Uttar Pradesh

StateCommission

R/2013/94

Prafful Jain - Complainant(s)

Versus

Ganesh Construction - Opp.Party(s)

R P Singh

07 Aug 2013

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. R/2013/94
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Prafful Jain
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Petitioner:
For the Respondent:
ORDER

(राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)

                सुरक्षित                   

पुनरीक्षण वाद संख्‍या 94/2013

(जिला मंच गाजीपुर द्वारा परिवाद सं0 53/2012 एवं परिवाद सं0 प्र0 160/12 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 29/06/2012 तथा 26/04/2013 के विरूद्ध)

 

श्री प्रफुल्‍ल जैन प्रोपराइटर, स्‍पेक्‍ट्रारपूर फलूईड कान्‍सेप्‍ट्स सी0 134, एम.पी. इन्‍क्‍लेव पीतमपुरा दिल्‍ली।

                                                                                                …पुनरीक्षणकर्ता

बनाम

मे0 गणेश कान्‍स्‍ट्रक्‍शन, बजरिये- प्रो0 श्री आनन्‍द ग्राम बखारीपुर  तहसील मुहम्‍मदाबाद जिला गाजीपुर उत्‍तर प्रदेश।

                                                 .........विपक्षी                

समक्ष:

       1. मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य ।

  2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित     : कोई नहीं।

विपक्षी की ओर से उपस्थित          : कोई नहीं।

 

दिनांक   30/10/2014

मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित ।

निर्णय

 

     प्रस्‍तुत पुनरीक्षण परिवाद सं0 53/12 गणेश कान्‍स्‍ट्रक्‍शन बनाम प्रफुल्‍ल जैन में जिला मंच गाजीपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29/06/2012 एवं  प्रकीर्णवाद सं0 160/12 प्रफुल्‍ल जैन बनाम मे0 गणेश कान्‍स्‍ट्रक्‍शन निर्णय/आदेश दिनांक 26/04/2013 से क्षुब्‍ध होकर पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्‍तुत किया गया है।

     प्रश्‍नगत प्रकरण में में जिला पीठ ने निर्णय/आदेश दिनांक 29/06/2012 के अन्‍तर्गत परिवाद को एकपक्षीय रूप से परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया कि वह 1,51,000/ रूपये तथा उस पर चेक ड्रा किये जाने की तिथि से अदागयी की तिथि तक 08 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज की दर से भुगतान होने वाली धनराशि तथा मु0 500/- रूपये बाबत परिवाद व्‍यय, परिवादी को अदा करें।

     जिला पीठ के समक्ष प्रस्‍तुत प्रकीर्ण वाद सं0 160/12 में यह प्रार्थना की गई कि परिवाद सं0 53/12 मे0 गणेश कान्‍स्‍ट्रक्‍शन बनाम प्रफुल्‍ल जैन में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29/06/2012 को निरस्‍त कर गुणदोष के आधार पर मुकदमे का निस्‍तारण किया जाय। जिला पीठ ने दोनों पक्षों के साक्ष्‍य का अवलोकन करते हुए तथा विद्वान अधिवक्‍ताओं की बहस सुनने

 

2

के बाद रिकॉल प्रार्थना को इस आधार पर खारिज किया कि जिला पीठ को अपने निर्णय/आदेश को रिकॉल करने का अधिकार नहीं है।

     प्रस्‍तुत प्रकरण में परिवादी का कथन इस प्रकार है कि परिवादी मे0 गणेश कान्‍स्‍ट्रक्‍शन का प्रोपराइटर है। प्रतिपक्षी मिनरल वाटर के प्‍लांट को स्‍टेब्लिश करने का कार्य करता है। परिवादी ने उपरोक्‍त संयंत्र स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से विपक्षी से विस्‍तृत जानकारी ली। विपक्षी तथा उसके एजेन्‍ट ने कई बार परिवादी से संपर्क करके उपरोक्‍त मिनरल प्‍लान्‍ट के बारे में उसे सविस्‍तार जानकारी दी। उन्‍होंने बताया कि मिनरल वाटर प्‍लांट स्‍थापित करने में मु0 3,00,000/ रूपये खर्च आयेगा, जिसमें से आधी धनराशि का भुगतान अग्रिम के रूप में करना होगा। परिवादी ने उनकी बातों पर विश्‍वास करके, दिनांक 21/12/2010 को मु0 1,51,000/ रूपये का चेक विपक्षी को दिया। उपरोक्‍त चेक की धनराशि विपक्षी ने ड्रा कर ली, किन्‍तु विपक्षी ने न तो मिनरल वाटर प्‍लांट स्‍टेब्लिश किया और न ही इस संदर्भ में कोई उचित जवाब दिया। मु0 1,51,000/ रूपये अग्रिम धनराशि लेने के बाद भी विपक्षी ने वांछित सेवा प्रदान नहीं की।

     पुनरीक्षणकर्ता की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। यह पुनरीक्षण काफी दिनों से अंगीकरण के स्‍तर पर सुनवाई हेतु सूचीबद्ध है, जिसका शीध्र निस्‍तारण किया जाना आवश्‍यक है।

     आधार पुनरीक्षण एवं संपूर्ण पत्रावली का अवलोकन किया, जिससे यह प्रतीत होता है कि अपने किसी निर्णय अथवा आदेश के रिकॉल करने का अधिकार प्राप्‍त न होने के कारण दिनांक 26/04/2013 के आदेश से प्रश्‍नगत प्रकीर्णवाद को खण्डित करके जिला पीठ ने कोई विधिक त्रुटि नहीं की है। इस प्रकार दिनांक 26/04/2013 को जिला पीठ द्वारा दिया गया आदेश विधि अनुकूल है और इसमें हस्‍तक्षेप करने की कोई आवश्‍यकता नहीं है।

     यह पुनरीक्षण विलम्‍ब से योजित किया गया है। विलंब क्षमा प्रार्थना पत्र के साथ शपथ पत्र भी प्रस्‍तुत किया गया है। विलम्‍ब क्षमा प्रार्थना पत्र में यह आधार लिया गया है कि जिला पीठ के निर्णय की कापी 29/06/2012 को प्राप्‍त कर जिला पीठ के समक्ष 14/12/2012 को रिकॉल प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किया गया, जो दिनांक 26/04/2013 को खारिज हो गया। जिला पीठ का आदेश दिनांक 29/06/2012 एवं 26/04/2013 आदेश की नकल 29/04/2013 को प्राप्‍त हुई। जिला पीठ के निर्णय एवं आदेश की कापी 29/04/2013 को प्राप्‍त होने के बाद अपील तैयार कर पंजीकृत डाक से दिनांक 17/07/2013 को प्रस्‍तुत की गई। दिनांक 29/04/2013 से दिनांक

 

3

17/07/2013 तक विलंब का कोई पर्याप्‍त कारण प्रस्‍तुत नहीं किया गया है। इस प्रकार विलंब क्षमा प्रार्थना पत्र क्षमा किया जाने योग्‍य नहीं है।

     आर.बी. रामलिंगन बनाम आर.बी. भवनेश्‍वरी 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इण्‍डस्ट्रियल डवपमेंट अथॉरिटी,v (2011) सी.पी.जे. 63 (एस.सी.) में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से प्रस्‍तुत किया है, क्‍या उसका कोई औचित्‍य है, क्‍योंकि देरी को क्षमा किये जाने के संबंध में यही मूल परीक्षण जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई देरी स्‍वाभाविक देरी है? उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किये जाने में हुई देरी को क्षमा किये जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है, क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किये जाने के, जो प्राविधान दिये गये हैं उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किये जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गई अपील को बिना स्‍वाभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किये हुए अंगीकरण कर लिया जाता है तो इसे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान के अनुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण संबंधी उद्देश्‍य ही विफल हो जायेगा।

     प्रस्‍तुत प्रकरण में पुनरीक्षण काफी विलंब से प्रस्‍तुत किया गया है, जिसमें विलंब क्षमा प्रार्थना पत्र दिया गया है, लेकिन विलंब क्षमा का आधार पर्याप्‍त एवं संतोषजनक नहीं है। अत: अंगीकरण के स्‍तर पर यह पुनरीक्षण अस्‍वीकार किया जाने योग्‍य है।

आदेश

         प्रस्‍तुत पुनरीक्षण अंगीकरण के स्‍तर पर अस्‍वीकार किया जाता है।

 

                               (आलोक कुमार बोस)

                                                            पीठासीन सदस्‍य

 

                                                                          (संजय कुमार)

    सुभाष चन्‍द्र आशु0 ग्रेड 2 कोर्ट 05                             सदस्‍य                                                  

 

 

 

    

 

 

 

 
 
[HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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