राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-381/2019
(जिला उपभोक्ता आयोग, मैनपुरी द्धारा परिवाद सं0-98/2017 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16.11.2018 के विरूद्ध)
रविन्द्र कुमार गुप्ता पुत्र जगन्नाथ प्रसाद निवासी 108 लोहाई, दाऊजी मन्दिर के पास करहल रोड, थाना कोतवाली जिला मैनपुरी।
........... अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1- जनरल मैनेजर/सी0ई0ओ0 यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, द्वारा जिला कार्पोरेट ऑफिस, यूनिट 401 चतुर्थ फ्लोर, संगम कॉम्प्लेक्स, 127 अन्धेरी, कुर्ली रोड, अन्धेरी, ईस्ट, मुम्बई-400059
2- मैनेजर, यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, द्वारा रजिस्टर्ड क्षेत्रीय कार्यालय, पंचम फ्लोर, रूम नम्बर 517,518 ग्लोवस मैगा मॉल-2 दि माल कानपुर-208001
3- प्रवीन पालीवाल, बिजनेश ऐसोसिएट, श्री टेलीट्रेट, निकट रेलवे स्टेशन, भारत गैस ऐजेन्सी के पास, स्टेशन रोड, मैनपुरी-205001
…….. प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री विजय कुमार यादव
प्रत्यर्थीगण के अधिवक्ता : श्री दिनेश कुमार
दिनांक :- 11.11.2022
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/ परिवादी रविन्द्र कुमार गुप्ता द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, मैनपुरी द्वारा परिवाद सं0-98/2017 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16.11.2018 के विरूद्ध योजित की गई है।
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संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने मोटर साइकिल सं0 यू.पी. 84के/0773 का बीमा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-3 श्री टेलीट्रेट निकट रेलवे स्टेशन भारत गैस एजेन्सी के पास स्टेशन रोड़, मैनपुरी से दिनांक 07.03.2014 को कराया था, जो दिनांक 06.03.2015 तक प्रभावी था, उक्त मोटर साइकिल दिनांक 14.05.2014 को चोरी हो गयी, जिसके संबंध में थाना कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करायी गयी। अपीलार्थी/परिवादी की मोटर साइकिल की चोरी के सम्बंध में दर्ज हुई रिपोर्ट में विवेचक द्वारा एफ.आर. लगा दी गयी तथा अपीलार्थी/परिवादी सारी कागजी खानापूर्ति करके प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-3 के कार्यालय गया, लेकिन प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने बीमा धनराशि देने से मना कर दिया, अत्एव अपीलार्थी/परिवादी द्वारा कानपुर में क्षेत्रीय कार्यालय पर सम्पर्क किया लेकिन प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा धनराशि प्रदान नहीं की गयी, जिसके कारण अपीलार्थी/परिवादी को काफी मानसिक कष्ट हुआ एवं अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 26.04.2017 को एक पंजीकृत नोटिस प्रत्यर्थी/विपक्षीगण को दिया गया, जिसका कोई जवाब प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा नहीं दिया गया, अत: विवश होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा बीमा धनराशि प्राप्त करने हेतु यह परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख दायर किया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से प्रतिवाद पत्र दाखिल कर यह कथन किया गया है कि बीमा पॉलिसी में यह शर्त रखी जाती है कि बीमाधारक चोरी की सूचना तुरन्त ही पुलिस को उपलब्ध कराये, जिससे पुलिस तुरन्त ही सक्रिय होकर मोटर साइकिल को बरामद करने की कोशिश कर सके तथा साथ ही साथ बीमाधारक को सूचना दे, जिससे कि बीमा कम्पनी पुलिस के सहयोग से मोटर साइकिल को पकडवाने व रिकवर कराने की कोशिश कर सके तथा यदि चोरी होने पर बीमाधारक द्वारा सूचना तुरंत प्रदान नहीं की जाती है, तो बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन होने के कारण वह बीमा धनराशि पाने का अधिकारी
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नहीं होता है। उक्त परिवाद में अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 14.05.2014 को चोरी होना अंकित किया है तथा चोरी की रिपोर्ट दिनांक 20.05.2014 को दर्ज हुई है। बीमा कम्पनी को भी घटना के सात दिन बाद सूचना प्रदान दी गयी। इसके अलावा बीमाधारक द्वारा पुलिस को 100 नम्बर पर कोई सूचना नहीं दी गयी। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी के कार्यालय से भेजे गये जॉचकर्ता को व भेजे गये पत्रों दिनांकित 09.09.2014 व 30.09.2014 व 30.10.2014 के जवाब में भी कोई प्रपत्र उपलब्ध नहीं कराये गये, जिसके कारण यह बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन होने के कारण अपीलार्थी/परिवादी का क्लेम को विधिवत रूप से निरस्त किया गया था।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत परिवाद को निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी की ओर से द्वारा प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी/परिवादी की मोटर साइकिल बीमे का क्लेम प्रत्यर्थी/बीमा कम्पनी की ओर से इस आधार पर निरस्त किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस में देरी से लिखायी है। अपने प्रतिवाद पत्र में बीमा कम्पनी द्वारा यह कहा गया है कि बीमाधारक को चोरी की सूचना तुरन्त ही पुलिस को उपलब्ध कराने का उत्तरदायित्व होता है, जिससे पुलिस तुरन्त ही सक्रिय होकर वाहन को बरामद करने का प्रयत्न कर सके। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने इसी तथ्य को मानते हुए यह निर्णय दिया कि अपीलार्थी/परिवादी का कर्तव्य था कि वह शीघ्रता से पुलिस को सूचना देता, जिससे बीमा कम्पनी पुलिस के सहयोग से वाहन के चोर को पकडवाने तथा वाहन को बरामद कराने का प्रयत्न कर सके। यदि बीमाधारक द्वारा सूचना तुरंत नहीं प्रदान की जाती है तो बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन होने के कारण बीमा की धनराशि बीमाधारक पाने का अधिकारी नहीं है। अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक
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14.5.2014 को चोरी होना अंकित किया है तथा चोरी की रिपोर्ट दिनांक 20.05.2014 को की गई है और इस आधार पर अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्त किया गया है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रतिलिपि अभिलेख पर दाखिल की गई है जिसके अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दिनांक 14.5.2014 को वाहन की क्षति होने पर 06 दिन बाद दिनांक 20.5.2014 को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गई थी। पुलिस को यह सूचना देरी से दी गई है। बीमा पालिसी की शर्त के अनुसार चोरी अथवा आपराधिक कृत्य से हुई क्षति की दशा में बीमित का यह कर्तव्य है कि वह इसकी सूचना पुलिस को अति-शीघ्रता से दे, किन्तु 06 दिन बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होना यह दर्शाता है कि अपीलार्थी/परिवादी ने देरी से सूचना दी है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय गुरूशिन्दर सिंह बनाम श्रीराम जनरल इं0कं0लि0 1(2021) सी0पी0जे0 पृष्ठ 96 (एस0सी0) इस संबंध में उल्लेखनीय है कि जिसमें यह निर्णीत किया गया है कि देरी से सूचना दिये जाने पर बीमा पालिसी की उक्त शर्त का उल्लंघन है।
उपरोक्त देरी 06 दिन की है अत: सम्पूर्ण क्लेम को अस्वीकार कर दिया जाना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय श्रीराम जनरल इं0कं0लि0 बनाम अब्दुल रहमान शाहबुद्दीन सिद्दीकी, प्रकाशित 4 (2019) सी0पी0जे0 पृष्ठ 582 (एन0सी0) उल्लेखनीय है, जिसमें परिवादी द्वारा देरी से प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गई है, जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि बीमे की इस शर्त के उल्लंघन के आधार पर नौन स्टैण्डर्ड बेसिस पर बीमा क्लेम दिया जाना उचित होगा। मा0 राष्ट्रीय आयोग के निर्णय के दृष्टिगत करते हुए बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत इस मामले में दिया जाना उचित पाया है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवादी का सम्पूर्ण क्लेम खारिज किया जाना उचित माना गया एवं इसलिए परिवादी का परिवाद भी
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अपास्त किया गया है, अत: प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए परिवादी का परिवाद भी आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा प्रत्यर्थी/बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वे बीमित धनराशि की 75 प्रतिशत धनराशि अपीलार्थी/परिवादी को परिवाद दाखिल करने की तिथि से वास्तविक अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के साथ अदा करें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1