Rajasthan

Jaipur-IV

cc/1899/2012

Manoj Sharma - Complainant(s)

Versus

HDFC Bank Ltd. - Opp.Party(s)

Shravan Chopra

27 Mar 2015

ORDER

       जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर

       पीठासीन अधिकारी
    डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष
    डाॅ. अलका शर्मा, सदस्या
    श्री अनिल रूंगटा, सदस्य

परिवाद संख्या:-1899/2012 (पुराना परिवाद संख्या 49/2010)
श्री मनोज शर्मा पुत्र श्री दशरथ लाल शर्मा, उम्र 27 वर्ष, जाति ब्राह्मण, निवासी- 30, सुन्दर नगर, करणी पैलेस के पीछे, 200 फिट बाईपास, वैशाली नगर, जयपुर । 

परिवादी
बनाम
01. एच.डी.एफ.सी. बैंक लिमिटेड, क्षेत्रीय कार्यालय- टाईम स्क्वायर, चतुर्थ मंजिल, सेन्ट्रल स्पाईस, विद्याधर नगर, जयपुर जरिये क्षेत्रीय प्रबन्धक ।
02. एच.डी.एफ.सी. बैंक लिमिटेड, रजिस्टर्ड कार्यालय- एच.डी.एफ.सी. बैंक हाऊस, सेनापति बपत मार्ग, लोअर परेल (वेस्ट), मुम्बई जरिये प्रबन्ध निदेशक ।
03. किशोर चैपड़ा, उम्र 30 वर्ष, जाति चैपड़ा, निवासी- मकान संख्या 17-18,  परिवहन नगर, गणेश काॅलोनी, खातीपुरा, जयपुर । 
विपक्षीगण

उपस्थित
परिवादी की ओर से श्री चन्द्रशेखर दाधीच/श्री श्रवण चैपड़, एडवोकेट
विपक्षी संख्या 1 व 2 बैंक की ओर से श्री अजय टांटिया/श्री मुकेश शर्मा, एडवोकेट
विपक्षी संख्या 3 के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही

निर्णय
दिनांकः- 27.03.2015

यह परिवाद, परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध दिनंाक 24.12.2009 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया हैः-
परिवादी एक बेरोजगार व्यक्ति हैं । उसने विपक्षी संख्या 3, जो विपक्षी संख्या 1 बैंक का अधिकृत प्रतिनिधि हैं, से मार्गदर्शन प्राप्त करके अपने वाहन संख्या          आर.जे.-टी-4014 पर ऋण लेेने हेतु दिनांक 04.07.2007 को आवेदन प्रस्तुत किया  था । इस पर विपक्षीगण ने दिनांक 13.07.2007 को परिवादी की कार का ।बबमेे 2,70,000/-रूपये माना और परिवादी को 2,16,000/-रूपये का ऋण स्वीकृत     किया । जिसका भुगतान परिवादी को मय ब्याज 36 मासिक किश्तों में करना था और प्रत्येक किश्त 7,700/-रूपये की थी । परिवादी ने इस वाहन की एक ही किश्त जमा की और उसके बाद तीन माह तक परिवादी के उक्त वाहन को किराये पर देने की कोई बुकिंग नहीं आईं तो परिवादी ने इस वाहन को विपक्षीगण के समक्ष दिनंाक         10.10.2007 को सरेण्डर करने का निवेदन किया । जिस पर विपक्षी संख्या 3 ने परिवादी को बताया कि पहले उसे विपक्षी संख्या 1 से सरेण्डर लेटर प्राप्त करना पड़ेगा उसके पश्चात् ही विपक्षी संख्या 3 वाहन को जब्त कर सकता हैं । लेकिन दिनांक 06.11.2007 को विपक्षी संख्या 3 ने परिवादी के वाहन को जब्त कर लिया और सरेण्डर लेटर, जो परिवादी से प्राप्त किया था, उस पर कोई दिनांक अंकित नहीं थी । परिवादी कोे उस समय विपक्षी संख्या 3 के मन में आये हुए खोट की जानकारी नहीं थी । इसलिए परिवादी ने विपक्षीगण को पूर्व में दी गई एक किश्त और बाद में दी गई तीन किश्त अर्थात् कुल चार किश्तों की 30,800/-रूपये की अदायगी कर दी । और इस प्रकार कुल 2,70,000/-रूपये वाहन की कीमत में से 30,800/-रूपये कम करके परिवादी ने 2,39,200/-रूपये लौटाने का निवेदन विपक्षीगण से किया । लेकिन विपक्षी संख्या 1 ने उक्त वाहन की बकाया राशि 1,24,214/-रूपये ही परिवादी को बताई और इस संबंध में परिवादी को न्यायालय से नोटिस मिला ।
इस प्रकार विपक्षीगण ने परिवादी के वाहन की तीन किश्ते बकाया होने पर ही इस वाहन को हड़प लिया । इस प्रकार विपक्षीगण ने परिवादी को वाहन की न्यूनतम कीमत लौटाई और वाहन की बेचान प्रक्रिया को पूर्णतः गुप्त रखकर सेवादोष कारित किया हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी अब विपक्षीगण से प्रत्यक्ष क्षतिपूर्ति के रूप में 2,46,900/-रूपये के साथ परिवाद के मद संख्या 17 में अंकित अन्य सभी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षी संख्या 1 एवं 2 की ओर से दिये गये जवाब में कथन किया गया है कि परिवादी को 2,16,000/-रूपये की राशि का ऋण विपक्षीगण के स्तर पर स्वीकार किया गया है । परिवादी ने अनुबन्ध की सहमति के अनुसार किश्तों की अदायगी में चूक की थी । इसलिए विपक्षीगण ने वाहन का आधिपत्य विधिक रूप से दिनांक         07.01.2008 को ले लिया था । परिवादी पर उस दिन 2,55,214/-रूपये की ऋण राशि बकाया थी । अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार दिनंाक 06.02.2008 को परिवादी का वाहन 1,31,100/-रूपये में विक्रय कर दिया गया था और बेचान राशि को ऋण राशि में समायोजित करने पर अनुबन्ध के अनुसार 1,24,214/-रूपये परिवादी पर शेष निकलते थे । जिसके संबंध में विपक्षी संख्या 1 व 2 ने परिवादी को दिनंाक        14.11.2008 को 1,24,214/-रूपये लौटाने का नोटिस दिया । इस राशि की वसूली के लिए विपक्षी संख्या 1 व 2  ने परिवादी के विरूद्ध अपर जिला न्यायाधीश (फास्ट ट्रेक) क्रम संख्या-4, जयपुर शहर, जयपुर में परिवाद भी दायर किया था । इसलिए विपक्षी संख्या 1 व 2 द्वारा सभी कार्यवाही नियमों और वैधानिक रूप से की गई हैं । विपक्षी संख्या 1 व 2 का कोई सेवादोष नहीं हैं । अतः परिवाद, परिवादी निरस्त किया जावें ।
विपक्षी संख्या 3 सदैव से अनुपस्थित रहा हैं । इसलिए उसके विरूद्ध एकतरफा कार्यवाही अमल में लाने के आदेश दिये जाते हैं ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादी श्री मनोज शर्मा एवं श्री संदीप चैधरी के शपथ पत्रों के साथ प्रदर्श-1 से प्रदर्श-7 दस्तावेज प्रस्तुत किये गये । जबकि विपक्षी संख्या 1 व 2 बैंक की ओर से जवाब के तथ्यों की पुष्टि में श्री पंकज शर्मा के शपथ पत्र के साथ कुल 29 पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत किये गये ।
