Smt. Preeti Devi filed a consumer case on 07 Apr 2018 against HDFC Standard Life Insurance Company Ltd. in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/125/2015 and the judgment uploaded on 01 May 2018.
Uttar Pradesh
Muradabad-II
CC/125/2015
Smt. Preeti Devi - Complainant(s)
Versus
HDFC Standard Life Insurance Company Ltd. - Opp.Party(s)
Shri Ajay kumar Gupta
07 Apr 2018
ORDER
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
परिवाद संख्या- 125/2015
श्रीमती प्रीति देवी पत्नी स्व. श्री विनोद कुमार निवासी एफ-116 काशीराम नगर तहसील व जिला मुरादाबाद। …...परिवादनी
बनाम
एच.डी.एफ.सी. स्टैर्ण्ड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. द्वारा-
1-शाखा प्रबन्धक, शाखा कार्यालय 409 रूद्र प्लाजा, द्वितीय तल, पी.डब्ल्यू.डी. गेस्ट हाउस के सामने, सिविल लाइन्स, मुरादाबाद पिन-244001
वाद दायरा तिथि: 28-04-2015 निर्णय की तिथि: 07.04.2018
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
इस परिवाद के माध्यम से परिवादनी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षीगण से उसे उसके पति की मृत्यु के फलस्वरूप बीमा राशि अंकन-9,31,974/-रूपये 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित दिलायी जाये। पालिसी के अधीन देय बोनस, दुर्घटना हित इत्यादि (यदि कोई हो) का भुगतान भी परिवादनी को कराया जाये। क्षतिपूर्ति की मद में अंकन-5,00,000/-रूपये और परिवाद व्यय की मद में अंकन-5,500/-रूपये परिवादनी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादनी के पति स्व. श्री विनोद कुमार ने अपने जीवनकाल में विपक्षीगण से एक बीमा पालिसी सं.-16154885 दिनांक 03-7-2013 को ली थी। बीमा राशि अंकन-9,31,974/-रूपये थी। बीमा अवधि में दिनांक 13-10-2013 को थाना डिडौली जनपद अमरोहा के क्षेत्रान्तर्गत सड़क दुर्घटना में उसके पति का स्वर्गवास हो गया। इस दुर्घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना डिडौली में धारा-279/304ए आई.पी.सी. में दर्ज हुई। परिवादनी पालिसी में नामिनी थी। दुर्घटना की सूचना विपक्षी-1 के कार्यालय में समय से दी गई। क्लेम संबंधी सभी औपचारिकतायें पूरी करके परिवादनी ने बीमा दावा विपक्षी-1 के कार्यालय में प्रस्तुत किया। अनेक चक्कर लगाने के बाद भी क्लेम का भुगतान विपक्षीगण ने नहीं किया। लगभग एक वर्ष बाद विपक्षी-1 के कार्यालय से उसे एक पत्र प्राप्त कराया गया, जिसके द्वारा उसके पति का बीमा दावा अस्वीकृत कर दिया। आधार यह लिया गया कि दावे की जांच में यह पाया गया कि उसके पति ने बीमा प्रस्ताव फार्म में गलत विवरण लिखा था। परिवादनी ने अग्रेत्तर कथन किया कि बीमा कराने हेतु विपक्षीगण के अधिकृत एजेंट परिवादनी के घर आये थे। एजेंट ने पालिसी के बारे में विस्तार से बताया था। परिवादनी के पति ने एजेंट को सारी बाते सही-सही बता दी थीं, तब एजेंट ने बीमा प्रस्ताव पर उसके पति के हस्ताक्षर कराये थे और बीमे की किस्त प्राप्त की थी। परिवादनी ने यह कहते हुए कि बीमा प्रस्ताव फार्म में उसके पति ने कोई भी गलत बात नहीं लिखी, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की।
परिवाद के साथ परिवादनी ने पालिसी शैड्यूल, रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 27-11-2014, पति के मृत्यु प्रमाण पत्र, अभिकथित दुर्घटना में विवेचना के उपरान्त पुलिस द्वारा लगायी गई फाईनल रिपोर्ट, दिनांक 13-10-2013 की थाना डिडोली की संबंधित जी.डी. और विपक्षीगण को परिवादनी द्वारा भिजवाये गये कानूनी नोटिस की छायाप्रतियों को दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/7 लगायत 3/15 हैं।