Uttar Pradesh

Chanduali

CC/59/2015

Shravan Kumar - Complainant(s)

Versus

Gram panchayat - Opp.Party(s)

14 Jul 2016

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/59/2015
 
1. Shravan Kumar
Vill&Po-Utrot Th-Chkiya Chandauli
Chandauli
UP
...........Complainant(s)
Versus
1. Gram panchayat
Utrot Chkiya Chandauli
Chandauli
UP
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Shashi Yadav MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 59                               सन् 2015ई0
श्रवण कुमार पुत्र भगवान दास ग्राम व पो0 उतरौत विकास खण्ड व तहसील चकिया जिला चन्दौली।
                                      ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
ग्राम पंचायत सचिव,ग्राम पंचायत उतरौत/ग्राम विकास अधिकारी,ग्राम पंचायत उतरौत(श्री राजेश्वर पाल) विकास खण्ड चकिया तहसील चकिया जिला चन्दौली।
                                            .............................विपक्षी
उपस्थितिः-
 रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
 शशी यादव, सदस्या
                               निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1-    परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी द्वारा सूचना उपलब्ध न कराने के कारण परिवादी को हुई सामाजिक,मानसिक क्षति हेतु रू0 20000/- एवं अधिवक्ता खर्च के रूप में रू0 5000/- कुल रू0 25000/- दिलाये  जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2-    परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी उपरोक्त पते का स्थायी निवासी है। परिवादी ने दिनांक 3-7-2015 को सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6(1) के अन्र्तगत सूचना प्राप्त करने हेतु शुल्क के रूप में रू0 10/-का भारतीय पोस्टड आर्डर क्रमांक संख्या 25 एफ.481224 के साथ प्रार्थना पत्र खण्ड विकास अधिकारी चकिया को दिया। जिस पर दिनांक 8-7-2015 को खण्ड विकास अधिकारी द्वारा पत्रांक संख्या 786 के द्वारा 15 दिन के अन्दर सूचना देने हेतु अनावेदक को आदेशित किया गया। किन्तु अनावेदक द्वारा खण्ड विकास अधिकारी चकिया के द्वारा दिये गये आदेश व सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के आदेशात्मक प्राविधान तथा धारा 7(1) का जानबूझकर उल्लंघन करते हुए सूचना परिवादी को उपलब्ध नहीं कराया गया। परिवादी ने अनावेदक के विरूद्ध सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 19(1) के अन्र्तगत अनावेदक के प्रथम अपीलीय अधिकारी पंचायत राज अधिकारी चन्दौली के समक्ष दिनांक 2-9-2015 को प्रथम अपील रजिस्टर्ड डाक से प्रेषित किया। जिस पर अनावेदक के प्रथम अपीलीय अधिकारी पंचायत राज अधिकारी ने पत्रांक संख्या 1178 दिनांक 24-9-2015 द्वारा एक सप्ताह के अन्दर परिवादी को सूचना देने हेतु अनावेदक को आदेशित किया किन्तु इसके बाद भी अनावेदक द्वारा परिवादी को सूचना उपलब्ध नहीं कराया। परिवादी ने एक सप्ताह बाद प्रतिवादी से सम्पर्क किया और दिनांक 6-10-2015 को प्रार्थना पत्र देते हुए सूचना देने के लिए निवेदन किया किन्तु अनावेदक ने सूचना देने से इन्कार करते हुए प्रार्थना पत्र लेने से इन्कार कर दिया जिसको परिवादी ने दिनांक 6-10-2015 को अनावेदक को रजिस्टर्ड डाक से प्रेषित कर दिया। तब परिवादी ने दिनांक 28-10-2015 को एक नोटिस भेजकर सूचना देने हेतु निवेदन किया जिसका अनावेदक द्वारा कोई जबाब नहीं दिया गया। इस आधार पर परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
2
3-    विपक्षी को इस फोरम द्वारा रजिस्टर्ड डाक से नोटिस प्रेषित की गयी जिस पर विपक्षी हाजिर होकर एक प्रार्थना पत्र दिया है किन्तु उनके द्वारा कोई विधिवत जबाबदावा दाखिल नहीं किया गया और विपक्षी अनुपस्थित भी हो गया। अतः मुकदमा उसके विरूद्ध एक पक्षीय रूप से चल रहा है।
