(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद सं0- 259/2019
Preeti Nijhawan R/o 3, Hari niketan West Enclave, Pitampura, New Delhi-110034
……..Complainant
Versus
Ghaziabad development authority, Through Vice Chairman Vikas path, Distt. Ghaziabad.
……...O. P.
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादी की ओर से : श्रीमती सुचिता सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से : श्री अरविन्द कुमार के सहयोगी अधिवक्ता
श्री मनोज कुमार।
दिनांक:- 03.12.2021
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. यह परिवाद परिवादिनी प्रीति निझावन द्वारा अंतर्गत धारा 17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विपक्षी गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के विरुद्ध परिवादिनी को एलाट किए गए यूनिट को समय से तैयार न किए जाने और अवैध मांग के द्वारा सेवा में कमी किए जाने के आक्षेप पर प्रस्तुत किया गया है।
2. परिवाद में कथन इस प्रकार है कि परिवादिनी ने विपक्षी के मधुबन-बापूधाम बहुमंजिला आवासीय फ्लैट स्कीम के अंतर्गत रू0 3,42,050/- पंजीकरण शुल्क देकर एक फ्लैट बुक कराया था। प्रश्नगत फ्लैट का एलाटमेंट पत्र दिनांकित 08 जून 2012 के माध्यम से स्कीम को 807 टाइप बी सम्पत्ति कोड सं0- 22 क्यू (Silver Bells 301) किया गया था। एलाटमेंट आरक्षण पत्र में फ्लैट का अनुमानित मूल्य 34,20,000/-रू0 दर्शाया गया था तथा पंजीकरण शुल्क घटाकर परिवादी को रू0 30,78,000/- अदा करना था। उक्त पत्र में यह भी अंकित था कि यदि उपरोक्त धनराशि प्राधिकरण को निर्धारित समय के अन्दर प्रदान नहीं की जाती है तो शेष धनराशि पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी लगेगा। लीज रेंट 10 प्रतिशत मूल्य पर रजिस्ट्री/कब्जे के समय पर लगाया जाना था। सम्पत्ति का नम्बर निर्माण के समाप्त होने के उपरांत परिवादिनी को सूचित किया जाना था। पत्र में यह भी अंकित किया गया था कि निर्माण का कार्य निर्माण आरम्भ होने के 30 महीने के अन्दर पूरा कर दिया जायेगा।
3. उक्त पत्र के प्राप्त होने के उपरांत परिवादिनी ने दि0 14.07.2012 को रू0 29,07,000/- को 05 प्रतिशत डिसकाउंट का लाभ उठाने के उपरांत अदा कर दिया। जैसा कि पंजीकरण के बुकलेट में दिया गया था। परिवादिनी के अनुसार प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण पंजीकरण/आरक्षण पत्र के अनुसार दिसम्बर 2014 तक समाप्त हो जाना था, किन्तु परिवादी जब निर्माण की साइट पर गया तो उसने यह पाया कि निर्माण का कार्य अत्यंत धीमी गति से चल रहा है। परिवादिनी ने इसके उपरांत विपक्षी के आफिस में कई बार सम्पर्क किया, किन्तु प्राधिकरण के अधिकारी संतोषजनक उत्तर देने में असफल रहे। परिवादिनी का कथन है कि उसके द्वारा निर्धारित मूल्य रू0 32,49,050/- प्रश्नगत फ्लैट के मूल्य के विरुद्ध दि0 14.07.2012 को दे दिया गया है, किन्तु एक लम्बा समय व्यतीत होने के उपरांत आरक्षण पत्र के अनुच्छेद 12 के अनुसार न तो निर्माण पूरा हुआ है न ही परिवादिनी को विपक्षी का फ्लैट अस्तित्व में आया है और इस प्रकार अगस्त 2011 से परिवादिनी द्वारा अपनी मेहनत की कमाई विपक्षी को दिए जाने के बावजूद परिवादिनी एक लम्बी प्रतीक्षा अपने आवास हेतु कर रहा है।
4. परिवादिनी को पत्र दिनांकित 25.07.2018 विपक्षी की ओर से प्राप्त हुआ जिसके माध्यम से विपक्षी विकास प्राधिकरण ने रू0 3,42,000/- की मांग परिवादिनी से अनुमानित मूल्य तथा अन्तिम मूल्य के आधार पर की है। इसके अतिरिक्त रू0 2,50,000/- पार्किंग चार्जेज के रूप में मांग की। पंजीकरण की बुकलेट में कार पार्किंग दिए जाने का प्रस्ताव था। इसके अतिरिक्त परिवादी से चौकीदारी शुल्क जो बढ़ाकर रू0 1200/- कर दिया गया है उक्त पत्र के माध्यम से मांगा गया, जब कि पंजीकरण बुकलेट में चौकदारी शुल्क रू0 200/- प्रतिमाह दर्शाया गया था। परिवादी ने विपक्षी विकास प्राधिकरण से उक्त मांग को पुनर्विचार करने हेतु बार-बार कहा। चूँकि स्वयं विपक्षी की लापरवाही के कारण तीन साल की देरी हो गई थी इसके द्वारा उनको यह भी सूचित किया गया कि निर्माण में देरी विपक्षी के कारण हुई है। अत: अनुमानित मूल्य एवं देरी होने के कारण मूल्य बढ़ जाने के फलस्वरूप रू0 3,42,000/- उन्हीं के द्वारा मांगा जाना न्यायोचित नहीं है। इसके अतिरिक्त पार्किंग शुल्क तथा बढ़े हुए चौकीदारी शुल्क के सम्बन्ध में परिवादिनी ने आपत्ति की, किन्तु इस पर कोई ध्यान न देकर परिवादिनी ने उक्त पत्र दिनांकित 15.12.2018 के माध्यम से जी0एस0टी0 शुल्क रू0 1,59,407/- की मांग भी की। परिवादिनी के अनुसार बढ़े हुए मूल्य की मांग किया जाना किसी प्रकार उचित नहीं है, क्योंकि परिवादिनी की गाढ़ी कमाई वर्ष 2011 से अकारण विपक्षी के पास बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के अमानत में है। विपक्षी द्वारा परिवादिनी की आपत्ति पर ध्यान नहीं दिया गया। अत: परिवादिनी के अनुसार उसके पास अपनी धनराशि वापस मांगे जाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं बचा जो उसने ब्याज सहित दि0 11.11.2018 के माध्यम से मांगा। परिवादिनी विस्मृत रह गई, तब विपक्षी ने धनराशि 27,94,370/-रू0 परिवादिनी को दि0 28.02.2019 को वापस कर दी, जब कि उसने रू0 32,49,050/- फ्लैट के मूल्य हेतु अदा किए थे। परिवादिनी के अनुसार उक्त कटौती किया जाना अवैध है, क्योंकि स्वयं विपक्षी के सेवा में कमी के कारण ही फ्लैट के निर्माण में अत्यधिक देरी हुई है।
5. परिवादिनी का यह भी कथन है कि पंजीकरण बुकलेट तथा आरक्षण पत्र उपरोक्त में दी गई शर्तें मनमानी और एकतरफा हैं, क्योंकि उक्त पत्र के अनुच्छेद 12 में यह दिया गया है कि निर्माण आरम्भ होने के 30 महीने के भीतर पूरा हो जायेगा, किन्तु निर्माण के आरम्भ की कोई तिथि नहीं दी गई है। परिवादिनी का यह भी कथन है कि विपक्षी द्वारा प्रश्नगत निर्माण पूरा न किया जाना तथा अवैध रूप से उपरोक्त धनराशि की मांग उ0प्र0 अपार्टमेंट (Promotion of Construction, Ownership & Maintenance) अधिनियम 2010 का उल्लंघन है, जिसकी धारा 02 के अनुसार प्रत्येक निर्माणकर्ता विशिष्ट तौर पर यह देगा कि निर्माण का कार्य कब पूरा हो रहा है तथा यह भी उद्घोषित करेगा कि निर्माण में देरी होने के कारण क्या पेनाल्टी देय होगी। परिवादिनी के अनुसार विपक्षी द्वारा समय से निर्माण पूरा न किए जाने के कारण परिवादिनी को अत्यधिक नुकसान हुआ है। विपक्षी प्रश्नगत फ्लैट को पूरा करके नहीं दे रहे हैं। इस आधार पर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है जिसमें रू0 4,54,680/- की गई कटौती को 24 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वापस किए जाने तथा वापस की गई धनराशि 27,94,000/- रू0 पर 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज जमा तिथि दि0 28.02.2019 से वास्तविक अदायगी तक किए जाने तथा शारीरिक, मानसिक क्लेश के लिए रू0 5,00,000/- क्षतिपूर्ति तथा रू0 50,000/- वाद व्यय की मांग की गई है।
6. विपक्षी गाजियाबाद विकास प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत प्रतिवाद पत्र में कथन किया गया है कि परिवादिनी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि उसको ''रिजर्वेशन द्वारा पेमेंट शेड्यूल'' प्रेषित किया गया था। परिवादिनी को प्रश्नगत फ्लैट प्राप्त करने के लिए अनुमानित मूल्य तथा अन्तिम अनुमानित मूल्य का अन्तर देना था जो उसके द्वारा प्रदान नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त प्रस्तावित भवन के ब्रोसर के अनुसार अन्य चार्जेज भी उसके द्वारा दिए जाने थे जो परिवादिनी ने प्रदान नहीं किए। ब्रोसर में यह भी प्रदान किया गया था कि परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत भवन को लेने से मना करने पर अथवा सरेंडर (आत्मसमर्पण) कर देने पर उसके द्वारा जमा की गई धनराशि में से 10 प्रतिशत धनराशि काटकर शेष धनराशि वापस की जायेगी और विपक्षी द्वारा पत्र दिनांकित 25.07.2018 के माध्यम से परिवादिनी को प्रश्नगत भवन की पट्टा निष्पादित करने हेतु कहा, जिसे परिवादिनी ने जमा नहीं किया। परिवादिनी ने अपने पत्र दिनांकित 30.08.2011 के माध्यम से ब्रोसर में दिए गए सभी नियमों का पालन करने के लिए कहा था। इसलिए अब वह उक्त कथन से मुकर नहीं सकता है। परिवादी द्वारा अपने पत्र दिनांकित 28.11.2018 के माध्यम से अपनी जमा की गई धनराशि को वापस किए जाने और एलाटमेंट निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई थी। अत: विपक्षी ने उचित प्रकार से उभयपक्ष के मध्य हुए करार के अनुसार कटौती करते हुए धनराशि वापस की है। परिवादिनी द्वारा मांगे गए अनुतोष में कोई बल नहीं है। अत: परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
7. परिवादिनी की विद्वान अधिवक्ता श्रीमती सुचिता सिंह और विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री अरविन्द कुमार के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया। वाद के निर्णय हेतु पीठ के निष्कर्ष निम्न प्रकार से है:-
8. पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य परिवाद के संलग्नक 1 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादिनी प्रीति निझावन द्वारा दि0 30.08.2011 को रू0 3,42,050/- एच0डी0एफ0सी0 बैंक के माध्यम से जमा किया गया जिसकी रसीद अभिलेख पर है। विपक्षी गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के पत्र दिनांकित 08.06.2012 की प्रति परिवाद के संलग्नक सं0- 2 के रूप में अभिलेख पर उपलब्ध है जिसमें परिवादिनी प्रीति निझावन को मल्टीस्टोरी रेजीडेंसियल फ्लैट मधुबन बापूधाम स्कीम में फ्लैट एलाट करने की सूचना दी गई है तथा एलाटमेंट कोड 807 भी प्रदान किया गया है। परिवाद के संलग्नक 3 के रूप में रसीद दिनांकित 14.07.2012 की प्रतिलिपि प्रस्तुत की गई, जिससे स्पष्ट होता है कि उनके द्वारा रू0 29,07,000/- प्रीति निझावन द्वारा विजया बैंक गाजियाबाद में जमा किए गए हैं। इस प्रकार संलग्नक 1 तथा संलग्नक 3 के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि उस तिथि पर आवश्यक धनराशि परिवादिनी द्वारा दिनांकित 14.07.2012 तक जमा कर दी गई थी। परिवाद के संलग्नक 4 के रूप में प्रश्नगत भवन के ब्रोसर की प्रतिलिपि प्रस्तुत की गई है जिसकी शर्त सं0- 6.40 में यह भी अंकित है कि एलाटमेंट लेटर के 45 दिन के भीतर शेष बकाया धनराशि जमा कर देने पर 5 प्रतिशत छूट भी मिलती है। उक्त एलाटमेंट लेटर संलग्नक 2 दिनांकित 08.06.2012 का परिलक्षित होता है जिसके 45 दिन के भीतर दि0 14.07.2012 को शेष धनराशि 29,07,000/-रू0 जमा की गई है जिससे स्पष्ट होता है कि परिवादिनी ने उक्त छूट का लाभ उठाते हुए शेष धनराशि जमा कर दी है। उक्त धनराशि जमा करने के लगभग 5 वर्ष के उपरांत विपक्षी द्वारा जारी उपरोक्त पत्र दि0 25.07.2018 की छायाप्रति संलग्नक 5 के रूप में प्रस्तुत की गई है जिसमें भवन का अन्तिम मूल्य 37,62,000/-रू0 दर्शाते हुए शेष धनराशि की मांग की गई। इसके अलावा रू0 55,202/- लीज रेंट के रूप में तथा पार्किंग चार्ज 2,50,000/-रू0 की मांग भी की गई है। इस सम्बन्ध में परिवादिनी की ओर से यह तर्क दिया गया है कि उसने भवन की समस्त धनराशि पूर्व में ही जमा कर दी थी। ब्रोसर की शर्त सं0- 16.10 के अनुसार इस अनुबंध पर उ0प्र0 अपार्टमेंट अधिनियम 2010 लागू होगा। उक्त अधिनियम की धारा 4(2)(a) के अनुसार भवन निर्माता को दोनों पक्षों के मध्य हुए करार के अनुसार एक समय के अन्दर भवन का निर्माण करके परिवादिनी को प्रदान करना था जो चीफ इंजीनियर की रिपोर्ट के अनुसार 30 माह का समय था, किन्तु एक लम्बा समय लगभग 5 वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरांत भी उक्त भवन तैयार करके परिवादिनी को नहीं दिया गया। परिवाद पत्र के प्रस्तर 17 के अनुसार उक्त 3 वर्षों अर्थात् दिसम्बर 2014 के उपरांत परिवादिनी द्वारा बार-बार भवन के पूर्ण होने एवं कब्जे के लिए पूछताछ की गई, किन्तु विपक्षी विकास प्राधिकरण से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला एवं 5 वर्ष के उपरांत धनराशि बढ़ाकर मांग की गई। परिवादिनी के अनुसार भवन की लागत बढ़ने का कारण स्वयं विपक्षी द्वारा लापरवाही एवं चूक थी। स्वयं अपनी लापरवाही के आधार पर विकास प्राधिकरण बढ़ी हुई धनराशि अवैध रूप से मांग कर रहा था जिसे उसे लेने का कोई अधिकार नहीं था। स्वयं विपक्षी की गलती से निर्माण की लागत बढ़ी थी। इस कारण उसे अधिक धनराशि लेने का अधिकार नहीं था। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए परिवादी ने पत्र दिनांकित 28.11.2018 के माध्यम से बढ़ी हुई धनराशि न देने से और एलाटमेंट कैंसिल कर देने की प्रार्थना की। परिवादिनी के अनुसार चूँकि लागत स्वयं विपक्षी द्वारा की गई देरी के कारण बढ़ी थी अथवा उसके द्वारा की गई मांग अवैध थी और परिवादी ने उचित प्रकार से अधिक धनराशि देने और एलाटमेंट कैंसिल करने की प्रार्थना की। अत: विपक्षी गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को जमा धनराशि से 10 प्रतिशत कटौती करने का कोई अधिकार नहीं था।
9. परिवादी के उक्त तर्क में बल प्रतीत होता है। भवन निर्माणकर्ता का यह दायित्व है कि एक युक्त-युक्त समय में भवन निर्माण को पूर्ण करके इसका कब्जा क्रेता को प्रदान करे। प्रस्तुत मामले में यह उत्तरदायित्व विपक्षी गाजियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा नहीं पूरा किया गया। अत: अनुबंध की शर्तों के अनुसार विपक्षी द्वारा की गई कटौती न्यायोचित प्रतीत नहीं होती है और परिवादिनी की धनराशि एक लम्बे समय तक विपक्षी के पास जमा रही जिसका उपयोग विपक्षी द्वारा किया गया एवं एक लम्बे समय तक भवन का कब्जा परिवादिनी को प्रदान नहीं किया गया। अत: स्वयं परिवादिनी इस धनराशि पर ब्याज पाने का अधिकार रखती है।
10. इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय ममता अग्रवाल बनाम हूडा III(2021) CPJ पृष्ठ 201(NC) इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है जिसके तथ्य प्रस्तुत मामले के तथ्यों से मिलते-जुलते हैं। इस मामले में भी हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी द्वारा एक प्लाट एलाट किया गया, किन्तु इसका कब्जा देने में एक लम्बी देरी की गई। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा इसको सेवा में कमी मानी गई। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि प्रश्नगत प्लाट का कब्जा एलाटमेंट के 3 वर्ष की अवधि में दे दिया जाना चाहिए था, किन्तु विकास प्राधिकरण अपने इस उत्तरदायित्व में असफल रहा। कब्जा देने के स्थान पर विकास प्राधिकरण एक बढ़ी हुई धनराशि की मांग की। दोनों पक्षों के मध्य संविदा में भी यह शर्त थी कि क्रेता द्वारा प्लाट लेने से मना करने पर जमा धनराशि की 10 प्रतिशत कटौती करके विकास प्राधिकरण द्वारा जमा किया जायेगा। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा इसको सेवा में त्रुटि मानी गई।
11. इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित एक अन्य निर्णय अंसल हाऊसिंग एण्ड कंस्ट्रक्शन लि0 बनाम हेमराज प्रकाशित III (2021)CPJ पृष्ठ 182 (NC) उल्लेखनीय है। इस मामले में भी प्रश्नगत भवन का कब्जा एक लम्बे समय तक नहीं दिया गया। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा जमा की गई धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज प्रदान किया जाना उचित माना गया।
12. मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा एक अन्य निर्णय हर्ष कालरा बनाम इम्पीरिया इंफ्रास्ट्रक्चर लि0 प्रकाशित III (2021)CPJ पृष्ठ 273 का उल्लेख करना भी उचित होगा। इस मामले में भी भवन निर्माता द्वारा एक लम्बे समय तक भवन हेतु धनराशि लिए जाने के बाद भवन का कब्जा क्रेता को नहीं दिया गया। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि भवन निर्माता उक्त धनराशि मय ब्याज परिवादी को वापस करे।
13. मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त समस्त निर्णय इस मामले पर लागू होते हैं। इस मामले में भी लगभग 5 वर्ष तक धनराशि लेने के उपरांत भवन निर्माता विकास प्राधिकरण द्वारा प्रश्नगत भवन का कब्जा परिवादिनी क्रेता को नहीं दिया गया एवं यह धनराशि विपक्षी विकास प्राधिकरण के पास रखी रही तथा इसके उपरांत जमा की गई धनराशि में कटौती करते हुए 4,54,680/-रू0 विपक्षी ने अपने पास रख लिए जब कि भवन के निर्माण में और इसका कब्जा देने में हुई देरी में स्वयं विपक्षी की लापरवाही का ही योगदान था, क्योंकि अभिलेख पर ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि इस 5 वर्ष के पूर्व भी भवन का कब्जा देने का प्रस्ताव कभी विपक्षी की ओर से किया गया हो। अत: प्रश्नगत भवन के लिए जमा धनराशि में कटौती किया जाना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है। मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय के आधार पर परिवादिनी को यह धनराशि वापस दिलवाया जाना उचित है। तदनुसार परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से आज्ञप्त होने योग्य है।
आदेश
14. परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से आज्ञप्त किया जाता है। विपक्षी को निर्देश दिया जाता है कि वह कटौती की गई धनराशि 4,54,680/-रू0 निर्णय की तिथि से 01 माह के भीतर परिवादिनी को वापस करे तथा इस धनराशि पर कटौती की तिथि से वास्तविक अदायगी तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी अदा करे।
उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-1