Uttar Pradesh

StateCommission

A/2014/761

Uttar Madhya Railway - Complainant(s)

Versus

Harnarain Yadav - Opp.Party(s)

Prem Prakash Srivastava

12 Jan 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2014/761
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Uttar Madhya Railway
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 HON'ABLE MR. Chandra Bhal Srivastava MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-761/2014

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, इटावा द्वारा परिवाद संख्‍या 72/2007 में पारित आदेश दिनांक 09.07.2008 के विरूद्ध)

1. उत्‍तर मध्‍य रेलवे द्वारा वरिष्‍ठ मण्‍डल वाणिज्‍य प्रबन्‍धक, इलाहाबाद।

2. उत्‍तर मध्‍य रेलवे द्वारा स्‍टेशन मास्‍टर, इटावा जिला-इटावा।                                              

                                       ....................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम

हरनारायण यादव पुत्र श्री किताब सिंह निवासी- मोहल्‍ला – 81 जटपुरा जिला-इटावा।                                       

                                               .................प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव, सदस्‍य।

3. माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रेम प्रकाश श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 12.01.2015

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, इटावा द्वारा परिवाद संख्‍या 72/2007 में पारित आदेश दिनांक 09.07.2008 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है। विवादित आदेश निम्‍नवत् है:-

      '' परिवादी का परिवाद सव्‍यय स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण एक माह के अन्‍दर परिवादी को उसके टिकट का बकाया 190/-रू0, मानसिक व शारीरिक कष्‍ट के लिए 5000/-रू0 हर्जा तथा 300/- वाद व्‍यय भुगतान करे। निर्धारित अ‍वधि में रुपया का भुगतान न होने पर सम्‍पूर्ण धन राशि पर 12% ब्‍याज देय होगा। '' 

      श्री प्रेम प्रकाश श्रीवास्‍तव विद्वान अधिवक्‍ता अपीलार्थी को सुना गया और अभिलेख का अवलोकन किया गया।

पत्रावली का अवलोकन यह दर्शाता है कि दिनांक 09.07.2008 के प्रश्‍नगत आदेश की प्रति दिनांक 21.07.2008 को प्राप्‍त करने के उपरान्‍त अपील दिनांक 15.04.2014 को प्रस्‍तुत की गयी है, जो कि प्रथम दृष्‍ट्या समय-सीमा अवधि से बाधित है। अपीलार्थी की ओर से समय-सीमा अवधि में छूट सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र प्रस्‍तुत  किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि जिला मंच द्वारा  पारित  प्रश्‍नगत  एकपक्षीय

 

 

-2-

निर्णय दिनांक 09.07.2008 के विरूद्ध रेल अधिवक्‍ता द्वारा पुर्नस्‍थापना प्रार्थना पत्र जिला फोरम में दाखिल किया गया और जिला फोरम द्वारा उक्‍त प्रार्थना पत्र दिनांक 19.12.2013 को आदेश पारित कर निरस्‍त कर दिया गया और उक्‍त आदेश की प्रति अधिवक्‍ता द्वारा दिनांक 13.03.2014 को प्राप्‍त की गयी और पंजीकृत डाक से डी0आर0एम0 उत्‍तर मध्‍य रेलवे इलाहाबाद भेजा, जो दिनांक 21.03.2014 को मुख्‍य विधि सहायक उत्‍तर मध्‍य रेलवे इलाहाबाद के पास प्रस्‍तुत किया और विधि अनुभाग द्वारा अपील योजित करने की राय दी गयी और दिनांक 24.03.2014 को पत्रावली अपर मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक उ0म0 रेलवे इलाहाबाद के पास अपील अनुमति के लिए प्रेषित किया और दिनांक 25.03.2014 को अनुमति के साथ रेल अधिवक्‍ता से भी राय लेने को कहा गया और दिनांक 26.03.2014 को पत्रावली लखनऊ रेल अधिवक्‍ता श्री प्रेम प्रकाश श्रीवास्‍तव के पास विधिक राय हेतु दिनांक 31.03.2014 को रेल अधिवक्‍ता द्वारा अपील योजित करने की सहमति इस टिप्‍पणी के साथ दी कि निर्णय दिनांक 09.07.2008 में पारित डिक्री की आधी धनराशि या अधिकतम 25000/-रू0 के बैंक ड्राफ्ट के साथ ही अपील योजित की जा सकती है और दिनांक 02.04.2014 को बैंक ड्राफ्ट पूरी पत्रावली के साथ रेल अधिवक्‍ता के पास भेजी गयी और दिनांक 05.04.2014 को रेल अधिवक्‍ता द्वारा अपील तैयार कर अवलोकन व हस्‍ताक्षर हेतु भेजा गया और दिनांक 07.04.2014 को मेमो आफ अपील पत्रावली के साथ विधि अनुभाग भेजी गयी और दिनांक 08.04.2014 को विधि अनुभाग की सहमति पर सम्‍बन्धि‍त अधिकारी से हस्‍ताक्षर कराकर रेल अधिवक्‍ता के पास अपील दाखिल करने हेतु लखनऊ भेजा गया। अपील दाखिल करने में विलम्‍ब जानबूझकर नहीं किया गया है और जो भी विलम्‍ब हुआ है वह विभागीय प्रक्रिया को पूरा करने में हुआ है। इस कारण विलम्‍ब क्षमा योग्‍य है।

