Chhattisgarh

StateCommission

FA/14/241

Kuldeep Prasad Bhardwaj - Complainant(s)

Versus

Fullerton India Credit Co.Ltd. & Anr. - Opp.Party(s)

Shri Sanjay Tiwari

18 Feb 2015

ORDER

Chhattisgarh State Consumer Disputes Redressal Commission Raipur
Final Order
 
First Appeal No. FA/14/241
(Arisen out of Order Dated 19/03/2014 in Case No. CC/11/52 of District Raipur)
 
1. Kuldeep Prasad Bhardwaj
Res- Tatibandh post master residence
Raipur
Chhattisgarah
...........Appellant(s)
Versus
1. Fullerton India Credit Co.Ltd. & Anr.
Res- Shri ram tower first floor new shanti nagar choti rail line corsing k pass new shanti nagar post office Shankar nagar raipur
Raipur
Chhattisgarh
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HONABLE MR. JUSTICE R.S.Sharma PRESIDENT
 HONABLE MS. Heena Thakkar MEMBER
 HONABLE MR. Dharmendra Kumar Poddar MEMBER
 
For the Appellant:Shri Sanjay Tiwari , Advocate
For the Respondent: Smt.Shilpa Pathak Upadhyay, Advocate
ORDER

छत्तीसगढ़ राज्य

उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, पण्डरी, रायपुर

                               अपील क्रमांकः FA/14/241

                                संस्थित दिनांकः 09.04.14

 

कुलदीप प्रसाद भारद्वाज, उम्र लगभग 55 वर्ष,

आ. श्री लच्छीराम भारद्वाज,

पताः टाटीबंध, पोस्ट मास्टर रेसीडेंस,

पोस्ट आफिस टाटीबंध,

रायपुर (छ.ग.)                                                                                                                             .....अपीलार्थी

 

                                    विरूद्ध

 

1. फुलर्टान इंडिया क्रेडिट कं. लि.

द्वाराः शाखा प्रबंधक,

पताः श्रीराम टॉवर, प्रथम मंजिल,

न्यू शांति नगर, छोटी रेलवे लाईन

क्रासिंग के पास, न्यू शांति नगर,

पोस्ट ऑफिसः शंकर नगर

रायपुर (छ.ग.)

2. फुलर्टान इंडिया क्रेडिट कं. लि.

द्वाराः डायरेक्टर, बिल्डिंग नं.-11,

प्रथम तल, सॉलिटेयर कार्प. पार्क,

अंधेरी, घाटकोपर लिंक रोड, चकला,

अंधेरी (ईस्ट) मुम्बई - 400 093                                                                                                   .....उत्तरवादीगण

 

समक्षः

माननीय न्यायमूर्ति श्री आर. एस. शर्मा,  अध्यक्ष

माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या

माननीय श्री डी. के. पोद्दार, सदस्य

 

पक्षकारों के अधिवक्ता

अपीलार्थी की ओर से श्री संजय तिवारी, अधिवक्ता।

उत्तरवादीगण की ओर से श्रीमति शिल्पा पाठक उपाध्याय, अधिवक्ता।

आदेश

दिनांक  18/02/2015

द्वाराः माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या

 

अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, रायपुर (छ.ग.) (जिसे आगे संक्षिप्त में ’’जिला फोरम’’ संबोधित किया जाएगा) द्वारा प्रकरण क्रमांक 52/2011 कुलदीप प्रसाद भारद्वाज विरूद्ध फुलर्टान इंडिया क्रेडिट कं. लि. में पारित आदेश दिनांक 19.03.2014 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है। जिला फोरम द्वारा अपीलार्थी की परिवाद को निरस्त किया गया।

 