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-7/1 लगायत 7/5 दाखिल हुआ, जिसमें यह तो स्वीकार किया गया है कि परिवादनी के पति के आवेदन पर परिवाद के पैरा-1 में उल्लिखित बीमा पालिसी दिनांक 03-7-2013 को परिवादनी के पति को जारी की गई थी किन्तु यह कथन भी किया गया कि परिवादनी के पति ने बीमा प्रस्ताव फार्म में अपनी आमदनी और व्यवसाय संबंधी गलत जानकारी दी थी। उसने अपने आपको भारती एयरटेल लि. में प्रबन्धक के पद पर कार्यरत होना और अपनी वार्षिक आमदनी अंकन-2,40,000/-रूपये बीमा प्रस्ताव फार्म में लिखा था, जबकि विपक्षीगण के जांचकर्ता द्वारा जब बीमा दावे की जांच की गई तो पाया किया कि परिवादनी का पति कुक का काम करता था और उसकी मासिक आय अंकन-24,000/-रूपये थी। विपक्षीगण के अनुसार व्यवसाय तथा वार्षिक आय संबंधी गलत सूचना देने के कारण इंश्योरेंस एक्ट की धारा-45 के अधीन परिवादनी का बीमा दावा अस्वीकार किया गया और ऐसा करके उन्होंने कोई त्रुटि नहीं की। उक्त कथनों के आधार पर परिवाद को सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना विपक्षीगण ने की।
परिवादनी ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-10/1 लगायत 10/4 दाखिल किया, जिसके साथ उसने बीमा शैड्यूल, रेपुडिएशन लेटर, बीमित के मृत्यु प्रमाण पत्र, थाना डिडौली की पुलिस द्वारा दुर्घटना के प्रश्गनत मामले में विवेचना के उपरान्त प्रेषित फाईनल रिपोर्ट, दिनांक 13-10-2013 की थाना डिडोली की जी.डी. और विपक्षीगण को भिजवाये गये कानूनी नोटिस दिनांकित 27-01-2015 की छायाप्रतियों को दाखिल किया गया। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-10/5 लगायत 10/13 हैं। परिवादनी ने अतिरिक्त साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-12 भी दाखिल किया, जिसके साथ उसने पूर्व में दाखिल अपने साक्ष्य शपथपत्र के साथ प्रस्तुत प्रपत्रों को अपने इस साक्ष्य शपथपत्र का संल्गनक बनाते हुए उन्हें पुन: दाखिल किया।
विपक्षीगण की ओर से बीमा कंपनी के मैनेजर श्री नीरज सिंह ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-14 दाखिल किया, जिसके साथ बीमा प्रस्ताव फार्म, दिनांक 09-8-2014 व 20-8-2014 को परिवादनी द्वारा दिये गये इस आशय के शपथपत्र कि उसके पति भारती एयरटेल में नौकरी नहीं करते थे बल्कि वे हलवाई/कैटरिंग की ठेकेदारी करते थे, पीली कोठी, मुरादाबाद निवासी विक्की, राहुल, दलवीर सिंह, रचित कुमार और अब्दुल्ला नाम के व्यक्तियों का इस आशय का संयुक्त शपथपत्र कि पीली कोठी पर भारती एयरटेल का कोई कार्यालय नहीं है, विपक्षीगण के इन्वेस्टीगेटर की संलग्नकों सहित दी गई क्लेम जांच रिपोर्ट की छायाप्रतियों को बतौर संलग्नक दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-14/2 लगायत 14/45 हैं।
परिवादनी ने लिखित बहस दाखिल नहीं की। विपक्षीगण की ओर से लिखित बहस दाखिल हुई।
हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता ने रेपुडिएशन लेटर कागज सं.-3/9 की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया और तर्क दिया कि परिवादनी के पति ने विपक्षीगण के एजेंट को प्रस्ताव फार्म भरते समय सारी बाते सही बतायी थीं। यदि उसने प्रस्ताव फार्म में उसके पति के व्यवसाय तथा आमदनी के बारे में गलत लिख दिया था तो उसका दण्ड परिवादनी को नहीं दिया जाना चाहिए। परिवादनी की ओर से यह भी कहा गया कि यदि तर्क के तौर पर यह मान भी लिया जाये कि मृतक ने प्रस्ताव फार्म में अपने व्यवसाय तथा आय के बारे में रेपुडिएशन लेटर में उल्लिखित बातें लिखा दी थीं तो भी उसके आधार पर परिवादनी का बीमा दावा खारिज नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि जिन कारणों से बीमा दावा खारिज किया गया है, वे इंश्योरेंस एक्ट की धारा-45 के अधीन ‘’मैटेरियल फैक्ट’’ की श्रेणी में नहीं आते हैं। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री को इंगित करते हुए परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि परिवादनी के पति स्वर्गीय विनोद कुमार की मृत्यु थाना डिडौली जनपद अमरोहा के क्षेत्रान्तर्गत दिनांक 13-10-2013 को सड़क दुर्घटना में होना भली-भॉंति प्रमाणित है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री और विपक्षीगण की ओर से दाखिल लिखित बहस की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया और जोर देकर कहा कि प्रस्ताव फार्म में बीमित द्वारा अपने व्यवसाय तथा आमदनी के बारे में जानबूझकर गलत सूचनाएं दीं। यदि बीमित सही सूचना देता तो विपक्षीगण कदापि मृतक का बीमा स्वीकार नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा कि रेपुडिएशन लेटर में उल्लिखित बातें ‘’मैटेरियल फैक्ट’’ की श्रेणी में आती हैं और प्रकरण इंश्योरेंस एक्ट की धारा-45 से आच्छादित है। उन्होंने रेपुडिएशन लेटर को सही बताते हुए परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की है।