बहस अंतिम सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
विपक्षी संख्या 1 व 2 बैंक की ओर से लिखित तर्क प्रस्तुत किये गये ।
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने विपक्षीगण के समक्ष दिनांक 04.07.2007 को ऋण लिये जाने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया था । जिसके संबंध में विपक्षीगण ने परिवादी को 2,16,000/-रूपये का ऋण उपलब्ध करवाया था । परन्तु विपक्षीगण के अनुसार परिवादी विपक्षीगण को उक्त वाहन की किश्तें समय पर नहीं लौटा सका । इसलिए विपक्षीगण ने परिवादी का वाहन परिवाद के मद संख्या 6 में अंकित तथ्यों के आधार पर दिनांक 06.11.2007 को सरेण्डर करवा लिया । जबकि स्वयं परिवादी ने परिवाद के मद संख्या 4 में परिवादी ने अंकित किया हैं कि विपक्षी संख्या 3 के समक्ष उक्त वाहन सरेण्डर करने के लिए दिनंाक 10.10.2007 को मौखिक निवेदन किया था । इसके बाद में विपक्षीगण ने परिवादी का वाहन दिनंाक 06.02.2008 को 1,31,100/-रूपये में बेचान किया हैं । इससे पूर्व विपक्षीगण ने परिवादी से सरेण्डर लेटर प्रदर्श-5 प्राप्त कर लिया था । उसके बाद नियमानुसार प्रदर्श-5 व प्रदर्श-6 प्री-पजेशन इन्टीमेशन पुलिस को दी गई । इस प्रकार प्रदर्श-5 सरेण्डर लेटर में स्वयं परिवादी ने उक्त वाहन को विपक्षीगण को ऋण राशि समय पर नहीं लौटाने के कारण ऋण गारण्टी की शर्तों का उल्लंघन करने और ऋण का भुगतान समय पर नहीं करने के तथ्यों को स्वीकार किया हैं और इस पर परिवादी के हस्ताक्षर हैं । इसके बाद ही इस वाहन के बेचान की कार्यवाही विपक्षीगण के स्तर पर की गई हैं । और यह कार्यवाही करने का विपक्षीगण को ।हतममउमदज वित ।नजव स्वंद की शर्तों के अनुसार अधिकार प्राप्त था । नीलामी के दौरान वाहन की कीमत 1,31,100/-रूपये आईं थी और इस कीमत की अदायगी के बाद में जो ऋण राशि परिवादी की ओर विपक्षीगण की बचती थी, उसके संबंध में परिवादी के विरूद्ध विपक्षीगण ने अपर जिला न्यायाधीश (फास्ट ट्रेक) क्रम संख्या-4, जयपुर शहर, जयपुर में दावा प्रस्तुत किया था । जिसका जवाब दावा परिवादी की ओर से प्रस्तुत किया गया हैं । इसमें प्रकरण के सभी विवादित बिन्दुओं पर निर्णय होना शेष हैं ।
अतः हमारे विनम्र मत में विपक्षीगण ने परिवादी द्वारा वाहन पर प्राप्त किये गये ऋण की किश्तों की अदायगी समय पर नहीं करने के कारण जो कार्यवाही की हैं वह ।हतममउमदज वित ।नजव स्वंद की शर्तों के अनुरूप हैं और इस कार्यवाही को करने में विपक्षीगण ने कोई सेवादोष कारित किया हो, यह परिलक्षित नहीं होता हैं । परिवादी वाहन को दिनांक 06.11.2007 को जब्त करना कहता हैं जबकि विपक्षीगण के अनुसार परिवादी द्वारा वाहन दिनांक 07.01.2008 को सरेण्डर किया गया हैं और उसके बाद में वाहन की नीलामी की कार्यवाही की गई हैं । परिवादी ने वाहन को विपक्षीगण द्वारा गलत रूप से दिनांक 06.11.2007 को जब्त करना दिखाने के तथ्य के बारे में कोई कार्यवाही पुलिस में नहीं की थी और स्वयं परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 3 को वाहन सरेण्डर करने के लिए दिनांक 10.10.2007 को निवेदन करना यह दर्शाता हैं कि वाहन की किश्त आदि चुकाने में परिवादी असमर्थ था और इसलिए अंततः विपक्षीगण ने परिवादी का वाहन दिनांक 07.01.2008 को जब्त करके वाहन की नीलामी की कार्यवाही की हैं जिसमें अवैधानिकता और अनियमितता परिलक्षित नहीं होती हैं ।
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर विपक्षीगण का कोई सेवादोष प्रमाणित नहीं होता हैं और परिवाद, परिवादी विपक्षीगण के विरूद्ध अस्वीकार किया जाता हैं ।
आदेश
 अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादी विपक्षीगण के विरूद्ध निरस्त किया जाता हैं । 

अनिल रूंगटा       डाॅं0 अलका शर्मा            डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा 
  सदस्य                         सदस्या                                  अध्यक्ष

निर्णय आज दिनांक 27.03.2015 को पृथक से लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया ।

अनिल रूंगटा       डाॅं0 अलका शर्मा            डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा 
  सदस्य                          सदस्या                                अध्यक्ष

 

 

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