राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-1910/2009
(जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-550/2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05-10-2009 के विरूद्ध)
गाजियाबाद डेवलपमेण्ट अथारिटी, गाजियाबाद द्वारा वायस चेयरमेन।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
गौतम कुमार गुहा निवासी 251-ए/36, एनएससी बोष रोड, नाकतला टालीगंज, कलकत्ता-700047.
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री अरविन्द कुमार विद्वान अधिवक्ता के
कनिष्ठ सहायक अधिवक्ता श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री शोभित कान्त विद्वान अधिवक्ता की
कनिष्ठ सहायक अधिवक्ता श्री क्षितिज चन्द्रा।
दिनांक : 16-04-2024.
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-550/2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05-10-2009 के विरूद्ध योजित की गई अपील के सम्बन्ध में हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
विद्वान जिला आयोग ने दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी प्राधिकरण द्वारा जारी मांग पत्र को निरस्त करने का आदेश पारित किया है। साथ ही साथ भवन सं0-ज्ञान खण्ड चतुर्थ-91 एम0आई0जी0 ट्रिपल स्टोरी इन्द्रापुरम का विक्रय विलेख निष्पादित करने का भी आदेश पारित किया है।
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परिवाद के तथ्यों के अनुसार भवन सं0-615, एम0आई0जी0, कीमती अंकन 3,20,000/- रू0 विपक्षी द्वारा दिनांक 29-12-1992 को परिवादी को इन्द्रापुरम हाउसिंग स्कीम में आवंटित किया गया था। कब्जा दो साल के अन्दर देने के लिए कहा गया था और कब्जा लेने पूर्व परिवादी द्वारा कुल अंकन 2,56,000/- रू0 जमा किया गया, परन्तु दो वर्ष के अन्दर कब्जा नहीं दिया गया। इसलिए परिवादी ने जमा धनराशि ब्याज सहित वापस करने के लिए कहा। इसके बाद विपक्षी द्वारा तत्काल आवंटन योजना निकाली गई, जिसमें परिवादी से अंकन 10,000/- रू0 की पंजीकरण धनराशि जमा कराई गई तथा दिनांक 30-03-1996 को तत्काल आवंटन योजना में भवन संख्या- ज्ञान खण्ड चतुर्थ/91, एम0आई0जी0 तीन मंजिले इन्द्रापुरम स्व वित्त पोषित आवंटित किया गया, जिसकी कीमत अंकन 5,25,000/- रू0 दर्शाई गई। पूर्व में जमा धनराशि अंकन 2,56,000/- रू0 समायोजित तो की गई, परन्तु इस राशि पर कोई ब्याज परिवादी को नहीं दिया गया। परिवाद चरण-4 में वर्णित किश्तों के क्रम में अंकन 6,02,000/- रू0 जमा कराया गया।कब्जा दिनांक 14-12-1996 को दिया गया।
कब्जा प्राप्त करने पर परिवादी को ज्ञात हुआ कि भवन अपूर्ण है। उसमें दरवाजे, खिड़कियॉं टूटी हुई हैं और कालोनी में पूर्ण सुविधा नहीं है। शिकायत किए जाने पर कोई निराकरण नहीं किया गया। इसलिए अंकन 2,56,000/- रू0 की राशि पर ब्याज की मांग करते हुए तथा भवन की मरम्मत करवाने एवं रजिस्ट्री की मांग करते हुए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया। यह भी कथन किया गया कि दिनांक 15-02-2003 को विपक्षी द्वारा अंकन 1,70,957/- रू0 की अतिरिक्त मांग की गई, जिस पर अंकन 2,992/- रू0 ब्याज सहित कुल अंकन 1,73,949/- रू0 का मांग पत्र जारी किया गया तथा मांग पत्र को निरस्त करने का भी अनुरोध परिवादी द्वारा किया गया, जो विद्वान जिला आयोग ने स्वीकार किया। तदनुसार विद्वान
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जिला आयोग ने उपरोक्त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी को वर्ष 1996 में पूर्ण सन्तुष्टि के साथ कब्जा दे दिया गया था, इसलिए वर्ष 2003 में प्रस्तुत परिवाद समयावधि से बाधित है। चूँकि परिवादी के पक्ष में विक्रय पत्र का निष्पादन परिवाद प्रस्तुत करने के पूर्व नहीं किया गया, इसलिए वाद कारण नियमित रूप से प्राधिकरण के विरूद्ध बना रहा। अत: परिवाद को समयावधि से बाधित नहीं कहा जा सकता।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने आगे बहस करते हुए कहा कि केवल अनुमानित कीमत बताई गई थी एवं वास्तविक कीमत निर्धारित होने के पश्चात् अतिरिक्त धनराशि की मांग की गई, जो परिवादी द्वारा जमा नहीं की गई। इसलिए परिवादी स्वयं डिफाल्टर है और डिफाल्टर व्यक्ति को कोई अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
पत्रावली में उपलब्ध संलग्नक-8 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी को प्रश्नगत भवन स्व वित्त पोषित योजना के अन्तर्गत दिया गया, जिसकी अनुमानित कीमत अंकन 5,25,000/- रू0 बताई गई। स्व वित्त पोषित योजना के अन्तर्गत अंकन 5,25,000/- रू0 ही जमा कराया जाना चाहिए। कीमत अंकन 5,25,000/- रू0 बताने के पश्चात् इस भवन के मूल्य में केवल 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी विधि के अन्तर्गत अनुमन्य है। 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ोत्तरी अनुज्ञेय मूल्य में करते हुए जो राशि वर्णित की गई है, उस राशि को नहीं बढ़ाया जा सकता, जबकि प्राधिकरण द्वारा अंकन 1,70,957/- रू0 की मांग की गई, जो अनुचित है। यद्यपि 10 प्रतिशत की सीमा तक मूल्य में बढ़ोत्तरी की जा सकती है, जो अंकन 5,25,000/- रू0 के 10 प्रतिशत अर्थात् 52,500/- रू0 तक बढ़ोत्तरी की जा सकती है। इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा सम्पूर्ण मांग पत्र निरस्त करने का आदेश अनुचित है। उपरोक्त वर्णित सीमा तक मांग पत्र का आदेश उचित होगा।
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प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गई कि परिवादी के पक्ष में प्रारम्भ में भवन संख्या-615, एम0आई0जी0 दिनांक 29-12-1992 को आवंटित किया गया था, जिसकी कीमत अंकन 3,20,000/- रू0 थी और परिवादी ने अंकन 2,56,000/- रू0 जमा कर दिया था। यह राशि दूसरा भवन आवंटित करने की तिथि 30-03-1996 तक प्राधिकरण में जमा रही, परन्तु इस राशि पर कोई ब्याज प्राधिकरण द्वारा नहीं दिया गया। यथार्थ में जब परिवादी को प्राधिकरण द्वारा स्व वित्त पोषित योजना के अन्तर्गत दूसरा भवन आवंटित किया गया तथा इस योजना के अन्तर्गत राशि प्राप्त की गई तब पूर्व में जमा राशि पर साधारण ब्याज की दर से ब्याज अदा अदा किया जाना चाहिए था। चूँकि प्राधिकरण इस योजना के अन्तर्गत कार्य कर रहा है, इसलिए साधारण ब्याज दिया जाना चाहिए।
तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-550/2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05-10-2009 इस प्रकार परिवर्तित करते हुए अपीलार्थी प्राधिकरण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी को दूसरा भवन आवंटित करने के दिनांक 30-03-1996 तक उसकी जमा राशि अंकन 2,56,000/- रू0 पर 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की गणना करते हुए यह राशि प्राधिकरण द्वारा बताई गई कीमत अंकन 5,25,000/- रू0 में 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की राशि में समायोजित की जाए। इस प्रकार परिवादी द्वारा अतिरिक्त धनराशि के रूप में जमा राशि के बाद, यदि गणना में अवशेष पाई जाए, समायोजित की जाए। विद्वान जिला आयोग के निर्णय के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
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अपीलार्थी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उस धनराशि को अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार शीघ्रातिशीघ्र सम्बन्धित जिला आयोग को प्रेषित की जाए ताकि जिला आयोग द्वारा उसका विधि अनुसार निस्तारण किया जा सके।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
दिनांक : 16-04-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.