पत्रावली में दाखिल थाना डिडौली की जी.डी. की नकल, मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, उसके मृत्यु प्रमाण पत्र, विवेचक द्वारा मामले में प्रेषित अंतिम रिपोर्ट इत्यादि के अवलोकन तथा विपक्षीगण के इनवेस्टीगेटर की रिपोर्ट कागज सं.-14/22 लगायत 14/45 के अवलोकन से यह तथ्य भली-भॉंति प्रमाणित है कि परिवादनी के पति स्व. श्री विनोद कुमार की मृत्यु दिनांक 13-10-2013 को सड़क दुर्घटना में हुई थी। अब देखना यह है कि जिन तथ्यों के आधार पर परिवादनी का बीमा दावा खारिज किया गया है, वे इंश्योरेंस एक्ट की धारा-45 के अधीन ‘’मैटेरियल फैक्ट’’ की श्रेणी में आते हैं अथवा नहीं। इंश्योरेंस एक्ट की धारा-45 निम्नवत है-
“Policy not to be called in question on ground of mis-statement after two years.:-No policy of life insurance effected before the commencement of this Act shall after the expiry of two years from the date of commencement of this Act and no policy of life insurance effected after the coming into force of this Act shall after the expiry of two years form the date on which it was effected, be called in question by an insurer on the ground that a statement made in the proposal for insurance or in any report of a medical officer,referee, or friend of the insured, or in any other document leading to the issue of the policy,was inaccurate or false, unless the insurer shows that such statement was on a material matter or suppressed facts which it was material to disclose and that it was fraudulently made by the policy –holder and that the policy –holder knew at the time of making it that the statement was false or that it suppressed facts which it was material to disclose”
‘’मैटेरियल फैक्ट’’ क्या है, इसे इंश्योरेंस एक्ट में परिभाषित नहीं किया गया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा IV(2009)सीपीजे पृष्ठ-8(एस.सी.), सतवन्त कौर सन्धू बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. की निर्णयज विधि में निर्णय के पैरा-20 में निम्न व्याख्या दी है –
“In a contract of insurance, any fact which would influence the mind of a prudent insurer in deciding whether to accept or not to accept the risk is a “material fact”
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2008(1) एपेक्स कोर्ट जजमेंटस पृष्ठ-362(एस.सी., पी.सी. चाको व एक अन्य बनाम चेयरमैन भारतीय जीवन बीमा निगम व अन्य की निर्णयज विधि में निम्न अभिमत दिया है-
“Misstatement by itself is not material for repudiation of the policy unless the same is material in nature”
मृतक के बीमा प्रस्ताव में मृतक की आय अंकन-2,40,000/-रूपये वार्षिक होना दर्शायी गई है। विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र के पैरा-5 में स्पष्ट रूप से यह स्वीकार किया है कि मृतक की आय 24000/-रूपये मासिक थी। विपक्षीगण के प्रतिवाद पत्र में की गई इस स्वीकारोक्ति के अनुसार मृतक की आय 2,88,000/-रूपये वार्षिक बैठती है। कहने का आशय यह है कि स्वयं विपक्षीगण ने यह स्वीकार कर लिया है कि मृतक की वार्षिक आय उसके बीमा प्रस्ताव फार्म में उल्लिखित वार्षिक आय से अंकन-48000/-रूपये वार्षिक अधिक थी। जब मृतक की वार्षिक आय बीमा प्रस्ताव फार्म में घोषित आय से भी अधिक थी तो हमारे विनम्र अभिमत में मृतक की वार्षिक आय में अंतर के आधार पर परिवादनी का बीमा दावा अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए था।
