राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
अपील सं0- 1859/2005
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, देवरिया द्वारा परिवाद सं0- 351/2002 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.09.2005 के विरुद्ध)
Union Bank of India, Deoria Branch, District-Deoria, through its Authorized Signatory/Manager.
……Appellant
Versus
Sri Harishankar Khandelwal, S/o Late Jai Narayan Khandelwal R/o New Colony, Deoria, District-Deoria.
……..Respondent
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री बी0के0 उपाध्याय, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 06.04.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 351/2002 हरिशंकर खण्डेलवाल बनाम यूनियन बैंक आफ इंडिया में जिला उपभोक्ता आयोग, देवरिया द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 29.09.2005 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह परिवाद बैंक में जमा ऋण के जमानतदार डॉ0 सुनील कुमार का मूल विक्रय पत्र अपीलार्थी/विपक्षी को दिलाये जाने हेतु योजित किया था जिसके अतिरिक्त रुपये की मांग की गई थी। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से सी0सी0 लिमिट 1,00,000/-रू0 ली थी, जिसके लिए जमानतदार डॉ0 सुनील कुमार की दी गई है जिसने मकान के मूल दस्तावेज अपीलार्थी/विपक्षी को दे दी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने मूल दस्तावेज की आवश्यकता पड़ने पर वापस मांगा, किन्तु मूल दस्तावेज वापस नहीं किए गए। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार मकान का कागज दाखिल किया गया है जिसका मूल्य 15,00,000/-रू0 है। यदि उसका पंजीकरण कराया जाए तो बहुत खर्च उठाना पड़ेगा।
3. अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से वादोत्तर इस आधार पर प्रस्तुत किया गया कि जमानतदार के मूल दस्तावेज वापस करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया उसके बाद दस्तावेज ढुढ़वाये गये, लेकिन किसी कारण से वे उपलब्ध नहीं हो सके। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया है कि मूल दस्तावेज बैंक के तत्कालीन प्रबंधक द्वारा वापस कर दिए गए हैं, किन्तु इसकी कोई रसीद नहीं दी गई थी।
4. उभयपक्ष को सुनवाई का अवसर देने के उपरांत जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया गया:-
‘’1. विपक्षी को यह निर्देशित किया जाता है कि डॉ0 सुनील कुमार का असल बैनामा खोज कर एक माह के अन्दर परिवादी को उपलब्ध करायें।
2. यदि विपक्षी द्वारा एक माह के अन्दर बैनाम उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो उसके पश्चात दो माह के अन्दर विपक्षी द्वारा नया बैनामा पंजीकृत कराकर परिवादी को उपलब्ध करेगा। जिसके समस्त खर्चे की जिम्मेदारी विपक्षी बैंक की होगी।
3. परिवादी को विपक्षी से 5000=00 (पांच हजार रूपया) क्षतिपूर्ति और 500=00 रूपया वाद व्यय प्राप्त करने का अधिकारी होगा।‘’
5. उपरोक्त आदेश से व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी हरिशंकर खण्डेलवाल ने जमानतदार द्वारा दी गई विक्रय पत्र इस आधार पर वापस ले ली थी कि उसका पुनर्स्थापन कर दिया जायेगा। श्री खण्डेलवाल द्वारा उक्त दस्तावेज वापस करने हेतु कोई प्रार्थना पत्र बैंक में नहीं दिया गया था जिससे स्पष्ट होता है कि उक्त दस्तावेज प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस कर दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने गारण्टर की ओर से दि0 24.04.2001 को एक पत्र दिया था जिसमें वापसी हेतु आग्रह किया गया था। वास्तव में प्रत्यर्थी/परिवादी ने उक्त दस्तावेज पुनर्स्थापित करने हेतु वापस ले लिया था जिसकी सद्भावना वश कोई रसीद नहीं ली गई थी। जिला उपभोक्ता आयोग ने आदेश पारित करते समय इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया है कि मूल दस्तावेज खो जाने पर इसकी प्रमाणित प्रतिलिपि पंजीकरण प्राधिकारी से प्राप्त की जा सकती है। बैंक ने पूर्व में ही यह आग्रह किया है कि वह प्रश्नगत विक्रय पत्र की प्रमाणित प्रतिलिपि उपलब्ध करा देगा तथा इसके सभी व्यय वहन करेगा, किन्तु इस तथ्य पर जिला उपभोक्ता आयोग ने कोई ध्यान नहीं दिया है।
7. हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया।