2.            अपीलार्थी की परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस प्रकार थी कि अनावेदकगण कंपनी के कर्मचारियों द्वारा परिवादी को संपर्क कर बताया गया कि अनावेदकगण द्वारा 12% वार्षिक की दर से साधारण ब्याज दर पर ऋण प्रदान किया जाता है एवं ऋण रकम एकमुश्त अदा किये जाने पर शेष ऋण अवधि के ब्याज से छूट मिल सकती है। परिवादी को रकम की आवश्यकता थी अतः परिवादी द्वारा रू 20,000/-(बीस हजार रूपये) का ऋण अनावेदकगण से लिया गया एवं अनावेदकगण के कर्मचारियों द्वारा ऋण से संबंधित दस्तावेजों में अनेक हस्ताक्षर लिए। परिवादी ने उन दस्तावेजों की प्रति की मांग की तो कर्मचारी ने कहा कि दोनों पक्षों के हस्ताक्षर पश्चात् दस्तावेज की प्रति उसे प्रदान की जावेगी। अनावेदकगण ने परिवादी को ऋण रकम प्रदान करने के पूर्व परिवादी से छः कोरे चेक पर हस्ताक्षर देने की मांग की एवं कहा गया कि ऋण किश्त रकम भुगतान किये जाने के पश्चात् उक्त चेक परिवादी को वापस कर दिये जावेंगे। अतः परिवादी द्वारा चेक क्रमांक-0199026-0199031 छः कोरे चेक प्रदान किए। अनावेदकगण द्वारा परिवादी को बताया गया कि एच.डी.एफ.सी. बैंक से प्रतिमाह रू 1,436/-(एक हजार चार सौ छत्तीस रूपये) की किश्त बैंक द्वारा स्वयमेव खाते से कम कर दिए जावेंगे। परिवादी को कुल 36 किश्तों में रकम भुगतान करना था। अनावेदकगण द्वारा परिवादी को रू  22,822/-(बाईस हजार आठ सौ बाईस रूपये) ऋण प्रदान किया गया जबकि परिवादी को केवल  रू  20,000/-(बीस हजार रूपये) ही ऋण लेना था परन्तु इसके संबंध में परिवादी को कोई भी जानकारी नहीं दी गई। परिवादी ने 8-9 माह पश्चात् दिनांक-13.06.2009 को अनावेदक के कार्यालय में संपर्क कर ऋण संबंधी विवरण की मांग की। अनावेदकगण द्वारा विवरण दिया गया जिसके अनुसार ऋण की मूलधन रकम को रू 27,000/-(सत्ताईस हजार रूपये) दर्शाया गया था एवं उक्त दिनांक तक किश्त की कुल बकाया रकम रू 24,582/-(चैबीस हजार पांच सौ बयासी रूपये) दर्शित था तथा 8 किश्त की रकम रू 11,906/-(ग्यारह हजार नौ सौ छः रूपये) का जमा किया जाना दर्शित था। परिवादी को उक्त विवरण पर बकाया रकम एवं भुगतान की गई किश्त रकम पर आपत्ति थी। अनावेदक द्वारा मनमाने ढंग से अत्यधिक ब्याज रकम जोड़कर देय राशि की गणना की जा रही थी जो पूर्ण रूपेण गलत थी। अनावेदक के कर्मचारियों द्वारा बताया गया था कि 12% साधारण वार्षिक की दर से ब्याज की गणना की जावेगी। परिवादी ने अनावेदक क्र.1 से मूल ऋण आवेदन की प्रति की मांग सूचना के अधिकार के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर की परन्तु अनावेदक क्र.1 ने आवेदन लेने से इंकार कर दिया। तदुपरांत परिवादी ने विधिक सूचना दिनांक-07.11.2009 प्रेषित की परन्तु अनावेदक क्र.1 ने न तो विधिक सूचना का उत्तर प्रेषित किया ना ही आवेदन-पत्र की प्रति प्रदान की। परिवादी द्वारा आगे यह भी अभिवचन किया गया है कि अनावेदकगण द्वारा परिवादी के बैंक खाते से दिनांक-08.11.2008 से 05.09.2009 तक लगातार 11 किश्त रकम रू 1,436/-(एक हजार चार सौ छत्तीस रूपये) की दर से कुल रू 15,796/-(पन्द्रह हजार सात सौ छियानबे रूपये) एवं दिनांक-  05.12.2009, 05.01.2010, 05.04.2010 की तीन किश्तों की राशि कुल रू  4,308/-(चार हजार तीन सौ आठ रूपये) एवं दिनांक-10.05.2010 को रू 6,750/-(छः हजार सात सौ पचास रूपये) इस प्रकार कुल             रू 26,854/-(छब्बीस हजार आठ सौ चैवन रूपये) प्राप्त कर लिया गया है। इस प्रकार परिवादी के द्वारा ऋण रकम रू  22,822/-(बाईस हजार आठ सौ बाईस रूपये) के बदले अनावेदकगण को कुल                           रू 26,854/-(छब्बीस हजार आठ सौ चैवन रूपये) अदा किया जा चुका है। इसके बावजूद भी अनावेदकगण द्वारा दिनांक-13.06.2009 को रू  24,582/-(चैबीस हजार पांच सौ बयासी रूपये) बकाया रकम की मांग किया जाना सेवा में कमी है। अतः परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत कर अनावेदकगण से नो ड्यूज प्रमाण-पत्र, अनावेदकगण द्वारा लिए गए चार कोरे चेक, शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षतिपूर्ति रू  50,000/-(पचास हजार रूपये) दिलाई जाने की याचना की गई।

