(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1170/2008
(जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-220/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.5.2008 के विरूद्ध)
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया द्वारा लीगल मैनेजर (लीगल डिपार्टमेंट), डिविजनल आफिस, एलआईसी बिल्डिंग, हजरतगंज, लखनऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम
1. गुरजीत सिंह हसपाल पुत्र श्री जोगिन्दर सिंह, निवासी सी-29, मॉडल टाऊन थाना कोतवाली जिला गाजियाबाद।
2. श्रीमती कुसुम माथुर, निवासिनी 9/75 नं0-3, राजेन्द्र नगर, साहिबाबाद, जिला गाजियाबाद।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-2
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजय जायसवाल।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री नवीन तिवारी।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 21.05.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-220/2005, गुरजीत सिंह हसपाल बनाम मण्डलीय प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.5.2008 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए बीमित राशि 12 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है। मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 10,000/-रू0 एवं परिवाद व्यय के रूप में अंकन 5,000/-रू0 भी अदा करने के लिए आदेशित किया है।
2. अपीलार्थी तथा प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्तागण को सुना तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने विपक्षी बीमा निगम से अपने पुत्र राज हसपाल के जीवन पर अंकन 5 लाख रूपये का बीमा दिनांक 28.3.1995 को कराया था। बीमित अवधि के दौरान दिनांक 14.2.1996 को बदमाशों ने परिवादी के पुत्र का अपहरण कर लिया, जिसका मुकदमा दिनांक 15.2.1996 को दर्ज कराया गया। पुत्र के अपहरण के बाद भी परिवादी ने बीमा की किस्त को दिनांक 28.12.1996 को जमा कराया, इसके बाद एजेंट की सलाह पर किस्त अदा करना बंद कर दिया, जिसकी सूचना दिनांक 17.11.1997 को विपक्षी कार्यालय को भी दी गयी। दिनांक 17.9.1998 को बीमा राशि की अदायगी के लिए बीमा दावा प्रस्तुत किया गया, इसके बाद दिनांक 30.4.2001 एवं दिनांक 18.9.2001 को भी प्रत्यावेदन दिए गए, परन्तु दावा अस्वीकार कर दिया गया, जबकि सिविल मृत्यु का प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत कर दिया गया था।
4. बीमा निगम का कथन है कि बीमा की देय किस्त जमा नहीं की गईं, केवल दो वर्ष तक प्रीमियम दिया गया है। नियमित रूप से किस्त अदा नहीं की गई। प्रीमियम अदा न करने के कारण बीमा पालिसी अस्तित्व में नहीं थी।
5. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने बीमा पालिसी की शर्तों की स्पष्ट व्याख्या की गई है और शर्त संख्या 12 के अनुसार तीन वर्ष तक लगातार किस्त अदा न करने के कारण लाभांश प्राप्त करने का अधिकारी बीमाधारक को नहीं माना गया। प्रस्तुत केस में चूंकि बीमित व्यक्ति का अपहरण हो चुका था, इसलिए नियमित रूप से किस्तों का भुगतान करना बाध्यकारी नहीं था। यद्यपि बीमा क्लेम सिविल मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के पश्चात ही अदा किया जा सकता था, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
6. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2