8. इस मामले में अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की ओर से यह तर्क दिया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी हरिशंकर खण्डेलवाल द्वारा विक्रय पत्र अर्थात प्रश्नगत दस्तावेज को वापस किए जाने का कोई प्रार्थना पत्र बैंक में नहीं दिया गया था जिससे स्पष्ट होता है कि उक्त दस्तावेज प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस कर दिया गया था। बैंक द्वारा यह भी कहा गया है कि वास्तव में प्रत्यर्थी/परिवादी ने दस्तावेज को पुनर्स्थापित किए जाने हेतु वापस ले लिया था जिसकी सद्भावनावश कोई रसीद नहीं ली गई है। बैंक द्वारा प्रस्तुत किए गए उपरोक्त तर्क चलने योग्य नहीं है। बैंक में सभी कार्य लिखत-पढ़त में किए जाते हैं। अत: यह मानना उचित नहीं है कि मूल विक्रय पत्र जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज बिना रिसीविंग लिए हुए वापस कर दिया गया हो। बैंक द्वारा इस सम्बन्ध में कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह साबित होता हो कि यह दस्तावेज वास्तव में प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस किया गया हो। अत: अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का यह तर्क चलने योग्य नहीं है।
9. अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा यह भी कथन किया गया है कि मूल दस्तावेज खो जाने पर इसकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राधिकारी से प्राप्त की जा सकती है, किन्तु बैंक का यह भी तर्क चलने योग्य नहीं है, क्योंकि पंजीकरण अधिनियम के अनुसार यह एक लम्बा, खर्चीला एवं कष्टदायी प्रक्रिया है। निश्चय ही बैंक की गलती के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को यदि कोई कष्ट या खेद होता है तो उसकी भरपाई करने के लिए बैंक उत्तरदायी है।
10. उपरोक्त विवेचन एवं साक्ष्य तथा बैंक द्वारा की गई संस्वीकृति से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दिया गया प्रश्नगत दस्तावेज उनके द्वारा खो दिया गया है जिसके लिए वे जिम्मेदार हैं और यह उनकी सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा राजेश गुप्ता बनाम एक्सिस बैंक व अन्य प्रकाशित IV(2018)CPJ पृष्ठ 206 में पारित निर्णय उल्लेखनीय है। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा समान परिस्थितियों में अर्थात परिवादी द्वारा ऋण की प्रतिभूति के रूप में लिए गए दस्तावेज बैंक से गुम हो गए थे। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा बैंक से रू0 50,00,000/- की इंडेमिनिटी बांड एवं क्षतिपूर्ति की धनराशि दिलाये जाने का आदेश पारित किया गया है।
11. इस मामले के समान तथ्यों पर मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक लि0 बनाम राजेश खण्डेलवाल प्रकाशित 2020 एस0सी0सी0 ऑनलाइन एन0सी0डी0आर0सी0 पृष्ठ 12 तिथि दि0 12.02.2020 में पारित निर्णय उल्लेखनीय है। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया है कि सम्पत्ति का मूल पंजीकरण दस्तावेज एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है तथा इसकी हानि सम्पत्ति पर विपरीत प्रभाव डालती है। यदि इस सम्पत्ति का नया दस्तावेज बनाया भी जाता है तो भी सम्पत्ति के अंतरण पर एक प्रश्न चिह्न बना रहता है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा निम्नलिखित निर्णय दिया गया है:-
“When, by its own admission, it lost/misplaced the original document of the Complainants, it should have, on its own, in the normal mode of its functioning, got the document reconstructed, handed over the reconstructed document to the Complainants, with courtesy and apology, as also conducted an internal inquiry to fix responsibility as well as undertaken systemic inprovements for future.” icici-bank misplaced-registered-original-sale-deed-of-customer-district-forums-decision-of-compensation-and reconstruction-of-sale-deed-upheld.”
12. मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए इस मामले में जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बैंक को एक माह के अन्दर असल बैनामा खोजकर उपलब्ध कराये जाने तथा विकल्प में नया बैनामा पंजीकृत कराके परिवादी को उपलब्ध कराये जाने का निर्णय पारित किया गया है जो मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय के अनुरूप है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश में हस्तक्षेप करने का उचित अवसर व आधार नहीं प्रतीत होता है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
13. अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3