्या 15821418 है तथा मूल बेाण्ड भेज दिया जावेगा। इसलिए परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।
विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने बहस के दौरान यह भी कथन किया कि परिवादी ने विपक्षी से बार-बार निवेदन किया परन्तु परिवादी को बीमा पालिसी मूल बोण्ड नहीं भिजवाया गया। परिवादी के पास टेलीफोन पर किष्त जमा करवाने हेतु मैसेज व काल आते रहे परन्तु मूल बाण्ड विपक्षी द्वारा परिवादी को नहीं भिजवाया गया जबकि विपक्षी ने प्रथम प्रीमियम के समय परिवादी से यह कहा कि दूसरी किष्त मूल बॉण्ड प्राप्त होने के पश्चात देय होगी। परिवादी दिनांक 28.07.2015 को विपक्षी के कार्यालय में गया तथा मूल बॉण्ड हेतु निवेदन किया परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी के कर्मचारियों द्वारा कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया तथा न ही पालिसी मूल बॉण्ड दिया गया तथा न ही जमा प्रीमियम राषि वापिस लौटाई गई। विपक्षी का उक्त कृत्य सेवा में दोष की श्रेणी में आता है।
अन्त में परिवादी ने परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार कर विपक्षी से प्रीमियम की कुल मूल जमा राषि 12400/-रुपये मय ब्याज दिलाये जाने का निवेदन किया।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान कथन किया है कि परिवादी बीमाधारक के नाम पालिसी नम्बर 15821418 दिनांक 20.02.2013 को परिवादी द्वारा प्रपोजल फार्म में दिये गये पते पर भिजवाई जा चुकी है। परिवादी ने पालिसी बॉण्ड प्राप्त नहीं होने के संबंध में विपक्षी से कोई सम्पर्क नहीं किया। परिवादी ने पालिसी से संबंधित शर्ते, अनुबंध, नियम तथा प्राप्त होने वाले लाभंाष व अन्य जानकारी समझने के बाद ही प्रपोजल फार्म पर हस्ताक्षर किये थे। प्रपोजल फार्म में यह स्पष्ट वर्णित था कि परिवादी को प्रीमियत सात वर्षो तक अदा करनी है। पालिसी के वैध रहते ही परिवादी पालिसी में कवर्ड जोखिम बीमा कम्पनी से प्राप्त कर सकता है तथा बीमा लाभ एक लम्बे समय तक पालिसी चलाने पर प्राप्त होता है। बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (पालिसीधारक के हितों का संरक्षण) विनियम, 2002 की धारा 6(2) के अनुसार कम्पनी द्वारा भेजे गये पालिसी दस्तावेज के साथ एक अग्रेषण पत्र भी भेजा जाता है, जिसमें यह लिखा जाता है कि अगर पासिली धारक पालिसी के नियमों व शर्तो से संतुष्ट नहीं है तो वह पालिसी प्राप्त होने के 15 दिनों के अंदर यह पालिसी कम्पनी को वापिस भेज सकता है और इस 15 दिन के समय को फ्री लुक पीरियड कहा जाता है। इसके अलावा बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण की धारा 4(1) के अनुसार प्रस्ताव विधिवत पालिसी धारक द्वारा हस्ताक्षरित प्रपत्र की एक प्रतिलिपि भी पालिसी दस्तावेज के साथ साथ पालिसी धारक को भेजी जाती है जिससे पालिसी धारक को एक अवसर दिया जाता है कि वह उसके द्वारा किये गये उतर को फिर से जांच कर सके और प्रस्ताव के रूप में किसी भी विसंगति को सुधारा जा सके। इस पालिसी के लिये भी परिवादी द्वारा भेजे गये प्रस्ताव फार्म की प्रति, पालिसी दस्तावेज के साथ बीमित व्यक्ति को विधिवत प्राप्त हुये थे परन्तु बीमा धारक द्वारा कभी भी बीमा कम्पनी को उक्त फ्री लुक पीरियड में कोई जवाब या षिकायत नहीं भेजी गई यानि पालिसी के नियम व शर्ते बीमाधारक द्वारा स्वीकार करली गई और बीमाधारक द्वारा यह माना गया कि उसके द्वारा प्रस्ताव में कोई जानकारी गलत नहीं दी गई। यह बीमा पालिसी परिवादी द्वारा वर्ष, 2013 में ली गई तथा दो वर्ष से अधिक समय बीत जाने के कारण मियाद बाहर है। बीमाधारक द्वारा बीमा करार की शर्तो का उल्लंघन किया गया है। इसलिये परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