      उपरोक्‍त वर्णित तथ्‍यों के परिप्रेक्ष्‍य में यह अवलोकनीय है कि माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील संख्‍या-1166/2006 बलवन्‍त सिंह बनाम जगदीश सिंह तथा अन्‍य में यह अवधारित किया गया है कि समय-सीमा में छूट दिए जाने सम्‍बन्‍धी प्रकरण पर यह प्रदर्शित किया जाना कि सदभाविक रूप से देरी हुई है, के अलावा यह सिद्ध किया जाना भी आवश्‍यक है कि अपीलार्थी के प्राधिकार एवं नियंत्रण में  वह  सभी

 

 

-3-

सम्‍भव प्रयास किए गए हैं, जो अनावश्‍यक देरी कारित न होने के लिए आवश्‍यक थे और इसलिए यह देखा जाना आवश्‍यक है कि जो देरी की गयी है उससे क्‍या किसी भी प्रकार से बचा नहीं जा सकता था। इसी प्रकार राम लाल तथा अन्‍य बनाम रीवा कोलफील्‍ड्स लिमिटेड, AIR 1962 SC 361 पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बावजूद इसके कि पर्याप्‍त कारण देरी होने का दर्शाया गया हो, अपीलार्थी अधिकार स्‍वरूप देरी में छूट पाने का अधिकारी नहीं हो जाता है क्‍योंकि पर्याप्‍त कारण दर्शाया गया है ऐसा अवधारित किया जाना न्‍यायालय का विवेक है और यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित नहीं हुआ है तो अपील में आगे कुछ नहीं किया जा सकता है तथा देरी को क्षमा किए जाने सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र को मात्र इसी आधार पर अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित कर दिया गया है तब भी न्‍यायालय को यह विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है कि न्‍यायालय के विवेक को देरी क्षमा किए जाने के लिए प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए अथवा नहीं और इस स्‍तर पर अपील से सम्‍बन्धित सभी संगत तथ्‍यों पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया जाना चाहिए कि अपील में हुई देरी को अपीलार्थी की सावधानी और सदभाविक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में क्षमा किया जाए अथवा नहीं। यद्यपि स्‍वाभाविक रूप से इस अधिकार को न्‍यायालय द्वारा संगत तथ्‍यों पर कुछ सीमा तक ही विचार करने के लिए प्रयुक्‍त करना चाहिए।

      हाल ही में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा आफिस आफ दि चीफ पोस्‍ट मास्‍टर जनरल तथा अन्‍य बनाम लिविंग मीडिया इण्डिया लि0 तथा अन्‍य, सिविल अपील संख्‍या-2474-2475 वर्ष 2012 जो एस.एल.पी. (सी) नं0 7595-96 वर्ष 2011 से उत्‍पन्‍न हुई है, में दिनांक 24.02.2012 को यह अवधारित किया गया है कि सभी सरकारी संस्‍थानों, प्रबन्‍धनों और एजेंसियों को बता दिए जाने का यह सही समय है कि जब तक कि वे उचित और स्‍वीकार किए जाने योग्‍य स्‍पष्‍टीकरण समय-सीमा में हुई देरी के प्रति किए गए सदभाविक प्रयास के परिप्रेक्ष्‍य में स्‍पष्‍ट नहीं करते हैं तब तक उनके सामान्‍य स्‍पष्‍टीकरण कि अपील को योजित करने में कुछ महीने/वर्ष अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्‍य में लगे हैं, को नहीं माना जाना चाहिए। सरकारी विभागों के ऊपर विशेष दायित्‍व होता है कि वे अपने कर्त्‍तव्‍यों का पालन बुद्धिमानी और समर्पित

