Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/2150

Rakesh Kumar Jindal - Complainant(s)

Versus

G D A - Opp.Party(s)

Isar Husain

18 Sep 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/2150
( Date of Filing : 09 Dec 2009 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Rakesh Kumar Jindal
a
...........Appellant(s)
Versus
1. G D A
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 18 Sep 2024
Final Order / Judgement

                                                 (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-2150/2009

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या-294/2007 में पारित निणय/आदेश दिनांक 5.10.2009 के विरूद्ध)

 

राकेश जिन्‍दल पुत्र श्री जगदीश शरण जिन्‍दल, निवासी 11ई.-64, नेहरूनगर, गाजियाबाद।

अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण, गाजियाबाद द्वारा उपाध्‍यक्ष, विकास मार्ग, गाजियाबाद।

                                     प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से     उपस्थित   : श्री इसार हुसैन।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित    : श्री अरविन्‍द कुमार के सहायक श्री

                                                मनोज कुमार।

दिनांक: 18.09.2024  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-294/2007, राकेश कुमार जिन्‍दल बनाम गाजियाबाद विकास प्राधिकरण तथा तीन अन्‍य में विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 5.10.2009 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई अपील पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

2.         विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए परिवादी द्वारा जमा राशि अंकन 13,000/-रू0 8 प्रतिशत ब्‍याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।

3.         परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा स्‍व-वित्‍तपोषण वाणिज्यिक आवास योजना के अंतर्गत नवयुग मार्केट गाजियाबाद में दुकान क्रय करने के लिए दिनांक 14.12.1985 को आवेदन किया गया था तथा अंकन 13,000/-रू0 जमा कराए गए थे। परिवादी को दुकान जी-21 भूतल आवंटित की गई थी, परन्‍तु परिवादी को कोई जानकारी नहीं दी गई और न ही किस्‍तों की मांग की गई। दिनांक 29.7.2000, 14.6.2003, 17.1.2005 को पत्र लिख कर इस बारे में जानकारी मांगी गई, परन्‍तु कोई सूचना नहीं दी गई। दिनांक 21.2.2006 को यह सूचना दी गई कि अपरिहार्य कारणों से दुकान का कब्‍जा देना संभव नहीं है, किंतु कोई कारण दर्शित नहीं किया गया और पत्र द्वारा कब्‍जा देने में असमर्थता जाहिर की गई। परिवादी द्वारा दुकान का कब्‍जा प्राप्‍त किए जाने, मानसिक प्रताड़ना की मद में तथा व्‍यावसायिक हानि की मद में कुल 1,65,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति मांग करते हुए परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

4.          विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्राधिकरण द्वारा कोई आपत्ति प्रस्‍तुत नहीं की गई, इसलिए एकतरफा सुनवाई करते हुए उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।

5.         अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि सत्‍य प्रकाश बंसल नामक व्‍यक्ति ने भी दुकान का कब्‍जा दिलाने हेतु परिवाद सं0-79/1992, विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद में दायर किया था, जिसे स्‍वीकार करते हुए प्राधिकरण को आदेशित किया गया था कि दुकान का कब्‍जा ब्रोशर की शर्तों के अनुसार दिया जाए। इस परिवाद में पारित निर्णय के विरूद्ध गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने माननीय राष्‍ट्रीय आयोग में पुनरीक्षण याचिका प्रस्‍तुत की, जिसमें माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने यह आदेश पारित किया कि दुकान का कुल मूल्‍य अदा करने पर ही कब्‍जा देने की बाध्‍यता होगी। अंकन 590/-रू0 प्रति वर्गफुट की दर से कीमत का आंकलन करते हुए उक्‍त आवंटी को दिनांक 5.9.1994 को कब्‍जा दे दिया गया। इस प्रकार दुकान का निर्माण हो चुका था और परिवादी को भी दुकान का कब्‍जा दिया जाना चाहिए था। विद्वान जिला आयोग द्वारा समुचित निर्णय पारित नहीं किया गया है।

