राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-203/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्या 61/2014 में पारित आदेश दिनांक 31.12.2015 के विरूद्ध)
Iffco Tokio Gen. Insurance Co.
Ltd., Iffco House, 3rd Floor, 34,
Nehru Place, New Delhi-110019
through its Manager. .................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Gulsher, Son of Sri Noor Baksh,
R/O House No. 371, Village &
Post Gaamoti, Tehsil Kher,
District Aligarh. .................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अशोक मेहरोत्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 10.04.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-61/2014 गुलशेर बनाम प्रबन्धक, इफ्को टोकियो जनरल इन्श्योरेन्स कं0लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, अलीगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 31.12.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित
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किया है:-
''परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को बीमित धनराशि मु0 365730/-रू0 का भुगतान करें मानसिक व शारीरिक क्षति के रूप में 1,000/-रू0 व वाद व्यय के रूप में 1,000/-रू0 का भुगतान करें। उपरोक्त भुगतान के लिये विपक्षीगण संयुक्त रूप से तथा पृथक-पृथक रूप से जिम्मेदार होंगे।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी इफ्को टोकियो जनरल इन्श्योरेन्स कं0लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक मेहरोत्रा और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने घरेलू कार्य के लिए एक मैक्स मैक्जीमो सवारी गाड़ी विपक्षी संख्या-3 से 2,70,000/-रू0 ऋण लेकर क्रय किया था और विपक्षी संख्या-3 ने विपक्षी संख्या-1 बीमा कम्पनी से प्रत्यर्थी/परिवादी के उक्त वाहन का अपने कार्यालय में
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ही बीमा कराया था। वाहन का बीमित मूल्य 3,65,730/-रू0 था और बीमा पालिसी नं0 82419839 है तथा बीमा अवधि दिनांक 07.12.2012 से दिनांक 06.12.2013 तक थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि बीमा अवधि में ही दिनांक 11.11.2013 की रात्रि को उसका उपरोक्त वाहन घर में खड़ा था। सुबह को उसके बच्चे जब पशु बांधने घर में आए तो देखा कि वाहन वहॉं मौजूद नहीं था। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन की तलाश की, परन्तु वाहन नहीं मिला तब उसने थाना खैर में दिनांक 12.11.2013 को करीब 7 बजे घटना की सूचना दी और उसी दिन बीमा कम्पनी को भी गाड़ी चोरी होने की सूचना फोन से दे दी। सूचना देने के बाद विपक्षीगण संख्या-1 और 2 की बीमा कम्पनी ने उसके वाहन का क्लेम नं0 33710131 दर्ज किया और जांच हेतु सर्वेयर आए। उन्होंने आवश्यक कागजात उससे प्राप्त किए तथा गाड़ी की दोनों चाबी अपने साथ ले गए और आश्वासन दिया कि शीघ्र ही गाड़ी के क्लेम का भुगतान कर दिया जाएगा।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्या-1 बीमा कम्पनी द्वारा नामित सर्वेयर मैसर्स भोला एसोसियेट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की गाड़ी की डिग्गी का शीशा अक्टूबर 2013 में टूटा था, जिसको उसने नहीं बदलवाया, जबकि वास्तविकता यह है कि सर्वेयर फरवरी 2014 में जांच में आए थे और उस समय गाड़ी चोरी हो
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चुकी थी। अत: अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा सर्वेयर की आख्या पर जो नो क्लेम कर निरस्त किया है, वह उचित नहीं है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष वाहन की बीमित धनराशि दिलाए जाने हेतु प्रस्तुत किया है और क्षतिपूर्ति की भी मांग की है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या-2 बीमा कम्पनी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि वाहन की चोरी होने की सूचना प्राप्त होने पर विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष सर्वेयर भोला एण्ड एसोसियेट से जांच करायी गयी तो जांच में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा सर्वेयर को बताया गया कि दिनांक 20.09.2013 के करीब उसकी गाड़ी की पिछली डिग्गी का शीशा किसी ने ईंट मारकर तोड़ दिया था। उसके बाद उसने नया शीशा नहीं लगवाया और शीशा लगवाये बिना उसे चलवाता रहा। इस प्रकार वाहन स्वयं उसकी लापरवाही के कारण कथित रूप से चोरी हुआ है। अत: उसने वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किया है, जो बीमा पालिसी का उल्लंघन है। अत: विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा उचित आधार पर अस्वीकार किया है।
अपने लिखित कथन में विपक्षी संख्या-2 बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि चोरी की घटना दिनांक 11-12/06/2004 की बतायी गयी है, जबकि घटना की रिपोर्ट थाने में दिनांक 16.06.2014 को 04 दिन बाद विलम्ब से
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दर्ज करायी गयी है। अत: विलम्ब से सूचना दिए जाने के आधार पर भी प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा निरस्त किए जाने योग्य है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा लापरवाही व असावधानी नहीं बरती गयी है। उसने पालिसी की शर्त 5 का उल्लंघन नहीं किया है। विपक्षी बीमा कम्पनी ने उसका दावा बिना किसी विधिक कारण के निरस्त किया है। अत: विपक्षी बीमा कम्पनी ने उसका दावा निरस्त कर सेवा में कमी की है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत वाहन अनअटेंडेड रखा था, जबकि उसकी डिग्गी का शीशा टूटा था और उसने उसे बदलवाया नहीं था। ऐसी स्थिति में उसने वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किए हैं, जिससे वाहन चोरी हुआ है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि बीमा पालिसी की शर्त 5 के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का यह दायित्व था कि वह वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय करता, परन्तु वह अपने दायित्व का निर्वहन करने में असफल रहा है। अत: बीमा पालिसी की शर्त 5 का उल्लंघन होने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा कम्पनी द्वारा निरस्त किया जाना
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उचित है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने जो परिवाद स्वीकार कर बीमित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को अदा करने हेतु आदेशित किया है वह विधि की दृष्टि से उचित नहीं है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत वाहन की चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट भी विलम्ब से दर्ज करायी है, जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है। अत: इस आधार पर भी दावा बीमा निरस्त किया जाना उचित है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद निरस्त किया जाना आवश्यक है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया है, जो संलग्न पत्रावली है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन चोरी के समय घर के अन्दर खड़ा किया गया था जहॉं से वाहन चोरी किया गया है। अत: यह कहना उचित नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किए हैं।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी की घटना की रिपोर्ट दिनांक 12.11.2013 को करीब 7 बजे सम्बन्धित थाना पुलिस में
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बिना किसी विलम्ब के किया है। अत: यह कहना उचित नहीं है कि उसने पुलिस में घटना की रिपोर्ट विलम्ब से दर्ज करायी है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया है कि पेपर सं0 5क/2 तहरीर से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 12.11.2013 को तहरीर थाने में दाखिल की थी, परन्तु पुलिस द्वारा जांच कर दिनांक 16.11.2013 को एफ0आई0आर0 दर्ज की गयी है। जिला फोरम के निर्णय में उल्लिखित इस तथ्य का खण्डन अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से नहीं किया गया है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत वाहन की चोरी की सूचना दिनांक 12.11.2013 को थाने में 7 बजे दिया है। वाहन चोरी की घटना दिनांक 11/12.11.2013 की रात की बतायी गयी है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने सुबह को जानकारी होने पर वाहन तलाश किया और जब वाहन नहीं मिला तब दिनांक 12.11.2013 को थाने में करीब 7 बजे सायं सूचना दिया है।
उपरोक्त तथ्यों पर विचार करते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट को विलम्बपूर्ण नहीं कहा जा सकता है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के सर्वेयर भोला एण्ड एसोसियेट ने प्रत्यर्थी/परिवादी एवं अन्य के बयान के आधार पर अपनी जांच में वाहन चोरी की घटना सही पाया है, परन्तु यह
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उल्लेख किया है कि वाहन की डिग्गी का शीशा दिनांक 20.09.2013 को टूट गया था, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने उसे ठीक नहीं कराया, जिससे वाहन को आसानी से चुराया जा सका है। सर्वेयर की आख्या से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत वाहन प्रत्यर्थी/परिवादी के घर पर खड़ा था और लॉक था। अत: वाहन की डिग्गी का शीशा टूटने पर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उसे न बनवाये जाने के कारण यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किए हैं। वाहन की डिग्गी का शीशा टूटा था, परन्तु वाहन प्रत्यर्थी/परिवादी के घर पर सुरक्षित रूप से खड़ा किया गया था। अत: यह कहना उचित नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किए हैं, जिससे प्रश्नगत वाहन की चोरी हुई है।
उपरोक्त विवेचना एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0 15611/2017 ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व अन्य के वाद में पारित निर्णय दिनांक 04.10.2017 में प्रतिपादित सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने जो निष्कर्ष अंकित किया है वह उचित और युक्तिसंगत है। उसमें किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत चोरी की घटना के समय वाहन प्रत्यर्थी/परिवादी के घर पर खड़ा था और प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन का बीमा वाहन की सुरक्षा हेतु कराया है
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न कि व्यापार के लिए। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी का उपभोक्ता है और उसे परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।
वाहन की प्रश्नगत बीमा पालिसी में वाहन का बीमित मूल्य 3,47,444/-रू0 है, परन्तु जिला फोरम ने वाहन का बीमित मूल्य 3,65,730/-रू0 मानकर तदनुसार अदायगी का आदेश पारित किया है। अत: जिला फोरम का निर्णय बीमा पालिसी में वाहन के अंकित बीमित मूल्य के अनुसार संशोधित किए जाने योग्य है।
जिला फोरम ने 1,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति दिलाया है और 1,000/-रू0 वाद व्यय दिया है। जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को बीमित धनराशि पर कोई ब्याज नहीं दिया है। अत: जिला फोरम ने जो मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया है उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान की गयी वाद व्यय की धनराशि भी अधिक नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश संशोधित किए जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित
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आक्षेपित निर्णय व आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन की बीमित धनराशि 3,47,444/-रू0 का भुगतान करे। साथ ही जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान की गयी मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति 1000/-रू0 और वाद व्यय 1000/-रू0 भी अदा करे।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/-रू0 अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1