Uttar Pradesh

StateCommission

A/2014/206

U I I Co - Complainant(s)

Versus

Gopal Ji Water Supply - Opp.Party(s)

T K Mishra

29 May 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2014/206
( Date of Filing : 28 Jan 2014 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. U I I Co
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Gopal Ji Water Supply
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 29 May 2018
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(सुरक्षित)                                                                                  

अपील संख्‍या:-206/2014

(जिला मंच, मथुरा द्धारा परिवाद सं0-185/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.12.2013 के विरूद्ध)

United India Insurance Co. Ltd., Regional Office, Arif Chambers, Kapoorthala Complex, Aliganj, Lucknow through its Manager.

                                                 ........... Appellant/Opp. Party

Versus    

1-    M/s Gopalji Water Supply Company, 2 Brijwasi Market, Sonkh Road, Mathura through its Proprietor Gopal Khandelwal, S/o Sri Pursotum Das Khandelwal.

 ……..…. Respondent/ Complainant

2-    State Bank of India, Main Branch, Mathura through its Manager, State Bank of India, Mathura.

     ……..…. Respondent/ Opp. Party

समक्ष :-

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य

मा0 गोवर्धन यादव, सदस्‍य

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता        : श्री टी0के0 मिश्रा

प्रत्‍यर्थी सं0-1 के अधिवक्‍ता     : श्री नवीन कुमार तिवारी

दिनांक :-15.6.2018                                           

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय   

प्रस्‍तुत अपील परिवाद संख्‍या-185/2006 में जिला मंच, मथुरा द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.12.2013 के विरूद्ध योजित की गई है।

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कथनानुसार के0एस0बी0 पम्‍पस् लि0 तथा समरसेबिल पम्‍पस् का व्‍यापार करता है। प्रत्‍यर्थी सं0-2 स्‍टेट बैंक से के0एस0बी0 पम्‍पस् के कारोबार के लिए ओवर ड्राफ्ट सुविधा प्राप्‍त की थी। ओवर ड्राफ्ट सुविधा के अन्‍तर्गत के0एस0बी0 पम्‍पस् से सम्‍बन्धित सामान की चोरी के जोखिम से

-2-

सुर‍क्षा करने हेतु अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी से दिनांक 31.3.2003 से 30.3.2004 के लिए बीमा पालिसी प्राप्‍त की गई थी। बीमा प्रीमियम प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक ने बीमा कम्‍पनी को अदा किया था और बीमा कराया था। बीमा अवधि में दिनांक 08/09.8.2003 की रात में परिवादी की दुकान का शटर तोड़कर पॉच समरसेबिल पम्‍पस् सेट के0एस0बी0 मार्का के, 6 स्‍टार्टर/पैनल परफैक्‍ट मार्का के चोरी हुए। परिवादी ने चोरी की रिपोर्ट दिनांक 09.8.2003 को चौकी कृष्‍णा नगर पुलिस को दी और मुख्‍य न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट, मथुरा के निर्देश पर थाने पर मुकदमा पंजीकृत हुआ। परिवादी ने चोरी होने की सूचना तत्‍काल प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक को दिनांक 11.8.2003 को दी, तदोपरांत दिनांक 22.11.2003 को चोरी की सूचना प्रेषित की गई तथा प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक ने परिवादी को इंश्‍योरेंस कवर नोट की प्रति उपलब्‍ध करायी। प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक ने चोरी की सूचना अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को दिनांक 25.11.2003 और 27.11.2003 को दी। पुलिस ने चोरी गये सामान को तलाशने का प्रयास किया और माल व अपराधी के न मिलने पर दिनांक 08.12.2003 को अंतिम आख्‍या प्रस्‍तुत की। परिवादी के कथनानुसार उसने अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के समक्ष चोरी गये समरसेबिल पम्‍प सेट व स्‍टार्टर/पैनल के संदर्भ में बीमा दावा प्रस्‍तुत किया। अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी ने पत्र दिनांकित 30.6.2004 के माध्‍यम से सूचना प्रेषित की कि उनके द्वारा बीमा कवर नोट मिनरल वाटर के लिए जारी किया गया है और यह भी कहा गया कि चोरी की सूचना देरी से दी गई है। परिवादी के कथनानुसार उसकी दुकान में कभी मिनरल वाटर का काम नहीं हुआ। बीमा कवर नोट पर मिनरल वाटर लिखा जाना एजेण्‍ट की भूल का परिणाम था। परिवादी के कथनानुसार प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक ने प्रीमियम अदा करते समय और कवर नोट प्राप्‍त करते समय इस तथ्‍य पर विचार नहीं किया कि कवर नोट किस सामान का बीमा दर्शाते हुए जारी किया गया है। परिवादी ने अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी एवं