 

 

-4-

भाव से करें। देरी में छूट दिया जाना एक अपवाद है और इसे सरकारी विभागों के लाभार्थ पूर्व अनुमानित नहीं होना चाहिए। विधि का साया सबके लिए समान रूप से उपलब्‍ध होना चाहिए न कि उसे कुछ लोगों के लाभ के लिए ही प्रयुक्‍त किया जाए।

      आर0बी0 रामलिंगम बनाम आर0बी0 भवनेश्‍वरी, 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी, IV (2011) CPJ 63 (SC) में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से स्‍पष्‍ट किया है, क्‍या उसका कोई औचित्‍य है? क्‍योंकि देरी को क्षमा किए जाने के सम्‍बन्‍ध में यही मूल परीक्षण है, जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई देरी स्‍वाभाविक देरी है। उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किए जाने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किए जाने के जो प्राविधान दिए गए हैं, उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किए जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गयी अपील को बिना सदभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किए हुए अंगीकार कर लिया जाता है तो इससे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानानुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण सम्‍बन्‍धी उद्देश्‍य ही विफल हो जाएगा।

      उपरोक्‍त सन्‍दर्भित विधिक सिद्धान्‍तों के परिप्रेक्ष्‍य में हमने अपीलार्थी द्वारा प्रदर्शित उपरोक्‍त तथ्‍यों का अवलोकन एवं विश्‍लेषण किया है और यह पाया है कि स्‍पष्‍टतया उपरोक्‍त सन्‍दर्भित स्‍पष्‍टीकरण सदभाविक स्‍पष्‍टीकरण नहीं है, ऐसा स्‍पष्‍टीकरण नहीं है जिससे अपीलार्थी अपील योजित किए जाने में हुई देरी से बच नहीं सकता था।    दिनांक 09.07.2008 के विवादित आदेश की सत्‍य प्रतिलिपि दिनांक 21.07.2008 को प्राप्‍त कर लिए जाने के उपरान्‍त भी प्रदत्‍त सीमा अवधि दिनांक 21.08.2008 तक अपील न किए जाने और दिनांक 15.04.2014 को अर्थात् लगभग 5 वर्ष 8 माह 24 दिन बाद इस अपील को योजित किए जाने का कोई  स्‍पष्‍ट  औचित्‍य  नहीं  है।  देरी  होने

 

 

-5-

सम्‍बन्‍धी तथ्‍य को जिस प्रकार से वर्णित किया गया है, उससे यह नहीं लगता है कि उसके अलावा कोई विकल्‍प अपील में देरी से बचने का नहीं था। अत: हम धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 द्वारा प्रदत्‍त 30 दिन की कालावधि के अवसान के पश्‍चात् यह अपील ग्रहण किए जाने योग्‍य नहीं पाते हैं क्‍योंकि अपीलार्थी उस अवधि के भीतर अपील न योजित करने के सम्‍बन्‍ध में पर्याप्‍त कारण के प्रति ऐसा स्‍पष्‍टीकरण प्रस्‍तुत करने में  विफल है, जिससे हमारा समाधान हो सके कि कालावधि के अवसान के पश्‍चात् अपील ग्रहण की जा सकती है। अत: यह अपील, अपील को अंगीकार किये जाने के प्रश्‍न पर सुनवाई करते हुए ही समय-सीमा से बाधित होने के कारण अस्‍वीकार की जाने योग्‍य है।

                                  आदेश

      अपील उपरोक्‍त अस्‍वीकार की जाती है। अपीलार्थी द्वारा धारा-15 के अन्‍तर्गत जो धनराशि इस आयोग में जमा की गयी है, वह धनराशि जिला फोरम को वापस की जाए।

 

 

   (न्‍यायमूर्ति वीरेन्‍द्र सिंह)      (चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव)       (राज कमल गुप्‍ता)     

 अध्‍यक्ष                    सदस्‍य                   सदस्‍य  

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं-1

 
 
[HON'ABLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT
 
[HON'ABLE MR. Chandra Bhal Srivastava]
MEMBER

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