राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-91/2014
(सुरक्षित)
1. Manoj Kumar Singh,
H-83, Beta-II,
Fourth Cross street,
Chitvan Estate,
Greater Noida-201309
2. Madhulika Singh
H-83, Beta-II,
Fourth Cross street,
Chitvan Estate,
Greater Noida-201309
....................परिवादीगण
बनाम
Gaursons Promoters Private limited,
Gaur Biz Park, Plot No.1,
Abhay Khand-III, Indirapuram,
Ghaziabad,
Through its Chairman/M.D/Principal officer
...................विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री पी0पी0 सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 25-01-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
वर्तमान परिवाद धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत परिवादीगण मनोज कुमार सिंह और मधुलिका
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सिंह की ओर से विपक्षी गौरसंस प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया गया है कि परिवादीगण पति और पत्नी हैं और उन्होंने अपने आवास के लिए विपक्षी के सेक्टर 16C नोएडा के प्लाट नं0 GC-16 गौर सिटी-2 की योजना 16 एवेन्यू में आवासीय फ्लैट की संयुक्त रूप से बुकिंग करायी, जिसका कुल लागत मूल्य 38,64,312/-रू0 था, जिसमें कार पार्किंग चार्ज 1,50,000/-रू0 और लीज रेंट 1,69,575/-रू0 शामिल था और पेमेंट फ्लेक्सी प्लान के अन्तर्गत होना था। परिवादीगण ने बुकिंग धनराशि 50,000/-रू0 सहित दिनांक 27.03.2011 से दिनांक 10.11.2013 के बीच कुल 26,21,467/-रू0 विपक्षी को अदा किया। तदोपरान्त विपक्षी ने पत्र दिनांक 20.10.2012 के द्वारा परिवादीगण को सूचित किया कि 16 एवेन्यू, गौर सिटी, ग्रेटर नोएडा के लेआउट प्लान में संशोधन किया जाना है, अत: वे अपनी स्वीकृति प्रदान करें। इस पर परिवादीगण ने पत्र दिनांक 22.10.2012 के द्वारा अपनी स्वीकृति प्रदान की। फिर भी विपक्षी द्वारा उक्त परियोजना का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया और परिवादीगण से अवशेष धनराशि की मांग की जाती रही। इसी बीच विपक्षी ने एलाटमेंट पत्र दिनांक 18.10.2012 के द्वारा परिवादीगण के फ्लैट का मूल्य बढ़ाकर 39,23,254/-रू0 निर्धारित किया और यह सूचित किया कि निर्माण कार्य दिनांक 31.08.2015 तक पूरा होगा। इसके साथ ही उन्होंने नया पेमेंट प्लान जो दिनांक 23.03.2011 से शुरू होकर दिनांक 31.08.2015 को पूरा होता था भेजा, जो परिवाद पत्र का संलग्नक-2 है।
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परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी ने एकतरफा तौर पर परिवादीगण के फ्लैट की कीमत 38,64,312/-रू0 से बढ़ाकर 39,23,254/-रू0 पत्र दिनांक 18.10.2012 के द्वारा किया है, जिसका उन्हें अधिकार नहीं है और ऐसा कर उन्होंने सेवा में कमी की है और परिवादीगण के विरोध के बाद भी उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी ने 36 महीने की निर्धारित समयावधि के अन्दर अप्रैल 2014 में उन्हें कब्जा नहीं दिया है और कब्जा हस्तांतरण की तिथि 31.08.2015 निर्धारित किया है। अत: इस विलम्ब हेतु परिवादीगण को अप्रैल 2014 से जमा धनराशि पर 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज प्रतिकर के रूप में देने हेतु वह उत्तरदायी है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि परिवादीगण ने विपक्षी के मार्केटिंग आफिसियल से मिलकर परियोजना के पूर्ण होने की अवधि बढ़ाए जाने का विरोध किया और अवशेष किश्त के भुगतान हेतु समय चाहा तथा जमा धनराशि पर ब्याज चाहा, परन्तु उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। अत: वह दिनांक 10.11.2013 के बाद कोई किश्त जमा नहीं कर सके। इस बीच उन्हें विपक्षी का पत्र दिनांक 10.02.2014 मिला, जिसके द्वारा परिवादीगण को एलाटमेंट निरस्त किए जाने की सूचना दी गयी।