-3-

ऋण प्रदाता बैंक दोनों को उत्‍तरदायी बताया। परिवादी का यह भी कथन है कि प्रत्‍यर्थी बैंक ने दिनांक 20.01.2005 से 19.01.2006 की अवधि का बीमा कराया तथा इस कवर नोट में गलती को सुधार करके के0एस0बी0 पम्‍पस् के लिए ही कवर नोट जारी किया गया। परिवादी ने अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी तथा बैंक दोनों को ही दोषी बताते हुए परिवाद प्रस्‍तुत किया है तथा यह अनुतोष चाहा कि अपीलार्थीगण से क्‍लेम की धनराशि 62,359.00 रू0 मय ब्‍याज दिलाया जाए, यदि मंच किसी कारणवश अपीलार्थीगण से उक्‍त क्‍लेम की धनराशि उसे दिलाये जाने में असहाय पाती है तो उस अवस्‍था में परिवादी को प्रत्‍यर्थी सं0-2 से उपरोक्‍त क्‍लेम की धनराशि मय ब्‍याज दिलायी जाए।

अपीलार्थीगण के कथनानुसार परिवादी अथवा बैंक ने कभी भी के0एस0बी0 पम्‍पस् का बीमा कराने हेतु अनुरोध नहीं किया। अपीलार्थीगण ने 1,580.00 रू0 की राशि प्रीमियम के रूप में प्राप्‍त करना स्‍वीकार किया और यह कहा कि यह राशि मिनरल वाटर तथा उसी तरह के अन्‍य पानी के उत्‍पादों का बीमा करने के लिए प्राप्‍त की गई। अपीलार्थीगण का यह भी कथन है कि कथित चोरी की सूचना अत्‍याधिक विलम्‍ब से लगभग तीन माह 15 दिन के बाद प्रेषित की गई, जिसके लिए परिवादी स्‍वयं उत्‍तरदायी है। अपीलार्थीगण के कथनानुसार क्‍योंकि चोरी गये सामान बीमा पालिसी के अन्‍तर्गत आच्‍छादित नहीं था, अत: बीमा दावा अस्‍वीकार किया गया।

प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक द्वारा भी जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया। प्रत्‍यर्थी बैंक के कथनानुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्रत्‍यर्थी बैंक को परिवादी नं0-2 के रूप में प्रदर्शित करते हुए एक शिकायत प्रत्‍यर्थी बैंक को प्रेषित की थी, किन्‍तु बैंक ने परिवादी के द्वारा परिवाद में स्‍वयं को पक्षकार बनने से इंकार कर दिया। बैंक द्वारा परिवाद में बतौर परिवादी पक्ष बनने से मना करने के उपरांत परिवादी द्वारा तथ्‍यों को तोड़-मरोड़कर परिवाद जिला मंच के समक्ष

-4-

प्रस्‍तुत किया गया। प्रत्‍यर्थी बैंक द्वारा यह स्‍वीकार किया गया कि परिवादी को कैश क्रेडिट लोन की सुविधा 2,00,000.00 रू0 की उपलब्‍ध करायी गई थी। ऋण से सम्‍बन्धित सामान को बीमित करने पर पालिसी लेने का दायित्‍व परिवादी ने स्‍वयं का स्‍वीकार किया था। बैंक के कथनानुसार बैंक बीमा कम्‍पनी के एजेण्‍ट ने पालिसी व्‍यक्तिगत रूप से फर्म के मालिक को हस्‍तगत की थी। बैंक का यह भी कथन है कि बीमा कम्‍पनी ने सभी पत्राचार परिवादी से पालिसी में बताये गये पते पर किए। बैंक के कथनानुसार प्रीमियम की अदायगी परिवादी के खाते से परिवादी की ओर से अदा की गई।

विद्वान जिला मंच ने यह मत व्‍यक्‍त करते हुए कि बीमा कम्‍पनी का यह दायित्‍व था कि वह बीमित वस्‍तु का निरीक्षण करके उसका बीमा करते। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का मिनरल वाटर का कोई व्‍यवसाय करना न पाते हुए बीमा कवर नोट में समरसेबिल पम्‍पस् का उल्‍लेख न किए जाने का दोष स्‍वयं अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी का मानते हुए प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद अपीलार्थीगण के विरूद्ध स्‍वीकार किया तथा अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि प्रश्‍नगत निर्णय की एक माह के अन्‍दर परिवादी 62,359.00 रू0 प्रतिपूर्ति के रूप में अदा करें तथा इस धनराशि पर परिवाद की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज भी अदा की जाए। वाद व्‍यय के रूप में 2,000.00 रू0 भी परिवादी को अदा किए जानेहेतु आदेशित किया गया है।

इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर अपील योजित की गई है।

हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री टी0के0 मिश्रा तथा प्रत्‍यर्थी सं0-1 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री नवीन कुमार तिवारी के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्‍यर्थी सं0-2 को पंजीकृत डाक से नोटिस दिनांक 17.7.2014 को भेजी गई, जो बिना तामील वापस प्राप्‍त नहीं हुई। अत: प्रत्‍यर्थी सं0-2 पर नोटिस की

-5-

तामील पर्याप्‍त मानी गई। प्रत्‍यर्थी सं0-2 की ओर से तर्क प्रस्‍तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत‍ प्रकरण में प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपने प्रतिष्‍ठान से पॉच समरसेबिल पम्‍पस् सेट एवं छ: स्‍टार्टर/पैनल की चोरी होना बताया है, किन्‍तु अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी के प्रतिष्‍ठान के संदर्भ में समरसेबिल पम्‍पस् एवं स्‍टार्टर का बीमा नहीं किया गया, बल्कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के अन्‍तर्गत मिनरल वाटर तथा अन्‍य सामान प्रगति के कार्यों का बीमा किया गया। इस प्रकार कथित रूप से चोरी गये सामान प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के अन्‍तर्गत आच्‍छादित न होने के कारण अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को उक्‍त सामान की कथित चोरी के संदर्भ में क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्‍तरदायी होना नहीं माना जा सकता।

उल्‍लेखनीय है कि पक्षकारों के अभिकथनों एवं प्रश्‍नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक से अपने समरसेबिल पम्‍पस् के व्‍यवसाय हेतु 2,00,000.00 रू0 की कैश क्रेडिट सुविधा प्राप्‍त की थी। प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक का यह अभिकथन है कि परिवादी ने ऋण सुविधा प्राप्‍त करने हेतु आवेदन किया था और उस आवेदन के पैरा-11 में  ऋण का उद्देश्‍य यह था कि परिवादी समरसेबिल पम्‍पस् का नया कारोबार मथुरा में करना चाहता है। परिवादी ने यह सूचना दी थी कि नया कारोबार वह फैक्टरी और बिजनेस पैमाइजेज में शुरू करना चाहता है। प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक का यह भी कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के समरसेबिल पम्‍पस् के इस व्‍यवसाय हेतु ही उसे कैश क्रेडिट सुविधा प्रदान की गई थी तथा इस सम्‍बन्‍ध में दिए गये ऋण की सुरक्षा हेतु ही प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्राप्‍त कराये गये ऋण से उपरोक्‍त व्‍यवसाय के संदर्भ में क्रय किए गये सामान की सुरक्षा हेतु सामान का बीमा

-6-

कराया जाना अपेक्षित था। प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक का यह भी कथन है कि दिए गये उपरोक्‍त ऋण से प्राप्‍त धनराशि से क्रय किए गये सामान का ही बीमा कराया गया था और बीमा की धनराशि तथा बीमा का प्रीमियम परिवादी के खाते से भुगतान किया गया था। परिवादी का यह कथन है कि उसने मिनरल वाटर का कोई व्‍यवसाय कभी नहीं किया। अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी द्वारा जिला मंच के समक्ष ऐसी कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं की गई, जिससे यह प्रमाणित हो सके कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा मिनरल वाटर का व्‍यवसाय कभी किया गया हो। ऐसी परिस्थिति में यह नितांत आस्‍वाभाविक है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने स्‍वत: मिनरल वाटर तथा उससे सम्‍बन्धित कार्य हेतु प्रश्‍नगत बीमा पालिसी प्राप्‍त की होगी, साथ ही बैंक द्वारा भी प्रत्‍यर्थी/परिवादी को उपलब्‍ध कराए गए ऋण की सुर‍क्षा हेतु प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के अन्‍तर्गत मिनरल वाटर तथा उससे सम्‍बन्धित कार्यों हेतु बीमा कराया जाना स्‍वाभाविक नहीं माना जा सकता। प्रत्‍यर्थी/परिवादी की फर्म का नाम मैसर्स गोपाल जी वाटर सप्‍लाई अवश्‍य है, किन्‍तु मात्र इस नाम के आधार पर ही, "किसी अन्‍य साक्ष्‍यों के अभाव में," यह नहीं माना जा सकता कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा मिनरल वाटर अथवा उससे सम्‍बन्धित अन्‍य उत्‍पाद का व्‍यवसाय था।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी का प्रश्‍नगत बीमा जो दिनांक 31.3.2003 से 30.3.2004 तक की अवधि का था, के समाप्‍त हो जाने के उपरांत अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रत्‍यर्थी फर्म के स्‍टाक का बीमा दिनांक 20.01.2005 को पुन: कराया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्‍तर्गत इस नई पालिसी से सम्‍बन्धित प्रस्‍ताव पत्र की प्रति उपलब्‍ध कराये जाने का अनुरोध किया गया। परिवादी द्वारा चाही गई इस सूचना के अन्‍तर्गत अपीलार्थी बीमा

