Uttar Pradesh

StateCommission

A/2010/2110

Union Bank of India - Complainant(s)

Versus

Harish Chandra Agrawal - Opp.Party(s)

Rajesh Chandra

15 Feb 2011

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2010/2110
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Bank of India
First Floor Subhas Market Bagla Marg Hathras
...........Appellant(s)
Versus
1. Harish Chandra Agrawal
4/1999 Awas Vikas Colony Agra Road Hathras
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Chandra Bhal Srivastava PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

 

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, 0 प्र0 लखनऊ

 

अपील संख्‍या 2110 सन 2010

यूनियन बैंक आफ इण्डिया प्रथम तल, सुभाष मार्केट, बगला मार्ग, हाथरस, द्वारा चेयरमैन/ब्रांच मैनेजर ।

.............अपीलार्थी

बनाम

हरीश चन्‍द्र अग्रवाल पुत्र श्री कालीचरन अग्रवाल 4/1999, आवास विकास कालोनी, आगरा रोड, हाथरस ।

.................प्रत्‍यर्थी

एवं

रिवीजन संख्‍या 204 सन 2010

 

यूनियन बैंक आफ इण्डिया प्रथम तल, सुभाष मार्केट, बगला मार्ग, हाथरस, द्वारा चेयरमैन/ब्रांच मैनेजर ।

.............पुनरीक्षणकर्ता

बनाम

हरीश चन्‍द्र अग्रवाल पुत्र श्री कालीचरन अग्रवाल 4/1999, आवास विकास कालोनी, आगरा रोड, हाथरस ।

.................विपक्षी

 

समक्ष:-

1    मा0   श्री चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव, पीठासीन  सदस्‍य।

2    मा0   श्रीमती बाल कुमारी , सदस्‍य।

 

विद्वान अधिवक्‍ता  अपीलार्थी : श्री राजेश चडढा़ ।

विद्वान अधिवक्‍ता प्रत्‍यर्थी   : श्री टी0एच0 नकवी ।

 

दिनांक:  10;02;2015     

 

श्री चन्‍द्रभाल श्रीवास्‍तव, सदस्‍य (न्‍यायिक) द्वारा उदघोषित ।

 

      उपर्युक्‍त अपील एवं पुनरीक्षण एक ही प्रकरण से संबंधित हैं, अत: उभय अपील एवं पुनरीक्षण को समेकित रूप से निर्णीत किया जा रहा है।

      संक्षेप में, इस प्रकरण के आवश्‍यक तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी हरीश चन्‍द्र अग्रवाल द्वारा विपक्षीगण यूनियन बैंक आफ इण्डिया के विरुद्ध इस आशय का परिवाद प्रस्‍तुत किया गया कि उन्‍होंने बैंक से कम्‍प्‍यूटर के लिए 36,500.00 रू0 का ऋण लिया था और इस संबंध में 10 चेक बैंक में दाखिल की थीं तथा 10,300.00 रू0 की धनराशि भी विपक्षी बैंक के यहां बचत खाता संख्‍या 2342 में दिनांक 11.5.2006 को जमा की थी एवं परिवादी ने मै0 बालाजी कम्‍प्‍यूटर प्‍वाइंट से कम्‍प्‍यूटर के लिए कुटेशन भी बनवाकर दिया था। परिवादी ने  कई बार बैंक से सम्‍पर्क किया किंतु उसे अपने ऋण के संबंध में कोई संतोषजनक उत्‍तर नहीं मिला और न ही उसे कम्‍प्‍यूटर ही मिला बाद में उसे बैंक द्वारा बताया गया कि उसके ऋण का भुगतान मै0 बालाजी कम्‍प्‍यूटर प्‍वाइंट को कर दिया गया था, ऐसी स्थिति में परिवादी ने अपने द्वारा जमा किया गया 10,300.00 रू0 तथा 10 चेकों को वापस किए जाने हेतु परिवाद प्रस्‍तुत किया।  जिला फोरम महामायानगर ने संबंधित परिवाद संख्‍या 120 सन 2006 अपने निर्णय दिनांक 11.5.2009 द्वारा एक पक्षीय रूप में स्‍वीकार कर लिया जिससे विक्षुब्‍ध होकर प्रस्‍तुत अपील आयोग में दाखिल की गयी है।

      जहां तक पुनरीक्षण संख्‍या 204 सन 2010 का प्रश्‍न है, जिला फोरम द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 11.5.2009 को रिकाल किए जाने हेतु जिला फोरम के समक्ष एक आवेदन दिया गया जिसे जिला फोरम ने अपने प्रश्‍नगत आदेश दिनांक 27.7.2010 द्वारा निरस्‍त कर दिया, जिससे विक्षुब्‍ध होकर पुनरीक्षण दाखिल किया गया है।

      हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण की बहस सुन ली है एवं अभिलेख का ध्‍यानपूर्ण परिशीलन कर लिया है।

      सर्वप्रथम हमारे समक्ष प्रत्‍यर्थी द्वारा यह दलील ली गयी है कि प्रश्‍नगत अपील एवं पुनरीक्षण विलम्‍ब से दाखिल किया गया है। विलम्‍ब का समुचित स्‍पष्‍टीकरण बैंक द्वारा यह कहते हुए दिया गया है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेशों की प्रति बैंक के विद्वान अधिवक्‍ता श्री उमेश गुप्‍ता द्वारा प्राप्‍त की गयी थी किन्‍तु उन्‍होंने निर्णय एवं आदेशों के बारे में बैंक को समय से सूचित नहीं किया जिससे अपील एवं पुनरीक्षण प्रस्‍तुत करने में विलम्‍ब हुआ। यह एक स्‍थापित विधि का सिद्धांत है कि अधिवक्‍ता की गलती के कारण पक्षकार को क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए। चूंकि जिला फोरम द्वारा प्रश्‍नगत पुनरीक्षण एवं अपील एक पक्षीय रूप में पारित किया गया है, ऐसी स्थिति को देखते हुए भी अपील एवं पुनरीक्षण दाखिल किए जाने में हुए विलम्‍ब को क्षमा किया जाना उचित प्रतीत होता है और तदनुरूप अपील एवं पुनरीक्षण दाखिल करने में हुआ विलम्‍ब क्षमा किया जाता है।

      जहां तक बैंक द्वारा दाखिल अपील का प्रश्‍न है, जिला फोरम ने परिवाद का निस्‍तारण दिनांक 11.5.2009 को एक पक्षीय रूप में किया है और बैंक द्वारा दाखिल लिखित कथन का कोई विचारण अपने निर्णय में नहीं किया है, जबकि बैंक द्वारा लिखित कथन अभिलेख पर पहले ही दाखिल किया जा चुका है जिसमें बैंक ने स्‍पष्‍ट रूप से कहा है कि परिवादी को 27000.00 रू0 का ऋण स्‍वीकृत किया गया था तथा 9,500.00 रू0 मार्जिन मनी परिवादी ने स्‍वयं जमा की थी और कम्‍प्‍यूटर कम्‍पनी मै0 बालाजी कम्‍प्‍यूटर प्‍वाइंट को 36,500.00 रू0 का भुगतान दिनांक 30.5.2006 को बैंक द्वारा किया गया था इस संबंध में बैंक द्वारा जारी पे-आर्डर की प्रति भी अभिलेख पर दाखिल की गयी है जबकि परिवादी द्वारा बैंक के समक्ष पहली बार 22.7.2006 को यह कहा गया है कि उसको कम्‍प्‍यूटर प्राप्‍त नहीं हुआ है। यह भी उल्‍लेखनीय है कि मै0 बालाजी कम्‍प्‍यूटर प्‍वाइंट का स्‍टीमेट स्‍वयं परिवादी ने दाखिल किया था और उसी कम्‍पनी को बैंक द्वारा भुगतान किया गया है जबकि परिवादी ने संभवत: सही तथ्‍य छिपाने हेतु अपने परिवाद में मै0 बालाजी कम्‍प्‍यूटर प्‍वाइंट को पक्षकार नहीं बनाया है जबकि वह एक आवश्‍यक पक्षकार है। ऋण की स्‍वीकृति हो जाने अथवा भुगतान के उपरांत परिवादी द्वारा यह कहना कि उसे ऋण की आवश्‍यकता नहीं है, तर्क पूर्ण प्रतीत नहीं होता है, ऐसी स्थिति में हम इस निष्‍कर्ष पर पहुंचते हैं कि अपीलार्थी को अपना पक्ष जिला फोरम के समक्ष रखे जाने हेतु एक अवसर प्रदान किया जाना न्‍यायोचित प्रतीत होता है जबकि उसके द्वारा लिखित कथन भी जिला फोरम में पहले ही दाखिल किया जा चुका है।  परिणामत:, प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार करते हुए प्रकरण प्रति-प्रेषित किए जाने योग्‍य है।

      जहां तक पुनरीक्षपण संख्‍या 204 सन 2010 का प्रश्‍न है, वह एक पक्षीय निर्णय को रिकाल किए जाने से संबंधित है और यह एक स्‍थापित विधि का सिद्धांत है कि जिला फोरम को अपने निर्णय को रिकाल करने का कोई अधिकार नहीं है, जिला फोरम ने सही रूप में रिकाल आवेदन को निरस्‍त किया है, ऐसी स्थिति में प्रस्‍तुत प्रकरण स्‍वत: बलहीन हो जाता है।

      परिणामत:, प्रस्‍तुत पुनरीक्षण निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

  •  

 

            प्रस्‍तुत अपील संख्‍या 1110 सन 2010 स्‍वीकार करते हुए जिला फोरम, महामायानगर द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 11.5.2009 खण्डित किया जाता है एव जिला फोरम को निर्देशित किया जाता है कि वह विधि एवं इस निर्णय में दिए गए निर्देशों के अनुरूप उभय पक्षों को साक्ष्‍य एवं सुनवाई का समुचित अवसर देते हुए परिवाद का पुनर्निस्‍तारण अधिकतम तीन माह में किया जाना सुनिश्चित करें।

      प्रस्‍तुत पुनरीक्षण संख्‍या 204 सन 2010 तदनुरूप निरस्‍त किया जाता है।

उभय पक्ष इस अपील एवं पुनरीक्षण का अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

इस निर्णय की एक प्रति संबंधित पुनरीक्षण संख्‍या 204 सन 2010 की पत्रावली पर रखी जाए ।

      निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करा दी जाए।

 

 

(चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव)                           (बाल कुमारी)

पीठा0 सदस्‍य (न्‍यायिक)                                                       सदस्‍य

      कोर्ट-2

(S.K.Srivastav,PA-2)

 

 
 
[HON'ABLE MR. Chandra Bhal Srivastava]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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