Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 120/2014 Atul Gupta aged about 41 years son of Sri Chandra Prakash Gupta resident of E.D. 648, Sector Q Aliganj, District Lucknow. - Complainant
Versus - General Manager, Eldeco City Pvt. Ltd, IInd Floor, Eldeco Corporate chamber-I Vibhuti Khand (Opp. Mandi Parishad) Gomti Nagar District Lucknow.
- Assistant General Manager (Marketin), Eldeco City Pvt. Ltd. IInd Floor Eldeco Corporate Chamber-I Vibhuti Khand (Opp. Mandi Parishad) Gomti Nagar District Lucknow.
- Senior Vice President (Marketing), Eldeco City Pvt. Ltd. IInd Floor Eldeco Corporate Chamber-I Vibhuti Khand (Opp. Mandi Parishad) Gomti Nagar District Lucknow.
- Opp. Parties
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री बृजेन्द्र चौधरी श्री नीरज सिंह विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता:-श्री राजेश चड्ढा दिनांक:-13.08.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध परिवादी के पक्ष में आवंटित विला सं0 775 टाईप सी एल्डिको सिटी प्राइवेट लिमिटेड का निरस्तीकरण आदेश अपास्त करने के लिए, ऋण प्राप्ति के उद्देश्य से वांछित दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए, इसके बाद परिवादी द्वारा जमा राशि को 18 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस लौटाने का अनुतोष भी मांगा गया है। अंकन 10,000/-रू0 क्षतिपूर्ति एवं 50,000/-रू0 वाद खर्च की मांग की गयी है।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने दिनांक 01.11.2010 को विपक्षीगण से एक विला प्राप्त करने के लिए पंजीकरण कराया। दिनांक 08.11.2010 को विला संख्या 775 क्षेत्रफल 167.40 स्क्वायर मीटर या 1802 स्क्वायर फीट परिवादी को आवंटित किया गया। परिवादी ने पंजीकरण के समय 1,92,433/-रू0 जमा कराये थे। विला का कुल मूल्य 38,33,045/-रू0 निश्चित हुआ था कि 10 प्रतिशत मूल्य अंकन 3,92,374/-रू0 परिवादी ने 29.11.2010 को अदा किये। अवशेष मूल्य 75 प्रतिशत 15.01.2011 तक अदा करना था। इस राशि में 10 प्रतिशत की छूट इस शर्त के तहत दी जानी चाहिए थी। यदि किश्तों का नियमित रूप से भुगतान किया जायेगा। ऋण प्राप्त कराने करने के उद्देश्य से परिवादी ने दिनांक 13.11.2010 को विपक्षी को वांछित दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए सम्पर्क किया। दिनांक 05.01.2011 को सूचित किया गया कि योजना के अनुसार 60 प्रतिशत भूमि विपक्षी कम्पनी को क्रय करनी है तथा अवशेष 40 प्रतिशत भूमि सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जायेगी। बाद में 13.11.2010 को विपक्षी सं0 3 द्वारा सूचित किया गया कि जमीन के संबंध में कुछ विवाद है, इसलिए सूचना बाद में दी जायेगी। इसके बाद 05.01.2011 को उपरोक्त वर्णित पत्र प्रेषित किया गया। इस पत्र से जाहिर है कि विपक्षीगण द्वारा स्वामित्व सुनिश्चित किये बिना ही विला सं0 775 परिवादी को आवंटित कर दी गयी। इसके बाद दिनांक 10.02.2012 को विपक्षी सं0 2 ने तृतीय करार की प्रति उपलब्ध करायी, जिसमें खसरा सं0 404 का मालिक भी दर्शाया गया था, जिस पर यूनिट सं0 775 तैयार होनी थी। खसरा सं0 404 टरबो रिटेलर प्राइवेट लिमिटेड के नाम दर्ज है तथा एल्डिको सिटी प्राइवेट लिमिटेड के नाम दर्ज नहीं है। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा वास्तविक तथ्यों को छिपाया गया। दिनांक 30.03.2012, 11.04.2012, 22.05.2013 एवं 24.05.2013 तथा 04.07.2013 को ऋण प्राप्त करने के उद्देश्य से दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए कहा। इसके बाद दिनांक 22.08.2013 को विपक्षीगण द्वारा उपलब्ध कराये गये कागजात के आधार पर यूनियन बैंक आफ इंडिया के समक्ष ऋण का आवेदन दिया गया, जिनके द्वारा विला सं0 775 के संबंध में ऋण देने से इंकार कर दिया गया।
- दिनांक 08.03.2014 को अंकन 46,08,147/-रू0 ब्याज सहित अदा करने का प्रेषित किया गया, जबकि इस तिथि को केवल 88,831/-रू0 बकाया थे। पुन: दिनांक 13.06.2014 को विपक्षीगण द्वारा नोटिस प्रेषित किया गया। इसके बाद दिनांक 03.07.2014 को अंकन 47,25,816/-रू0 दिनांक 15.07.2014 तक जमा करने के लिए कहा गया अन्यथा आवंटन निरस्त करने के लिए लिखा गया। इसके बाद दिनांक 14.07.2014 को परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से लीगल नोटिस प्रेषित किया गया। विपक्षीगण द्वारा दिनांक 07.08.2014 को अवशेष धनराशि की मांग की गयी और विफलता पर आवंटन निरस्त करने की धमकी दी गयी, इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र तथा एनेक्जर सं0 1 लगायत 16 प्रस्तुत किये गये हैं।
- विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में प्रारंभिक आपत्ति यह की गयी है कि एल्डिको सिटी प्रा्इवेट लिमिटेड को पक्षकार नहीं बनाया गया है, यह आपत्ति इसी अवसर पर इस आधार पर निरस्त की जाती है कि एल्डिको सिटी प्राइवेट लिमिटेड को, प्रबंधक के माध्यम से पक्षकार बनाया गया है, इसलिए यह आपत्ति निरर्थक है।
- द्वितीय आपत्ति यह की गयी है कि परिवादी द्वारा एक नियत वाद सं0 1383/14 प्रस्तुत किया गया है, जिसका उल्लेख परिवाद पत्र में नहीं है, परंतु बहस के दौरान स्पष्ट हुआ है कि यह सिविल वाद गुणदोष पर निर्णीत नहीं हुआ है। अत: सीपीसी की धारा 11 के प्रावधान लागू नहीं होते, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करने में कोई वैधानिक आपत्ति नहीं है। अत: यह प्रारंभिक आपत्ति भी इसी स्तर पर निरस्त की जाती है। इसके पश्चात यह कथन किया गया कि परिवादी ने केवल 5,74,957/-रू0 अदा किये हैं, जबकि यूनिट का आधारभूत मूल्य 38,33,045/-रू0 है। परिवादी ने नकद भुगतान का विकल्प चुना था, जिस पर 10 प्रतिशत की छूट दी जानी थी। परिवादी ने अनेक बार मूल्य जमा करने का अनुरोध किया गया। स्मृति पत्र प्रेषित किये गये गये। आवंटन निरस्त करने से पूर्व भी अग्रिम सूचना प्रेषित की गयी, परंतु परिवादी द्वारा धनराशि जमा नहीं की गयी। यह बिन्दु यथार्थ में प्रारंभिक प्रकृति का नहीं है। इस बिन्दु पर आगे चलकर गुणदोष पर विचार किया जायेगा। आगे यह आपत्ति की गयी है कि ऋण प्राप्त करना आवंटी का अपना कर्त्तव्य है। इसके लिए विपक्षी कम्पनी उत्तरदायी नहीं है। कम्पनी द्वारा परिवादी की मांग के अनुरूप दस्तावेज उपलब्ध कराये गये हैं, जिनके आधार पर ऋण स्वीकृत हो सकता है। परिवादी का यह कथन गलत बताया गया है कि भूमि पर विपक्षीगण का स्वामित्व नहीं है। जमीन से संबंधित कोई विवाद नहीं है। एकीकृत शहरीकृत योजना के अंतर्गत जमीन पोषित की गयी है, जिस