 

3.            अनावेदकगण द्वारा उत्तर प्रस्तुत कर अपने प्रतिरक्षा में कथन किया कि परिवादी द्वारा    रू  20,000/-(बीस हजार रूपये) का नहीं रू 27,000/- (सत्ताईस हजार रूपये) का ऋण लिया गया था। परिवादी एक शिक्षित और पोस्ट आफिस में पदस्थ अधिकारी है एवं ऋण लेने से पहले ऋण अनुबंध-पत्र को पढ़कर संबंधित समस्त नियम एवं शर्तों को पढ़कर स्वतंत्र सहमति से अनुबंध-पत्र में हस्ताक्षर कर ऋण लिया था। परिवादी ने समस्त चेक अनादरित हुई मासिक किश्तों को नियमित भुगतान हेतु अनावेदकगण को प्रदान किया था। परिवादी ने जानते हुए कि प्रत्येक माह उसे रू 1,436/-(एक हजार चार सौ छत्तीस रूपये) अदा करना है, प्रथम किश्त का ही भुगतान करने में त्रुटि की थी। परिवादी का रू 27,000/- (सत्ताईस हजार रूपये) का ऋण स्वीकृत हुआ था उसमें प्रोसेसिंग फीस, बीमा प्रीमियम, सर्विस टैक्स का नगद भुगतान परिवादी को करना था जो उसने नहीं किया अतःपरिवादी की सहमति से ही स्वीकृत ऋण से रू 4,178/-(चार हजार एक सौ अठहत्तर रूपये) उक्त सभी मदों को समायोजित करने के पश्चात् रू 22,822/-(बाईस हजार आठ सौ बाईस रूपये) की चेक परिवादी को प्रदान की गई थी। परिवादी द्वारा 36 मासिक किश्त रकम रू 1,436/-(एक हजार चार सौ छत्तीस रूपये) की दर से कुल रू  51,696/-(इक्यावन हजार छः सौ छियानबे रूपये) का भुगतान करना था। इस संबंध में परिवादी द्वारा लिखित सहमति प्रदान की गई थी। परिवादी के खाते में पर्याप्त रकम नहीं होने के कारण नियमित किश्तों का भुगतान नहीं हो सका जिसके कारण अनुबंध-पत्र के अनुसार शास्ति एवं ब्याज अधिरोपित किए गए जिसके परिणामस्वरूप देय राशि बढ़ गई जिसके लिए परिवादी स्वयं जिम्मेदार है। प्रस्तुत परिवाद समयावधि से बाधित होने के कारण भी निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादी प्रार्थित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। परिवाद निरस्त किये जाने की प्रार्थना की गई।

 

4.            विद्वान जिला फोरम द्वारा विनिश्चय लिया गया कि परिवादी ने रू 27,000/-(सत्ताईस हजार रूपये) का ऋण लिया था एवं प्रामिसरी नोट में ब्याज की दर 30.50% उल्लेखित है जिसका भुगतान 36 माह में करना था परन्तु परिवादी अपना पक्ष प्रमाणित करने में विफल रहा है। परिणाम स्वरूप परिवाद निरस्त किया गया।

 

5.            हमारे समक्ष अपीलार्थी की ओर से श्री संजय तिवारी एवं उत्तरवादीगण की ओर से श्रीमती शिल्पा पाठक उपाध्याय द्वारा तर्क प्रस्तुत किए गए व अभिलेख का सूक्ष्म अध्ययन किया गया।

 

6.            अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा हमारे समक्ष मुख्यतः यह तर्क किया गया कि परिवादी द्वारा मात्र रू  20,000/-(बीस हजार रूपये) का ऋण उत्तरवादी से मांगी थी एवं अभिलेख में चेक रकम रू 22,822/-(बाईस हजार आठ सौ बाईस रूपये) का आई.सी.आई.सी.आई. बैंक का चेक क्रमांक-4761 दिनांक-23.09.2008 प्रस्तुत किया गया उसके बाद भी जिला फोरम द्वारा निष्कर्ष लिया गया कि परिवादी द्वारा रू 27,000/-(सत्ताईस हजार रूपये) का ऋण लिया गया था। जिला फोरम द्वारा इस तथ्य को भी अनदेखा किया गया है कि परिवादी द्वारा रू 26,854/-(छब्बीस हजार आठ सौ चैवन रूपये) किश्त रकम का भुगतान कर दिया गया है फिर भी उत्तरवादी द्वारा दिनांक-13.06.2009 को बकाया रू 24,582/-(चैबीस हजार पांच सौ बयासी रूपये) की मांग की जा रही है जो कि सेवा में कमी है। जिला फोरम द्वारा उत्तरवादी की गणना को बिना किसी आधार के सही मानकर परिवाद-पत्र निरस्त कर विधि विरूद्ध आदेश पारित किया गया। अतः अपील स्वीकार कर आलोच्य आदेश अपास्त करने के पश्चात् परिवाद-पत्र में मांगे गए अनुतोष प्रदान करने की प्रार्थना की गई।