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी द्वारा उनका एलाटमेंट निरस्त किया जाना एकतरफा कार्यवाही है
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और विधि विरूद्ध है। उन्हें एलाटमेंट निरस्त किए जाने के पूर्व कोई सूचना नहीं दी गयी, जबकि कुल लागत मूल्य का 75 प्रतिशत उन्होंने जमा किया है तथा कुल लागत मूल्य का 10 प्रतिशत कब्जा हस्तांतरण के समय दिया जाना है। इस प्रकार मात्र उनके जिम्मा कुल लागत मूल्य की 15 प्रतिशत धनराशि अवशेष थी।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि परिवादी संख्या-1 मार्च 2014 में विपक्षी के अधिकारी राजीव यादव से मिला, जिन्होंने उसे भयभीत कर एक पत्र लिखाया कि उसके द्वारा जमा धनराशि ब्याज सहित 31.05.2014 तक उसे अदा कर दी जाए। उसके बाद उसने दिनांक 31.03.2014 को ही उक्त राजीव यादव को इस सन्दर्भ में पत्र भेजा और उसकी प्रति विपक्षी के चेयरमैन को भेजी। उसके बाद अप्रैल 2014 में विपक्षी के उपरोक्त अधिकारी राजीव यादव ने परिवादीगण को आश्वासन दिया कि उनका एलाटमेंट जो निरस्त किया गया है, उसे वापस ले लिया जाएगा और विपक्षी कम्पनी उसके द्वारा जमा धनराशि पर ब्याज विलम्ब हेतु देगी, जो फ्लैट के निर्धारित मूल्य में समायोजित किया जाएगा, परन्तु विपक्षी की ओर से कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। तब परिवादीगण ने उसे एक पत्र दिनांक 27.05.2014 को भेजा, जिसका विपक्षी ने कोई उत्तर नहीं दिया और निर्माण कार्य पूरा नहीं किया। अन्त में दिनांक 12.06.2014 को परिवादीगण को अपने घर के सामने एक लिफाफा मिला, जो स्पीड पोस्ट से दिनांक 06.06.2014 को भेजा गया था, जिसमें परिवादीगण से अपनी धनराशि वापस प्राप्त करने का अनुरोध किया गया था। अत: विवश
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होकर परिवादीगण ने वर्तमान परिवाद आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न उपशम चाही है:-
“i) The Opposite party be directed to deliver the possession of the flat No. 15002 in question.
ii) That the Opposite party be directed to pay the interest @ 18% per annum on his entire deposits of Rs.26,21,467/- so far paid w.e.f. 1st May, 2014 till the date of delivery/possession of the said flat.
iii) That the cancellation of the flat in question made by the opposite party vide letter dated 10-2-2014 be quashed.
iv) The Opposite party be also directed to pay sum of Rs.7,50,000/- compensation for suffering of mental agony, harassment and physical torture and economical loss.
v) The Opposite party be also directed to pay sum of Rs.1,25,000/- as cost of litigation which includes court fees paid for filing of case, expenses and lawyers fees and may also grant any such other relief as deem fit and proper by the Honble Commission in the circumstances of the case.”
विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादीगण द्वारा प्रार्थना पत्र दिनांक 23.03.2011 के द्वारा उपरोक्त फ्लैट फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत बुक कराया गया, जिसके अनुसार अपार्टमेंट का मूल्य 37,18,915/-रू0 निर्धारित किया गया। 100397/-रू0 टैक्स था। इस प्रकार कुल देय धनराशि 38,19,313/-रू0 थी और यह धनराशि परिवादीगण को फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत जमा करनी थी। इसके साथ ही 25,000/-रू0 इलैक्ट्रिक कनेक्श्ान और 20,000/-रू0 पावर बैक-अप
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कनेक्शन के लिए परिवादीगण को देना था। परिवादीगण को पार्किंग फ्री आफ कास्ट उपलब्ध करायी गयी थी।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत पेमेंट करने में परिवादीगण द्वारा चूक किए जाने पर इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान लागू होना था, ऐसी दशा में अपार्टमेंट का मूल्य बढ़ाया जा सकता था, जिसके अन्तर्गत कुल धनराशि 39,23,254/-रू0 देय थी और यह सारी बातें बुकिंग हेतु आवेदन में अंकित थी।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादीगण को फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत दिनांक 23.05.2011 तक अपार्टमेंट के मूल्य का 40 प्रतिशत 14,87,566/-रू0 जमा करना था, परन्तु उन्होंने इस अवधि में मात्र 3,81,467/-रू0 जमा किया और भुगतान करने में विलम्ब किया।
लिखित कथन में विपक्षी का कथन है कि लेआउट प्लान ग्रेटर नोएडा इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के पत्र दिनांक 28.01.2011 के द्वारा स्वीकृत किया गया तथा निर्माण कार्य शुरू किया गया। तब एलाटमेंट पत्र दिनांकित 01.04.2011 परिवादीगण को जारी किया गया और उसमें फ्लेक्सी पेमेंट प्लान और इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान दोनों अंकित किया गया तथा यह स्पष्ट किया गया कि यदि अपार्टमेंट के मूल्य का 40 प्रतिशत फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत अदा करने में चूक होती है तो यह प्लान इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान में परिवर्तित हो जाएगा और अपार्टमेंट का कुल मूल्य रू0 39,23,195.47 होगा। उसके बाद पुन:
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परिवादीगण को एलाटमेंट पत्र दिनांक 18.10.2012 जारी किया गया है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष ग्रेटर नोएडा की भूमि के अधिग्रहण को चुनौती दी गयी थी, जिसमें माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 21.10.2011 के द्वारा ग्रेटर नोएडा में सारे निर्माण कार्य पर नेशनल कैपिटल रीजन प्लानिंग बोर्ड की स्वीकृति तक रोक लगा दी गयी थी। अत: एन0सी0आर0 प्लानिंग बोर्ड की स्वीकृति मिलने पर पुन: निर्माण कार्य दिनांक 24.08.2012 को शुरू हुआ। तब विपक्षी द्वारा परिवादीगण को पत्र दिनांक 25.08.2012 के द्वारा कब्जा हस्तांतरण की पुनरीक्षित तिथि 31.08.2015 सूचित की गयी। इसके साथ ही यह सूचित किया गया कि प्लान में संशोधन हो सकता है और इसके साथ ही परिवादीगण को पत्र दिनांक 20.10.2012 लेआउट प्लान में संशोधन पर सहमति देने हेतु भेजा गया, जिस पर परिवादीगण ने पत्र दिनांक 22.10.2012 के द्वारा रिवाइज्ड डेट आफ पजेशन दिनांक 31.08.2015 पर अपनी सहमति प्रदान की और संशोधित लेआउट प्लान तथा पेमेंट प्लान पर सहमति व्यक्त की, जिसमें इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान भी उल्लिखित रहा है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादीगण ने पेमेंट प्लान का पालन नहीं किया है और उन्होंने पेमेंट करने में चूक की है। अत: उन्हें विभिन्न तिथियों में नोटिसें