6.         परिवादी ने परिवाद पत्र में जिस तथ्‍य का उल्‍लेख किया है, उसका कोई खण्‍डन नहीं किया गया। परिवादी का कथन है कि उसके द्वारा अंकन 13,000/-रू0 की धनराशि जमा कराई गई थी, परन्‍तु प्राधिकरण द्वारा कभी भी अवशेष धनराशि की मांग नहीं की गई, जबकि स्‍वंय परिवादी द्वारा पत्र लिखे गए, उनका भी उत्‍तर नहीं दिया गया, जबकि दिनांक 21.2.2006 को कब्‍जा प्रदान न करने की सूचना दी गई, परन्‍तु उस कारण को अंकित नहीं किया गया, जिस कारण से परिवादी को दुकान का कब्‍जा नहीं दिया जा रहा है, इसलिए केवल 13,000/-रू0 ब्‍याज के साथ लौटाने का आदेश न केवल विधि विरूद्ध है, अपितु मनमाना प्रतीत होता है। प्राधिकरण के यह लिखने मात्र से कि अपरिहार्य कारण से दुकान का कब्‍जा देना संभव नहीं है, यह तथ्‍य साबित नहीं हो जाता कि वास्‍तव में अपरिहार्य कारण मौजूद हैं। अपीलार्थी की ओर से सत्‍य प्रकाश बंसल बनाम जीडीए में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित आदेश की प्रति प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें स्‍पष्‍ट उल्‍लेख किया गया है कि शेष धनराशि अदा नहीं की जाती तब तक दुकान का कब्‍जा देने के लिए प्राधिकरण बाध्‍य नहीं है। यह भी अंकित किया गया कि प्राधिकरण द्वारा तत्‍समय प्रचलित भाव के अनुसार मूल्‍यांकन किया जाएगा। अत: इस निर्णय के आलोक में कहा जा सकता है कि यद्यपि परिवादी दुकान की कुल कीमत अदा करने के लिए उत्‍तरदायी है, जो तत्‍समय निकलती थी। इस कीमत को प्राप्‍त करने के पश्‍चात ही प्रश्‍नगत दुकान का कब्‍जा देने का उत्‍तरदायित्‍व प्राधिकरण पर है और यदि इस योजना में प्रश्‍नगत कोई दुकान मौजूद नहीं है तब इसी योजना के 200 मीटर के दायरे में अन्‍य कोई उपलब्‍ध दुकान प्राधिकरण परिवादी को तत्‍समय प्रचलित बाजार भाव के अनुसार ही उपलब्‍ध करा सकता है, परन्‍तु केवल जमा धनराशि लौटाने का आदेश पूर्णत: विधि विरूद्ध है। यहां यह भी स्‍पष्‍ट किया जाता है कि यदि प्राधिकरण द्वारा परिवादी को किसी अन्‍य योजना में कोई दुकान उपलब्‍ध नहीं करायी जाती है तब मानसिक एवं आर्थिक प्रताड़ना की मद में प्राधिकरण को अंकन 13,000/-रू0 की राशि जमा करने की तिथि से वास्‍तविक भुगतान की तिथि तक 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्‍याज के साथ वापस लौटाने के अलावा अंकन 5,00,000/-रू0 (पांच लाख रूपये) बतौर प्रतिकर आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना की मद में अदा करने होंगे। यदि इस राशि का भुगतान अगले तीन माह के अन्‍दर किया जाता है तब इस राशि पर ब्‍याज देय नहीं होगा, परन्‍तु तीन माह की अवधि के पश्‍चात इस राशि पर भी 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से साधारण ब्‍याज देय होगा।

7.         तदनुसार प्रस्‍तुत अपील उपरोक्‍त निर्देशानुसार अंतिम रूप से निस्‍तारित की जाती है।

           आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)                           (सुशील कुमार)

सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

 

  लक्ष्‍मन, आशु0,

      कोर्ट-2

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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