राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2578/2015
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 538/2012 में पारित आदेश दिनांक 12.09.2015 के विरूद्ध)
Branch Manager, Allahabad Bank, Branch – Aminabad Park, District Lucknow, Uttar Pradesh.
....................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Hari Prakash Bajpai, Son of Late Digamber Nath Bajpai, Resident of 294/87, Bazarkhala, District Lucknow. ................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री फैजल अहमद खान,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री नवीन अवस्थी,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 13.06.2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-538/2012 हरि प्रकाश बाजपेई बनाम ब्रान्च मैनेजर इलाहाबाद बैंक में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 12.09.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी ब्रान्च मैनेजर, इलाहाबाद बैंक की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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''परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से चार सप्ताह के अंदर परिवादी की प्रश्नगत धनराशि रू0 04,03,890/- मय ब्याज दौरान वाद व आइंदा बशरह 9 (नौ) प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ उसके खाता सं0 50034836034 में स्थानान्तरित करें। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादी को मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु रू015000/- तथा रू05000/- वाद व्यय अदा करेंगे, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अंदर परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं करते हैं तो विपक्षी को, समस्त धनराशि पर उक्त तिथि से ता अदायेगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।''
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री फैजल अहमद खान और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन अवस्थी उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी हरि प्रकाश बाजपेई ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम-द्वितीय, लखनऊ के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि अपीलार्थी/विपक्षी के बैंक में उसका खाता सं0 50034836034 है। वह पेंशन पाता है। सेवानिवृत्ति के बाद उसने
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अपने पी0एफ0 का पूरा पैसा अपने इसी बैंक खाते में जमा किया था और नियमित रूप से वह पेंशन प्रत्येक माह अपने प्रयोग हेतु निकाल लेता था। दिनांक 16.11.2011 को उसे अधिक पैसे की आवश्यकता थी। तब उसने बैंक में रूपए निकालने हेतु विथड्राल फार्म प्रस्तुत किया तो उसे अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के कर्मचारी ने बताया कि उसके खाते में केवल 742/-रू0 शेष हैं। यह जानकर उसे आश्चर्य हुआ और उसने इसकी शिकायत अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के उच्च अधिकारियों से की।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसके खाते में कुल 04,03,890/-रू0 थे और अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने उसे आश्वासन दिया कि वे जानकारी करके समय पर बतायेंगे, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 22.11.2011 को लिखित शिकायत की। फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी और उसे गलत उत्तर दिया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसके उपरोक्त खाते से दो बार में धनराशि निकाली गयी है। पहली बार 04,03,890/-रू0 निकाला गया है, जो श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाता सं0 20228989574 में जमा कर दिया गया है। दूसरी बार 15,500/-रू0 जतिन मिश्रा के खाता सं0 50037254112 में स्थानान्तरित किया गया है और यह जतिन मिश्रा उपरोक्त श्रीमती मुकुल मिश्रा का बेटा है। दोनों के ही खाते अपीलार्थी/विपक्षी बैंक में हैं।
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परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा है कि पत्र दिनांकित 17.01.2011 के द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी ने उसे सूचित किया कि हस्तलेख व फिंगर प्रिंट्स विशेषज्ञ की रिपोर्ट के अनुसार 04,03,890/-रू0 का संव्यवहार सही पाया गया है, परन्तु 15,500/-रू0 की निकासी गलत पायी गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी का यह कथन गलत है। वास्तव में दोनों ही संव्यवहार की धनराशि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा जालसाजी करके निकाली गयी है और उसकी अदायगी हेतु अपीलार्थी/विपक्षी बैंक उत्तरदायी है। अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने कपटपूर्ण कार्य को छिपाने के लिए प्रत्यर्थी/परिवादी से दस्तखत में केवल हरि प्रकाश लिखने को कहा, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी का पूरा नाम हरि प्रकाश बाजपेई है। इसके साथ ही अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी को अपने खाते की प्रकृति बदलने के लिए मजबूर किया और अपने खाते को इण्डिविजुअल आपरेशन खाते से ज्वाइंट आपरेशन खाते में श्रीमती सरोजनी बाजपेई का नाम अंकित कर बदलने हेतु विवश किया।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में कहा है कि उसने 04,03,890/-रू0 की धनराशि कभी भी अपने खाते से स्थानान्तरित करने को न तो बैंक को निर्देश दिया है और न ही इस सन्दर्भ में किसी पेपर पर अपना हस्ताक्षर किया है। अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने श्रीमती मुकुल मिश्रा के सहयोग से अवैधानिक व कपटपूर्ण ढंग से प्रत्यर्थी/परिवादी को उसके धन से वंचित किया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर
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अनुतोष चाहा है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक उसकी धनराशि 04,03,890/-रू0 ब्याज सहित उसके खाते में जमा करे। साथ ही दो लाख रूपया क्षतिपूर्ति व वाद व्यय भी मांगा है।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और यह कहा गया है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने 04,03,890/-रू0 की धनराशि स्थानान्तरित कराकर श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में जमा करायी है। हैण्डराइटिंग विशेषज्ञ की राय के अनुसार इस धनराशि के लेनदेन से सम्बन्धित अभिलेखों पर प्रत्यर्थी/परिवादी के ही हस्ताक्षर हैं और उसके ही हस्ताक्षर से यह धनराशि खाता सं0 20228989574 में स्थानान्तरित की गयी है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन और प्रस्तुत अभिलेखों पर विचार करने के उपरान्त यह उल्लेख किया है कि यह सिद्ध करने का भार अपीलार्थी/विपक्षी पर है कि वह यह साबित करें कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने स्पेसीमेन हस्ताक्षर जो इलाहाबाद बैंक में है के आधार पर उक्त धनराशि अपने खाते से श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में स्थानान्तरित कराये हैं। अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के स्वीकृत हस्ताक्षर, विवादित हस्ताक्षर तथा स्पेसीमेन हस्ताक्षर जिला मंच के समक्ष दाखिल नहीं किये हैं। केवल संलग्नक 6 के रूप में एस0पी0 गुप्ता, हस्तलेख विशेषज्ञ एवं फिंगर प्रिंट की ओपीनियन दाखिल की है। इस ओपीनियन के साथ
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प्रत्यर्थी/परिवादी के स्वीकृत या विवादित हस्ताक्षर दाखिल नहीं किये गये हैं। चेक बुक उपलब्ध नहीं करायी गयी।
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी हरि प्रकाश बाजपेई नाम से हस्ताक्षर बनाकर धनराशि की निकासी करता न कि मात्र हरि प्रकाश के नाम से। फर्जी हस्ताक्षर से प्रश्नगत धनराशि की निकासी की गयी है। इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि इसमें बैंक के कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं।
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि दोनों पक्षों के मध्य यह निर्विवाद तथ्य है कि श्रीमती मुकुल मिश्रा तथा जतिन मिश्रा दोनों का ही खाता इलाहाबाद बैंक शाखा अमीनाबाद लखनऊ में है।
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में उल्लेख किया है कि जतिन मिश्रा के खाते से 15,500/-रू0 की धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में वापस कर दी गयी तो क्या कारण है कि श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में जमा धनराशि 04,03,890/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में वापस नहीं की गयी?
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि श्रीमती मुकुल मिश्रा प्रत्यर्थी/परिवादी की कोई निकट संबंधी नहीं है और वह क्यों अपनी धनराशि श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में जमा करवायेगा?
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि बैंक से जब एक गलती जतिन मिश्रा के खाते
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के संदर्भ में हुई है तब क्यों न मंच यह समझे कि प्रश्नगत धनराशि 04,03,890/-रू0 भी अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की गलती से प्रत्यर्थी/परिवादी के फर्जी हस्ताक्षर से श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में स्थानान्तरित हुई है। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षी ने ऐसा करके सेवा में कमी किया है और व्यापार विरोधी प्रक्रिया को अपनाया है।
उपरोक्त उल्लेख के आधार पर ही जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि 04,03,890/-रू0 के ट्रांसफर बाउचर पर प्रत्यर्थी/परिवादी हरि प्रकाश का हस्ताक्षर है, यह एक्सपर्ट रिपोर्ट से प्रमाणित है और यह धनराशि श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में ट्रांसफर बाउचर के अनुसार अंतरित की गयी है।
अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि दिनांक 19.11.2010 को 04,03,890/-रू0 की धनराशि को प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में अंतरण के संव्यवहार के पश्चात् प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने खाते से अनेकों बार धनराशि निकाला है, परन्तु इस अंतरण के सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं की है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी 04,03,890/-रू0 की धनराशि के विवादित अंतरण, जो उसकी बहन श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में किया गया है, की जानकारी रखता था।
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अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि श्रीमती मुकुल मिश्रा प्रत्यर्थी/परिवादी की बहन है और इस तथ्य को उसने जानबूझकर बदनियती से छिपाया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के विपरीत है। अत: निरस्त किए जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। अपीलार्थी/विपक्षी यह प्रमाणित करने में असफल रहा है कि प्रश्नगत 04,03,890/-रू0 के ट्रांसफर बाउचर पर प्रत्यर्थी/परिवादी का हस्ताक्षर है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत अपील बल रहित है और निरस्त किए जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विजया बैंक बनाम गुरनाम सिंह (2010) 13 एस0सी0सी0 775 के वाद में दिये गये निर्णय की नजीर प्रस्तुत की है, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न मत व्यक्त किया है:-
“We have heard Mr. Sanjay R Hegde, learned Counsel appearing on behalf of the appellant. It is strenuously urged by the learned Counsel that all the forums below have erred in ignoring the expert’s
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opinion adduced in evidence by the bank in support of its stand that there was no forgery in the signatures on the cheques in question. We do not find any substance in the submission for the simple reason that the said report was no evidence in the eye of law. Admittedly, the report was not proved by summoning the expert. The Manager who had merely annexed the report with his affidavit could not prove the same and, therefore, the forums below were justified in ignoring the report. On a query by the Court as to how in the absence of any overdraft facility being enjoyed by the complainant, a cheque for the amount which was in excess of the balance amount in the account of the complainant could be honoured, learned Counsel is unable to furnish any satisfactory explanation. In our opinion, this fact, highlighted by the State Commission, by itself is a glaring example of negligence/deficiency in the service of the bank.”
