ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने अनुरोध किया है कि पालिसी जारी होनी की तारीख से चैक दिऐ जाने की दिनांक तक की अवधि हेतु 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवादी को विपक्षी से ब्याज दिलाया जाऐ। मानसिक क्षतिपूर्ति की मद में 1000/- रूपया तथा परिवाद व्यय की मद में 5,000/- रूपया अतिरिक्त मांगा गया है।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि दिनांक 12/3/2008 को परिवादी ने 1,00,000/- रूपये की एक पालिसी सं0-11696340 विपक्षी सं0-1 से ली थी, विपक्षी\ सं0-1 अधूरा व त्रुटिपूर्ण कार्य करने की बजह से उक्त पालिसी विड्रा हो गयी। विपक्षीगण ने मूल बीमा राशि 1,00,000/- रूपये का एक चैक परिवादी को भेजा जो परिवादी को दिनांक 18/1/2011 को प्राप्त हुआ। विपक्षीगण ने मूल बीमा राशि पर परिवादी को कोई ब्याज नहीं दिया। पालिसी विपक्षीगण की लापरवाही से विड्रा हुई अत: परिवादी ब्याज का हकदार था, किन्तु बार-बार अनुरोध और नोटिस दिऐ जाने के बावजूद परिवादी को ब्याज नहीं दिया। परिवादी के अनुसार मजबूर होकर उसे यह परिवाद योजित करना पड़ा, उसने अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-7/1 लगायत 7/5 प्रस्तुत किया गया जिसमें परिवादी द्वारा परिवाद में उल्लिखित पालिसी लिया जाना तो स्वीकार किया गया, किन्तु परिवाद के शेष कथनों से इन्कार किया गया। विपक्षीगण के अनुसार परिवादी द्वारा आवश्यक औपचारिकताऐं पूरी नहीं की गयी जिसकी बजह से पालिसी विड्रा हुई। पालिसी विड्रा होने पर फुल एण्ड फाइनल सैटिलमेन्ट के रूप में 1,00,000/- रूपये (एक लाख) का एक चैक विपक्षीगण ने परिवादी को भेज दिया जो परिवादी को प्राप्त हो गया है। परिवादी ब्याज पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि पालिसी उसकी गलती से विड्रा हुई थी। अग्रेत्तर यह भी कथन किया गया कि परिवाद कालबाधित है और रेस्जूडीकेटा के सिद्धान्त से बाधित है। परिवादी को मूल राशि 1,00,000/- रूपये (एक लाख) का चैक मिल चुका है। विपक्षीगण ने सेवा प्रदान करने में कोई कमी नहीं की। उक्त कथनों के आधार पर परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गयी।
- परिवादी ने सूची कागज सं0-3/5 के माध्यम से बीमा राशि जमा किऐ जाने के चैक प्राप्ति की रसीदों, विपक्षीगण को भेजे गऐ कानूनी नोटिस तथा विपक्षीगण की ओर से प्रेषित 1,00,000/- रूपये (एक लाख) के चैक की फोटो प्रतियों और विपक्षीगण को दिऐ गऐ कानूनी नोटिस भेजे जाने की असल रसीदों को दाखिल किया, यह अभिलेख कागज सं0-3/6 लगायत 3/10 हैं।
- परिवादी ने साक्ष्य में अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-8/1 लगायत 8/3 दाखिल किया जिसके साथ संलग्नक के रूप में उसने अपने बैंक स्टेटमेन्ट, 1,00,000/- रूपये के चैक, विपक्षी सं0-1 को लिखे पत्र दिनांकित 20/7/2008 तथा कोरियर की रसीद की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया, यह प्रपत्र कागज सं0-8/4 लगायत 8/8 है।
- विपक्षीगण की ओर से एच0डी0एफ0सी0 स्टैन्डर्ड लाइफ इश्योरेंस कम्पनी सिविल लाइन्स, मुरादाबाद के सर्किल हैड श्री अवनीश कुमार मिश्रा ने साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-9/1 लगायत 9/5 दाखिल किया गया।
- परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथ पत्र में परिवाद कथनों को एवं विपक्षीगण की ओर से दाखिल शपथ पत्र में श्री अवनीश कुमार मिश्रा ने प्रतिवाद पत्र के कथनों को सशपथ दोहराया।
- दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी लिखित बहस भी दाखिल की।
- हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि दिनांक 12/3/2008 को परिवादी ने विपक्षी से एक लाख रूपये की एक बीमा पालिसी ली थी जो बाद में विड्रा हो गयी। परिवादी का आरोप है कि पालिसी विपक्षी की गलती से विड्रा हुई जबकि विपक्षीगण का कथन है कि गलती परिवादी की थी जिसके परिणामस्वरूप पालिसी विड्रा करनी पड़ी। विपक्षी ने पालिसी की मूल राशि एक लाख रूपया परिवादी को चैक द्वारा वापिस कर दी है इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है। विपक्षी की ओर से ऐसा कोई तथ्य इंगित नहीं किया गया है जिससे पालिसी विड्रा में परिवादी की गलती अथवा लापरवाही उजागर होती हो। पालिसी परिवादी ने करायी थी इसलिए परिवादी द्वारा अकारण स्वत: पालिसी को विड्रा करने का कोई कारण दिखायी नहीं देता। विपक्षीगण की ओर से परिवादी की गलती इंगित न किया जाना यह दर्शाता है कि पालिसी विड्रा होने में गलती विपक्षी की थी और चॅूंकि पालिसी विपक्षी की गलती से विड्रा होना प्रकट हुआ है अत: परिवादी को बीमा की मूल राशि पर ब्याज मिलना चाहिऐ जिसका विवेचन हम इस निर्णय में आगे करेगें।
- परिवादी ने पालिसी दिनांक 12/3/2008 को ली थी। परिवादी के अनुसार एक लाख रूपये का चैक उसे दिनांक 18/1/2011 को डाक से प्राप्त हुआ था। विपक्षी की ओर से कहीं भी परिवादी के इस कथन का प्रतिवाद नहीं किया गया कि एक लाख रूपये का चैक दिनांकित 10/01/2011 परिवादी को दिनांक 18/01/2011 को प्रा्प्त हुआ था। यह परिवाद दिनांक 17/01/2013 को योजित हुआ था। वाद योजित होने की तिथि से 3 वर्ष पूर्व तक का ही ब्याज परिवादी को मिल सकता है उससे पहले का ब्याज कालबाधित हो चुका है। कहने का आशय यह है कि दिनांक 17/01/2010 से पूर्व का ब्याज चॅूंकि कालबाधित हो गया है अत: दिनांक 17/01/2010 से पूर्व का ब्याज परिवादी को नहीं दिलाया जा सकता। जैसा कि हमने ऊपर कहा है कि चैक परिवादी को दिनांक 18/01/2011 को प्राप्त हो गया था ऐसी दशा में परिवादी 17/01/2010 से 18/01/2011 तक की अवधि का अर्थात् एक वर्ष का ब्याज बीमा की मूल राशि 1,00,000/- रूपये पर पाने का अधिकारी है। हमारे अभिमत में परिवादी को इस 1,00,000/- रूपये पर 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से एक वर्ष का ब्याज अर्थात् 9,000/- रूपया ब्याज के रूप में दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी ने चॅूंकि पालिसी दिनांक 12/03/2008 को ली थी अत: वाद का कारण दिनांक 12/03/2008 को प्रारम्भ हो गया जो 2 वर्ष की अवधि बीत जाने पर अर्थात् दिनांक 12/03/2010 को समाप्त हो गया। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार इस मामले में वाद का कारण चॅूंकि कन्टीन्यूई कॉज आफ एक्शन था। अत: वर्ष, 2013 में यह परिवाद कालबाधित हो चुका था और इसी आधार पर इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रतिवाद किया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि वर्तमान परिवाद का वाद हेतुक परिवादी को चैक प्राप्ति की तिथि अर्थात् दिनांक 18/01/2011 को उत्पन्न हुआ था। परिवाद दिनांक 17/01/2013 को प्रस्तुत हुआ इस दृष्टि से परिवाद कालबाधित नहीं है। हम परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के कथनों से सहमत हैं। इस परिवादी में परिवादी ने चॅूंकि बीमा की मूल राशि पर ब्याज दिलाऐ जाने की मॉंग की है अत: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में बल है कि दिनांक 18/01/2011 को बिना ब्याज जब उसे 1,00,000/- रूपया का चैक मिला तब परिवादी को इस परिवाद का वाद हेतुक उत्पन्न हुआ था।
- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का एक तर्क यह है कि यह परिवाद रेस्जूडीकेटा के सिद्धान्त से बाधित है। इस सन्दर्भ में उन्होंने प्रतिवाद पत्र के पैरा सं0-25 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और कहा कि पालिसी के सम्बन्ध में परिवादी ने पूर्व में एक परिवाद सं0-181/2008 इस फोरम में योजित किया था जो परिवादी की अनुपस्थिति में वर्ष, 2010 में खारिज हो गया उस परिवाद को परिवादी ने रैस्टोर नहीं कराया और न ही कोई अपील योजित की ऐसी दशा में पूर्व परिवाद सं0-181/2008 का खारिजा आदेश वर्तमान परिवाद में रेस्जूडीकेटा का प्रभाव रखता है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने विपक्षीगण की ओर से दिऐ गऐ उक्त तर्क का प्रतिवाद किया और कहा कि पूर्व परिवाद सं0-181/2008 और वर्तमान परिवाद में मेटर इन इश्यू भिन्न-भिन्न थे इसलिए वर्तमान परिवाद रेस्जूडीकेटा के सिद्धान्त से बाधित नहीं कहा जा सकता। हम परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क से सहमत हैं।
- विपक्षीगण की ओर से पूर्व परिवाद सं0-181/2008 के परिवाद की नकल पत्रावली में दाखिल नहीं की गयी है जिसके अभाव में यह अभिनिर्धारित नहीं किया जा सकता कि पूर्व परिवाद और इस परिवाद दोनों में मेटर इन इश्यू समान था अन्यथा भी यह परिवाद ब्याज की मॉंग हेतु प्रस्तुत हुआ है और इस वाद का कारण दिनांक 18/01/2011 को उस समय उत्पन्न हुआ जब परिवादी को 1,00,000/- रूपये का चैक बिना ब्याज के प्राप्त हुआ था। पूर्व परिवाद वर्ष, 2010 में खारिज हो गया था, प्रकट है कि पूर्व परिवाद में ब्याज की अदायगी का प्रश्न मेटर इन इश्यू हो ही नहीं सकता था । उक्त के दृष्टिगत हम इस मत के हैं कि वर्तमान परिवाद रेस्जूडीकेटा के सिद्धान्त से बाधित नहीं है।
- विपक्षीगण का एक तर्क यह भी है कि परिवादी को 1,00,000/- रूपये का चैक फुल एण्ड फाइनल सैटिलमेन्ट के रूप में भेजा गया था जिसे परिवादी ने बिना किसी आपत्ति/ विरोध के स्वीकार कर लिया अब वह ब्याज की मॉंग करने से बिबन्धित है। विपक्षीगण के इस तर्क से भी हम सहमत नहीं हैं। परिवादी को भेजा गया 1,00,000/- रूपया का चैक क्लेम सैटिलमेन्ट का नहीं था बल्कि उक्त 1,00,000/- रूपये की धनराशि वह मूल राशि थी जो परिवादी ने पालिसी के लिए विपक्षी सं0-1 के पास जमा की थी और जिसे पालिसी विड्रा होने पर विपक्षीगण ने परिवादी को वापिस किया था। इस प्रकार परिवादी द्वारा प्राप्त 1,00,000/- रूपये का चैक चॅूंकि क्लेम सैटिलमेन्ट की राशि का नहीं था अत: विपक्षीगण की ओर से उठाया गया उक्त तर्क भी निरर्थक है।
- उपरोक्त समस्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवादी को ब्याज के रूप में 9,000/- रूपया (नो हजार) मिलना चाहिए जो विपक्षीगण ने उसे नहीं दिया। इस 9,000/- रूपये (नो हजार) की धनराशि पर परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु परिवादी को 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी दिलाया जाना हम न्यायोचित समझते हैं। मानसिक कष्ट की मद में 1,000/- रूपया (एक हजार) और परिवाद व्यय की मद में 2,500/- रूपया (दो हजार पॉंच सौ) परिवादी अतिरिक्त पाने का अधिकारी होगा। तदानुसार परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 9,000/- रूपया (नो हजार) की वसूली हेतु यह परिवाद परिवादी के पक्ष में, विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। परिवादी मानसिक कष्ट की मद में 1,000/- रूपया (एक हजार) तथा परिवाद व्यय की मद में 2,500/- रूपया (दो हजार पॉंच सौ) विपक्षीगण से अतिरिक्त पाने का अधिकारी होगा। (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
23.05.2015 23.05.2015 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 23.05.2015 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
23-05-2015 23-05-2015 | |