Uttar Pradesh

StateCommission

A/2227/2015

Cholamandalam MS General Insurance C. Ltd - Complainant(s)

Versus

Giriraj Singh - Opp.Party(s)

Tarun Kumar Misra

22 Dec 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2227/2015
(Arisen out of Order Dated 28/09/2015 in Case No. c/182/2014 of District Agra-II)
 
1. Cholamandalam MS General Insurance C. Ltd
Auraiya
...........Appellant(s)
Versus
1. Giriraj Singh
Auraiya
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 22 Dec 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 2227/2015

                                   (मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम द्वितीय, आगरा द्वारा परिवाद सं0- 182/2014 में पारित आदेश दि0 28.09.2015 के विरूद्ध)

Cholamandalam Ms General insurance company Ltd. Regional office, 2nd floor, 4 Marry gold, Shah najaf road, sapru marg, Lucknow through its Assistant Manager.

                                                                         ……….Appellant

Versus

Girraj singh, son of Sri Sitaram, Resident of Garhi Rambal, Post- Kurra chitarpur, Tehsil- Fatehabad, District- Agra.

                                                                           ………..Respondent

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष। 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित       : श्री तरूण कुमार मिश्रा,

                                 विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित        : श्री नवीन कुमार तिवारी,

                                 विद्वान अधिवक्‍ता।                                          

दिनांक:-  22.12.2017

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                     

निर्णय

  परिवाद सं0- 182/2014 गिर्राज सिंह बनाम चोला मण्‍डलम एम0एस0 जनरल इंश्‍योरेंस कं0लि0 व एक अन्‍य में जिला फोरम द्वितीय, आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 28.09.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

  आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद एकपक्षीय रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

  परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध एकपक्षीय रूप से स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह 318750/-रू0 (तीन लाख अट्ठारह हजार सात सौ पचास रू0) मय 08 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज दिनांक 25.06.2012 से वास्‍तविक अदायगी तक एक माह के अन्‍दर परिवादी को अदा करे। इसके अतिरिक्‍त मानसिक कष्‍ट वेदना एवं वाद व्‍यय के रूप में 5,000/-रू0 (पांच हजार रू0) परिवादी को विपक्षीगण एक माह के अन्‍दर अदा करे

  जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षी चोला मण्‍डलम एम0एस0 जनरल इंश्‍योरेंस कं0लि0 ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

  अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्‍ता श्री तरुण कुमार मिश्रा और प्रत्‍यर्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्‍ता श्री नवीन कुमार तिवारी उपस्थित आये हैं।

  मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

  अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसकी बोलेरो जीप जिसका पंजीकरण सं0- यू0पी0 86 एच0 1506 है। विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी से दि0 10.09.2011 से 09.09.2012 की अवधि के लिए पूर्णत: बीमित थी और बीमा अवधि में ही दि0 01.12.2011 को उसकी यह जीप चोरी हो गई जिसकी रिपोर्ट उसने थाना बीना मध्‍य प्रदेश में दि0 01.12.2011 को ही दिया और सम्‍बन्धित आर0टी0ओ0 कार्यालय को भी वाहन चोरी की सूचना दी। उसके बाद विपक्षी के कार्यालय में बीमा क्‍लेम फार्म व अन्‍य प्रपत्र दि0 22.12.2011 को प्रस्‍तुत कर दिया।

  परिवाद पत्र के अनुसार पुलिस ने विवेचना के उपरांत अन्तिम रिपोर्ट प्रेषित किया जिसे न्‍यायालय ने आदेश दि0 30.11.2013 के द्वारा स्‍वीकार कर लिया। न्‍यायालय के आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी को दिया और जब प्रत्‍यर्थी/परिवादी जनवरी 2014 में विपक्षी सं0- 2 से मिला तो उसने बताया कि बीमा पालिसी की शर्तों के कथित उल्‍लंघन के कारण उसके बीमा क्‍लेम पर विचार नहीं किया गया है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि बीमा पालिसी की किसी शर्त का उल्‍लंघन नहीं किया गया है और न ही उसने वाहन का प्रयोग वाणिज्यिक उद्देश्‍य से किया है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने बीमा कम्‍पनी को अधिवक्‍ता के माध्‍यम से नोटिस भेजा, परन्‍तु उसका क्‍लेम स्‍वीकार नहीं किया गया। अत: विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

  जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है और न ही कोई लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है। अत: जिला फोरम ने विपक्षीगण के विरुद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से करते हुए आक्षे‍पित निर्णय और आदेश पारित किया है।

  अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्‍य एवं विधि के विरुद्ध है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्तों का पालन नहीं किया है और वाहन का वाणिज्यिक प्रयोग किया है। अत: बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का दावा स्‍वीकार न कर कोई गलती नहीं की है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद कालबाधित है।

  अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि जिला फोरम ने जो प्रतिकर और ब्‍याज एवं क्षतिपूर्ति प्रत्‍यर्थी/परिवादी को दिलाया है वह भी उचित नहीं है।

  प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश पूर्णत: विधि के अनुकूल है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश के अनुपालन में अपीलार्थी/बीमा कम्‍पनी ने इजरावाद सं0- 04/2016 में सम्‍पूर्ण डिक्रीशुदा धनराशि का भुगतान कर दिया है। अत: अपील निष्‍प्रभावी है।

  मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।  

  परिवाद पत्र के कथन एवं उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण द्वारा अपील की सुनवाई के समय किये गये तर्क से स्‍पष्‍ट है कि प्रश्‍नगत वाहन का स्‍वामी प्रत्‍यर्थी/परिवादी का होना और वाहन अपीलार्थी/बीमा कम्‍पनी से बीमित होना निर्विवाद है। यह तथ्‍य भी निर्विवाद है कि दि0 01.12.2011 को प्रत्‍यर्थी/परिवादी का वाहन चोरी हुआ है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने चोरी की रिपोर्ट उसी दिन दि0 01.12.2011 को मध्‍य प्रदेश में थाना बीना में दर्ज करायी है और आर0टी0ओ0 कार्यालय को भी सूचना दी है। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह माना है कि प्रश्‍नगत वाहन का वाणिज्यिक उद्देश्‍य के लिए प्रयोग किया जाना प्रमाणित नहीं है। फिर भी जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह माना है कि  प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्त का पालन नहीं किया है। इस कारण जिला फोरम ने यह माना है कि नान स्‍टैण्‍डर्ड बेसिस पर उसका बीमा दावा सेटेल किये जाने योग्‍य है। अत: जिला फोरम ने वाहन के बीमित मूल्‍य से 25 प्रतिशत की कटौती कर बीमित मूल्‍य का 75 प्रतिशत रू0 3,18,750/- प्रत्‍यर्थी/परिवादी को प्रदान किया है। जिला फोरम के निर्णय के विरुद्ध प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपील प्रस्‍तुत नहीं किया है।  

  प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी की सूचना तुरंत पुलिस में दर्ज करायी है और आर0टी0ओ0 कार्यालय को भी दिया है। अपीलार्थी/बीमा कम्‍पनी की ओर से प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा कथित वाहन चोरी की घटना को बनावटी व कपोल कल्पित होना नहीं कहा गया है। अत: ऐसी स्थिति में बीमा कम्‍पनी को विलम्‍ब से सूचना देने के आधार पर प्रत्‍यर्थी/परिवादी का दावा निरस्‍त नहीं किया जा सकता है। इस संदर्भ में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील नं0- 15611/2017 ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्‍योरेंस व अन्‍य में दिये गये निर्णय दि0 04.10.2017 का उल्‍लेख आवश्‍यक है जिसका संगत अंश नीचे उद्धरित है :-  

  It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid grounds. Rejection of the claims on purely technical grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason for delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the ground of delay. It is also necessary to state here that it would not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.

अपीलार्थी/बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का क्‍लेम पत्र दिनांक 25.06.2012 के द्वारा निरस्‍त किया है और प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद निर्धारित समय-सीमा के अन्‍दर दिनांक 09.04.2014 को प्रस्‍तुत किया है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने जो आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी का दावा स्‍वीकार किया है वह उचित और विधि सम्‍मत है और जिला फोरम द्वितीय, आगरा द्वारा इजरावाद सं0- 182/2014 गिर्राज सिंह बनाम चोला मण्‍डलम एम0एस0 जनरल इं0कं0 आदि में पारित आदेश दि0 14.09.2016 जिसकी प्रमाणित प्रतिलिपि अपील की सुनवाई के समय प्रस्‍तुत की गई है से स्‍पष्‍ट है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश की डिक्रीशुदा धनराशि का भुगतान अपीलार्थी/बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी को कर दिया है और इजरावाद पूर्ण संतुष्टि में निरस्‍त किया जा चुका है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम द्वारा पारित आ‍क्षेपित निर्णय और आदेश में हस्‍तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अत: अपीलार्थी/बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है। 

  अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

  अपील में अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि 25,000/-रू0 अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को वापस की जायेगी।

 

 

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                                          

                                      अध्‍यक्ष                         

 

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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