(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1656/2004
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-522/2001 में पारित निणय/आदेश दिनांक 02.04.2004 के विरूद्ध)
गाजियाबाद डेवलपमेंट अथारिटी, विकास भवन, सिविल लाइन्स, गाजियाबाद, द्वारा सेक्रेटरी।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1. जायन्ट्स कन्ज्यूमर्स एजूकेशन एण्ड रिसर्च सोसायटी, 37, नया गंज, गाजियाबाद।
2. श्री पंकज सक्सेना, 37, नया गंज, गाजियाबाद।
प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री पीयूष मणि त्रिपाठी, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक: 23.03.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-522/2001, जायन्ट्स कन्ज्यूमर्स एजूकेशन एण्ड रिसर्च सोसायटी बनाम गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 02.04.2004 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया गया है कि परिवादी से मकान की कीमत से अधिक वसूली गई राशि अंकन 798/- रूपये तथा चौकीदार शुल्क अंकन 800/- रूपये 09 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित दो माह के अन्दर वापस लौटाए जाए। यह भी आदेश दिया गया कि परिवादी को भवन के संबंध में 23.34 वर्ग मीटर अतिरिक्त भूमि आवंटित की जाए अन्यथा 29,102/- रूपये भूमि की कीमत अदा की जाए। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने निष्कर्ष दिया है कि परिवादी को आवंटित भवन का कवर्ड एरिया अनुबंध के विपरीत 5.52 वर्ग मीटर कम दिया गया है। इस कम एरिया की कीमत अंकन 29,965/- रूपये परिवादी को वापस किए जाए। यदि दोनों राशियों का भुगतान दो माह के अन्दर नहीं किया जाता है तब 5 प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज देय होगा साथ ही कमीशन द्वारा दर्शित त्रुटियों को एक माह के अन्दर दूर करे अन्यथा 55,000/- रूपये मकान की मरम्मत करने की मद में अदा करने का आदेश दिया गया। यदि यह राशि दो माह के अन्दर अदा नहीं की जाती है तब इस राशि पर 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अदा करने का आदेश भी दिया गया है।
2. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया निर्णय गलत है। परिवादी ने भवन का कब्जा दिनांक 22.03.1999 को प्राप्त कर लिया है। ब्रोशर की शर्तों के अनुसार कब्जा प्रदान किया गया है। प्रारम्भ में केवल अनुमानित कीमत बताई गई थी। शर्तों में उल्लेख है कि यदि समय पर कब्जा प्राप्त नहीं किया जाता है तब चौकीदार शुल्क वसूल किया जाएगा। दिनांक 23.03.1998 एवं दिनांक 25.11.1998 को कब्जा प्राप्त करने का प्रस्ताव दिया गया, परन्तु आश्यपूर्वक स्वंय परिवादी ने इंकार कर दिया और दिनांक 22.03.1999 को कब्जा प्राप्त किया, इसलिए पीनल इन्ट्रेस्ट एवं चौकीदार शुल्क वसूल करना विधिसम्मत है। परिवादी ने संविदा भंग करने के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत संधारणीय नहीं है। कब्जा प्राप्ति के पश्चात एवं विक्रय निष्पादित होने के पश्चात परिवादी उपभोक्ता नहीं है, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग को सुनवाई का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। प्राधिकरण के अधिशासी अभियन्ता द्वारा दिनांक 20.03.1999 को जारी पत्र की गलत व्याख्या की गई है। परिवादी द्वारा इस आशय का शपथपत्र प्रस्तुत करने पर कि वह बकाया की अदायगी करके कब्जा दिया गया है, परन्तु विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत, प्राकृतिक न्याय की प्रक्रिया के विरूद्ध जाकर निर्णय पारित किया है, जो अपास्त होने योग्य है।
3. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री पीयूष मणि त्रिपाठी उपस्थित हुए। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। अत: केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
4. पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि यह तथ्य स्थापित है कि परिवादी ने दिनांक 28.11.1996 को अंकन 3,80,000/- रूपये जमा करते हुए इन्दिरापुरम आवासीय योजना के अन्तर्गत भवन प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था। दिनांक 21.04.1997 को परिवादी को मकान संख्या-एस0के0 1/416 अनुमानित मूल्य अंकन 3,80,000/- रूपये आवंटित किया गया। अंतिम कीमत अंकन 3,98,300/- रूपये निर्धारित की गई तथा दिनांक 23.03.1998 के पत्र द्वारा इस राशि की मांग की गई।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि दिनांक 25.11.1998 को आवंटी को कब्जा प्राप्त करने के लिए पत्र लिखा गया। यह पत्र पत्रावली पर अनेग्जर संख्या-5 के रूप में मौजूद है। इसके पश्चात पुन: दिनांक 29.01.1999 को कब्जा प्राप्त करने के लिए पत्र लिखा गया, जो पत्रावली पर अनेग्जर संख्या-6 के रूप में मौजूद है। दिनांक 18.03.1999 को विक्रय विलेख निष्पादित कर दिया गया और दिनांक 22.03.1999 को अनेग्जर संख्या-7 के अनुसार कब्जा प्राप्त कर लिया गया। इन सब कार्यवाही के सम्पादित होने के पश्चात दिनांक 20.07.1999 को परिवादी द्वारा इस आशय की शिकायत की गई कि भवन में अपूर्णता है। यह शिकायती पत्र प्राप्त होने पर प्राधिकरण की ओर से दिनांक 20.07.1999 को ठेकेदार को एक पत्र लिखा गया कि परिवादी की शिकायत दूर की जाए। इस पत्र को लिखने के पश्चात परिवादी द्वारा की गई शिकायत को दूर किया गया हो, ऐसा कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। यही कारण है कि परिवादी द्वारा दिनांक 20.09.2001 को विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया। परिवादी द्वारा भवन का कब्जा प्राप्त करने के पश्चात उसके भवन के संबंध में 23.34 वर्ग मीटर भूमि आवंटित करने का आदेश देने का कोई वैधानिक औचित्य नहीं है, क्योंकि भवन का विक्रय विलेख निष्पादित हो जाने के पश्चात भवन के क्षेत्रफल से संबंधित विवाद को उपभोक्ता मंच के समक्ष नहीं उठाया जा सकता। यद्यपि कब्जा प्राप्ति के पश्चात निर्माण संबंधी त्रुटियों का विवाद विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष उठाया जा सकता है यदि प्राधिकरण इन त्रुटियों को दुरूस्त नहीं करता। स्वंय प्राधिकरण के अधिशासी अभियन्ता ने दिनांक 20.07.1999 को ठेकेदार को इस आशय का पत्र लिखा है कि भवन की कमियों को दूर किया जाए। इस पत्र में ठेकेदार के आचरण के प्रति खेद भी व्यक्त किया गया है। अत: स्वंय प्राधिकरण इस तथ्य से अवगत है कि भवन में उपभोग के उद्देश्य से अनेक प्रकार की त्रुटियां है, इसलिए इस भवन की मरम्मत के संबंध में दिया गया आदेश विधिसम्मत है। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश परिवर्तित होने योग्य है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
6. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02.04.2004 के अन्तर्गत अतिरिक्त भूमि आवंटित करने तथा 5.52 वर्ग मीटर कवर्ड एरिया की कीमत अदा करने के संबंध में पारित आदेश अपास्त किया जाता है, परन्तु भवन की मरम्मत करने में विफल होने के संबंध में जो आदेश पारित किया गया है, वह आदेश बहाल रहेगा। शेष निर्णय/आदेश पुष्ट किया जाता है।
पक्षकार इस अपील का व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय/आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2