सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 1008/2009
(जिला उपभोक्ता आयोग, रामपुर द्वारा परिवाद संख्या- 84/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22-05-2009 के विरूद्ध)
यूनियन ऑफ इण्डिया द्वारा स्टेशन मास्टर रेलवे स्टेशन रामपुर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
जी.एस. अरोड़ा (गुरबचन सिंह अरोरा) पुत्र स्व0 श्री करतार सिंह निवासी- 52, आदर्श कालोनी, रामपुर यू०पी०।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार बाजपेयी
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 20-09-2021
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 84 सन् 2006 जी०एस० अरोड़ा बनाम भारत संघ द्वारा स्टेशन मास्टर उत्तर रेलवे रामपुर में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, रामपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 22-05-2009 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने अमृतसर से रामपुर की यात्रा हेतु ट्रेन संख्या- 3006 पंजाब मेल द्वारा यात्रा करने के लिए टिकट खरीदा और दिनांक 03-04-2006 को
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यात्रा पूरी की। प्रत्यर्थी/परिवादी को कोच संख्या- S-3 में बर्थ संख्या- 3,4,5 एवं 6 आरक्षित थी। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसे कोच संख्या एस-3 में उपरोक्त सीट नहीं मिली तब उसने संबंधित टी०टी० को इसकी जानकारी दी जिस पर उससे टिकट मांगा गया और फिर उससे 470/-रू० लेकर रसीद संख्या- 011101 जारी की गयी। प्रत्यर्थी/परिवादी को इससे मानसिक उत्पीड़न और असुविधा उत्पन्न हुयी।
रेलवे प्रशासन ने अपना प्रतिवाद पत्र जिला फोरम/आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जिसको देखने के पश्चात विद्वान जिला फोरम/आयोग ने दिनांक 22-05-2009 को प्रश्नगत निर्णय/आदेश पारित करते हुए 1000/-रू० हर्जाना 470/-रू० टिकट वापसी की धनराशि और 4000/-रू० क्षतिपूर्ति 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ दिलाया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि विद्वान जिला फोरम/आयोग का यह आदेश विधि विरूद्ध है और यह मामला रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में चलने योग्य है न कि उपभोक्ता फोरम न्यायालय में। विद्वान जिला फोरम/आयोग ने लिखित कथन के तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा कि उसके पास चार बर्थ एस-3 में थी लेकिन आरक्षण चार्ट के अनुसार यह सीट किसी अन्य नाम से बुक थी। प्रत्यर्थी/परिवादी जी०एस० अरोड़ा का नाम कोच संख्या- एस-2 में चार बर्थ में अंकित था। अपीलार्थी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने खुद ही गलत कोच में यात्रा की और तब संबंधित टी.टी. ने उससे जुर्माना प्राप्त किया। उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा झूठा और बनावटी दावा प्रस्तुत किया गया है। विद्वान जिला आयोग साक्ष्यों का मूल्यांकन करने में असफल रहा है। अत:
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निवेदन है कि जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाए और वर्तमान अपील स्वीकार की जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार बाजपेयी को सुना। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
हमने जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश का सम्यक रूप से परिशीलन किया और
अपीलार्थी ने अपनी अपील में यह स्वीकार किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी जी०एस० अरोड़ा का नाम कोच संख्या- एस-2 में बर्थ संख्या- 3 से 6 तक अंकित था और परिवादी स्वयं गलत कोच में यात्रा कर रहा था। इसलिए संबंधित टी०टी०ई० द्वारा उससे सही तरीके से जुर्माना और टिकट की धनराशि वसूल की गयी जो कि रेवले के नियमों के अन्तर्गत है।
यहॉं पर यह साधारण सी बात है कि चलती हुयी ट्रेन में यदि कोई व्यक्ति गलत आरक्षित कोच में पाया जाता है और उसके पास किसी दूसरे कोच के आरक्षित टिकट हैं तब उसे अगले स्टेशन पर उतरकर अपनी सीट पर जाने के लिए कहा जाता है न कि तुरन्त जुर्माना और टिकट का पैसा लिया जाता है। उसके पास टिकट विधि सम्मत था वह केवल गलत कोच में यात्रा कर रहा था जैसा कि अपीलार्थी का कथन है। यदि अपीलार्थी की बात मान ली जाए तब भी उसे अपने कोच में जाने का मौका मिलना चाहिए था और यदि अगले स्टेशन पर ट्रेन के रूकने के बावजूद भी वह अपने आरक्षित कोच में नहीं जाता तब उससे जुर्माना वसूल किया जा सकता था।
हमने जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश को अवलोकन किया। प्रश्नगत निर्णय का पैरा-11 निम्न है:-
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" चेकिंग स्टाफ के श्री अशोक सागर व पवन कुमार द्वारा दिनांक- 03-04-2006 को गाड़ी नं० 3006 डाउन में एस-2 में चेकिंग की गयी थी जिसमें बर्थ नं- 3, 4, 5, व 6 पर पांच व्यक्ति बैठे थे जिनके पास चार लोगों का टिकट था। पांचवा व्यक्ति बिना टिकट था। अत: उस पांचवे व्यक्ति का..............कुल 470/-रू० की रसीद काट कर बनाया था। उसने अपना नाम गुरबचन सिंह बताया था। "
विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में यह कहा है कि विपक्षी के कर्मचारियों की अक्षमता के कारण ही यह धनराशि यात्री से वसूल की गयी जो उस ट्रेन में जाने के लिए अधिकृत था जिससे उसको मानसिक उत्पीड़न हुआ है। समस्त तथ्यों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि इस मामले में जो भी धनराशि वसूल की गयी वह अहम के कारण वसूल की गयी है और इस सम्बन्ध में विद्वान जिला आयोग का निर्णय विधि सम्मत है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती है। तदनुसार वर्तमान अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला आयोग के निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
वाद व्यय पक्षकारों पर।
आशुलिपिेक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
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निर्णय आज दिनांक- 20-09-2021 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
कृष्णा–आशु0 कोर्ट-2