राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या 2050/2003
राम चरन गुप्ता पुत्र श्री राम औतार, निवासी ठाकुरान, कस्बा व थाना बिलारी, जिला मुरादाबाद। अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
गनेश आईस फैक्ट्री एण्ड कोल्ड स्टोरेज, मुरादाबाद रोड चन्दौसी, मुरादाबाद द्वारा मैनेजर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1 मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन सदस्य।
2-मा0 श्रीमती बाल कुमारी सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित।विद्वान अधिवक्ता श्री एस0 के0 श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित। कोई नहीं।
दिनांक-30-10-2014
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला मंच मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-251/1999 राम चरन गुप्ता बनाम गनेश आईस फैक्ट्री एण्ड कोल्ड स्टोरेज में दिनांक 25-06-2003 को निर्णय पारित करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया गया है।
” परिवादी का परिवाद 500/-रू0 (पांच सौ रूपये) व्यय सहित खारिज किया जाता है।”
उपरोक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील दायर की गयी है।
संक्षेप में परिवाद कथन है कि परिवादी ने विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज पर दिनांक 1-04-1999 को 11 बोरी आलू लॉट सं0-1751 व 71 बोरी आलू लॉट सं0-1752 कुल 82 बोरी आलू सम्पूर्ण सीजन के लिए नियमानुसार किराये पर रखा था जिसकी विपक्षी के कर्मचारी सत्यपाल ने रसीद जारी की थी। दिनांक 30-11-1999 को सीजन समाप्त हो रहा था तो दिनांक 10-11-1999 को परिवादी ने विपक्षी के यहां अपने आलू की वापसी की बात कहीं। कोल्ड स्टोरेज के अन्दर पहुँचने पर वहॉं उपस्थित कर्मचारी ने अपना नाम रमेश बताया और शीतगृह के चैम्बर में जाकर आलू दिखाये तो बोरियों पर ढाई-ढाई तीन-तीन इंच के लम्बे कल्ले आलुओं पर निकले हुए थे। परिवादी ने ऐसी अवस्था में आलू लेने से इनकार कर दिया। परिवादी कर्मचारी रमेश के साथ प्रबन्धक के कक्ष में पहुँचा और स्थिति से अवगत कराया तो
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प्रबन्धक ने कहा कि विपक्षी के स्वामी से बात करके समस्या का समाधान शीघ्र करेंगे। 2-3 दिन पश्चात परिवादी ने विपक्षी के स्वामी से दूरभाष सं0 53858 पर बातचीत की तो कहा कि आलू खराब नहीं है और उसी स्थिति में वापस लेना होगा। परिवादी ने दिनांक 18-11-1999 को विपक्षी को पंजीकृत डाक से नोटिस दिया किन्तु कोई उत्तर नहीं दिया। विपक्षी की लापरवाही से परिवादी को 82 बोरी आलू मूल्य 16000/-रू0 की क्षति पहुँची और आलू बाजार में न पहुँचने से परिवादी को 5000/-रू0 को क्षति पहुँची है अत: परिवाद योजित किया।
विपक्षी ने अपने लिखित कथन में परिवादी के द्वारा आलू जमा करना स्वीकार किया किन्तु परिवाद पत्र के शेष तथ्य अस्वीकार करते हुए विशेष कथन में कहा है कि आलू का सीजन 31-10-1999 को समाप्त हो जाता है और परिवादी ने अपने उत्तर दायित्व से बचने के लिए सीजन दिनांक 30-11-1999 तक का होना बताया है। परिवादी का दिनांक 10-11-1999 को शीतगृह जाना और किसी रमेश नामक कर्मचारी के द्वारा आलू दिखाने का कथन गलत और असम्भव है क्योंकि कोई भी बाहरी व्यक्ति शीतगृह में प्रवेश नहीं कर सकता है। शीतगृह में आलुओं से कल्ले निकलने के तथ्य असत्य हैं। शीतगृह से बाहर आलू तभी निकल सकता है जब निश्चित किराया व पल्लेदारी आदि के व्यय भुगतान हो जाये। शीतगृह के अन्दर आलू दिखाये जाने का कोई अवसर नहीं दिया जाता है। परिवादी ने सीजन समाप्त होने तक न तो माल उठाया और न ही शीतगृह का किराया भुगतान किया। बारदाना भी परिवादी ने विपक्षी से लिया था और उसका भी कोई मूल्य 1760/-रू0 परिवादी को नहीं दिया। परिवादी की ओर 5330/-रू0 शीतगृह का किराया बनता है वह भी परिवादी ने भुगतान नहीं किया। अन्य 82/-रू0 भी विभिन्न प्रकार के व्यय परिवादी ने भुगतान नहीं किये। वर्ष 1999 में आलू का मूल्य बहुत कम हो गया था और उसका मूल्य खर्चा काटने के पश्चात नुकसान में जा रहा था। इसलिए परिवादी ने जानबूझकर आलू नहीं उठाया। किसी प्रकार का नोटिस दिया जाना विपक्षी के ज्ञान में नहीं है। यदि नोटिस प्राप्त होता तो उसका उत्तर दिया जाता है प्रतीक्षा करने के पश्चात जब परिवादी ने आलू नहीं उठाया तो उसे बाहर फेंक दिया गया। परिवादी का परिवाद फोरम में पोषणीय नहीं है और विपक्षी परिवादी से सम्बन्धित पूर्व वर्णित व्यय पाने का अधिकारी है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0 के0 श्रीवास्तव उपस्थित, उनके तर्कों को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से नोटिस बावजूद कोई उपस्थित नहीं है।
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अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्वान जिला मंच ने उसके द्वारा प्रस्तुत किये गये तथ्यों एवं साक्ष्य पर सही आकलन गुण-दोष के आधार पर न करते हुए गलत निर्णय पारित किया है जो कि निरस्त किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि विपक्षी/प्रत्यर्थी ने उसके द्वारा भेजे गये नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया और विपक्षी से दूरभाष पर बात करने पर यह गलत बताया गया कि आलू खराब नहीं है और परिवादी को उसी स्थिति में वापिस लेना होगा। अत: इस आधार पर भी विद्वान जिला मंच का आदेश निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया गया जिसमें कि विद्वान जिला मंच ने यह निष्कर्ष निकाला है कि दिनांक 18-11-1999 को भेजे गये किसी भी नोटिस का दिया जाना विधिवत प्रमाणित नहीं होता है तथा यह भी प्रमाणित नहीं होता है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा परिवाद को योजित करने से पूर्व किसी अधिकारी से शिकायत की गयी थी। विद्वान जिला मंच ने विपक्षी के साक्ष्य एवं अभिकथन को तुलनात्मक दृष्टि से अधिक विश्वसनीय पाया है और उसी आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि परिवादी, विपक्षी/प्रत्यर्थी की ओर से सेवा में कमी होना प्रमाणित करने में असमर्थ रहा है। हमारी राय में विद्वान जिला मंच द्वारा सही निर्णय पारित किया गया है जिसमें कि हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है, तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
वाद व्यय पक्षकार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(अशोक कुमार चौधरी) (बाल कुमारी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
मनीराम आशु0-2
कोर्ट- 3