Uttar Pradesh

StateCommission

A/235/2016

Shriram Transport Finance Co. Ltd - Complainant(s)

Versus

Hargovind Singh - Opp.Party(s)

Manu Dixit

12 Dec 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/235/2016
( Date of Filing : 05 Feb 2016 )
(Arisen out of Order Dated 23/05/2015 in Case No. C/46/2012 of District Sonbhadra)
 
1. Shriram Transport Finance Co. Ltd
Renukut
...........Appellant(s)
Versus
1. Hargovind Singh
Mirzapur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 12 Dec 2022
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील सं0 :- 235/2016

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-46/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23/05/2015 के विरूद्ध)

Shrirm Transport Finance Company Limited Renukoot, First Floor, Shri Hanuman Singh Market, Renukoot, Through its Authorized Representative.

  1.                                                                                            Appellant

 

Versus  

 

  1. Hargovind Singh, S/O late Maan Singh, R/O Madhpur, P.S. Robertganj, District Sonebhadra, Also at near patti Khurd police Station, Ahraura, P.S. Ahraura, District Mirzapur.
  2. Surendra Kumar, S/O Deena nath, R/O Renukoot, P.S Pipri, District Sonebhadra.

 

  •                                                                                      Respondents  

समक्ष

  1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य
  2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री मनु दीक्षित की कनिष्‍ठ अधिवक्‍ता

                             सुश्री पूजा त्रिपाठी 

प्रत्‍यर्थी सं0 1  की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- एस0पी0 सिंह