विपक्षीगण के इनवेस्टीगेटर ने अपनी जांच रिपोर्ट में अन्य के अतिरिक्त यह निष्कर्षित किया है कि मृतक कैटरिंग का कार्य करता था, अपनी रिपोर्ट के साथ इनवेस्टीगेटर ने मृतक की पत्नी अर्थात परिवादनी के स्टेटमेंट की कापी भी संलग्न की है, जिसमें परिवादनी ने स्वीकार किया है कि उसके पति कैटरिंग का कार्य करते थे। बीमा प्रस्ताव की नकल पत्रावली का कागज सं.-14/2 लगायत 14/14 है। इस प्रस्ताव में यह लिखा है कि मृतक पीली कोठी, मुरादाबाद स्थित भारतीय एयरटेल के कार्यालय में बतौर मैनेजर काम करते थे। स्पष्ट रूप से व्यवसाय के संदर्भ में बीमा प्रस्ताव में उल्लिखित तथ्य मृतक के वास्तविक व्यवसाय से भिन्न हैं। हम यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि बीमित वास्तव में जब कैटरिंग का कार्य करता था, जिससे उसे लगभग अंकन-2,88,000/-रूपये सालाना आमदनी थी तो वह अपनी वास्तविक आमदनी कम दर्शाते हुए बीमा प्रस्ताव में अपने आपको भारती एयरटेल के कार्यालय में मैनेजर होना क्यों लिखवाता। कदाचित वास्तविक व्यवसाय से भिन्न व्यवसाय बीमा प्रस्ताव में लिखाने से मृतक को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष या वर्तमान अथवा भविष्य में किसी प्रकार का कोई आर्थिक अथवा अन्य लाभ मिलने की कोई संभावना थी, ऐसा हमें नजर नहीं आता। हां यदि मृतक की वार्षिक आय बीमा प्रस्ताव फार्म में उल्लिखित आय से कम रही होती तो स्थित अन्यथा हो सकती थी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सतवन्त कौर सिन्धू एवं पी.सी. चाको के मामले में ‘’मैटेरियल फैक्ट’’ के संदर्भ में जो अभिमत दिये गये हैं, उनके आलोक में हमारा सुविचारित मत है कि जिन कारणों से परिवादनी का बीमा दावा रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 27-11-2014 द्वारा अस्वीकृत किया गया है, वे कारण ‘’मैटेरियल फैक्ट’’ की श्रेणी में नहीं आते।
यहां हम यह भी उल्लेख करना समीचीन समझते हैं कि परिवादनी द्वारा अपने साक्ष्य शपथपत्र के पैरा-8 में किये गये इन कथनों का कि बीमा कराते समय परिवादनी के पति ने बीमा एजेंट को वे सारी बाते सही बतायी थीं जो बीमा एजेंट ने उनसे पूछी थीं, का खण्डन बीमा कंपनी उक्त बीमा एजेंट के माध्यम से कराने का साहस नहीं कर पायी। ऐसी दशा में यह माने जाने का कारण है कि मृतक ने बीमा कंपनी के एजेंट को सारी बाते सही-सही बता दी थीं किन्तु एजेंट ने मृतक की आय एवं व्यवसाय के बारे में बीमा प्रस्ताव फार्म में तथ्य अपनी सुविधानुसार अंकित किये।
पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री के तथ्यात्मक विश्लेषण और उसके विधिक मूल्यांकन के आधार पर हमारे विनम्र अभिमत में बीमा कंपनी द्वारा रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 27-11-2014 के माध्यम से परिवादनी का दावा अस्वीकृत कर त्रुटि की है और यह सेवा में कमी का मामला है। परिवादनी को बीमा पालिसी में उल्लिखित बीमा राशि अंकन-9,31,974/-रूपये 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वाद दायरा तिथि तावसूली मय बोनस दुर्घटना हित लाभ व अन्य देयों(यदि कोई हो) के साथ दिलाया जाना न्यायोचित दिखायी देता है। परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये दिलाया जाना भी न्यायोचित है। तद्नुसार परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
परिवादनी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण इस आदेश से एक माह के अंदर बीमा राशि अंकन-9,31,974(नो लाख इक्कतीस हजार नो सौ चौहत्तर) रूपये 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वाद दायरा तिथि तावसूली मय बोनस दुर्घटना हित लाभ व अन्य देयों(यदि कोई हो) के साथ तथा परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये परिवादनी को अदा करें।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
दिनांक: 07-04-2018
परिवाद सं.-125/2015
निर्णय घोषित। आदेश हुआ कि परिवादनी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण इस आदेश से एक माह के अंदर बीमा राशि अंकन-9,31,974(नो लाख इक्कतीस हजार नो सौ चौहत्तर) रूपये 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वाद दायरा तिथि तावसूली मय बोनस दुर्घटना हित लाभ व अन्य देयों(यदि कोई हो) के साथ तथा परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये परिवादनी को अदा करें।
, अध्यक्ष,
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