राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-32/2008
M/S. SRI NATH CONSTRUCTIONS
acting through its authorised partner Shri Anil Chopra son of shri
S.D. Chopra 101, Ram Dass Trust, Sadar, Lucknow .......परिवादी
बनाम्
HDFC BANK LIMITED
through its managing director Shri Aditya puri and Chairman Shri
jagdish Capoor having its reqistered office at HDFC bank house,
senapati bapat marg, Lower parel, Mumbai maharashtra- 400013
Also at
pranay Towers 38 darbari Lal Sharma Marg Beside prathibha
Cinema lucknow-226001 .....विपक्षी
समक्ष:-
1. मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री सत्य प्रकाश, विद्वान अधिवक्ता
विपक्षी की ओर से उपस्थित :श्री निखिल श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 26.10.2015
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद परिवादी मेसर्स श्रीनाथ कांस्ट्रक्शन ने विपक्षी एच.डी.एफ.सी. बैंक लि. के विरूद्ध प्रस्तुत किया है।
संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी एक साझेदारी फर्म है। परिवादी फर्म ने एक एकाउन्ट विपक्षी बैंक के अलीगंज शाखा में खोला। परिवादी ने अपने करंट एकाउन्ट से पांच लाख रूपये की स्वीप इन एफ.डी.आर. बनवाई। स्वीप इन फिक्स डिपाजिट में एक निश्चित धनराशि के ऊपर की धनराशि फिक्स डिपाजिट में रहती है, लेकिन यदि उपभोक्ता निश्चित धनराशि से अधिक धनराशि का चेक भी निर्गत करता है तो वह भी फिक्स डिपाजिट के सापेक्ष भुगतान हो जाती है। परिवादी ने दिसम्बर 2007 में दो चेकें क्रमश: रू. 25000/- और रू. 50000/- की क्रमश: 09.12.07 एवं 13.12.07 में निर्गत किया जो लखनऊ ब्रांच में प्रस्तुत किया गया। इन चेकों को स्वीप इन फिक्स डिपाजिट के सापेक्ष भुगतान किए जाने थे, लेकिन विपक्षी बैंक द्वारा इन दोनों चेकों को फंड अपर्याप्त कहते हुए वापस कर दिया। परिवादी के अनुसार विपक्षी के इस कृत्य से परिवादी फर्म की छवि धूमिल हुई, उसकी विश्वसनीयता एवं प्रतिष्ठा को धक्का लगा और उसे वित्तीय हानि हुई। परिवादी के कहने पर संबंधित चेक प्राप्तकर्ताओं द्वारा
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पुन: चेक बैंक में प्रस्तुत किए गए, लेकिन विपक्षी बैंक द्वारा उन्हें पुन: फंड अपर्याप्त कहते हुए वापस कर दिया। प्रकरणों को विपक्षी बैंक की शाखा के प्रबंधक के संज्ञान में लाया गया। शाखा प्रबंधक ने क्षमा मांगते हुए यह स्वीकार किया कि यह बैंक की आंतरिक गलती हे और सदभावना दर्शाते हुए शाखा प्रबंधक ने चेक ' रिटर्निंग चार्जेस ' को वापस करने के आदेश दिए। विपक्षी बैंक ने लिखित रूप में यह स्वीकार किया कि यह बैंक की गलती थी।
परिवादी द्वारा निम्न अनुतोष चाहा है।
1. चेक की वापसी के कारण हुए व्यापार में क्षति के कारण रू. 540000/-
2. विश्वनीयता एवं प्रतिष्ठा व छवि में हुई हानि के मद में दस लाख रूपये।
3. व्यक्तिगत छवि चरित्र की हानि के मद में पांच लाख रूपये।
4. विपक्षी की लापरवाही के कारण हुई हानि की क्षतिपूर्ति के रूप में रू. 20250/-