4-    परिवादी ने अपने अभिकथनों के समर्थन में अपना शपथ पत्र दाखिल किया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादी की ओर से खण्ड विकास अधिकारी को सूचना प्राप्त करने हेतु दिये गये प्रार्थना पत्र तथा खण्ड विकास अधिकारी के पत्रांक दिनांकित 8-7-2015 की छायाप्रतियां,परिवादी द्वारा पंचायत राज अधिकारी के यहाॅं दाखिल अपील अन्र्तगत धारा 19 की छायाप्रति,जिला पंचायत राज अधिकारी चन्दौली के पत्रांक दिनांकित 24 सितम्बर 2015 की छायाप्रति, परिवादी द्वारा ग्राम विकास अधिकारी/ग्राम पंचायत सचिव को प्रेषित प्रार्थना पत्र दिनांकित 6-10-2015 की छायाप्रति,परिवादी द्वारा विपक्षी को प्रेषित नोटिस की छायाप्रति दाखिल की गयी है। परिवादी के अधिवक्ता की एक पक्षीय बहस सुनी गयी है एवं पत्रावली का सम्यक रूपेण परिशीलन किया गया।
5-    परिवादी की ओर से तर्क दिया गया है कि उसने सूचना अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत 2 बिन्दुओं पर सूचना प्राप्त करने के लिए दिनांक 3-7-2015 को एक प्रार्थना पत्र खण्ड विकास अधिकारी चकिया को दिया था और इस प्रार्थना पत्र के साथ देय शुल्क 10/-का पोस्टल आर्डर भी संलग्न किया था जिसका क्रमांक 25एफ 481224 था। खण्ड विकास अधिकारी ने 15 दिन के अन्दर सूचना देने हेतु आदेशित किया लेकिन विपक्षी(ग्राम पंचायत सचिव)द्वारा उक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया गया और सूचना उपलब्ध नहीं करायी गयी तब परिवादी ने जिला पंचायत राज अधिकारी चन्दौली के यहाॅं अपील दाखिल किया और पुनः विपक्षी को सूचना देने के लिए आदेशित किया गया लेकिन उसने परिवादी को सूचना उपलब्ध नहीं कराया तब परिवादी ने दिनांक 6-10-2015 को विपक्षी को पुनः एक प्रार्थना पत्र दिया इसके बावजूद जब विपक्षी ने सूचना नहीं दिया तो विधिक नोटिस दी गयी और उसके बाद दावा दाखिल किया गया। परिवादी के अधिवक्ता का कथन है कि विपक्षी ने अपने जबाब पत्र दिनांकित 30-1-2016 में यह कहा है कि पोस्टल आर्डर कालातीत था जिसे डाक द्वारा वापस कर दिया गया। विपक्षी का यह कथन बिल्कुल झूठा व निराधार है। पोस्टल आर्डर वापस करने का कोई साक्ष्य विपक्षी ने नहीं दिया है और न इसकी कोई तारीख बताया है परिवादी को विपक्षी द्वारा पोस्टल आर्डर कालातीत होने की सूचना नहीं दी गयी और न पोस्टल आर्डर वापस किया गया।इस प्रकार यह साबित है कि विपक्षी जानबूझकर सूचना नहीं दिया जिससे परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति हुई है। अतः परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है अपने कथन के समर्थन में परिवादी द्वारा ।।।(2012)सी.पी.जे.72(एनसी) एस.पी.थिरूमल राव बनाम मैसूर सीटी म्यूनिसिपल कारपोरेशन की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि जहाॅं जन सूचना 
3
अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत मांगी गयी सूचना न दी गयी हो तो ऐसे मामलों में जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद दाखिल किया जा सकता है। उपरोक्त विधि व्यवस्था का पूर्ण सम्मान किया जाता है किन्तू फोरम की राय में उपरोक्त विधि व्यवस्था का कोई लाभ प्रस्तुत मामले में परिवादी को प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि प्रस्तुत मुकदमें में तथ्य एवं परिस्थितियां उदृत मुकदमें से नितान्त भिन्न है। प्रस्तुत मुकदमें में विपक्षी ने इस फोरम में उपस्थित होकर जो प्रार्थना पत्र दिया है उसमे यह कहा है कि परिवादी की ओर से दिनांक 3-7-2015 को जन सूचना अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत सूचना प्राप्त करने हेतु प्रार्थना पत्र दिया गया था लेकिन इस प्रार्थना पत्र के साथ जो पोस्टल आर्डर संलग्न किया गया था वह दिनांक 5-9-2014 का है और यह पोस्टल आर्डर कालातीत हो गया था जिसे विपक्षी ने पंजीकृत डाक से परिवादी को वापस भेज दिया।
6-    इस प्रकार प्रस्तुत मामले में मुख्य विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या जन सूचना अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत सूचना प्राप्त करने के लिए देय शुल्क का पोस्टल आर्डर जो परिवादी ने प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न किया था वह कालातीत था ?
7-     विपक्षी ने अपने प्रार्थना पत्र में यह कहा है कि उपरोक्त पोस्टल आर्डर कालातीत था क्योंकि सूचना प्राप्त करने का प्रार्थना पत्र दिनांक 3-7-2015 को दिया गया था और पोस्टल आर्डर दिनांक 5-9-2014 को जारी हुआ था इस प्रकार यह पोस्टल आर्डर लगभग 10 माह पुराना था इसलिए इसे पंजीकृत डाक द्वारा परिवादी को प्रेषित कर दिया गया। परिवादी की ओर से यह तर्क दिया गया कि उसे पोस्टल आर्डर कभी प्राप्त नहीं हुआ और न उसे ऐसी कोई सूचना दी गयी कि पोस्टल आर्डर कालातीत हो चुका है और विपक्षी ने ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि उपरोक्त पोस्टल आर्डर परिवादी को वापस किया गया था अतः विपक्षी का उपरोक्त कथन कि पोस्टल आर्डर कालातीत होने के कारण परिवादी को वापस कर दिया गया था और इसलिए उसे सूचना भी नहीं दी गयी थी स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। किन्तु फोरम की राय में परिवादी के उपरोक्त तर्क में कोई बल नहीं पाया जाता है क्योंकि स्वयं परिवादी ने अपने परिवाद में यह कहा है कि उसने सूचना प्राप्त करने हेतु प्रार्थना पत्र दिनांक 3-7-2015 को दिया था और इसके साथ देय शुल्क 10/-रू0 का पोस्टल आर्डर संलग्न किया था जिसका क्रमांक 25एफ481224 है। स्वयं परिवादी की ओर से दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में कागज संख्या 4ग/2 के रूप में पोस्टल आर्डर की छायाप्रति दाखिल है और इसके अवलोकन से यह बात भलीभांति सिद्ध हो जाती है कि यह पोस्टल आर्डर दिनांक 5-9-2014 को जारी हुआ है। इस प्रकार स्वयं परिवादी के अभिकथनों और उसके द्वारा दाखिल दस्तावेज से ही यह बात भलीभांति सिद्ध हो जाती है कि परिवादी ने सूचना प्राप्त करने हेतु जो प्रार्थना पत्र दिया था उसके साथ संलग्न पोस्टल आर्डर लगभग 10 माह पुराना था जबकि विधिक रूप से पोस्टल आर्डर 6 महीने तक वैध होता है इस प्रकार स्पष्ट है कि जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने के लिए देय शुल्क के रूप में
4
 परिवादी द्वारा दिया गया पोस्टल आर्डर कालातीत था ऐसी स्थिति में बिना पर्याप्त शुल्क दिये परिवादी को सूचना नहीं दी जा सकती थी। यहाॅं यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि परिवादी की ओर से बहस में तो यह कहा गया कि उसे विपक्षी द्वारा कोई पोस्टल आर्डर वापस नहीं किया और न उसे पोस्टल आर्डर प्राप्त हुआ किन्तु परिवादी ने साक्ष्य के रूप में जो शपथ पत्र दाखिल किया है उसमे कही यह नहीं कहा गया है कि उसे पोस्टल आर्डर विपक्षी ने वापस नहीं किया था या उसे प्राप्त नहीं हुआ था।
    उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन से यह स्पष्ट है कि परिवादी ने सूचना प्राप्त करने हेतु देय शुल्क का जो पोस्टल आर्डर दाखिल किया था वह कालातीत था ऐसी स्थिति में विपक्षी विधिक रूप से परिवादी को कोई सूचना देने के लिए बाध्य नहीं था इस प्रकार प्रस्तुत मामले में विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी किये जाने की बात सिद्ध नहीं होती है। अतः फोरम की राय में परिवादी का परिवाद एक पक्षीय रूप से निरस्त किये जाने योग्य है।
                             आदेश
    परिवादी का परिवाद एक पक्षीय रूप से निरस्त किया जाता है। पत्रावली दाखिल दपतर हो।

 (शशी यादव)                                       (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्या                                                अध्यक्ष
                                                 दिनांक-14-7-2016

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Shashi Yadav]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.