पर प्राधिकरण द्वारा अनुज्ञप्ति पत्र दिया गया है, इसलिए भूमि के स्वामित्व का कोई विवाद नहीं है। खसरा सं0 404 के संबंध में दिनांक 05.07.2010 के पत्र के द्वारा सूचना दी गयी थी, जिसके साथ तृतीय करार की प्रति लगायी गयी थी। यूनियन बैंक आफ इंडिया के पक्ष में भी तृतीय पक्षीय करार की प्रति उपलब्ध करायी गयी, इसके बाद स्टेट बैंक आफ इंडिया से ऋण प्राप्ति के संबंध में भी प्रति उपलब्ध करायी गयी, इसलिए परिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये तथ्य सभी असत्य है। वह स्वयं डिफाल्टर है, इसलिए आवंटन निरस्त किया गया है, जिसमें किसी प्रकार की अवैधानिकता नहीं है।
- लिखित कथन के समर्थन में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किये गये।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता को सुना तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- इस परिवाद के विनिश्चय के लिए प्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या विपक्षीगण द्वारा गैर स्वामित्व वाली सम्पत्ति पर परिवादी के पक्ष में स्थापित होने वाली यूनिट सं0 775 आवंटित की गयी? परिवादी का कथन है कि जिस खसरा सं0 404 पर विला सं0 775 आवंटित है, वह भूमि टरबो रियलटर्स के नाम से दर्ज है। इसी कारण परिवादी के पक्ष में ऋण स्वीकृत नहीं हो सका और परिवादी भवन का मूल्य अदा नहीं कर सका। प्रस्तुत केस में इस आयोग द्वारा कमीशन कराया गया और कमीशन रिपोर्ट पत्रावली पर मौजूद है। इस रिपोर्ट में अंकित है कि परिवादी को जो विला आवंटित की गयी है वह रिक्त अवस्था में है और पूर्ण रूप से निर्मित है। यद्यपि प्रयोग न होने के कारण कुछ खामियां उत्पन्न हो गयी हैं। कमीशन को विपक्षी द्वारा विक्रय विला दिनांक 09.05.2007 की छायाप्रति उपलब्ध करायी गयी, जिसमें खसरा सं0 404 ग्राम की भूमि सहकारी आवास समिति लिमिटेड एवं मै0 टरबो रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड के मध्य निष्पादित है। इसके पश्चात Consortium Agreement दिनांक 11.05.2010 को एल्डिको सिटी प्राइवेट लिमिटेड एवं मै0 टरबो रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य 4 के मध्य उपनिबन्धक कार्यालय में पंजीकृत हुआ है। कमीशन को वह पत्र भी उपलब्ध कराये गये जो परिवादी तथा अन्य आवंटियों को दिनांक 10.02.2012 को ऋण प्राप्त करने के लिए उपलब्ध कराया गया है। कम्पलीशन सर्टिफिकेट दिनांक 22.02.2017 को लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया है और परिवादी द्वारा केवल 5,89,762/-रू0 जमा कराये गये हैं, जिनको विपक्षीगण द्वारा स्वीकार किया गया है। इस प्रकार इस कमीशन रिपोर्ट के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि प्रारंभ में खसरा सं0 404 की भूमि विपक्षीगण के नाम नहीं थी, परंतु जिस कम्पनी के नाम यह भूमि दर्ज थी उस कम्पनी तथा विपक्षी के मध्य एक Consortium Agreement निष्पादित हुआ है, जिसके आधार पर विपक्षीगण के पक्ष में Integrated Township का लाइसेंस मिला है और पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्त हो चुका है, जबकि परिवादी द्वारा दिनांक 11.11.2010 को आवेदन प्रस्तुत किया गया है इसलिए परिवादी का यह कथन निरर्थक है कि खसरा सं0 404 कभी भी विपक्षीगण के स्वामित्व की सम्पत्ति नहीं रही है। यह सम्पत्ति विपक्षीगण के स्वामित्व में आ चुकी थी क्योंकि दिनांक 11.05.2010 को टरबो रियटलटर्स प्राइवेट लिमिटेड तथा विपक्षीगण के मध्य पंजीयन Consortium Agreement हो चुका था। भारतीय सम्पत्ति अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत किसी भी पंजीयन दस्तावेज के बारे में परिवादी को सूचना होने की उपधारणा की जायेगी। अत: माना जा सकता है कि परिवादी को इस तथ्य की जानकारी थी कि खसरा सं0 404 के संबंध में टरबो रियलटर्स एवं विपक्षीगण के मध्य Consortium Agreement निष्पादित हो चुका है। अत: यह विवादित बिन्दु परिवादी के विरूद्ध तथा विपक्षीगण के पक्ष में सुनिश्चित किया जाता है।
- अब विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या त्रुटिपूर्ण स्वामित्व के कारण परिवादी के पक्ष में ऋण स्वीकृत नहीं हो सकता? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक है क्योंकि जैसा कि ऊपर निष्कर्ष दिया गया है कि शर्त सं0 404 का स्वामित्व विपक्षीगण कम्पनी को निहित था। अत: इस आधार पर ऋण स्वीकृत होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। ऋण स्वीकृत कराना परिवादी की अपनी व्यक्तिगत सामर्थ्य पर निर्भर करता है न कि विपक्षी कम्पनी के स्वामित्व के किसी कर्मचारी पर। यह सही है कि बैंक ऋण प्रदान करते समय आवंटित भूखण्ड के स्वामित्व के संबंध में विचार करता है, परंतु इंटीग्रेटेड योजना के संबंध में जब कोई लाइसेंस प्राप्त हुआ या स्वीकृत हुआ हो और बैंक द्वारा ऋण प्रदत्त करना स्वीकृत किया गया हो, जैसा कि प्रस्तुत केस में अन्य व्यक्ति को ऋण प्रदान करने का कथन विपक्षीगण द्वारा किया गया है, जिसका कोई खण्डन परिवादी की ओर से नहीं है। अत: माना जा सकता है कि यह योजना विशुद्ध एवं प्रत्येक दृष्टि से स्वीकृत योजना थी। इस योजना में ऋण प्राप्त करने के लिए विपक्षीगण के स्तर से कोई बाधा नही थी। यदि परिवादी ऋण प्राप्त नहीं कर सका तब यह स्वयं परिवादी की विफलता है।
- परिवादी को तृतीय पक्षीय करार दिनांक 10.02.2012 को उपलब्ध कराया गया, जिसमें एस0बी0आई0 भी पक्षकार थी, इसलिए परिवादी उसी समय से इस तथ्य का ज्ञान रखता था कि खसरा सं0 404 Consortium Agreement के तहत एल्डिको कम्पनी के स्वामित्व में है। अत: प्रस्तुत केस केवल परिवादी के स्तर से समय पर भुगतान न करने का तथ्य स्थापित है। विपक्षीगण की ओर से सेवा मे कमी का कोई सबूत उपलब्ध नहीं है। अत: प्रश्नगत आवास को परिवादी के पक्ष में आवंटित करने का आदेश देना विधि के अंतर्गत संभव नहीं है। यद्यपि परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गयी है। उस राशि को 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष के ब्याज के साथ लौटाये जाने का आदेश इस सामयिक (Equator) के आधार पर दिया जा सकता है कि विपक्षीगण द्वारा इस राशि का उपयोग किया गया है। इस अनुतोष के अलावा मानसिक प्रताड़ना या अन्य किसी मद में कोई अनुतोष स्वीकार किया जाना संभव नहीं है।
आदेश परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गयी है, उसे 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष ब्याज के साथ परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक अदा करे। शेष अनुतोष अपास्त किया जाता है। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |