राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-429/2010
(जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या-105/06 में पारित आदेश दिनांक 05.02.2010 के विरूद्ध)
1. लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया, ब्रांच भदोही जिला संत रविदास
नगर द्वारा ब्रांच मैनेजर।
2. लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया डिवीजनल आफिस जीवा प्रकाश
बी-12/120 गौरीगंज वाराणसी संजय प्लेस आगरा द्वारा डिवीजनल मैनेजर। .........अपीलार्थी@विपक्षीगण
बनाम्
गायत्री देवी पत्नी स्व0 राजेन्द्र प्रसाद विश्वकर्मा निवासी ग्राम एण्ड पोस्ट
मारिकपुर परगना गोपालपुर तहसील मडि़याहूं जिला जौनपुर।
........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अरविन्द तिलहरी, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :श्री रामगोपाल, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 17.02.2017
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम जौनपुर के परिवाद संख्या 105/06 में पारित निर्णय एवं आदेश दि. 05.02.10 के विरूद्ध योजित की गई है। जिला मंच द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया:-
'' परिवाद संख्या 105/06 अंशत: स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कंपनी को निर्देशित किया जाता है कि बीमित धनराशि मु0 50000/- रू. एवं उस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 12.05.06 से देयता की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ निर्णय पारित होने के दो माह के अंदर परिवादिनी को अदा करे। पक्षकार वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।''
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति राजेन्द्र प्रसाद विश्वकर्मा ने एक जीवन बीमा पालिसी रू. 50000/- की अपीलार्थी/विपक्षी संख्या 1 से ली थी, जिसकी पालिसी संख्या 282922534 है। बीमा अवधि के दौरान पालिसीधारक की मृत्यु दि. 04.11.2003 को हो गई। परिवादिनी बीमाधारक की नामिनी थी। परिवादिनी ने बीमा धनराशि को प्राप्त करने के
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लिए अपना क्लेम अपीलार्थी/विपक्षी संख्या 1 बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत किया, परन्तु अपीलार्थी बीमा कंपनी ने इस क्लेम को निरस्त कर दिया।
पीठ ने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस को सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी का कथन है कि जिला मंच का निर्णय/आदेश विधिसम्मत नहीं है और मनमाने तरीके से पारित किया गया है। अपीलार्थी का यह तर्क है कि बीमाधारक की मृत्यु दि. 04.11.2003 को ' क्रोनिक ' ' लीवर ' की बीमारी से बीमा पालिसी लेने के दो वर्ष के अदंर ही हो गई, बीमाधारक ने जानबूझकर गलत स्वास्थ्य संबंधी घोषणा करके बीमा पालिसी प्राप्त की। बीमाधारक ढाई वर्ष से ' क्रोनिक ' ' एल्कोहलिक ' था। चिकित्सक के प्रमाणपत्र तथा अस्पताल में दी गई मेडिकल हिस्ट्री से यह स्पष्ट है कि बीमाधारक काफी मात्रा में शराब लगभग ढाई साल से ले रहा था। बीमाधारक द्वारा बीमा प्रस्ताव में गलत तथ्य दर्शाया गया है कि वह शराब का सेवन नहीं करता था। अपीलार्थी ने अपने कथन के समर्थन में मा0 राष्ट्रीय आयोग के निर्णय Pushpa Chauhan Vs L.I.C. of India reported II (2011) CPJ 44 व L.I.C of India Vs Shahida Khatoon and another reported in Legal Digest (2013) 294 (N.C) तथा मा0 उच्चतम न्यायालय की नजीरों Satwant Kaur Sandhu Versus New India Assurance Company Limited (2009) 8 SCC व L.I.C. of India Versus Surinder Kaur and others Legal Digest 2007 पर भी विश्वास व्यक्त किया है।
प्रत्यर्थी ने बहस के दौरान यह तर्क प्रस्तुत किया कि बीमाधारक ने स्वास्थ्य संबंधी किसी तथ्य को नहीं छिपाया है, वह पालिसी लेते समय पूर्ण रूप से स्वस्थ था। वह सरकारी सेवक था और अपनी सेवा ठीक प्रकार से कर रहा था। वह एल्कोहलिक नहीं था। बीमा कंपनी ने बीमा पालिसी लेते समय अपने डाक्टर से बीमाधारक का चिकित्सीय परीक्षण किया था। बीमा कंपनी ने परिवादिनी के क्लेम को बिना किसी आधार के अवैधानिक रूप से निरस्त किया है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादिनी के पति स्व0 राजेन्द्र प्रसाद विश्वकर्मा ने रू. 50000/- की एक बीमा पालिसी अपीलार्थी बीमा कंपनी से ली थी, जो जनवरी 2002 से प्रभावी थी। बीमाधारक की मृत्यु दि. 04.11.2003 को हुई। अपीलार्थी बीमा कंपनी का मुख्य तर्क यह है कि बीमाधारक द्वारा जो प्रस्ताव प्रपत्र भरा था उसमें सही तथ्यों का अंकन नहीं किया। प्रस्ताव
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में यह पूछा गया था कि क्या वह शराब मादक द्रव्य किसी अन्य नशीली वस्तु या किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करता है या कभी किया है तो बीमाधारक ने उसका उत्तर नहीं में दिया है, जबकि अपीलार्थी चिकित्सक प्रमाणपत्र में चिकित्सक द्वारा यह उल्लिखित किया है कि मृत्यु बीमाधारक शराब का सेवन करता था, जिसके कारण उसका लीवर विकृत हुआ। इसी तथ्य के आधार पर बीमा कंपनी ने क्लेम को निरस्त किया है। पत्रावली पर चिकित्सालय का उपचार प्रमाणपत्र उपलब्ध है, जिसमें चिकित्सक ने भर्ती के समय बीमारी के संबंध में जो तथ्य अंकित किया है उसमें उसके प्रस्तर-4 में निम्न प्रकार अंकन है।
a. Pain abd, fever
b. jaundice, Abdominal distension
इस चिकित्सालय उपचार प्रमाणपत्र के प्रस्तर-5 में जिसमें भर्ती के समय रोगी द्वारा बतलाया गया सही था वह पूर्वव्रत क्या है, उसके संबंध में लिखा गया है।
a. pain abd- 40 days
fever - 20 days
b. jaundice - 15 days
Abdominal distension - 7 days
Jaundice का कारण bilirubin का build up होना होता है। किसी भी Jaundice के मरीज में बीमारी के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें एक कारण लीवर का खराब होना भी है। बीमा कंपनी ने कोई ऐसा साक्ष्य प्रस्तत नहीं किया गया है जिससे यह सिद्ध होता हो कि बीमाधारक पूर्व से ही अत्यधिक शराब पीता थ और अत्यधिक शराब पीने से उसे लीवर संबंधी रोग हुआ है। बीमा कंपनी ने जो चिकित्सक का प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया है उसमें मूल कारण में क्रोनिक लीवर ' डिजीज ' अंकित किया है और तत्कालीन कारण कार्डियो रिसपाइरेटरी फेलियर दर्शाया गया है। बीमा कंपनी ने अपने तर्क में यह कहा है कि मरीज ने जो अपनी बीमारी की हिस्ट्री बताई थी उसके अनुसार वह भारी मात्रा में शराब पीता था, जबकि चिकित्सालय उपचार प्रमाणपत्र में इस तरह की कोई जानकारी नहीं दी गई। सामान्यत: जब कोई मरीज भर्ती होता है तो उसी समय केस हिस्ट्री में सारी जानकारी लिखी जाती है, परन्तु इस संबंध में कोई अकाट्य साक्ष्य नहीं है, जिससे यह सिद्ध होता हो कि मरीज ने डाक्टर को यह बताया हो कि वह भारी मात्रा में शराब का सेवन करता था। चिकित्सक के प्रमाणपत्र में प्रस्तर-5 ब में निम्न प्रकार अंकन किया है।
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क्या आपके पास यह मान लेने या शंका करने का कोई कारण है कि उसे इस बीमारी क होने अथवा बढ़ जाने का कारण उसकी(मृतक)...........प्रवृत्ति थी। | Not known exactly but patient gave history of large amount of alcohol consumption for 2 1/2 yrs till 6 weeks also |
उपरोक्त में Not Known के बाद जो शब्द बढ़ाए गए हैं उसका कोई तारतम्य नहीं बनता है। चिकित्सक प्रमाणपत्र को चिकित्सक से सिद्ध भी नहीं कराया गया है और यह तथ्य जिला मंच ने अपने निर्णय में अंकित भी किया है। पत्रावली पर कोई ऐसा साक्ष्य अपीलार्थी ने प्रस्तुत नहीं किया है जिससे यह सिद्ध होता हो कि बीमाधारक ने जिस समय पालिसी का प्रस्ताव भरा था वह शराब पीता था और उसने तथ्यों को छिपाया या उसको जानकारी थी कि वह क्रोनिक लीवर की बीमारी से ग्रसित था। अपीलार्थी ने जो नजीरें प्रस्तुत की है उनके तथ्य वर्तमान अपील के तथ्य से अलग है, अत: इन नजीरों का कोई लाभ अपीलार्थी को नहीं मिल सकता है।
उपरोक्त विवेचना से हम यह पाते हैं कि बीमा कंपनी ने परिवादिनी का जो क्लेम निरस्त किया है उसका कोई आधार नहीं था। जिला मंच ने साक्ष्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए अपना निर्णय दिया है जो विधिसम्मत है उसमें हम किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं पाते हैं। जिला मंच का आदेश पुष्टि किए जाने व अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है तथा जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दि. 05.02.10 की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-4