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भेजी गयी हैं और अन्त में दिनांक 20.12.2013 को अंतिम अनुस्मारक भेजा गया है और यह स्पष्ट किया गया है कि पेमेंट न होने पर परिवादीगण की बुकिंग निरस्त समझी जाएगी।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि बुकिंग निरस्त किए जाने के बाद परिवादीगण ने विपक्षी को अपना प्रतिवेदन दिनांक 22.03.2014 को प्रस्तुत किया और यह कहा कि वह अवशेष धनराशि का भुगतान करने योग्य नहीं हैं। अत: उन्हें दिनांक 30.05.2014 तक अवशेष धनराशि अदा करने हेतु समय दिया जाए। इस पर विपक्षी द्वारा उन्हें ब्याज सहित भुगतान हेतु समय दिया गया, परन्तु परिवादीगण अवशेष धनराशि जमा करने में असफल रहे। अत: आवंटन जो पूर्व में निरस्त किया जा चुका था वह अंतिम रहा और परिवादीगण को रिफण्ड चेक प्राप्त करने हेतु विपक्षी की ओर से लिखा गया।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादीगण को आवंटित अपार्टमेंट दूसरे भावी क्रेताओं को आवंटित किया जा चुका है। अत: उसे परिवादीगण को पुन: आवंटित नहीं किया जा सकता है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद करार पत्र के आर्बिट्रेशन क्लाज से बाधित है और ग्राह्य नहीं है।
उभय पक्ष की ओर से अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
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परिवादीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा और विपक्षी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 सिंह अंतिम सुनवाई के समय उपस्थित हुए हैं।
हमने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
परिवादीगण के अनुसार विपक्षी ने एलाटमेंट पत्र दिनांकित 18.10.2012 के द्वारा परिवादीगण के फ्लैट का मूल्य बढ़ाकर 39,23,254/-रू0 निर्धारित किया और यह सूचित किया कि निर्माण कार्य दिनांक 31.08.2015 तक पूरा होगा। परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी के मार्केटिंग आफिसियल से मिलकर उन्होंने परियोजना के पूर्ण होने की अवधि बढ़ाए जाने का विरोध किया और अवशेष किश्त के भुगतान हेतु समय चाहा तथा जमा धनराशि पर ब्याज चाहा, परन्तु उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। अत: दिनांक 10.11.2013 के बाद वे कोई किश्त जमा नहीं कर सके।
विपक्षी ने अपने लिखित कथन की धारा-18 में कहा है कि परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का कब्जा हस्तांतरण बुकिंग की तिथि से 36 महीने के अन्दर होना था, परन्तु ग्रेटर नोएडा में सभी निर्माण कार्य पर माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के आदेश द्वारा दिनांक 21.10.2011 से दिनांक 25.08.2012 तक रोक रही। इस कारण निर्माण कार्य निर्धारित समय के अन्दर पूरा नहीं किया गया और कब्जा हस्तांतरण हेतु नई तिथि 31.08.2015 निर्धारित की गयी। विपक्षी के लिखित कथन का संलग्नक CA-5 विपक्षी द्वारा परिवादी संख्या-1 को प्रेषित पत्र दिनांक 25.08.2012 है।
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इसमें उपरोक्त तथ्य का स्पष्ट उल्लेख किया गया है और इससे स्पष्ट है कि कब्जा हस्तांतरण की पुनरीक्षित तिथि दिनांक 31.08.2015 माननीय उच्च न्यायालय का उपरोक्त स्थगन आदेश पारित होने पर निर्माण कार्य में रोक के कारण निर्धारित की गयी है। परिवादीगण की ओर से उपरोक्त अवधि में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश प्रभावी रहने के सम्बन्ध में कोई प्रतिकूल कथन नहीं किया गया है और यह नहीं कहा गया है कि माननीय उच्च न्यायालय का ऐसा कोई स्थगन आदेश प्रश्नगत भवन पर प्रभावी नहीं था। अत: भवन निर्माण पूरा न होने एवं कब्जा हस्तांतरण की तिथि बढ़ाए जाने का विपक्षी द्वारा जो कारण दर्शित किया गया है, उसके लिए उन्हें उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। विवादित भवन के कब्जा हस्तांतरण की तिथि अपरिहार्य परिस्थितियों में जो विपक्षी के नियंत्रण में नहीं थी, बढ़ायी गयी है। अत: कब्जा हस्तांतरण की तिथि विपक्षी द्वारा बढ़ाया जाना न तो अनुचित व्यापार पद्धति है और न ही सेवा में कमी है।
परिवाद पत्र में परिवादीगण ने कहा है कि विपक्षी ने पत्र दिनांक 20.10.2012 द्वारा उन्हें सूचित किया कि परियोजना के लेआउट प्लान में संशोधन किया जाना है, अत: वे अपनी स्वीकृति प्रदान करें। इस पर परिवादीगण ने पत्र दिनांक 22.10.2012 के द्वारा अपनी स्वीकृति प्रदान की। परिवादीगण ने परिवाद पत्र के साथ पत्र दिनांक 22.10.2012 की प्रति संलग्न नहीं की है। विपक्षी ने अपने लिखित कथन के साथ परिवादीगण के पत्र
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दिनांक 22.10.2012 की प्रति संलग्नक CA-6 के रूप में संलग्न की है और कहा है कि पत्र दिनांक 20.10.2012 के द्वारा उन्होंने परिवादीगण को परियोजना के लेआउट प्लान में परिवर्तन की सूचना सहमति हेतु भेजी। इस पर परिवादीगण ने पत्र दिनांक 22.10.2012 के द्वारा अपनी सहमति प्रदान की और कब्जा हस्तांतरण की बढ़ी हुई तिथि को स्वीकार किया। साथ ही इंस्टालमेंट प्लान भी स्वीकार किया। पत्र दिनांक 22.10.2012 से स्पष्ट है कि इसके द्वारा परिवादीगण ने विपक्षी को पुनरीक्षित लेआउट प्लान पर अपनी सहमति देते हुए सूचित किया है कि आपने जो सम्पूर्ण धनराशि रिफण्ड करने का विकल्प 11 प्रतिशत ब्याज के साथ दिया है, उसके लिए हम इच्छुक नहीं हैं। हमारी बुकिंग को संशोधित लेआउट और प्लान के अनुसार जारी रखा जाए।
उभय पक्ष के अभिकथन एवं पत्रावली पर उपलब्ध सम्पूर्ण अभिलेखों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि विपक्षी द्वारा परिवादीगण को आवंटित भवन के कब्जा हस्तांतरण की तिथि बढ़ाए जाने का युक्तिसंगत आधार रहा है, जो उसके अधिकार व नियंत्रण से परे था। अत: कब्जा हस्तांतरण की तिथि बढ़ाकर विपक्षी ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है और न ही कोई अनुचित व्यापार पद्धति अपनायी है।
परिवाद पत्र की धारा-13 में परिवादीगण ने कथन किया है कि विपक्षी के पत्र दिनांक 10.02.2014 के द्वारा उनका आवंटन अवशेष धनराशि के अदा करने में चूक के आधार पर निरस्त कर
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दिया गया। यह सूचना पाकर वे स्तब्ध रहे। इस पत्र में कहा गया था कि अपना रिफण्ड पाने के लिए वह विपक्षी के कर्मचारी राजीव यादव से सम्पर्क करें। परिवाद पत्र की धारा-15 में परिवादीगण ने कहा है कि उक्त पत्र पाने के बाद मार्च 2014 में परिवादी संख्या-1 राजीव यादव के पास गया, जिन्होंने उससे एक पत्र अनुचित दबाव डालकर तैयार कराया और यह लिखने को कहा कि सम्पूर्ण बकाया धनराशि ब्याज सहित दिनांक 31.05.2014 तक अदा कर दी जाएगी। परिवाद पत्र की धारा-15 में परिवादीगण ने कहा है कि उसके बाद परिवादी संख्या-1 ने पत्र दिनांक 31.03.2014 विपक्षी के उपरोक्त कर्मचारी राजीव यादव को भेजा, जिसमें सारी बात अंकित की और निरस्तीकरण वापस लेने का अनुरोध किया। परिवाद पत्र की धारा-17 में परिवादीगण ने कहा है कि उसके बाद पत्र दिनांक 27.05.2014 विपक्षी को निरस्तीकरण पत्र दिनांक 10.02.2014 को वापस लेने हेतु भेजा।
परिवादीगण की ओर से मार्च 2014 में परिवादी संख्या-1 द्वारा परिवाद पत्र की धारा-15 में कथित रूप से विपक्षी के कर्मचारी को लिखे गए दो पत्र प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। इसके विपरीत विपक्षी ने अपने लिखित कथन के साथ परिवादी का पत्र दिनांक 22.03.2014 प्रस्तुत किया है, जिसमें परिवादी ने कहा है कि पेमेंट इंस्टालमेंट के भुगतान में चूक होने के कारण उसका फ्लैट का आवंटन रद्द कर दिया गया है। अत: वह निवेदन करता है कि उसे पेनाल्टी, जो भी विपक्षी द्वारा तय की जाए, के साथ कुछ समय दिया जाए। वह सारा बकाया दिनांक 30.05.2014 तक अदा
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कर देगा। विपक्षी के अनुसार उन्होंने परिवादीगण की ओर से समय हेतु की गयी याचना को स्वीकार किया और उन्हें दिनांक 30.05.2014 तक का समय दिया। फिर भी परिवादीगण ने अवशेष धनराशि का भुगतान नहीं किया। ऐसी स्थिति में पूर्व पारित आवंटन निरस्तीकरण दिनांक 10.02.2014 प्रभावी रहा और इसकी सूचना उन्होंने परिवादी संख्या-1 को पत्र दिनांक 06.06.2014 के द्वारा दी है। परिवादीगण की ओर से ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है कि उससे विपक्षी के कर्मचारी ने पत्र दिनांक 22.03.2014 डरा धमका कर लिखाया है। इसके साथ ही उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि पत्र दिनांक 22.10.2012 के द्वारा परिवादीगण ने संशोधित लेआउट और प्लान को स्वीकृति प्रदान की है।
विपक्षी का कथन है कि परिवादीगण को जो एलाटमेंट पत्र दिनांक 01.04.2011 जारी किया गया, उसमें फ्लेक्सी पेमेंट और इंस्टालमेंट पेमेंट दोनों प्लान अंकित किया गया था और यह स्पष्ट किया गया था कि यदि अपार्टमेंट के मूल्य का 40 प्रतिशत फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत अदा करने में चूक होती है तो यह प्लान इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान में परिवर्तित हो जाएगा और अपार्टमेंट का मूल्य रू0 39,23,195.47 होगा। उसके बाद परिवादीगण को तदनुसार एलाटमेंट पत्र दिनांक 18.10.2012 जारी किया गया है। एलाटमेंट पत्र दिनांक 01.04.2011 विपक्षी के लिखित कथन का संलग्नक CA-4 है। इसके अनुसार इसमें पेमेंट प्लान में फ्लेक्सी प्लान और इंस्टालमेंट प्लान दोनों अंकित है और दोनों के मध्य में
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अंकित है कि फ्लेक्सी प्लान डिस्काउण्ट के बाद निर्धारित रेट पर आधारित है। यदि आवंटी अपार्टमेंट की लागत का 40 प्रतिशत शिड्यूल प्लान के अनुसार अदा करने में असफल रहता है तो फ्लेक्सी पेमेंट प्लान इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान में बदल जाएगा। विपक्षी ने अपने लिखित कथन में कहा है कि दिनांक 23.05.2011 तक फ्लेक्सी प्लान के अनुसार 14,87,566/-रू0 की धनराशि, अपार्टमेंट के बेसिक मूल्य का 40 प्रतिशत जमा किया जाना था। इसके विपरीत परिवादीगण ने उक्त तिथि तक मात्र 3,81,467/-रू0 जमा किया है।
लिखित कथन की धारा-5 में विपक्षी ने फ्लेक्सी प्लान के अनुसार विपक्षी द्वारा वांछित पेमेंट एवं परिवादीगण द्वारा किए गए पेमेंट व उसकी तिथि का निम्न विवरण अंकित किया है:-
Amount and Due date as per Flexi Payment Plan | Date of deposit | Amounts Deposited by the complainant |
Rs.3,21,891.5/- At the time of booking (10% of the cost) Due date-23.03.2011 | 27.03.2011 | Rs.50,000/- |
Rs.7,84,207.5/- 1st Installment within 60 days of sanction plan (30% of cost) Due date-23.05.2011 | 25.04.2011 | Rs.3,31,467/- |
Total due as per flexi plan: Rs.11,06,099 | | Rs. 3,81,467 |
एलाटमेंट पत्र में संलग्न फ्लेक्सी प्लान के अनुसार भी बुकिंग के समय 10 प्रतिशत धनराशि रू0 3,21,891.5 देय थी और उसके बाद प्रथम किश्त दिनांक 23.05.2011 को रू0 7,84,207.5 देय
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थी, परन्तु परिवादीगण की ओर से बुकिंग के समय दिनांक 27.03.2011 को 50,000/-रू0 और दिनांक 25.04.2011 को 3,31,467/-रू0 जमा करना दर्शित किया गया है। परिवाद पत्र की धारा-7 में परिवादीगण ने विपक्षी के यहॉं जमा धनराशि का जो विवरण दिया है, उसके अनुसार दिनांक 27.03.2011 को उन्होंने 50,000/-रू0, दिनांक 25.04.2011 को 1,16,000/-रू0 और दिनांक 25.04.2011 को 2,15,467/-रू0 जमा किया है। उसके बाद उन्होंने दिनांक 25.10.2012 को 7,00,000/-रू0 जमा किया है। इस प्रकार परिवाद पत्र में भुगतान की गयी धनराशि का जो विवरण दिया गया है, उससे विपक्षी द्वारा लिखित कथन में परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि के अंकित विवरण का समर्थन होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि एलाटमेंट पत्र दिनांक 01.04.2011 में जो फ्लेक्सी पेमेंट प्लान अंकित था, उसके अनुसार परिवादीगण ने भुगतान निर्धारित तिथि 23.05.2011 तक नहीं किया है। अत: इस एलाटमेंट पत्र दिनांक 01.04.2011 के अनुसार फ्लेक्सी पेमेंट प्लान इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान में संशोधित होगा। ऐसी स्थिति में परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का मूल्य रू0 39,23,195.47 एलाटमेंट पत्र के अनुसार ही हो जाएगा। अत: ऐसी स्थिति में एलाटमेंट पत्र दिनांक 18.10.2012 में इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान के अनुसार आवंटित फ्लैट का मूल्य 39,23,254/-रू0 अंकित किया जाना एलाटमेंट पत्र दिनांक 01.04.2011 के विपरीत नहीं कहा जा सकता है।
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उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि परिवादीगण को विपक्षी द्वारा आवंटित अपार्टमेंट के कब्जा हस्तांतरण की तिथि विपक्षी ने अपरिहार्य परिस्थितियों में बढ़ायी है, जो उसके नियंत्रण के बाहर रही है। अत: ऐसा करके उन्होंने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है और न ही उन्होंने कोई अनुचित व्यापार पद्धति अपनायी है। उपरोक्त विवेचना के आधार पर हमारा यह भी मत है कि एलाटमेंट पत्र दिनांक 18.10.2012 के द्वारा विपक्षी ने जो परिवादीगण के आवंटित फ्लैट का मूल्य 39,23,254/-रू0 निर्धारित किया है, वह एलाटमेंट पत्र दिनांक 01.04.2011 की शर्तों के अनुसार है। अत: इसे भी सेवा में कमी अथवा अनुचित व्यापार पद्धति नहीं कहा जा सकता है।
उपरोक्त विवेचना से यह भी स्पष्ट है कि परिवादीगण ने दिनांक 10.11.2013 के बाद विपक्षी को अवशेष किश्तों का भुगतान विपक्षी से समय लेने के पश्चात् भी नहीं किया है और किश्तों के भुगतान में विलम्ब का जो कारण परिवादीगण द्वारा बताया गया है, वह उचित और विधिसम्मत नहीं दिखता है। एलाटमेंट पत्र दिनांक 01.04.2011 में स्पष्ट प्राविधान है कि यदि पेमेंट प्लान के अनुसार निर्धारित समय पर भुगतान नहीं किया जाता है तो एलाटमेंट निरस्त किया जायेगा और फ्लैट के Basic Price का 10% जब्त कर लिया जायेगा। परिवादीगण ने एलाटमेंट पत्र स्वीकार किया है। अत: अवशेष किस्तों का भुगतान पेमेंट प्लान में निर्धारित समय पर न किये जाने के कारण विपक्षी द्वारा परिवादीगण का आवंटन निरस्त किया जाना पक्षों के बीच हुए
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करार के अनुकूल है। अत: उभय पक्ष के अभिकथन एवं सम्पूर्ण साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि विपक्षी द्वारा परिवादीगण का आवंटन जो निरस्त किया गया है, उसे अनुचित और सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता है और न ही उसे अनुचित व्यापार पद्धति कहा जा सकता है।
परिवादीगण की ओर से एक तर्क यह भी किया गया है कि वर्तमान परिवाद में अन्तरिम आदेश दिनांक 20.06.2014 को पारित कर विपक्षी को प्रश्नगत फ्लैट की यथास्थिति बनाये रखने का निर्देश दिया गया है और वर्तमान परिवाद प्रस्तुत किए जाने के बाद दिनांक 12.05.2015 को परिवादीगण ने विपक्षी को 4,50,000/-रू0 का चेक भेजा है। उसके बाद दिनांक 28.01.2016 को 13,23,195/-रू0 का चेक भेजा है। दोनों चेक विपक्षी ने प्राप्त कर इनकैश किया है। इस प्रकार विपक्षी को अंतिम और पूर्ण भुगतान हो चुका है, परन्तु विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से कहा गया है कि यह भुगतान भ्रामक रूप से किया गया था, जिससे विपक्षी के कर्मचारियों ने भ्रमबस चेक प्राप्त कर विपक्षी के खाते में जमा किया, परन्तु सही तथ्य की जानकारी होने पर परिवादीगण द्वारा जमा की गयी सम्पूर्ण धनराशि विपक्षी ने उन्हें वापस कर दी है।
हमने इस सन्दर्भ में उभय पक्ष के कथन पर विचार किया।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर हम इस मत के हैं कि विपक्षी द्वारा परिवादीगण का आवंटन निरस्त किया जाना न तो अनुचित व्यापार पद्धति है और न ही सेवा में कमी है क्योंकि
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परिवादीगण ने बिना किसी उचित आधार के आवंटन की शर्तों के अनुसार किश्तों का भुगतान नहीं किया है। आवंटन निरस्त किए जाने के बाद परिवादीगण ने जो उपरोक्त भुगतान किया है, उससे आवंटन पुनर्जीवित नहीं हो सकता है क्योंकि ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे यह जाहिर हो कि विपक्षी ने निरस्तीकरण रद्द करने की सहमति व्यक्त की, जिसके अनुपालन में परिवादीगण ने यह धनराशि उन्हें अदा की है। यदि विपक्षी की सहमति से यह धनराशि अदा की गयी होती तो विपक्षी इसे वापस न करते और आवंटित अपार्टमेंट का कब्जा परिवादीगण को दे देते। ऐसी स्थिति में हम इस मत के हैं कि स्वयं परिवादीगण ने भ्रामक रूप से यह भुगतान कर अनुचित व्यापार पद्धति अपनायी है। आयोग द्वारा पारित फ्लैट की यथास्थिति कायम रखने के अन्तरिम आदेश के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि यह भुगतान आयोग के आदेश के अनुसार किया गया है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1