Greeviyence Kameti,HDFC Standard Life Insu Com. LTD. V/S Shri Ritesh Saxena
Shri Ritesh Saxena filed a consumer case on 10 May 2018 against Greeviyence Kameti,HDFC Standard Life Insu Com. LTD. in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/166/2010 and the judgment uploaded on 15 May 2018.
Uttar Pradesh
Muradabad-II
CC/166/2010
Shri Ritesh Saxena - Complainant(s)
Versus
Greeviyence Kameti,HDFC Standard Life Insu Com. LTD. - Opp.Party(s)
10 May 2018
ORDER
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
परिवाद संख्या-166/2010
रितेश सक्सैना आयु लगभग 33 वर्ष पुत्र श्री शमशेर बहादुर सक्सैना हाल निवासी म.नं.-1/2 हाइडिल कालोनी निकट लोको शेड मुरादाबाद(उ.प्र.)। ….....परिवादी
बनाम
1-ग्रीवयैंस कमेटी एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. पांचवां तल यूरेका टावर माइन्डस्पेस लिंक रोड मलाड(पश्चिम) मुम्बई-400064
2-मैनेजर एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस के सामने मुरादाबाद। …....विपक्षीगण
वाद दायरा तिथि: 06-10-2010 निर्णय तिथि: 10.05.2018
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षीगण से उसे क्रिटीकल इलनैस बैनेफिट के अधीन ली गई बीमा पालिसी के अन्तर्गत 10 लाख रूपये दिलाये जायें। क्षतिपूर्ति तथा परिवाद व्यय परिवादी ने अतिरिक्त मांगा है।
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी-2 से क्रिटीकल इलनैस इंश्योरेंस पालिसी लेने हेतु दिनांक 25-02-2009 को आवेदन किया था। मेडिकल टेस्ट और मेडिकल एक्जामिनेशन अपनी देख-रेख में कराने के उपरान्त विपक्षीगण ने परिवादी को दिनांक 31-03-2009 को पालिसी सं.-12692062 जारी की। पालिसी 20 साल के लिए थी और इस पालिसी के अधीन अनुमन्य धनराशि 10 लाख रूपये थी। पालिसी परिवादी ने जब ली, उस समय वह पूरी तरह स्वस्थ था। अक्टूबर, 2009 में परिवादी का स्वास्थ्य खराब हो गया। दिनांक 13-10-2009 से 15-10-2009 की अवधि हेतु वह सांई अस्पताल, मुरादाबाद में इलाज हेतु भर्ती रहा, वहां से उसे इलाज हेतु फोर्टीज अस्पताल, नोएडा जाने की सलाह दी गई। फोर्टीज अस्पताल, नोएडा में परिवादी को किडनी प्राब्लम होने की पुष्टि हुई, उसके पिता ने अपने पत्र दिनांकित 11-11-2009 द्वारा विपक्षी-2 को बीमारी की सूचना दी, उक्त पत्र विपक्षी-2 को मिल गया। विपक्षीगण ने परिवादी की कोई सहायता नहीं की बल्कि वे परिवादी के स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां इकठ्ठा करने में लगे रहे। दिनांक 13-01-2010 को फोर्टीज अस्पताल, नोएडा में परिवादी की एक किडनी ट्रांसप्लांट हुई, जिसमें 10 लाख रूपये से अधिक का खर्च हुआ, परिवादी का ट्रीटमेंट अब भी चल रहा है। परिवादी ने अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट से संबंधित सभी दस्तावेज विपक्षीगण को भेजे, इसके बावजूद विपक्षी-1 ने अपने पत्र दिनांकित 07-01-2010 द्वारा परिवादी की पालिसी को शुन्य घोषित कर दिया। परिवादी ने बीमा दावा अस्वीकृत करने के निर्णय के विरूद्ध दिनांक 04-5-2010 को विपक्षीगण के समक्ष प्रत्यावेदन दिया, जिसका विपक्षीगण ने कोई उत्तर नहीं दिया। परिवादी ने यह कहते हुए कि विपक्षीगण के कृत्य सेवा में कमी हैं और उसकी बीमा पालिसी गलत तरीके से शुन्य घोषित की गई है, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की।
परिवाद के साथ परिवादी द्वारा सूची कागज सं.-3/5 के माध्यम से प्रश्नगत बीमा पालिसी का सर्टिफिकेट, सांई अस्पताल, मुरादाबाद में दिनांक 12-10-2009 से 15-10-2009 की अवधि में कराये गये इलाज विषयक डिस्चार्ज समरी, परिवादी के पिता द्वारा परिवादी की बीमारी सूचित करने हेतु विपक्षी-2 को भेजे गये पत्र, फोर्टीज अस्पताल, नोएडा में दिनांक 12-01-2010 से 21-01-2010 की अवधि में हुए परिवादी के इलाज की डिस्चार्ज समरी, प्रश्नगत बीमा दावा अस्वीकृत किये जाने संबंधी विपक्षीगण का पत्र दिनांकित 07-04-2010, विपक्षीगण के समक्ष परिवादी द्वारा भेजे गये प्रतिवेदन तथा इस प्रतिवेदन को भेजे जाने की डाक रसीद की छायाप्रतियों को दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/6 लगायत 3/22 हैं।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-14/1 लगायत 14/4 दाखिल हुआ, जिसमें यह तो स्वीकार किया गया कि बीमा प्रस्ताव में उल्लिखित प्रश्नों के परिवादी द्वारा दिये गये उत्तर को सही मानते हुए परिवदी को प्रश्नगत पालिसी जारी की गई थी किन्तु शेष परिवाद कथनों से इंकार किया गया। अग्रेत्तर कथन किया गया कि बीमा पालिसी बीमा प्रस्ताव में उल्लिखित बातों को सही मानते हुए सद्भावना के आधार पर जारी की गई थी। परिवादी ने पालिसी लेने के समय पूर्व की अपनी बीमारी को छिपाया कि वह गुर्दे की गंभीर बीमारी से पीडि़त है। परिवादी को विपक्षीगण के विरूद्ध कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ। बीमा प्रस्ताव भरते समय परिवादी को यह जानकारी थी कि वह गंभीर किडनी की बीमारी से ग्रसित है किन्तु उसने इस तथ्य को छिपाया। यह तथ्य मटेरियल फैक्ट की श्रेणी में आता है, जिसके छिपाने के कारण विपक्षीगण ने परिवादी की पालिसी को शुन्य घोषित कर दिया। परिवादी का बीमा दावा खारिज करके विपक्षीगण ने कोई त्रुटि नहीं की, विपक्षीगण ने परिवाद को सव्यय खारिज करने की प्रार्थना की।
परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-18/1 लगायत 18/6 दाखिल किया, जिसके साथ उसने बतौर संल्ग्नक बीमा पालिसी तथा पालिसी की शर्तों को दाखिल किया, ये संलग्नक पत्रावली के कागज सं.-18/7 लगायत 18/11 हैं। इस साक्ष्य शपथपत्र के पैरा-1 में परिवादी ने पूर्व में दाखिल अपने शपथपत्र कागज सं.-12/1 लगायत 12/5 में उल्लिखित कथनों को पुष्ट करते हुए उसके साथ दाखिल संलग्नकों कागज सं.-12/6 लगायत 12/85 को भी साक्ष्य में अंगीकृत किया है। परिवादी ने सूची कागज सं.-20/2 लगायत 20/3 के माध्यम से दाखिल बिल वाउचर्स की छायाप्रतियों को प्रार्थना पत्र कागज सं.-20/1 के माध्यम से दाखिल करते हुए कथन किया कि ये रसीदें आपरेशन के उपरान्त उसके इलाज में हुए खर्चों की हैं।
विपक्षीगण की ओर से बीमा कंपनी के सर्किल हेड श्री अवनीश कुमार मिश्रा का साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-21/1 लगायत 21/3 दाखिल हुआ, जिसके साथ बतौर संलग्नक बीमा प्रस्ताव फार्म, फोर्टीज अस्पताल, नोएडा की डिस्चार्ज समरी तथा रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 07-4-2010 की छायाप्रतियों को दाखिल किया है, ये संलग्नक पत्रावली के कागज सं.-21/4 लगायत 21/6 हैं।
परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की। विपक्षीगण की ओर से लिखित बहस दाखिल नहीं हुई।
हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षीगण की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं हुए।
इस बिन्दु पर पक्षकारों के मध्य कोई विवाद नहीं है कि परिवादी के आवेदन पर विपक्षीगण ने दिनांक 31-3-2009 को एक क्रोनिकल इलनैस बेनीफिट पालिसी परिवादी के नाम जारी की थी। परिवादी के बीमा प्रस्ताव फार्म दिनांकित 25-02-2009 में यह उल्लेख नहीं है कि उसे कभी भी गुर्दे, प्रोस्टेट, हाइड्रोसील अथवा यूरीनरी सिस्टम संबंधी कोई बीमारी है। बीमा प्रस्ताव की नकल पत्रावली का कागज सं.-21/4 लगायत 21/10 है। परिवादी द्वारा दाखिल अभिलेखों से प्रकट है कि दिनांक 12-10-2009 से 15-10-2009 के मध्य परिवादी सांई अस्पताल, मुरादाबाद में बीमारी के संबंध में भर्ती रहा। सांई अस्पताल की डिस्चार्ज समरी पत्रावली का कागज सं.-3/7 है। सांई अस्पताल में यह डायग्नोसिस हुआ कि परिवादी को हाईपरटेंशन और रीनल फेलयोर है। फोर्टीज अस्पताल, नोएडा में परिवादी दिनांक 12-01-2010 से 21-01-2010 तक इलाज हेतु भर्ती रहा, जहां उसकी किडनी ट्रांसप्लान्ट हुई। फोर्टीज अस्पताल की डिस्चार्ज समरी की नकल दोनों ही पक्षों ने पत्रावली पर दाखिल की है।
फोर्टीज अस्पताल की डिस्चार्ज समरी में परिवादी के क्रोनिक किडनी डिसीज स्टेज-V से पीडि़त होने का उल्लेख है। उसकी फोर्टीज अस्पताल में किडनी भी ट्रांसप्लांट हुई। फोर्टीज अस्पताल के चिकत्सक जिन्होंने परिवादी का इलाज व किडनी ट्रांसप्लांट की थी, उनके प्रिस्क्रिप्शन की नकल पत्रावली का कागज सं.-21/14 है। परिवादी का आपरेशन करने वाले फोर्टीज अस्पताल के इस चिकित्सक ने अपने प्रिस्क्रिप्शन दिनांकित 09-11-2009 में इस बात का उल्लेख किया है कि परिवादी क्रोनिकल किडनी डिसीज और हाईपरटेंशन से पीडि़त है। प्रस्ताव फार्म परिवादी ने दिनांक 25-02-2009 को भरा था। विपक्षीगण के अनुसार जब परिवादी ने बीमा प्रस्ताव भरा था, उसके शरीर में ये बीमारियां विद्यमान थीं, जिन्हें परिवादी ने बीमा प्रस्ताव भरते समय छिपाया। विपक्षीगण के के अनुसार चूंकि परिवादी ने बीमा प्रस्ताव भरते समय पूर्व विद्यमान बीमारियों को छिपाया था, अतएव उसका बीमा दावा और बीमा पालिसी को शुन्य घोषित करके विपक्षीगण ने कोई त्रुटि नहीं की है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि परिवादी को हाईपरटेंशन है तथा उसका रीनल फेलयोर है, यह बात परिवादी को सर्वप्रथम सांई अस्पताल मुरादाबाद में तब पता चली जब इलाज के सिलसिले में वह दिनांक 12-10-2009 से 15-10-2009 के मध्य वहां भर्ती हुआ था। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि विपक्षीगण कोई भी ऐसा चिकित्सीय प्रपत्र अथवा अभिलेखीय प्रमाण फोरम के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाये, जिसके आधार पर यह माना जा सके कि परिवादी को इन बीमारियों की जानकारी बीमा प्रस्ताव भरते समय थी और उसने जानबूझकर इन बीमारियों को छिपाया था। उनका यह भी तर्क है कि फोर्टीज अस्पताल, नोएडा की डिस्चार्ज समरी के पृष्ठ-21/11 पर परिवादी को क्रोनिक किडनी डिसीज स्टेज-V होना परिवादी का इलाज करने वाले चिकित्सक का ‘’Pre operative Assessment’’ है। मात्र उनके इस असिस्मेंट के आधार पर अन्य किसी साक्ष्य के अभाव में यह नहीं माना जा सकता है कि परिवादी को इन बीमारियों की जानकारी बीमा प्रस्ताव भरते समय थी।
II(1997)सीपीजे पृष्ठ-1(एनसी), न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. बनाम पी पी खन्ना की निर्णयज विधि में माननीय राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि बीमित ने बीमा प्रस्ताव भरते समय बीमा से संबंधित मैटेरियल फैक्ट को जानबूझकर छिपाया है इस बात को सिद्ध करने का उत्तरदायित्व बीमा कंपनी का होता है। वर्तमान मामले में विपक्षीगण ऐसा कोई साक्ष्य अथवा अभिलेख प्रस्तुत नहीं कर पाये, जिससे यह प्रमाणित होता हो कि परिवादी ने हाईपरटेंशन तथा गुर्दे की अपनी बीमारी को बीमा प्रस्ताव भरते समय छिपाया था।
I (2016) सी0पी0जे0 पृष्ठ-613 (एन.सी.), सतीश चन्दर मदान बनाम बजाज एलियांज जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली ने निम्न व्यवस्था दी है-
“Hypertension is a common aiment and it can be controlled by medication”
14- मा0 राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा III (2014) सी0पी0जे0 पृष्ठ-340 (एन.सी.), न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम राकेश कुमार के मामले के निर्णय के पैरा सं0-7 में डायबटीज तथा हाईपरटेंशन के सन्दर्भ में निम्न अभिमत दिया गया है :-
“ We have referred medical literature on the subject of diabetes and noted that, in some cases of diabetes, there are no symptoms. People can live for months, even years, without knowing they have the disease and it is often discovered accidentally after routine medical check-ups or following screening tests for other conditions. Hence, there are more chances that the complainant might have developed diabetes and hypertension after taking the policy thus, we do not find any concealment made by the complainant.”
- विपक्षीगण की ओर से पत्रावली पर ऐसा कोई चिकित्सीय प्रपत्र दाखिल नहीं किया गया है जिससे यह प्रमाणित हो कि प्रश्नगत पालिसी लेने से पूर्व बीमित ने हाइपरटेंशन अथवा गुर्दे की बीमारी का इलाज कराया था ऐसी दशा में यह स्वीकार किऐ जाने योग्य नहीं है कि परिवादी ने बीमा पालिसी लेते समय बीमा प्रपोजल फार्म में तत्सम्बन्धी बीमारी को छिपाया था। जहॉं तक हाईपरटेंशन का प्रश्न है सांई अस्पताल की डिस्चार्ज समरी में परिवादी को हाईपरटेंशन होने का उल्लेख चिकित्सक का मात्र क्लीनिकल डायग्नोसिस है और इसके आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी को बीमा प्रस्ताव फार्म भरते समय इस बीमारी की जानकारी थी। जैसा कि II (2009) सी0पी0जे0 पृष्ठ-116 लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया बनाम कमला गुप्ता के मामले में मा0 राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, जयपुर द्वारा अवधारित किया गया है। हाईपरटेंशन एक life style disease है जो दवाओं द्वारा नियन्त्रित की जा सकती है।
16- I(2016) सी0पी0जे0 पृष्ठ-91 (एन0सी0) मैट लाइफ इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम यू0 श्रीनिवासा राव के मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि यदि बीमा प्रपोजल फार्म भरते समय बीमित को अपनी बीमारी की कोई जानकारी न हो तो यह आरोप लगाकर कि उसने बीमा प्रस्ताव में बीमारी को छिपाया था, उसका बीमा दावा अस्वीकृत नहीं किया जा सकता।
17-II (2001) सी0पी0जे0 पृष्ठ-246 सीनियर डिविजनल मैनेजर लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन बनाम शीला के मामले में मा0 पंजाब राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, चण्डीगढ़ द्वारा निम्न व्यवस्था दी गई है:-
“ Mere history given in the hospiial by someone is of no consequence. History alone cannot be treated as a valid ground to repudiate the claim.”
18-उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि परिवादी ने बीमा प्रस्ताव फार्म भरते समय किसी बीमारी को नहीं छिपाया था। विपक्षीगण ने उसका बीमा दावा अस्वीकृत करके त्रुटि की।
19-परिवादी की बीमा पालिसी दिनांक 31-3-2009 से 30-3-2010 तक की अवधि हेतु प्रभावी थी। इस बीमा अवधि में परिवादी के इलाज पर हुए खर्चों की अदायगी की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की है। पत्रावली में अवस्थित फार्टीज अस्पताल नोएडा के इनपेंशेंट बिल की नकल कागज सं.-12/16 के अनुसार किडनी ट्रांसप्लांट पैकेज की मद में परिवादी द्वारा अंकन-4,39,116/-रूपये फोर्टीज अस्पताल को अदा किया थे। पत्रावली में अवस्थित बीमा अवधि के अन्य बिल लगभग अंकन-1,15,000/-रूपये के हैं। सांई अस्पताल, मुरादाबाद में परिवादी द्वारा अंकन-15,000/-रूपये अदा किये। बीमा अवधि में अन्य मेडिकल स्टोर के लगभग अंकन-11,000/-रूपये के बिल वाउचर जो परिवादी द्वारा अदा किये गये, उपलब्ध हैं। इस प्रकार परिवादी द्वारा बीमा अवधि में अपने इलाज के सिलसिले में व्यय की गई धनराशि कुल अंकन-5,80,116/-रूपये होती है। इस प्रकार की बीमारी के इलाज के सिलसिले में खर्च की गई प्रत्येक राशि का बिल वाउचर लेना तिमारदारों के लिए कई बार संभव नहीं होता। हम सुरक्षित रूप से यह मान सकते हैं कि बीमा अवधि में परिवादी के इलाज पर अंकन-6,00,000/-रूपये खर्च हुए थे। छ: लाख रूपये की यह धनराशि विपक्षीगण द्वारा परिवादी को अदा की जानी चाहिए। परिवादी की गंभीर बीमारी को देखते हुए विपक्षीगण द्वारा उसका बीमा दावा अस्वीकृत किये जाने के फलस्वरूप परिवादी को हुई मानसिक यंत्रणा की मद में परिवादी को क्षतिपूर्ति अंकन-25,000/-रूपये एकमुश्त दिलाया जाना भी हमारे मत में न्यायोचित दिखायी देता है। छ: लाख रूपये की धनराशि पर परिवादी को परिवाद योजित किये जाने की तिथि से 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
20-परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली पर अवस्थित सर्टिफिकेट कागज सं.-12/15 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और अनुरोध किया कि इस सर्टिफिकेट के अनुसार चूंकि परिवादी को आजीवन अपने इलाज के सिलसिले में लगभग 15 हजार रूपये प्रतिमाह खर्च करने होंगे। अतएव इस मद में भी परिवादी को समुचित धनराशि दिलायी जानी चाहिए। हम परिवादी पक्ष की ओर से दिये गये उक्त तर्क से सहमत नहीं हैं क्योंकि परिवादी की बीमा पालिसी क्रिटीकल इलनैस बेनेफिट पालिसी थी, जो दिनांक 31-3-2009 से 30-3-2010 तक की अवधि के लिए थी। बीमा अवधि के बाद परिवादी के इलाज पर होने वाले व्यय की अदायगी का बीमा पालिसी के अन्तर्गत विपक्षीगण का कोई दायित्व नहीं बनता है। अतएव सर्टिफिकेट कागज सं.-12/5 के आधार पर परिवादी द्वारा मांगी जा रही धनराशि उसे नहीं दिलायी जा सकती। उपरोक्तानुसार परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अंकन-6,00,000(छ: लाख) रूपये की धनराशि परिवादी, विपक्षीगण से पाने का अधिकारी होगा। क्षतिपूर्ति की मद में अंकन-25,000(पच्चीस हजार) रूपये और परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये परिवादी, विपक्षीगण से अतिरिक्त पाने का भी अधिकारी होगा। इस आदेशानुसार धनराशि का भुगतान परिवादी को आज की तिथि से दो माह के भीतर किया जाये।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
अध्यक्ष
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
अध्यक्ष
दिनांक: 10-05-2018
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