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभय पक्ष के अभिकथन एवं उनकी ओर से किए गए तर्क से यह स्पष्ट है कि स्वीकृत रूप से अपीलार्थी/विपक्षी बैंक में खाता सं0 50034836034 प्रत्यर्थी/परिवादी का है और उसमें से
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04,03,890/-रू0 अपीलार्थी/विपक्षी बैंक में ही श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाता सं0 20228989574 में अंतरित किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि यह अंतरण कपटपूर्ण ढंग से जालसाजी करके किया गया है। ट्रांसफर बाउचर पर प्रत्यर्थी/परिवादी का हस्ताक्षर नहीं है। इसके विपरीत अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का कथन है कि यह धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत ट्रांसफर बाउचर के आधार पर श्रीमती मुकुल मिश्रा के उपरोक्त खाते में स्थानान्तरित की गयी है और ट्रांसफर बाउचर पर प्रत्यर्थी/परिवादी का ही हस्ताक्षर है। जैसा कि बैंक द्वारा प्राप्त हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट से प्रमाणित है। जिला फोरम ने बैंक के हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट पर विश्वास न करने का अपने निर्णय में कारण यह उल्लिखित किया है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के स्वीकृत हस्ताक्षर, विवादित हस्ताक्षर तथा स्पेसीमेन हस्ताक्षर जिला फोरम में दाखिल नहीं किये हैं। जिला फोरम द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा प्राप्त की गयी एक्सपर्ट राय पर विश्वास न करने का बताया गया कारण अनुचित व अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। एक्सपर्ट ओपीनियन पर विश्वास करने हेतु निश्चित रूप से यह दर्शित करना होगा कि एक्सपर्ट ओपीनियन प्रत्यर्थी/परिवादी के स्वीकृत हस्ताक्षर और विवादित हस्ताक्षर का मिलान कराकर प्राप्त की गयी है। इसके लिए स्वीकृत हस्ताक्षर और विवादित हस्ताक्षर बैंक को जिला फोरम के समक्ष रिकार्ड पर लाना चाहिए था ताकि इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादी अपनी स्थिति स्पष्ट कर सके।
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उपरोक्त अंकित तथ्यों से यह स्पष्ट है कि 04,03,890/-रू0 की विवादित धनराशि का अंतरण श्रीमती मुकुल मिश्रा के खाते में किया गया है। अत: इस अंतरण को कपटपूर्ण व कूटरचित निर्णीत किए जाने का सीधा प्रभाव श्रीमती मुकुल मिश्रा पर पड़ेगा, परन्तु उन्हें वर्तमान परिवाद में पक्षकार नहीं बनाया गया है। अत: इस सन्दर्भ में कोई निर्णय उन्हें वर्तमान परिवाद में पक्षकार बनाए बिना और अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिए बिना दिया जाना न्याय के सिद्धान्त के विपरीत है। अत: मैं इस मत का हूँ कि श्रीमती मुकुल मिश्रा प्रत्यर्थी/परिवादी के परिवाद में आवश्यक पक्षकार हैं और विवाद के पूर्ण और प्रभावी निर्णय हेतु श्रीमती मुकुल मिश्रा को परिवाद में पक्षकार बनाया जाना आवश्यक है। अत: उन्हें परिवाद में पक्षकार बनाए बिना जिला फोरम ने जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है, वह त्रुटिपूर्ण और विधि विरूद्ध है क्योंकि इस निर्णय का सीधा प्रभाव श्रीमती मुकुल मिश्रा पर पड़ेगा और परिवाद में पक्षकार न बनाए जाने के कारण उन्हें अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला है। इसके अलावा श्रीमती मुकुल मिश्रा के पक्षकार न होने के कारण वर्तमान परिवाद का निर्णय उन पर प्रभावी नहीं होगा और उनके खाते में जमा प्रश्नगत धनराशि के सम्बन्ध में बैंक के विरूद्ध उनका दावा अनिर्णीत रहेगा।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि परिवाद के पूर्ण और प्रभावी निर्णय हेतु यह आवश्यक है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर
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यह प्रकरण जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया जाए कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को परिवाद में श्रीमती मुकुल मिश्रा को पक्षकार बनाने का अवसर दें और श्रीमती मुकुल मिश्रा को नोटिस जारी कर परिवाद की अग्रिम कार्यवाही विधि के अनुसार उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर करें तथा पुन: विधि के अनुसार निर्णय पारित करें।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए यह प्रकरण जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को परिवाद में श्रीमती मुकुल मिश्रा को पक्षकार बनाने का अवसर दें और श्रीमती मुकुल मिश्रा को नोटिस जारी कर परिवाद की अग्रिम कार्यवाही विधि के अनुसार उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर करें तथा पुन: विधि के अनुसार निर्णय पारित करें।
उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 17.07.2017 को उपस्थित हों।
अपीलार्थी द्वारा धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस अपील में जमा की गयी धनराशि अपीलार्थी को ब्याज सहित नियमानुसार वापस कर दी जाएगी।
इस अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1