Uttar Pradesh

Bahraich

CC/98/2013

Manoj Kumar Singh - Complainant(s)

Versus

General Manager/Director Sahara India & Others - Opp.Party(s)

Sri Shiv Prasad Madeshia

30 Jun 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER FORUM
Bahraich (UP)
 
Complaint Case No. CC/98/2013
 
1. Manoj Kumar Singh
S/o Sri Shiv Baran Singh, Moh. Jubliganj, Nanpara, Bahraich
...........Complainant(s)
Versus
1. General Manager/Director Sahara India & Others
Command Office Sahara India Bhavan 1 Kapoor Thala Complex Lucknow
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. DEEPAK KUMAR SRIVASTAVA PRESIDENT
 HON'BLE MR. NAVED AHAMAD MEMBER
 
For the Complainant:Sri Shiv Prasad Madeshia, Advocate
For the Opp. Party: Sri Satiesh Kumar Srivastava, Advocate
ORDER

 प्रस्तुत परिवाद पत्र परिवादी मनोज कुमार सिंह द्वारा विपक्षीगण जनरल मैनजर/मैनेजिंग डायरेक्टर सहारा इण्डियाकामर्शियल कारपोरेशन लि0 एवं रीजनल प्रबन्धक सहारा इण्डिया तथा शाखा प्रबन्धक सहारा इण्डिया के विरूद्ध बान्ड की रिडम्पशन वैल्यू मय ब्याज दिलाये जाने हेतु योजित किया हैं।
    परिवाद पत्र में परिवादी का कथन संक्षेप में इस प्रकार हैं कि विपक्षीगण जन सामान्य का पैेसा जमा करने का कारोबार करते हैं तथा जमाकर्ता को योजना के अनुरूप व शर्तो के अनुसार जमाकर्ता को ब्याज एवं लाभ सहित जमाकर्ता का जमा धनराशि का भुगतान करते हैं। विपक्षीगण ने सार्वजनिक रूप में एक-एक हजार रूपये के बान्ड जारी किया था तथा प्रचारित एवं प्रसारित किया था कि बान्ड खरीदने वाले क्रेता को खरीदने की तिथि से 111 माह की रिडम्पशन अवधि के बाद बान्ड का रिडम्पशन करवाने  पर जमा धनराशि का तीन गुना धनराशि का भुगतान विपक्षीगण खरीददार को करेगे अर्थात कि एक हजार रूपये कीमत के बान्ड का भुगतान 111 माह रिडम्पशन अवधि के बाद विपक्षीगण तीन हजार रूपया क्रेता/बान्डधारक को करेगे।  परिवादी ने विपक्षीसं.1 के यहां से दस हजार रूपया जमा करके एक एक हजार रूपये के दस बान्ड खरीदा। बान्ड की रिडम्पशन अवधि समाप्त होने पर परिवादी ने विपक्षी सं03 से अपने बान्ड को रिडम्पशन करवाकर 30हजार रूपये का भुगतान प्राप्त करने के लिये आग्रह किया तथा विपक्षी सं03 तरह तरह बहाने बनाकर टालता रहा और लगभग एक वर्ष तक दौड़ाता रहा तब परिवादी विपक्षी सं02 से मिला ओर अपनी समस्या बतायी परिवादी ने अपने पिता के माध्यम से दि0 30.03.12 एवं 26.07.12 को अपने बान्ड का भुगतान प्राप्त करने हेतु प्रार्थना पत्र भी दिया ओर यह प्रार्थना पत्र  विपक्षी सं02 के यहां भी प्राप्त करवाया गया काफी भाग दौड़ करने के पश्चात दि0 10.04.13 को परिवादी विपक्षी सं03 से मिला तो उन्होंने परिवादी को विड्ाल स्लिप दिया और कहा कि आप इस पर हस्ताक्षर करके देवे आप को भुगतान कर दिया जायेगा। परिवादी ने विश्वास करके विड्ाल स्लिप भर कर दे दिया तब विपक्षी स03 ने 10/4 की तारीख डाला तथा 15000/रू0 की धनराशि भरकर परिवादी को दे दिया और कहा कि कैशियर से रूपया ले लीजिये परिवादी द्वारा बताया कि प्रश्नगति बान्ड की रिडम्पशन वैल्यू 30हजार रूपया हैं और उससे एक पैसा कम नहीं लेगा। तब परिवादी के साथ दुव्र्यवहार किया गया तथा परिवादी को15000/रू0 से अधिक देने से मना कर दिया गया।                                               

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    विपक्षीगण ने अपने सम्मिलित वादोत्तर में परिवाद को कालबाधित बतलाते हुये कई विधि व्यवस्थाओं का वर्णन किया । अपने वादोत्तर में विपक्षीगण का आगे कथन हैं कि परिवादी द्वारा दि0. 30.12.2000 को नानपारा बहराइच ब्रान्च में रसीद नंबर 38070454397 के माध्यम से मात्र रू0 5000/रू0 जमा किया गया था यह कहना गलत हैं कि परिवादी ने 10हजार रूप्या जमा किया था यह भी कहना गलत हैं कि जमा धनराशिे की  रिडम्पशन वैल्यू 30000/रू0 थी। सही तथ्य यह है कि परिवादी ने मात्र 5000/रू0 जमा किया था जिसकी रिडम्पशन वैल्य 15000/रू0 थी जिसका भुगतान परिवादी को किया जा रहा था किन्तु परिवादी ने भुगतान लेने से इन्कार कर दिया। परिवादी द्वारा यह स्वीकार किया गया कि उसने दि0 30.10.2000 के बाद भुगतान प्राप्त करने विपक्षी के शाखा कार्यालय में मिला था। परिवादी को जमा धनराशि 5000/रू0 जिसकी रिडम्पशन वैल्य 15000/रू0 का भुगतान किया जा रहा था किन्तु परिवादी द्वारा भुगतान नहीं लिया गया । परिवादी द्वारा दिया गया पत्र दि0. 30.03.12 व 26.07.12 को आधार पत्र परिवाद दाखिल करने की समय सीमा का निर्धारण नहीं किया जा सकता । परिवादी को पूर्व में ही अवगत कराया गया था कि उसके द्वारा जमा धनराशि की रिडम्पशन वैल्य 15000/रू0 हैं का भुगतान किया जा रहा हैं किन्तु परिवादी द्वारा नहीं लिया गया परिवादी द्वारा स्वयं भुगतान नहीं लिया जा रहा हैं इस कारण परिवादी को ब्याज देने का कोई प्रश्न नहीं उठता। परिवादी के साथ किसी प्रकार का दुव्र्यवहार नहीं किया गया। परिवादी को दिये गये बान्ड में परिवादी ने हेरा फेरी कर 10000/रू0 जमा करना प्रदर्शित कर रहा हैं, जो गलत हैं। परिवादी ने जो राशि जमा की थी। उसकी रसीद उसके द्वारा नहीं दाखिल की गयी हैं दी गई परिवादी ने जानबूझकर रसीद दाखिल नहींे कर रहा हैं। परिवादी का परिवाद पत्र निरस्त किये जाने योग्य है।                                                            
   अपने जबाबुल जबाव में परिवादी का कथन हैं कि विपक्षीगण द्वारा अपने वादोत्तर में जिस रसीद सं0 का वर्णन किया गया हैं वहीं नंबर बान्ड पर अंकित हैं  इसी के उपर विपक्षीगण के अधिकृत कर्मचारी ने स्पष्ट रूप से डिपाजिट एमाउन्ट 10हजार रूपये लिखा हैं तथा उसी बान्ड में शब्दों में  ज्मद ठवदकमे  वदसल निससल चंपक नच इवदकमे ै।भ्।त्। ष्ज्ष् ® व ित्नचममे वदम जीवनेमदक मंबीण्   लिखा हुआ है। इससे स्पष्ट हैं कि परिवादी ने प्रश्नगत बान्ड हेतु विपक्षीगण के यहां 10 हजार रू0 जमा करके बान्डप्राप्त किये थे। यदि प्रश्नगत बान्ड गलती से जारी कर दिये जाते तो विपक्षीगण अवश्य ही इस गलती को सुधारने के लिये प्रयास करते।  
    हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तर्काे को विस्तार पूर्वक सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। 
    विपक्षीगण द्वारा यह आपत्ति की गई हेै कि परिवादी द्वारा दाखिल परिवाद पूर्ण रूप से कालबाधित हैं परिवाद दाखिल करने की तिथि 17.06.13 हैैं। जबकि बान्ड की अवधि 30.09.10 को समाप्त हो गई थी यदि भुगतान 30.09.10 के पश्चात परिवादी को विभाग द्वारा नहीं किया गया तब दो वर्ष के अन्दर परिवाद दाखिल करना चाहिये था किन्तु परिवादी द्वारा परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा24 1 में दी गई दो वर्ष की समय सीमा के बाद से दि0 17.06.13 को प्रस्तुत किया गया। इस कारण वाद  पूर्णतः काल बाधित हैं। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने हमारे सम्मुख निम्न विधि व्यवस्थायें प्रदर्शित किये
    
1- श्री मती सुरेस्टा शर्मा आदि बनाम श्री पियार चन्द2008 (3) सी.पी.आर. 334 (एन.सी.)
2-एम.एस.सुब्रामनियम बनाम इन्स्टीट्यूट आफ कास्ट वक्र्स अकाउण्ट्स आफ इण्डिया 2008(4) सी.पी.आर. 360 (एन.सी.)
3-मार्क इण्टरनेशनल बनाम बैंक आफ इण्डिया आदि 2000(1) सी.पी.आर. 269 
4-के.जी.कुमारन बनाम डां संथाराम शेट्टी एवं अन्य 2003 (1) सी.पी.आर. 81 (एन.सी.) 
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5-पंजाब अर्बन डेवलपमेंट अथांरिटी एवं अन्य बनाम एस.गुरजिन्टर सिंह आदि 2004(3) सी.पी.आर. 122 (एन.सी.)
6-मेसर्स केरला एग्रो मशीनरी कार्पोरेेशन लिमिटेड बनाम विनांय कुमार राय आदि 2002(3) सी.पी.आर. 107 (एस.सी.)
7-स्टेट बैंक आफ इण्डिया बनाम मेसर्स बी0एस0एग्रीकल्चरल इन्डस्ट्ीज ए0आई0 आर02009 एस0सी0पेज 2210। 

   विपक्षीगण के उपरोक्त तर्क से यह प्रश्न उत्पन्न होता हैं कि क्या परिवादी द्वारा दािखल परिवाद पत्र काल बाधित हैं ? विपक्षीगण द्वारा जो विधि व्यवस्थायें दािखल की गई हैं उनके अवलोकन से यही निष्कर्ष निकलता हैं कि वाद का कारण उत्पन्न होने पर दो साल की अवधि के अन्दर परिवाद पत्र फोरम में दाखिल कर दिया जाना चाहिये । इन विधि व्यवस्थाओं के अवलोकन से यह भी ज्ञात होता हैं कि पक्षकारों के मध्य किये गये पत्राचार से वाद का कारण आगे नहीं बढ़ सकता । विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क कि परिवादी को यदि दि0 30.09.10 को बान्ड की धनराशि देने से विपक्षीगण द्वारा मना कर दिया गया था तो उसके दो वर्ष के भीतर ही परिवादी परिवाद पत्र दाखिल कर सकता था तथा दो वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरान्त परिवादी का परिवाद पत्र काल बाधित हो जायेगा। परन्तु हम विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क से सहमत नहीं है क्योकि रिडम्पशन बान्ड जिसकी छायाप्रति परिवादी द्वारा दाखिल की गई हैं में रिडम्पशन की तिथि 30.03.10 अंकित हैं। परिवादी रिडम्पशन की अवधि समाप्त होने के उपरान्त जब अपने बान्ड की धनराशि प्राप्त करने हेतु विपक्षी सं03 के पास गया तो विपक्षी टालमटोल करता रहा और बान्ड का भुगतान नहीं किया गया। परिवाद पत्र के कथनानुसार वर्ष 2012 में परिवादी ने अपने पिता के माध्यम से बान्ड के भुगतान हेतु प्रार्थना पत्र भी दिया । परन्तु उस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई दि0 10.04.13 को अंतिम रूप से जब वह विपक्षी सं03 के पास बान्ड का भुगतान प्राप्त करने के लिये गया तो उससे विड्ाल स्लिप पर हस्ताक्षर करवाये गये और 15 हजार रूपये की धनराशि दिये जाने की बात कही गई इस विड्ाल स्लिप की छाया प्रति परिवादी द्वारा परिवाद पत्र के साथ दाखिल की गई। उदाहरण के तोैर पर यदि कोई व्यक्ति किसी टेलर के यहां अपनी कमीज सिलवाने जाता हैं और टेलर द्वारा 15 दिवस बाद की तिथि कमीज सिल के देने कीपर्ची में लिखी हैं तथा यदि ग्राहक 15 दिवस के स्थान पर एक माह उपरान्त अपनी सिली हुई कमीज लेने केलिये पहुचता है और कमीज में कमी होने केकारण वह पुनः एक माह बाद कमीज लेने जाता है तथा एक माह बाद टेलर उसकी कमीज देने से मना कर देता है तो वाद का कारण उस दिन उत्पन्न होगा जिस दिन अंतिम रूप् से टेलर ने कमीज देने से मना कर दिया न किस उसदिन से जबकि टेलर ने कमीज की डिलीवरी देने हेतु पर्ची पर लिखा था। इस प्रकरण में भी यदि 10.04.13 को परिवादी को 15000 रूपये का भुगतान किया जा रहा था, जो कि उसके द्वारा नहीं लिया गया ओैर जून 2013 में परिवाद पत्र दाखिल कर दिया गया तो वही माना जायेगा कि परिवादी को वाद का कारण दि0 10.04.13 को हुआ था और महज 2 महीने उपरान्त उसने फोरम में परिवाद दाखिल कर दिया ऐसी दशा में परिवाद पत्र काल बाधित नहीं कहा जा सकता तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क मानो योग्य नही हैं।
   जहां तक विपक्षीगण द्वारा बान्ड बेचने का तथ्य हैं उस तथ्य पर पक्षकारों में कोई विवाद नहीं हैं कि नियम समय मंे विपक्षीगण द्वारा जमा धनराशि का 3 गुना देने का बान्ड जारी किया जाये। विवाद केवल यह हंै कि परिवादी के कथनानुसार उसने विपक्षीगण के यहां 10हजार रू0 जमा करके 10 बान्ड प्राप्त किये थे। जिनकी रिडम्पशन डेट 30.03.10 थी  और रिडम्पशन वैल्यू रूपये 30हजार थी। विपक्षीगण के कथनानुसार परिवादी ने दि0 30.03.2000 को केवल 5000/रू0 जमा किया था और उसकी रिडम्पशन वैल्यू 15000/रू थी। परिवादी द्वारा अपने कथनों के समर्थन में अपना स्वयं का शपथ पत्र तथा बान्ड की छाया प्रति कागज सं0 7 दाखिल की गई हैं 
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इस अभिलेख का अवलोकल करने पर ज्ञात होता हैं कि परिवादी ने दि0 30.12.2000 को रूपये 10000/रू0 विपक्षीगण के यहां जमा करके 10 बान्ड प्राप्त किये थे। इन बान्ड की रिडम्पशन डेट 30.03.10 थी  और रिडम्पशन वैल्यू रूपये 30हजार थी।  इसके विपरीत विपक्षीगण की ओर से अपने कथनो के समर्थन में श्री त्रिभुवन नरायन उपाध्याय का शपथ पत्र एवं सहारा इंडिया के बुक की छाया प्रति दाखिल की गई हैं । विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने जोर देकर यह तर्क किया कि इस डे बुक के अनुसार परिवादी ने केवल 5000रू0 जमा किये थे। परन्तु विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क माननेे योग्य नहीं हैं। क्योंकि ये अभिलेख विपक्षीगण द्वारा एक तरफा रूप से अपने कार्यालय में मेनटेन किया जाता हैं। इस पर कही भी परिवादी के हस्ताक्षर नहीं हैं इसके विपरीत परिवादी द्वारा बान्ड की जो छाया प्रति दाखिल की गई हैं उसके अवलोकन से सहज ही यह ज्ञात होता हैं कि ये बान्ड विपक्षी द्वारा जारी किया गया । इस अभिलेखों में ही 10 हजार रू0 जमा करने की बात कही गई हैं इसके अलावा रिडम्पशन वैल्यू रूपये 30हजार बतलायी गई हैं। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क किया गया हंै कि परिवादी द्वारा रूपया जमा करने की रसीद न दाखिल किये जाने के कारण यह संदिग्ध हो जाता हैं कि परिवादी ने 10 हजार रू0 जमा करके बान्ड खरीदा था। परन्तु विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं हैं क्योंकि परिवादी को दी गई रसीद की काउन्टर फाइल या कार्बन कापी अवश्य ही विपक्षीगण के पास उपलबध रहीं होगी। परन्तु विपक्षीगण द्वारा उस काउन्टर फाइलो का न दाखिल करना परिवादी के कथनों को मजबूत करता हैं। यदि परिवादी द्वारा केवल 5000रू0 दाखिल किये गये थे तो विपक्षीगण उस रसीद की कार्बन कापी, काउन्टर फाइल दाखिल कर सकते थे ऐसी दशा में यही मानना न्यायसंगत होगा कि परिवादी ने दि0 30.12.2000 के यहां विपक्षीगण के यहां 10हजार रूपया जमा कराये थे। जिसका रिडम्पशन डेट 30.03.10 थी  और रिडम्पशन वैल्यू रूपये 30हजार थी। विपक्षी द्वारा इस धन की अदायगी न किये जाने के कारण यही कहा जा सकता हैं कि   विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गई हैं। 
                                                         
                                    आदेश

   परिवादी मनोज कुमार का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता हैं तथा विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता हैं कि वे निर्णय के 45 दिवस के अन्दर बान्ड की रिडम्पशन वैल्यू रूपये 30हजार तथा रिडम्पशन तिथि 30.03.10 से अदायगी की  तिथि तक 9ः साधारण ब्याज भी साथ अदा करे। परिवादी मानसिक एवं शारीरिक कष्ट के मद में 5000/रू0 तथा 2000/रू0 वाद-व्यय भी पाने की अधिकारी होगा। 

( नवेद अहमद )                                   ( दीपक कुमार श्रीवास्तव )
    सदस्य                                              अध्यक्ष  

   निर्णय आज दि0 30-06-15 को खुले फोरम में उद्घोषित एवं हस्ताक्षरित करके सुनाया गया। 

 
 
[HON'BLE MR. DEEPAK KUMAR SRIVASTAVA]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. NAVED AHAMAD]
MEMBER

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