-7-

कम्‍पनी द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित 11.10.2007 द्वारा सूचित किया गया कि दिनांक 20.01.2005 को जारी की गई बीमा पालिसी सं0-082900/48/04/34/000746 क्‍योंकि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी सं0 082900/48/02/01299 का नवीनीकरण था, अत: प्रपोजल फार्म नहीं भराया गया। प्रत्‍यर्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि दिनांक 28.01.2005 से 19.01.2006 की अवधि हेतु जारी पालिसी में व्‍यवसाय की प्रकृति मिनरल वाटरके स्‍थान पर समरसेबिल पम्‍पस् अंकित है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत पालिसी से सम्‍बन्धित प्रस्‍ताव पत्र में भी प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने व्‍यापार की प्रकृति समरसेबिल पम्‍पस् अंकित की थी, किन्‍तु अपीलार्थी की ओर से प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के कवर नोट पर समरसेबिल पम्‍पस् के व्‍यवसाय से सम्‍बन्धित होना न दर्शाकर मिनलर वाटर तथा उससे सम्‍बन्धित कार्य दर्शित किया गया। जबकि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के व्‍यवसायिक प्रतिष्‍ठान में मिनरल वाटर से सम्‍बन्धित कार्य होना प्रमाणित नहीं है, तब इस व्‍यवसायिक कार्य हेतु पालिसी कराया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी से सम्‍बन्धित एजेण्‍ट ने बिना परिसर का निरीक्षण किए कवर नोट मिनलर वाटर तथा उससे सम्‍बन्धित कार्य दर्शित करते हुए जारी कर दिया एवं प्रीमियम भी इसी पालिसी के सम्‍बन्‍ध में प्राप्‍त किया गया। ऐसी परिस्थिति में यह स्‍पष्‍ट है कि वस्‍तुत: परिवादी द्वारा अपने समरसेबिल पम्‍पस् के व्‍यवसाय से सम्‍बन्धित स्‍टाक का बीमा कराया गया, किन्‍तु बीमा कम्‍पनी द्वारा कवर नोट मिनरल वाटर के सम्‍बन्‍ध में जारी किया गया। बीमा कम्‍पनी के एजेण्‍ट के इस कार्य के लिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी को उत्‍तरदायी नहीं माना जा सकता।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि चोरी की कथित घटना की सूचना अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को अत्‍यधिक विलम्‍ब से लगभग तीन माह बाद दी गई। पत्रावली के

-8-

अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने कथित चोरी की सूचना पुलिस को तत्‍काल उपलब्‍ध करायी और पुलिस द्वारा विवेचना के उपरांत चोरी की घटना को असत्‍य न पाते हेतु माल व मुल्जिमान का पता न लगा पाने के कारण अंतिम आख्‍या सम्‍बन्धित न्‍यायालय में प्रेषित की गई।

जहॉ तक अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को कथित चोरी की सूचना विलम्‍ब से दिए जाने का प्रश्‍न है। मामले की परिस्थितियों के अन्‍तर्गत यह नहीं माना जा सकता कि अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को सूचना विलम्‍ब से दिए जाने के कारण उसका कोई अधिकार प्रभवित हुआ, क्‍योंकि अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के अनुसार प्रश्‍नगत सम्‍पत्ति का उसके द्वारा बीमा ही नहीं किया गया था।

उपरोक्‍त तथ्‍यों के आलोक में हमारे विचार से जिला मंच का यह निष्‍कर्ष की प्रत्‍यर्थी/परिवादी का बीमा दावा स्‍वीकार न करके अपीलार्थीगण द्वारा सेवा में त्रुटि की गई है, हमारे विचार से त्रुटि पूर्ण नहीं है। अपील में बल नहीं है और प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

अपील निरस्‍त की जाती है।

उभय पक्ष अपीलीय व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

 

    (उदय शंकर अवस्‍थी)                (गोवर्धन यादव)

     पीठासीन सदस्‍य                      सदस्‍य

हरीश आशु.,

कोर्ट सं0-5

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER

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