अन्त में विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष की बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट हुआ है कि परिवादी द्वारा अपने स्वंय के नाम से विपक्षी के यहां से एक बीमा पालिसी संख्या 15821418 प्रीमियम राषि 12000 व टेक्स 371/-रूपये, इस प्रकार कुल 12371/-रूपये वार्षिक प्रीमियम के हिसाब से ली गई थी। परिवादी ने उक्त पालिसी के पेटे विपक्षी को टेक्स सहित कुल बीमा प्रीमियम राषि 12371/-रूपये अदा किये।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी का बहस के दौरान यह तर्क होना कि परिवादी द्वारा बीमा पालिसी लेते समय बीमा कम्पनी ने परिवादी को विस्तार से यह समझा दिया था कि परिवादी को प्रीमियम सात वर्षों तक अदा करना है। उक्त पालिसी का लाभ एक लम्बे समय तक पालिसी को चलाने पर ही प्राप्त होता है। बीमा पालिसी की शर्तो का उल्लंघन होने पर विपक्षी का परिवादी को कोई राषि अदा करने का दायित्व नहीं बनता।
हम विद्वान् अधिवक्ता बीमा कम्पनी के उक्त तर्क से सहमत नहीं हैं क्योंकि परिवादी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को प्रथम प्रीमियम राषि अदा करने के बावजूद निर्धारित समय में मूल पालिसी बॉण्ड नहीं भिजवा गया। मूल पालिसी बोण्ड परिवादी को भिजवा दिया गया हो ऐसा कोई अभिलेख विपक्षी द्वारा पत्रावली पर पेष नहीं किया गया है। विपक्षी व उसके एजेंट द्वारा यदि शुरू में ही परिवादी को उक्त पालिसी बॉण्ड भिजवा दिया जाता तो परिवादी उक्त पालिसी की प्रीमियम राषि नियमित रूप से जमा करवा सकता था। परिवादी को विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा मूल पालिसी बॉण्ड नहीं भिजवाया जाने पर बिना किसी युक्तियुक्त आधार के परिवादी की मूल किष्त की राषि वापिस लौटाने से बीमा कम्पनी ने इन्कार किया है। विपक्षी बीमा कम्पनी का यह कृत्य सेवा दोष की श्रेणी में आता है।
सामान्यतया नेचुरल कोर्स में यह देखने में आता है कि विपक्षी बीमा कम्पनी सम्पूर्ण जानकारी पालिसी जारी करते समय बीमाधारक को नहीं देते हैं तथा अपना ग्राहक बनाने की चेष्टा रखते हैं। विपक्षी बीमा कम्पनी के द्वारा की गई लापरवाही के लिये परिवादी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा पालिसी जारी करने के बाद नेक नियत के अभाव में दुर्भावनावष परिवादी को पालिसी की मूल किष्त लौटाने से मना किया है।
परिवादी को उसकी मूल प्रीमियम जमा राषि का भुगतान विपक्षी द्वारा क्यों नहीं किया गया, इसका विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण पेष नहीं किया गया है। इसलिये परिवादी, विपक्षी से जमाषुदा राषि मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर विपक्षी बीमा कम्पनी किसी भी तरह से परिवादी द्वारा जमा कराई गई बीमा पालिसी की कुल प्रीमियम राषि में से टेक्स राषि 371/-रूपये काटकर शेष राषि 12000/-रूपये की अदायगी के उतरदायित्व से विमुख नहीं हो सकती।
अतः प्रकरण के तमाम तथ्यों व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये परिवादी का परिवाद पत्र विरूद्व विपक्षी आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेष दिया जाता है कि परिवादी, विपक्षी से बीमा पालिसी की मूल प्रीमियम जमा राषि में से टेक्स राषि 371/-रूपये कम की जाकर 12000/- (अक्षरे रूपये बारह हजार) प्राप्त करने का अधिकारी है। विपक्षी द्वारा परिवादी को उक्त राषि का भुगतान एक माह की अवधि में किया जावे अन्यथा स्थिति में परिवादी उक्त राषि पर संस्थित परिवाद पत्र दिनांक 08.09.2015 से ता वसूली 9 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त करने का अधिकारी है। इस निर्देष के साथ प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
निर्णय आज दिनांक 31.08.2016 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया।