Uttar Pradesh

Faizabad

CC/299/2009

Rishi Parasar - Complainant(s)

Versus

GRAMIN BANK - Opp.Party(s)

28 May 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/299/2009
 
1. Rishi Parasar
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. GRAMIN BANK
mahboobganj faizabad
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

              परिवाद सं0-299/2009

               
ऋशि परासर स्वयं सहायता समूह पौसरा फैजाबाद परगना अमसिन तहसील सदर जिला फैजाबाद द्वारा अध्यक्ष ज्ञानेन्द्र मिश्रा पुत्र श्री स्व0 राम नरेष मिश्रा निवासी पौसरा एवं कोशाध्यक्ष राजेष कुमार पाठक पुत्र श्री लालता प्रसाद पाठक निवासी पौसरा परगना अमसिन तहसील सदर जिला फेजाबाद।                                    .............. याची
बनाम
बड़ौदा पूर्वी उत्तर प्रदेष ग्रामीण बैंक षाखा महबूबगंज जिला फैजाबाद द्वारा षाखा प्रबन्धक महोदय।                                                      ............. विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 28.05.2015            
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि सन 2002 में नाबार्ड योजना के अन्र्तगत परिवादी समूह का गठन किया गया। समूह के अध्यक्ष ज्ञानेन्द्र मिश्रा व कोशाध्यक्ष राजेष कुमार पाठक चुने गये और उन्हंे समिति के संचालन के समस्त अधिकार आय व्यय का लेखा जोखा व लेन देन का काम दिया गया। दिनांक 24.06.2002 को सी सी एल खाता संख्या 14 खोला गया जिसकी लिमिट रुपये 42,000/- निर्धारित की गयी। परिवादी समूह ने दिनांक 26.06.2002 को चेक संख्या 205531 द्वारा रुपये 5,000/- निकाला और दिनांक 31.03.2003 को उक्त रुपये 5,000/- जमा कर दिया। दिनांक 26.06.2003 को रुपये 3,000/- चेक संख्या 205532 से निकाला और दिनांक 05.09.2003 से लेकर 12-08-2004 तक रुपये 11,050/- विभिन्न तारीखों में जमा किया इस प्रकार परिवादी समूह की जमा धनराषि ऋण से अधिक जमा हो गयी। दिनांक 26.06.2004 को चेक संख्या 205533 द्वारा रुपये 7,000/- निकाला उस समय भी परिवादी समूह की जमा धनराषि बैंक से निकाली गयी धनराषि से अधिक जमा थी। परिवादी समूह ने दिनांक 16.06.2004 को रुपये 12,000/- एवं दिनांक 14.10.2005 को रुपये 1,633/- जमा किया एवं दिनांक 14-10-2005 को चेक संख्या 205535 से रुपये 10,000/- निकाला। इस गणना के अनुसार बैंक में जमा धनराषि अधिक जमा रही। इसी प्रकार परिवादी समूह द्वारा विभिन्न तारीखों में धनराषि जमा की जाती रही। कुल मिला कर परिवादी समूह ने विपक्षी के यहां रुपये 32,770/- जमा किया है तथा विपक्षी के यहां से मात्र रुपये 25,000/- निकाला है। इस प्रकार परिवादी समूह ऋण मुक्त हो गया है। परिवादी समूह ने मात्र चार बार धनराषि निकाली है। इसके अलावा कोई धनराषि नहीं निकाली गयी है। विपक्षी ने गलत इंदराज कर के परिवादी समूह को रुपये 22,028/- के बकाये का नोटिस दिया है जिसमें ब्याज भी षामिल है। परिवादी समूह ने बैंक जा कर जानकारी मांगी तो तीन चेकों को ही विपक्षी उपलब्ध करा सका चैथे चेेक संख्या 205531 को दिखाने से मना कर दिया और कहा कि उक्त चेक उनके यहां उपलब्ध नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त चेक पर मनमानी धनराषि अंकित कर दी गयी है और बार बार मांगने पर भी उक्त चेक नहीं दिखाया। इस प्रकार विपक्षी द्वारा परिवादी समूह से अनावष्यक रुप से धनवसूली का नोटिस भेजा है। विपक्षी द्वारा पूरी जानकारी न देने से परिवादी समूह ने विपक्षी को अपने अधिवक्ता के जरिए एक नोटिस दिया जिसके जवाब में विपक्षी ने बताया कि परिवादी समूह के जिम्मे रुपये 22,028/- बकाया हैं। विपक्षी ने इस दौरान आर0सी0 जारी की जिसमें ऋण धनराषि 64,028/- दर्षायी गयी है। विपक्षी के इस कृत्य से परिवादी समूह का विघटन हो गया, जिससे परिवादी समूह को रुपये 67,000/- की हानि हुई। परिवादी समूह को विपक्षी से रुपये 67,000/- क्षतिपूर्ति तथा परिवाद व्यय दिलाया जाय। 
    विपक्षी बैंक ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा कहा है कि परिवादी ने अपना परिवाद बड़ौदा पूर्वी उ0प्र0 ग्रामीण बैंक के विरुद्ध दाखिल किया है जब कि भारत सरकार ने नोटीफिकेषन कर के उक्त बैंक का नाम बदल दिया है अतः परिवादी का परिवाद इसी आधार पर खारिज किये जाने योग्य है। परिवादी ने अपना परिवाद कुल रुपये 67,000/- क्षतिपूर्ति के लिये दाखिल किया है जो असत्य, निराधार व गलत है इसलिये खारिज होने योग्य है। परिवादी समूह का गठन किया जाना उत्तरदाता को स्वीकार है। कथित पदाधिकारी भी स्वीकार हैं। परिवादी की लिमिट रुपये 42,000/- तथा सी सी एल खाता संख्या 14 भी स्वीकार है। परिवादी का यह कहना कि उसने दिनांक 26-06-2002 को चेक संख्या 205531 से रुपये 5,000/- निकाला है गलत व असत्य है। सही तथ्य यह है कि दिनांक 26.06.2002 को चेक संख्या 205531 से परिवादी ने रुपये 22,400/- अपने सी सी एल खाते से निकाला है। उत्तरदाता सी सी एल खाते में जमा व निकासी पर समय समय पर ब्याज लगाता है। परिवादी का कथन है कि उसने विभिन्न तिथियों में कुल रुपये 32,770/- जमा किया है यह तथ्य स्वीकार है। लेकिन परिवादी का यह कथन कि उसने मात्र रुपये 25,000/- निकाला है गलत है, जब कि परिवादी ने अपने सी सी एल खाते से कुल रुपये 42,400/- निकाले हैं। परिवादी का कथन है कि उसने केवल चार बार ही धन निकाला है यह भी सही है। चार बार में निकाली गयी रकम 22,400/- $ 3,000/- $ 7,000/- $ 10,000/- का योग रुपये 42,400/- होता है। उत्तरदाता द्वारा परिवादी को रुपये 22,028/- के बकाये की नोटिस भेजी गयी है। जिस पर दिनांक 01.09.2007 से जब जब डेबिट बैलेंस रहा है उस पर 13 प्रतिषत प्रतिवर्श त्रैमासिक अन्तराल पर ब्याज की गणना की गयी है जिसे परिवादी देने के लिये जिम्मेदार हैं। अपने विषेश कथन में विपक्षी बैंक ने कहा है कि दिनांक 22.10.2002 को विपक्षी बैंक में चोरी हो गयी थी, जिसमें तमाम लेजर व वाउचर चोरी चले गये थे। जिसमें सी सी एल खाते 14 का लेजर भी चोरी चला गया था। बैंक ने सम्बन्धित थाने में चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 23.10.2002 को लिखाई थी। चोरी के पूर्व षाखा प्रबन्धक श्री अखिलेष कुमार सक्सेना ने तमाम खातांे में अनियमिततायें की थी, जिसके सम्बन्ध में तत्कालीन षाखा प्रबन्धक श्री हीरा लाल कनौजिया ने एक अन्य प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के लिये प्रार्थना पत्र दिनांक 26-10-2002 को दिया था जो अपराध संख्या 383 सन 2002 अन्र्तगत धारा 409, 497, 468 भा.दं.सं. दर्ज हुआ उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट में दिनांक 22.10.2002 को षाखा में हुई चोरी का भी जिक्र है और उक्त केस श्री अखिलेष कुमार सक्सेना के विरुद्ध न्यायालय मंे लंबित है और वह बैंक से निलंबित हैं। बैंक से लेजर वाउचर आदि चोरी हो जाने के कारण विपक्षी बैंक ने सभी जमा, एफ डी आर, बचत खाता, ऋण खाता आदि के लेजर को बैंक में उपलब्ध रिकार्ड तथा पेमेंट बुक, क्रेडिट स्क्रोल, ग्राहकों द्वारा प्रस्तुत पास बुक की इन्ट्री के आधार पर सभी लेजर व रिकार्ड रिकन्स्ट्रक्ट कराये और उसी के आधार पर जमाकर्ताओं, बचत खाता धारकों तथा अन्य फिक्स डिपाजिट होल्डरों को ब्याज अदा किया है। जिसमें परिवादी का सी सी एल खाता भी रिकन्स्ट्रक्ट कराया गया। परिवादी द्वारा दिनांक 26.06.2002 को रुपये 22,400/- निकाले जाने का लेखा है। दिनांक 08-03-2003 को कोशाध्यक्ष राजेष कुमार पाठक को सी सी एल खाते की द्वितीय पास बुक जारी की गयी जिसमें राजेष कुमार पाठक ने रिकन्स्ट्रक्टेड लेजर पर अपने हस्ताक्षर बनाये हैं। परिवादी के खाते का चेक रुपये 22,400/- चोरी चले जाने के कारण परिवादी छः वर्शों बाद नाजायज फायदा उठाने के लिये इस बात को उठा रहा है। परिवादी ने अपने खाते का संचालन नियमानुसार नहीं किया है तथा बैंक से निकाले गये रुपयों की अदायगी नहीं करना चाहता है इसलिये खाते का संचालन भी बन्द कर दिया है। परिवादी बैंक से निकाले गये रुपये व ब्याज जमा करने के लिये उत्तरदायी है। विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी से लिखित व मौखिक रुप से बैंक का बकाया जमा करने को कहा है मगर परिवादी ने बकाया जमा नहीं किया है। बैंक के पास वसूली प्रक्रिया अपनाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। परिवादी का परिवाद निराधार व गलत तथ्यों पर आधारित है जो कि सव्यय खारिज किये जाने योग्य है। 
    परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना एवं विपक्षी को बहस के लिये मौका दिया गया किन्तु विपक्षी की ओर से निर्णय के पूर्व तक किसी ने भी उपस्थित हो कर अपनी बहस नहीं की। अतः परिवाद का निर्णय गुण दोश के आधार पर पत्रावली का भली भंाति परिषीलन करने के बाद किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में राजेष कुमार पाठक कोशाध्यक्ष का षपथ पत्र, सी सी एल खाते में रुपये जमा किये जाने की कुछ मूल रसीदें, वसूली प्रमाण पत्र की मूल प्रति, बैंक की डिमाण्ड नोटिस रुपये 22,028/- की मूल प्रति, परिवादी के नोटिस की बैंक द्वारा उत्तर की मूल प्रति, परिवादी के पत्र दिनांक 26.08.2009 की छाया प्रति, परिवादी समूह के सदस्यों के नाम बैंक द्वारा जारी डिमाण्ड नोटिस की मूल प्रतियां तथा परिवादी समूह ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी बैंक ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षी द्वारा दाखिल प्रपत्रों से प्रमाणित है कि विपक्षी बैंक में चोरी हुई थी जिसमें कई लेजर व अन्य कागजात चोरी चले गये थे जिसकी प्रथम सूचना बैंक ने थाने में लिखाई थी। परिवादी समूह ने विपक्षी बैंक का रुपया बकाया अदा नहीं किया है जिसे वह अदा करने के लिये उत्तरदायी है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। 
आदेश
    परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।  
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                   अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 28.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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