राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2817/2000
1-जनरल मैंनेजर, एन0 आर0 रेलवे, गोरखपुर।
2-डिवीजनल मैंनेजर, एन0 आर0 रेलवे गोरखपुर।
3-चीफ आपरेटिंग सुपरिटेन्डेन्ट एन0 आर0 रेलवे गोरखपुर।
4-एरिया सुपरिटेन्डेन्ट नार्थन रेलवे कानपुर।
अपीलार्थीगण
बनाम
1-गोपाल दास भट्टर पुत्र सेठ ज्वाला प्रसाद।
2-कौशल्या देवी पत्नी गोपाल दास भट्टर।
दोनों निवासी 56/60, काहू कोठी जिला कानपुर।
प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1-मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन सदस्य।
2-मा0 श्रीमती बाल कुमारी सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित। विद्वान अधिवक्ता श्री एम0 एच0 खान।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित। कोई नहीं।
दिनांक 31-12-2014
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन न्यायिक सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद संख्या-1007/1999 गोपाल दास भट्टर बनाम एरिया सुपरिटेन्डेन्ट नार्दन रेलवे में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30-09-2000 में निम्न आदेश पारित है।
परिवाद पत्र स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-1 लगायत 4 को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से 60 दिन के अन्दर प्रत्येक परिवादी को रू0 5000/- 5000/- की क्षतिपूर्ति एवं रू0 200/- परिवाद व्यय के रूप में भुगतान करें।
उपरोक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
संक्षेप में प्रकरण के तथ्य इस प्रकार हैं परिवादी श्री गोपाल दास भट्टर एवं श्री कौशल्या देवी निवासी 56/60 काहू कोठी, कानपुर ने प्रस्तुत परिवाद पत्र विपक्षीगण के विरूद्ध इस आधार पर प्रस्तुत किया है कि परिवादीगण ने दो टिकट प्रथम श्रेणी कोच में दो बर्थ के लिए ट्रेन संख्या-5063 अप अवध एक्प्रेस में कानपुर से सूरत के लिए दिनांक 12-11-94 के
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लिए आरक्षित कराया। विपक्षी द्वारा आरक्षण टिकट संख्या-42206 परिवादीगण को प्रदान किया गया। परिवादीगण का आरक्षण प्रथम श्रेणी शयनकोच संख्या एफ-2 में विपक्षी द्वारा किया गया। परिवादीगण दिनांक 12-11-94 को कानपुर सेंट्रल स्टेशन ट्रेन आने के कुछ समय पूर्व पहुँचे तो देखा कि उनका नाम आरक्षण सूची में अंकित है। उपरोक्त ट्रेन जब 11.30 बजे रात्रि को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर पहुंची तो जिस प्रथम श्रेणी के कोच में परिवादीगण के लिए दो बर्थ आरक्षित की गयी थी वह प्रथम श्रेणी की कोच ट्रेन में नहीं लगी थी। परिवादीगण इस सम्बन्ध में पूँछ-तॉंछ किये तो विपक्षीगण द्वारा बताया गया कि उपरोक्त ट्रेन में प्रथम श्रेणी की प्रश्नगत कोच नहीं लगी है परिवादीगण ने वैकल्पिक व्यवस्था के लिए अनुरोध किया परन्तु विपक्षीगण कोई वैकल्पिक व्यवस्था करने में असमर्थता प्रकट किया। परिवादी का कथन है कि वह स्वयं हृदय रोग से पीडि़त हैं और परिवादी की बाईपास सर्जरी हुई थी। परिवादी की पत्नी परिवादी संख्या-2, 60 वर्ष की वृद्ध महिला है जिनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था आरक्षित कोच के तलासने में परिवादीगण को कई चक्कर लगाने पड़े और इधर से उधर दौड़ना पड़ा फिर भी परिवादीगण को आरक्षित कोच एवं बर्थ प्राप्त नहीं हुई। परिवादी के इस भागदौड़ में परिवादी संख्या-1 को शारीरिक कष्ट हुआ। परिवादीगण ने इसकी शिकायत स्टेशन अधिकारियों से किया। परिवादी की शिकायत पर टिकट की कीमत निर्धारित कटौती के बाद परिवादी को वापस कर दी गयी। परिवादी का कथन है कि परिवादी के लिए दो बर्थ प्रथम श्रेणी के कोच में आरक्षित करने के बाद कोच को ट्रेन में न लगाना और परिवादीगण को यात्रा हेतु आरक्षण के बाद भी वैकल्पिक व्यवस्था न कराना विपक्षीगण की सेवा की त्रुटि एवं कमी को प्रमाणित करता है। परिवादीगण को विपक्षीगण के इस कृत्य से आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक क्षति पहुंची है। परिवादीगण का यह भी कथन है कि उन्हें व्यापार के सम्बन्ध में सूरत जाना था और वहां व्यापारियों से एक निश्चित तिथि को व्यापार सम्बन्धित वार्ता करनी थी परन्तु परिवादीगण के न पहुँचने से परिवादीगण को आर्थिक क्षति पहुंची एवं व्यापारियों में उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची। अत: परिवादीगण ने प्रार्थना किया है कि उन्हें डेढ़ लाख रूपया क्षतिपूर्ति के रूप में, रू0 5000/- परिवाद व्यय के रूप में विपक्षीगण से दिलाया जाय। परिवादीगण ने अपने परिवाद पत्र के समर्थन में परिवादी श्री गोपाल दास भट्टर का शपथपत्र तथा अपने हृदय रोग की चिकित्सा से सम्बन्धित चिकित्सीय प्रमाण पत्र दाखिल किया है।
विपक्षी संख्या-1 लगायत 4 द्वारा अपनी संयुक्त आपत्ति द्वारा परिवाद पत्र का विरोध किया गया है और आपत्ति में कहा गया है कि तकनीकी
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खराबी के कारण जिस कोच में परिवादीगण का आरक्षण किया गया था वह कोच अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण प्रश्नगत ट्रेन में नहीं लगायी जा सकी। रेलवे प्रशासन यदि अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण किसी ट्रेन में किसी कोच को लगाने में असमर्थ हो जाता है तो उसके लिए परिवादी को किसी प्रकार की क्षति नहीं दिलायी जा सकती और न तो रेलवे प्रशासन उसके लिए उत्तरदायी है। परिवादी का परिवाद पत्र पोषणीय नहीं है। अत: खारिज होने योग्य है। परिवादी को विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद दाखिल करने का कोई हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ। अत: परिवादी किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है और परिवाद पत्र खारिज होने योग्य है। विपक्षीगण द्वारा अपनी आपत्ति के समर्थन में श्री एस0 के0 सिंह चीफ लॉ असिस्टेन्ट का शपथपत्र दाखिल किया गया है।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0 एच0 खान के तर्कों को सुना। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपीलकर्ता की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि तकनीकी खराबी के कारण यात्रा वाले दिन अपरिहार्य परिस्थिति में वह कोच प्रश्नगत ट्रेन में नहीं लगायी जा सकी जिसमें कि परिवादीगण/प्रत्यर्थीगण का आरक्षण था। अपीलार्थी द्वारा कोई भी लापरवाही जानबूझकर नहीं की गयी है। अत: ऐसी परिस्थिति में परिवादी/प्रत्यर्थी कोई क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रस्तुत प्रकरण यात्रा के फेयर के रिफन्ड से संबंधित है जिसको कि रेलवे क्लेम ट्रीव्यूनल एक्ट 1987 की धारा-13 (1) बी0 के अन्तर्गत सुनवाई का प्रावधान है तथा उपरोक्त अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत किसी अन्य न्यायालय को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: उपरोक्त परिस्थिति में अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि परिवादीगण द्वारा डेढ़ लाख रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में मांगा जाना न्यायोचित नहीं है एवं अत्यधिक है।
प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया। प्रश्नगत निर्णय में परिवादीगण/प्रत्यर्थीगण अपनी यात्रा नियत दिनांक ट्रेन प्रथम श्रेणी में आरक्षित होने के बाद भी शयन कोच संख्या एफ0-2 के न लगाये जाने से परिवादीगण आरक्षित कोच में यात्रा नहीं कर सके परिवाद में दिये गये तथ्यों से यह भी स्पष्ट है कि परिवादी स्वयं हृदय रोग से पीडि़त था एवं उसकी पत्नी 60 वर्ष की वृद्ध महिला थी एवं उनका भी स्वास्थ्य ठीक नहीं था और ऐसी परिस्थिति में परिवादीगण/प्रत्यर्थीगण को इधर-उधर भागदौड़ करनी पड़ी और उन्हें शारीरिक कष्ट भी हुआ। रेलवे
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विभाग द्वारा प्रथम श्रेणी का कोच न लगाये जाने पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गयी अत: ऐसी परिस्थिति में रेलवे विभाग के द्वारा
सेवा में कमी की गयी है जिसके लिए परिवादीगण/प्रत्यर्थीगण क्षतिपूर्ति पाने के अधिकारी हैं।
जहां तक रेवले क्लेम्स ट्रिव्यूनल 1987 के प्राविधान 13(1) बी0 के अन्तर्गत इस प्रकरण को सुने जाने का प्रावधान है तो इस सम्बन्ध में परिवादी द्वारा स्वयं ही अपने परिवाद में यह उल्लेख किया गया है कि उसकी शिकायत पर टिकट की कीमत निर्धारित कटौती के बाद परिवादी को वापस कर दी गयी। अत: इस प्रकरण को रेलवे क्लेम्स ट्रिव्यूनल 1987 की धारा 13(1) बी0 के अन्तर्गत प्रस्तुत किये जाने का कोई न्यायोचित आधार नहीं है और इस बिन्दु पर अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क मानने योग्य नहीं है।
प्रश्नगत निर्णय में मात्र 5000/-रू0, 5000/-रू0 क्षतिपूर्ति तथा 200/-रू0 परिवाद व्यय के रूप में परिवादीगण को अपीलकर्तागण द्वारा दिलाये जाने का आदेश दिया गया है जो कि वर्णित परिस्थितियों में न्यायोचित है विद्वान जिला मंच ने सम्पूर्ण तथ्यों की विवेचना प्रस्तुत किये गये साक्ष्य के एवं चिकित्सकीय प्रमाण पत्र के आधार पर की है। जिसमें कि हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है अपील निरस्त की जाती है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
वाद व्यय पक्षकार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(अशोक कुमार चौधरी) (बाल कुमारी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
मनीराम आशु0-2
कोर्ट- 3