5. परिवादी द्वारा विलम्ब चार्जेस के रूप में भुगतान में दिए गए रू. 5000/-
6. परिवादी को हुई भौतिक हानि असुविधा आदि के मद में रू. 41500/-
7. पत्राचार के मद में रू. 550/-
8. विधिक व्यय के लिए रू. 5500/-
इस प्रकार परिवादी द्वारा रू. 2112800/- धनराशि विभिन्न मदों में अनुतोष दिलाने की मांग की है।
परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में निम्न साक्ष्य प्रस्तुत किया।
1. फिक्स डिपाजिट की रसीद।
2. परिवादी द्वारा निर्गत मेसर्स सुमित हार्डवेयर के नाम जारी चेक धनराशि रू. 25000/- की फोटोप्रति।
3. मेसर्स अजय कुमार को जारी चेक की धनराशि रू. 50000/- की फोटोप्रति।
4. विपक्षी द्वारा चेक की वापसी की रसीद(कुल संख्या 3 है)
5. परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक को लिखे गए पत्र दि. 09.02.2008 की फोटोप्रति।
6. बैंक द्वारा परिवादी को लिखा गया पत्र दि. 03.03.2008 की फोटोप्रति।
विपक्षी बैंक द्वारा अपना लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया।
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विपक्षी के अनुसार बैंक ने प्रश्नगत दोनों चेकों की प्राप्ति के बाद परिवादी से तत्काल संपर्क स्थापित किया गया था और उसे सूचित किया गया था कि उसकी फिक्स डिपाजिट बनने की प्रक्रिया बैंक के नियमों के अनुसार की जा रही है और उसे चेक निर्गत करने से पहले बैंक को सूचित करना चाहिए था। फिक्स डिपाजिट बनाने के लिए धनराशि दि. 08.12.07 को दी गई थी। दि. 09.12.2007 और पुन: 13.12.2007 को चेक काटी गई, जबकि फिक्स डिपाजिट बनने की प्रक्रिया में लगभग छह-सात दिन लग जाते हैं। विपक्षी के अनुसार उनके द्वारा परिवादी को यह अवगत करा दिया गया था कि चेक अपर्याप्त फंड के कारण वापस किया जा रहा है और चेक प्राप्तकर्ता पुन: चेक को प्रस्तुत न करें जब तक कि फिक्स डिपाजिट के बारे में बैंक की शाखा से पता न कर लें। विपक्षी ने परिवादी को '' Goodwill Gesture '' के रूप में सूचित कर दिया गया था कि कुछ कारणों वश अत्यधिक विलम्ब हुआ है और चेक प्राप्तकर्ता को सूचित कर दें कि अभी कुछ दिन और चेक प्रस्तुत न करें, परन्तु चेक पुन: प्रस्तुत की गई, जो दि. 19.12.2007 को फंड अपर्याप्त होने के कारण वापस कर दी गई। विपक्षी द्वारा चेक रिटर्न चार्जेस के रूप में रू. 900/- जो काटे गए थे उनको वापस कर दिया गया और इस पर परिवादी राजी था।
विपक्षी ने अपने लिखित कथन के समर्थन में एक शपथपत्र प्रस्तुत किया है।
पीठ ने उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस को सुना व पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यो/अभिलेखों का भलीभांति परिशीलन किया।
परिवादी का कथन है कि स्वीप इन फिक्स डिपाजिट का तात्पर्य ही यही है कि एक निश्चित धनराशि से ऊपर की धनराशि फिक्स डिपाजिट में रहती है, जिससे उपभोक्ता को अधिक ब्याज मिलता है और दैनिक कार्यों के लिए फंड्स भी उपलब्ध रहता है। इस तरह के फिक्स डिपाजिट में उपभोक्ता को यह सुविधा रहती है कि वह यदि अधिक धनराशि की चेक भी निर्गत कर देता है तो उसका भुगतान भी फिक्स डिपाजिट में की गई धनराशि के सापेक्ष हो जाता है, परन्तु विपक्षी बैंक ने एक स्वीप इन फिक्स डिपाजिट में धनराशि उपलब्ध होते हुए भी दो चेकों को गलत तरीके से वापस करके सेवा में कमी कारित की है। उनके द्वारा एक बार चेक वापस होने के बाद बैंक से बात करके ही दुबारा रू. 50000/- की चेक प्रस्तुत की गई थी, जो कि पुन: बैंक द्वारा
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' डिसआनर ' कर दिया गया।
बैंक द्वारा बहस के दौरान कहा गया कि उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं कारित की गई है। उनके द्वारा परिवादी को यह बता दिया गया था कि फिक्स डिपाजिट बनने में छह-सात दिन का समय लगता है और फिक्स डिपाजिट बनने के बाद ही चेक निर्गत किया जाए। परिवादी को यह बता दिया गया था कि फिक्स डिपाजिट बनने की प्रक्रिया चालू है, अत: बैंक से बात करके ही चेक निर्गत की जाए। परिवादी को दूरभाष से यह सूचित कर दिया गया था कि किसी कारणवश फिक्स डिपाजिट बनने में अत्यधिक विलम्ब हुआ है। '' Goodwill Gesture '' के अनुसार चेक रिटर्निंग चार्जेस को बैंक ने वापस ले लिया था। परिवादी को समस्त तथ्य का संज्ञान था।
यह निर्विवाद है कि परिवादी ने एक करंट एकाउन्ट विपक्षी बैंक में खोला गया था और इस एकाउन्ट से परिवादी ने पांच लाख रूपये की स्वीप इन फिक्स डिपाजिट बनवाई। स्वीप इन एफ.डी.आर. में एक निश्चित धनराशि के ऊपर की धनराशि फिक्स डिपाजिट में रहती है, लेकिन यदि उपभोक्ता उसके एकाउन्ट में उपलब्ध धनराशि से अधिक की धनराशि का चेक भी निर्गत करता है तो वह भी फिक्स डिपाजिट के सापेक्ष भुगतान हो जाती है। परिवादी ने दि. 08.12.2007 को पांच लाख रूपये की स्वीप इन फिक्स डिपाजिट विपक्षी बैंक में बनवाया, जिसकी पुष्टि विपक्षी बैंक द्वारा जारी रसीद से भी होती है, जिसमें डिपाजिट स्टार्ट डेट दि. 08.12.2007 अंकित है। विपक्षी ने भी अपने लिखित कथन में इस कथन को स्वीकार किया है। परिवादी ने दि. 09.12.2007 को रू. 25000/- एवं 13.12.2007 को रू. 50000/- की दो चेकें निर्गत की। विपक्षी द्वारा इन दोनों चेकों को स्वीकार न करते हुए यह कहते हुए वापस कर दिया गया कि खाते में अपर्याप्त धनराशि है। विपक्षी का कथन है कि उसके द्वारा परिवादी को यह अवगत करा दिया गया था कि स्वीप इन फिक्स डिपाजिट को बनने में लगभग छह-सात दिन का समय लगता है, अत: कोई चेक तब तक जारी न की जाए तब तक कि एफ.डी.आर. बन न जाए, परन्तु विपक्षी बैंक ने इस तरह का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया कि उसके द्वारा इस तथ्य से परिवादी को अवगत कराया था, केवल यह कह देने मात्र से कि दूरभाष पर उसके द्वारा अवगत कराया था पर्याप्त नहीं है। साक्ष्यों से यह भी सिद्ध होता है कि जिस फर्म/व्यक्ति को रू. 50000/- की धनराशि का चेक दिया गया था, उसके द्वारा पुन:
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चेक प्रस्तुत की गई, जो दि. 19.12.2007 को पुन: वापस कर दी गई, जिसके कारण फंड का अपर्याप्त होना दर्शाया गया है। विपक्षी बैंक ने स्वयं स्वीकार किया है कि एफ.डी.आर. बनने में लगभग छह-सात दिन लगता है। यद्यपि फिक्स डिपाजिट की रसीद जारी करने में छह-सात दिन का समय लगना भी स्वीकार योग्य नहीं है, परन्तु यदि इस अवधि को स्वीकार भी कर लिया जाए तब भी चेक दि. 19.12.07 को पुन: प्रस्तुत हुआ और स्वीप इन एफ.डी.आर. का बनाया जाना दि. 08.12.07 का दर्शाया गया है तब भी यह 7 दिन की अवधि के बाद चेक को वापस किया गया है जो विपक्षी बैंक के कथनानुसार भी उस अवधि के बाद का था, जबकि फिक्स डिपाजिट बन जाना चाहिए था। इस प्रकार निश्चित रूप से बैंक द्वारा सेवा में कमी की गई है। विपक्षी ने परिवादी के शिकायती पत्र पर यह स्वीकार किया है कि फिक्स डिपाजिट बनने में देरी हुई और इसके लिए उन्होंने अपने पत्र दि. 03.03.2008 द्वारा खेद भी व्यक्त किया। विपक्षी द्वारा स्वयं अपने शपथपत्र में स्वीकार किया है कि उनके द्वारा जो चेक रिटर्न चार्जेस रू. 900/- काटे गए थे उन्हें परिवादी को वापस किया गया है।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि परिवादी की स्वीप इन फिक्स डिपाजिट होते हुए भी विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी द्वारा निर्गत चेकों को फंड अपर्याप्त दर्शाकर अनादृत किया गया है, जो निश्चित रूप से बैंक की सेवा में कमी को दर्शाता है।
परिवादी ने इन दो चेकों की वापसी के सापेक्ष हानि के रूप में विभिन्न मदों में रू. 2112800/- की धनराशि का अनुतोष चाहा है, यह अनुतोष क्षतिपूर्ति के रूप में बहुत अधिक है और ऐसा प्रतीत होता है कि परिवादी क्षतिपूर्ति प्राप्त न कर अपने व्यापार में लाभ के रूप में बड़ी धनराशि बैंक से प्राप्त करना चाहता है। उसके द्वारा रू. 540000/- के व्यापार में क्षति के रूप में मांगा गया है, जिसका कोई साक्ष्य व आधार नहीं है। इसी प्रकार विश्वसनीयता एवं प्रतिष्ठा और छवि में हुए हानि के मद में दस लाख रूपये मांगे गए हैं, जिसका भी कोई आधार व साक्ष्य पत्रावली पर नहीं दिया गया है। कोई क्षतिपूर्ति उपभोक्ता को हुए हानि के सापेक्ष ही दी जा सकती है। परिवादी ने केवल दो चेक रू. 25000/- व रू. 50000/- की निर्गत की थी, जो कि बैंक द्वारा भुगतान नहीं की गई। बैंक द्वारा इस संबंध में खेद भी व्यक्त किया गया और अपनी गलती भी मानी है तथा लिखित रूप में भी इसे अपनी सेवा में कमी के बारे में अवगत कराया है और चेक रिटर्न
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चार्जेस भी वापस कर दिए गए हैं, अत: हम यह पाते हैं कि बैंक ने जो सेवा में कमी कारित की है उसके लिए रू. 10000/- की धनराशि क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाया जाना न्याय के उद्देश्य की पूर्ति करेगा। इसके अतिरिक्त परिवाद व्यय के रूप में विपक्षी परिवादी को रू. 5000/- की धनराशि भी अदा करेगा। तदनुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वे परिवादी को रू. 10000/- की धनराशि क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करें तथा इसके अतिरिक्त परिवाद व्यय के रूप में विपक्षी परिवादी को रू. 5000/- की धनराशि भी अदा करेगा।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-2