दिनांक:-12.12.2022   

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.           जिला उपभोक्‍ता आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0 46/2012 हरगोविन्‍द सिंह बनाम श्रीराम ट्रान्‍सपोर्ट फाइनेंश कम्‍पनी लि0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 23.05.2015 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है। जिला उपभोक्‍ता मंच ने परिवादी से अवैध रूप से अंकन 81,200/-रू0 वसूलने के कारण इस राशि को वापस लौटाने का आदेश पारित किया, साथ ही गाड़ी खड़ी रहने के कारण हुई क्षति के मद में 1,60,000/- रूपये की क्षति का आदेश पारित किया। मानसिक प्रताड़ना के मद में 5,000/- रू0 एवं परिवाद व्‍यय के रूप में 5,000/- रूपये अदा करने का आदेश दिया गया है।
  2.          परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार है कि वाहन सं0 यू0पी0 64बी/1955 यू.टी.लिटी वैन सुरेन्‍द्र कुमार नामक व्‍यक्ति ने विपक्षी से फाइनेंस कराकर क्रय की थी। किश्‍त बकाया होने के कारण इस गाड़ी को खींच लिया गया था और नीलामी की प्रक्रिया अपनायी गयी। सुरेन्‍द्र कुमार ने परिवादी से अनुरोध किया कि बकाया धनराशि अदा करने पर वह गाड़ी परिवादी को विक्रय कर देगा। इसके पश्‍चात विपक्षी सं0 2 के माध्‍यम से 51,200/- रू0 जमा करके गाड़ी प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी के नाम कराने की वार्ता हुई। यह राशि सुरेन्‍द्र के नाम से जमा की गयी। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी से अनेक दस्‍तावेजों पर हस्‍ताक्षर कराया गया। अगस्‍त 2010 में विपक्षी सं0 1 के कर्मचारी विपक्षी सं0 3 प्रवीण कुमार द्वारा अस्‍थायी पंजीयन प्रमाण पत्र दिलवाया गया। इसी रजिस्‍ट्रेशन के आधार पर प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी अपनी गाड़ी चलाता रहा। अप्रैल 2011 में विपक्षी सं0 1 के कर्मचारी गाड़ी जबरदस्‍ती खींच कर ले गये और एकमुश्‍त 30,000/- रूपये जमा करने के लिए कहा। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने 02.06.2011 को 30,000/- रू0 एकमुश्‍त जमा कर दिये, परंतु गाड़ी उपलब्‍ध नहीं करायी। पुन: 23.11.2011 को नया पंजीकरण प्रमाण पत्र लाकर दिया। बार-बार अनुरोध के बावजूद एवं लीगल नोटिस के बावजूद गाड़ी नहीं दी गयी इसलिए उपभोक्‍ता परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।
  3.           विपक्षी सं0 1 का कथन कि परिवाद संधारणीय नहीं है। विपक्षी सं0 2 द्वारा कोई लिखित कथन प्रस्‍तुत नहीं किया गया।
  4.           दोनों पक्षकारों के साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया। इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गयी है कि जिला उपभोक्‍ता मंच ने विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है। वाहन क्रेता द्वारा ऋण अदायगी में विफलता की गयी, इसलिए वाहन को कब्‍जे में ले लिया गया। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी के पक्ष में 56,000/- रूपये का ऋण स्‍वीकृत किया गया था। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने अंकन 60,000/- रूपये में इस वाहन को क्रय करने का अनुरोध किया गया था।  इस ऋण का भुगतान मासिक किश्‍त 6,068/- रू0 2 लगायत 6 किश्‍तों में होना था। प्रथम किश्‍त 6,425/- रू0 थी, शेष 9 किश्‍त 3,310/- रू0 अदा की जानी थी। विपक्षी सं0 1 के पक्ष में अस्‍थायी पंजीकरण कराया गया, परंतु ऋण का भुगतान नहीं किया गया, इसलिए 30.03.2011 को वैध रूप से वाहन का कब्‍जा प्राप्‍त कर लिया गया। दिनांक 29.04.2011 को मांग पत्र प्रेषित किया गया, इसके पश्‍चात 29.04.2011 तथा 11.11.2011 मे भी नोटिस जारी किये गये, परंतु प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा ऋण राशि का भुगतान नहीं किया गया। परिवादी पर वर्ष 2015 तक ब्‍याज सहित कुल बकाया राशि का उल्‍लेख संलग्‍नक सं0 9 में किया गया है। संलग्‍नक सं0 9 के अनुसार परिवादी पर 1,04,361/- रू0 बकाया है।
  5.           दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍ताओं को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने वाद पत्र  में स्‍वीकार किया है कि उसके द्वारा परिवाद पत्र में अंकन 56,000/- रूपये ऋण की अदायगी के संबंध में कोई विवरण प्रस्‍तुत नहीं किया। केवल यह उल्‍लेख कर दिया कि 02.06.2011 को 30,000/- रूपये जमा किया ओर 51,000/- रू0      सुरेन्‍द्र कुमार की ओर से जमा किया, इसलिए जिला उपभोक्‍ता मंच ने उपरोक्‍त राशि को वापस लौटाने का आदेश दिया, परंतु अपने द्वारा लिये गये ऋण के भुगतान का कोई विवरण सम्‍पूर्ण परिवाद पत्र में प्रस्‍तुत नही किया गया है। जबकि अपील के साथ प्रस्‍तुत संलग्‍नक सं0 9 जो परिवादी द्वारा लिये गये ऋण के खाते का विवरण, के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी को अंकन 56,000/- रूपये का ऋण 28.08.2010 को स्‍वीकार किया गया। परिवादी ने 05.10.2011 के पश्‍चात कोई राशि जमा नहीं की। यह सही है कि 6/11 में 30,000/- रूपये जमा किये गये हैं। अंकन 30,000/- रूपये की राशि जमा करने के पश्‍चात भी परिवादी पर अवशेष ऋण बकाया था इसलिए यह राशि अवैध रूप से वसूल नहीं की गयी इसलिए इस राशि को लौटाने का आदेश देने का कोई औचित्‍य नहीं था। इसी प्रकार अंकन 51,000/- रूपये भी परिवादी द्वारा स्‍वैच्‍छा से सुरेन्‍द्र की ओर से अदा किये गये और वाहन का अस्‍थायी पंजीकरण अपने नाम प्राप्‍त किया इसलिए इस राशि को भी अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अवैध रूप से नहीं वसूला गया। अत: इस राशि को भी वापस करने का कोई औचित्‍य नहीं था। परिवादी पर अवशेष राशि बकाया रहने पर ब्‍याज चढ़ता चला गया, जिसके कारण परिवादी पर 18.12.2015 को 1,04,361/- रूपये बकाया हो चुके थे। अपीलार्थी कम्‍पनी द्वारा नोटिस देने के पश्‍चात प्रश्‍नगत वाहन को नीलामी के माध्‍यम से विक्रय किया गया है इसलिए अपीलार्थी के स्‍तर से किसी प्रकार की अनियमितता नहीं बरती गयी। जिला उपभोक्‍ता मंच का यह आदेश विधि विरूद्ध है कि परिवादी से अवैध रूप से वसूली गयी राशि वापस लौटायी जाये या वाहन खड़ा रहने के कारण क्षतिपूर्ति के मद में कोई राशि अदा की जाये। नजीर मैसर्स मैग्‍मा फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड बनाम राजेश कुमार तिवारी मे व्‍यवस्‍था दी गयी है कि जब उपभोक्‍ता द्वारा समय पर ऋण का भुगतान नहीं किया गया तब परिवादी द्वारा भुगतान की गयी राशि को वापस लौटाने का आदेश विधिसम्‍मत नहीं पाया गया। प्रस्‍तुत केस में भी यही स्थिति मौजूद है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गयी है वह अवैध रूप से नहीं वसूली गयी, परंतु प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को विक्रय किये गये वाहन का कब्‍जा प्राप्‍त करने के पश्‍चात जो राशि अपीलार्थी को प्राप्‍त हुई है वह राशि समायोजित करते हुए अपीलार्थी सम्‍पूर्ण ऋण राशि को देय स्थिति में मान सकते हैं इस टिप्‍पणी के साथ यह अपील स्‍वीकार होने योग्‍य है।
  6.  

अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्‍त किया जाता है। अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को कोई राशि देय नहीं होगी, परंतु अपीलार्थी द्वारा वाहन का विक्रय कर जो धनराशि प्राप्‍त की गयी है उस राशि में से बकाया ऋण राशि सम्‍पूर्णता के साथ समायोजित मानते हुए अवशेष ऋण की वसूली की कार्यवाही समाप्‍त की जाती है।

धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को नियमानुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाये।

अपील में उभय पक्ष अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

              आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

           (विकास सक्‍सेना)                      (सुशील कुमार)

               सदस्‍य                             सदस्‍य

 

 

         संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-2

 

    

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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