राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1295 /2015
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद सं0- 125/2013 में पारित आदेश दि0 30.05.2015 के विरूद्ध)
Star health & Allied insurance company Limited, 3/329 Old Laxmi compled, Jankipuri, Ramghat road Aligarh, through Assistant Vice president star health & Allied insurance company limited zonal office Kazmi chamber 9A/5, Park road, Lucknow.
…………. Appellant
Versus
Gaurav raj bhardwaj, son of Raj pal sharma, Resident of 3/212, shyam nagar civil line District Aligarh
……………….. Respondents.
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री शिशिर प्रधान,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 14.11.2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 125/2013 गौरव राज भारद्वाज बनाम शाखा प्रबंधक, स्टार हेल्थ एण्ड इंश्योरेंस कं0लि0 व दो अन्य में जिला फोरम, अलीगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 30.05.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
“परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को इलाज का मु0 3,09,076/-रू0 खर्च तथा उस पर 6 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज परिवाद दायर करने के दिनांक से वसूल यावी के दिनांक तक का भुगतान विपक्षीगण, परिवादी को करें, मानसिक व शारीरिक क्षति के रूप में 1,000/-रू0 तथा वाद व्यय के रूप में 1,000/-रू0 परिवादी को विपक्षीगण अदा करें। विपक्षीगण उपरोक्त भुगतान एक माह के अन्दर करें तथा उपरोक्त भुगतान की जिम्मेदारी विपक्षीगण की संयुक्त रूप से तथा पृथक-पृथक रूप से होगी।“
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी स्टार हेल्थ एण्ड इंश्योरेंस कं0लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री शिशिर प्रधान उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संजय कुमार वर्मा ने वकालतनामा प्रस्तुत किया है, परन्तु अपील की सुनवाई के समय उपस्थित नहीं हुए हैं। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन का निर्णय पारित किया जा रहा है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षीगण स्टार हेल्थ एण्ड इंश्योरेंस कं0लि0 के नाम से हेल्थ इंश्योरेंस दिलाता है जिसकी अलीगढ़ शाखा का संचालन विपक्षी सं0- 1 द्वारा किया जाता है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षी सं0- 2 के प्रभाव एवं विश्वास में आकर उसने दि0 17.10.2012 को इंश्योरेंस पालिसी नं0- पी0/231120/01/2013/000072 एक मुश्त धनराशि 10,826/-रू0 देकर प्राप्त किया। पालिसी फैमिली हेल्थ ऑप्टीमा थी जिसकी अवधि दि0 17.10.2012 से 16.10.2013 तक थी और पालिसी का लाभ प्रत्यर्थी/परिवादी गौरव व उसके परिवार जिसमें पत्नी श्रीमती रश्मि शर्मा पुत्री श्यामभवी शर्मा व पुत्र सौर्य शामिल थे को मिलना था।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती रश्मि शर्मा मोटर साइकिल दुर्घटना में दि0 20.10.2012 को घायल हो गईं और उन्हें प्राथमिक चिकित्सा हेतु सिटी हॉस्पिटल अलीगढ़ ले जाया गया, फिर वहां से दि0 26.10.2012 को उन्हें इण्डियन स्पाइनल इंजरी सेंटर बसंत कुंज दिल्ली के लिए रेफर कर दिया गया। जहां पर ऑपरेशन दि0 31.10.2012 को किया गया और ऑपरेशन के बाद दि0 06.01.2012 को उन्हें डिस्चार्ज किया गया। उसके बाद भी प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी स्वस्थ नहीं है और उनका इलाज चल रहा है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी के इलाज में कुल 3,09,076/-रू0 खर्च हुआ है जिसके संदर्भ में पालिसी का लाभ प्राप्त करने हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी ने आवश्यक कागजात के साथ अपना दावा अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत किया जिसे अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने दि0 29.01.2013 को निरस्त कर दिया। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी का जो बाद में इलाज दिल्ली में हुआ है उसकी मेडिकल क्लेम की धनराशि 2,81,862/-रू0 होती है जिसका मेडिक्लेम सं0- सी0एल0आई0/2013/231120/0113537 दि0 29.03.2013 को अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने निरस्त कर दिया है और प्रत्यर्थी/परिवादी को सूचना पत्र दि0 02.04.2013 के द्वारा दिया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलाथी/बीमा कम्पनी ने उसका दावा सर्वेयर की रिपोर्ट पर विश्वास करते हुए निरस्त किया है जब कि सर्वेयर ने जो आख्या दिया है वह गलत एवं फर्जी है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से अपीलार्थी/बीमा कम्पनी को नोटिस दि0 20.05.2013 को प्रेषित किया जो विपक्षी सं0- 1 के कार्यालय ने लेने से इनकार किया जब कि विपक्षी सं0- 2 और 3 ने नोटिस प्राप्त किया, परन्तु कोई जवाब नहीं दिया। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और यह कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी की बीमारी प्रश्नगत बीमा पालिसी के अस्तित्व में आने के पहले घटित दुर्घटना के कारण हुई है। अत: यह बीमारी पालिसी के पूर्व की है। ऐसी स्थिति में प्रश्नगत बीमा पालिसी के अंतर्गत प्रत्यर्थी/परिवादी अपनी पत्नी की वर्तमान बीमारी हेतु कोई लाभ पाने का अधिकारी नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी दि0 20.10.2012 को सिटी हॉस्पिटल अलीगढ़ में भर्ती की गई हैं और दि0 26.10.2012 को डिस्चार्ज की गई हैं। डिस्चार्ज हेतु अंकित विवरण से स्पष्ट है कि स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी ने बताया है कि उसकी पत्नी मोटर साइकिल से दि0 20.10.2012 को 11:00 बजे दिन में गिरी हैं और उन्हें सीधे सिटी हॉस्पिटल ले जाया गया है। वहीं से उन्हें बाद में दिल्ली स्थानांतरित किया गया है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि पालिसी दि0 17.10.2012 को ली गई है और कथित दुर्घटना उसके ठीक बाद की बतायी गई है। इस कारण बीमा कम्पनी ने अन्वेषण करवाया है तो जांच में लाइफ लाइन इमरजेंसी सर्विस ने इस बात की पुष्टि की है कि घटना दि0 16.10.2012 की है और बीमित मरीज को एम्बुलेंस से दि0 16.10.2012 को ले जाया गया है। अत: यह मानने हेतु आधार है कि घटना बीमा पालिसी दि0 17.10.2012 को लिये जाने से पहले दि0 16.10.2012 को हुई है। अत: ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी का दावा अस्वीकार किया है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद असत्य कथन पर आधारित है। अत: निरस्त किये जाने योग्य है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/बीमा कम्पनी यह साबित करने में असफल रही है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को दि0 16.10.2012 को पेड़ की डाल गिरने से चोट आयी है। जिला फोरम ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी रश्मि शर्मा को रोड दुर्घटना में दि0 20.10.2012 को चोटें आयी हैं और उसका इलाज दि0 20.10.2012 से दि0 26.10.2012 तक अलीगढ़ में हुआ है। उसके बाद दि0 26.10.2012 से दि0 06.11.2012 तक दिल्ली में हुआ है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी पत्नी के इलाज के बिल पत्रावली में दाखिल किये हैं जिससे यह साबित होता है कि उसकी पत्नी रश्मि शर्मा के इलाज में 3,09,076/-रू0 खर्च हुआ है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह उल्लेख भी किया है कि घटना के दिन दि0 20.10.2012 को परिवादी एवं उसके परिवार के सदस्य अपीलार्थी/बीमा कम्पनी से बीमित थे। अत: वे मेडिक्लेम पालिसी के अंतर्गत इलाज की धनराशि पाने के अधिकारी हैं और अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बिना उचित आधार के खारिज किया है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत बीमा पालिसी दि0 17.10.2012 को प्राप्त की है जब कि उसकी पत्नी को चोट दि0 16.10.2012 को पेड़ की डाल गिरने से बीमा पालिसी लेने के पहले आयी है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी की प्रश्नगत चोट बीमा पालिसी से आच्छादित नहीं हो सकती है और उसके सम्बन्ध में किसी प्रतिकर या क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु बीमा कम्पनी उत्तरदायी नहीं है। अत: अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार का सेवा में कोई कमी नहीं की है। अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश त्रुटि पूर्ण है और साक्ष्य के विरूद्ध है। अत: निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के निर्णय का समर्थन करते हुए तर्क किया है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है और इसमें किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को चोट दि0 16.10.2012 को पेड़ की डाल गिरने से आयी है और यह तथ्य अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के अन्वेषक द्वारा की गई जांच में प्रकाश में आया है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के अनुसार लाइफ लाइन इमरजेंसी सर्विस ने बिल दि0 16.10.2012 के साथ अन्वेषक को अवगत कराया है कि उसका इम्बुलेंस द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को घर से मित्तल डायग्नोस्टिक सेंटर एण्ड सिटी हॉस्पिटल दि0 16.10.2012 को ले जाया गया है, परन्तु दि0 16.10.2012 को उसे मित्तल डायग्नोस्टिक सेंटर एण्ड सिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराये जाने का कोई साक्ष्य या अभिलेख अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने प्रस्तुत नहीं किया है और न ही उसके अन्वेषक ने प्राप्त किया है। स्वयं विपक्षी की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में उल्लेख किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को सिटी हॉस्पिटल अलीगढ़ में दि0 20.10.2012 को भर्ती किया गया है और वहां से उसे दि0 26.10.2012 को डिस्चार्ज किया गया है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद यह मानने हेतु कोई साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को चोट दि0 16.10.2012 को आयी थी और उसी दिन उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अपीलार्थी ने जो लाइफ लाइन की रसीद प्रस्तुत की है उस पर कहीं भी प्रत्यर्थी/परिवादी अथवा उसकी पत्नी का हस्ताक्षर नहीं है, न ही इस रसीद पर मरीज को अस्पताल में भर्ती कराये जाने की कोई प्रविष्टि है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद में स्पष्ट रूप से कहा है कि दि0 20.10.2012 को उसकी पत्नी को मोटर साइकिल दुर्घटना में चोट आयी और उसके बाद वह अपनी पत्नी को अपने निजी वाहन से चिकित्सा हेतु सिटी हॉस्पिटल ले गया है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत लाइफ लाइन की इस रसीद के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि दि0 16.10.2012 को प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को चोटें आयी हैं और उसी के लिए लाइफ लाइन की यह सेवा ली गई थी।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/बीमा कम्पनी यह साबित करने में असफल रही है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को दुर्घटना में चोटें प्रत्यर्थी/परिवादी की पालिसी दि0 17.10.2012 के पहले आयी है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त करने का जो आधार बताया है वह उचित और मान्य नहीं है। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार कर कोई गलती नहीं की है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने मेमो अपील में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपनी पत्नी के इलाज में व्यय हुई कथित धनराशि को चुनौती नहीं दी है और न ही यह उल्लेख किया है कि जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी के इलाज हेतु जो 3,09,076/-रू0 दिलाया है वह अधिक और आधार रहित है। जिला फोरम ने जो 1,000/-रू0 मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति और 1,000/-रू0 वाद व्यय प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलाया है वह भी अनुचित और अधिक नहीं कहा जा सकता है। जिला फोरम ने जो 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया है वह भी उचित प्रतीत होता है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना एवं ऊपर निकाले गये निष्कर्ष के आधार पर स्पष्ट है कि जिला फोरम के निर्णय में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अत: अपीलार्थी/बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को आक्षेपित निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1