 

7.            उत्तरवादी की ओर से श्रीमती शिल्पा पाठक उपाध्याय द्वारा लिखित तर्क प्रस्तुत किए। मुख्यतः यह आपत्ति की गई कि उत्तरवादी कंपनी द्वारा अपीलार्थी को पर्सनल लोन प्रदान किया गया था इस हेतु अनुबंध-पत्र निष्पादित किया गया था जिसके अनुसार उसे  रू  27,000/-(सत्ताईस हजार रूपये) का ऋण दिया गया था एवं ऋण राशि में से प्रोसेस फीस, बीमा प्रीमियम, सर्विस टैक्स की राशि समायोजित करने के उपरांत शेष राशि  रू  22,822/-(बाईस हजार आठ सौ बाईस रूपये) का चेक प्रदान किया गया। उक्त रकम को 36 मासिक किश्तों में रू 1,436/-(एक हजार चार सौ छत्तीस रूपये) ऋण का भुगतान परिवादी को करना था जिसमें किश्त पेटे चूक होने पर एवं चेक अनादरित होने पर अनुबंध के अनुसार लेट पेमेंट चार्ज, चेक बाउंस चार्ज आदि अधिरोपित किया गया था। इस प्रकार परिवादी की 28 किश्तों का भुगतान बकाया है। फिर भी अपीलार्थी द्वारा असत्य कथन करते हुए परिवाद-पत्र प्रस्तुत कर अनुतोष की मांग की गई। जिला फोरम द्वारा पारित आदेश उचित व सही है। अतः अपील निरस्त करने की प्रार्थना की गई।

 

8.            परिवादी/अपीलार्थी के अधिवक्ता श्री संजय तिवारी द्वारा आवेदन-पत्र अंतर्गत आदेश-41 नियम-27 व्यवहार प्रक्रिया संहिता प्रस्तुत कर उत्तरवादी द्वारा प्रेषित अपीलार्थी के ऋण खाते का खाता विवरण की प्रति को अतिरिक्त साक्ष्य के रूप में अभिलेख में लिये जाने का निवेदन किया गया है। इस आवेदन का उत्तरवादी के अधिवक्ता द्वारा उत्तर नहीं दिया गया है। उक्त आवेदन में परिवादी/अपीलार्थी द्वारा संतोषजनक कारण व स्पष्टीकरण उल्लेखित नहीं है कि यह दस्तावेज जिला फोरम के समक्ष क्यों प्रस्तुत नहीं किया गया। अपील के निराकरण में यह दस्तावेज आवश्यक प्रतीत नहीं होता है। अतः आवेदन निरस्त किया जाता है।

 

9.            अपील के निराकरण के लिए हमें इस प्रश्न का निराकरण करना है कि क्या वास्तव में अनावेदक / उत्तरवादी कंपनी द्वारा परिवादी / अपीलार्थी से ऋण रकम का भुगतान हो जाने के बाद भी अत्यधिक रकम की गणना कर बकाया ऋण राशि की मांग कर रहे हैं? प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी / अपीलार्थी को अनावेदक / उत्तरवादी द्वारा रू  22,822/-(बाईस हजार आठ सौ बाईस रूपये) का ऋण आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के चेक के माध्यम से दिनांक-23.09.2008 को प्रदान किया गया था। परिवादी/ अपीलार्थी द्वारा फुल्टर्न इंडिया क्रेडिट को. दिनांक-13.06.2009 को लिखा गया पत्र (हस्तलिपि में) का परिशीलन किया गया जिसके महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं -

 ’’सेवा में

                                श्रीमान् बिजनेस हेड

Fullerton India

रायपुर (छ0ग0)

विषयः- लोन के बकाया राशि जमा करने से संबंधित।

महोदय,

                                विषयांतर्गत जानकारी अग्रेषित है कि मैंने Fullerton India Raipur से दिनांक-23.09.2008 को रूपये  &27]000@&(Twenty Seven Thousand Only) लोन लिया था, जिनकी बकाया राशि को मैं जमा करना चाहता हॅंू, जिसके संबंध में मैं कुल कितनी राशि जमा करनी है, कृपया जानकारी देने का कष्ट करेंगे, साथ ही जमा की गई (6) छः चेक (कोरी चेक) को वापस करने की कृपा करेंगे।

Custmer Name-                Kuldeep Prasad Bhardwaj

Custmer Address-           Tatebandh, Post Office G.E. Road,

Tatebandh, Sub Post Master,

HIG-12

Loan A/C No.-                    032725000018900

Disbursed Amt.-                               22,822/-

Date of Disbursed-          23/9/2008

Tenure (in month)-         36

EMI Amount-                     1436/-

 

                        कृपया A/C क्लोज करने की कृपा करेंगे

                        दिनांक&13-6-2009          (Kuldeep Prasad Bhardwaj)

                                                      Loan A/C No. 032725000018900”

इस प्रकार उक्त दस्तावेज के परिशीलन से यह प्रतीत होता है कि परिवादी / अपीलार्थी ने यह गलत अभिकथन किया है कि उसके द्वारा  रू 20,000/-(बीस हजार रूपये) ऋण की मांग की गई थी जबकि उक्त पत्र में जो परिवादी/अपीलार्थी की हस्तलिपि में है, स्वीकार किया गया है कि उसके द्वारा रू 27,000/-(सत्ताईस हजार रूपये) का ऋण लिया गया था एवं चेक रू 22,822/-(बाईस हजार आठ सौ बाईस रूपये) की प्राप्त हुई थी। अतः परिवादी / अपीलार्थी को यह भी ज्ञात था कि               रू 27,000/-(सत्ताईस हजार रूपये) के ऋण में कितनी राशि का समायोजन कर उसे ऋण दिया गया है। परिवादी/अपीलार्थी को इस तथ्य का भी ज्ञान था कि 36 मासिक किश्त  रू  1,436/-(एक हजार चार सौ छत्तीस रूपये) का भुगतान उसे करना है। परिवादी/अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत ऋण खाता विवरण के अनुसार 28 किश्तों की रकम बकाया थी जो कुल रकम रू 11,906/-(ग्यारह हजार नौ सौ छः रूपये) है एवं अन्य प्रभारों की गणना करते हुए देय राशि कुल रू 24,582/-(चैबीस हजार पांच सौ बयासी रूपये) है।

 

10.          अनावेदक/उत्तरवादी द्वारा अभिलेख ऋण अनुबंध-पत्र की प्रति प्रस्तुत की है। इसमें उल्लेखित शर्तों के अनुसारः-

(c)           “Delayed Payment Charges” means charges assessed for a payment delayed beyond the due date of Equated Monthly Installment (EMI)

                इस प्रकार किश्त के विलंब भुगतान पर अतिरिक्त शुल्क दिये जाने की शर्त तय हुई थी एवं इस अनुबंध-पत्र के साथ डिमाण्ड प्रामिसरी नोट की प्रति संलग्न है जिसमें ब्याज की दर 30.50%  वार्षिक ब्याज की दर सुनिश्चित की गई थी व इस दर के अनुसार रू  27,000/-(सत्ताईस हजार रूपये) ऋण रकम पर ब्याज की गणना की जानी थी। अतः अपीलार्थी का यह तर्क स्वीकार योग्य नहीं है कि अपीलार्थी द्वारा मात्र रू 20,000/-(बीस हजार रूपये) का ऋण लिया गया था अपितु उसके द्वारा रू  27,000/- (सत्ताईस हजार रूपये) का ऋण लिया जाना स्वीकृत है एवं अपीलार्थी का यह तर्क भी स्वीकार्य नहीं है कि अनावेदक/उत्तरवादी द्वारा मनमाने तौर पर ब्याज रकम की गणना कर अपीलार्थी से अनुचित अतिरिक्त बकाया रकम की मांग की जा रही है। परिवादी/अपीलार्थी ऋण अनुबंध-पत्र का खण्डन करने में विफल रहा है। परिवादी/अपीलार्थी की अपील स्वीकार योग्य नहीं है।

 

11.          उपरोक्तानुसार प्रकरण के तथ्यों विचार-विमर्श करने के उपरांत व दस्तावेजों के अवलोकन पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परिवादी/अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत अपील आधारहीन-सारहीन होने से निरस्त किये जाने योग्य है, अतः निरस्त की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित आदेश उचित व सही है अतः संपुष्ट किया जाता है। अपील व्यय के संबंध में कोई आदेश नहीं किया जा रहा है। 

 

 

(न्यायमूर्ति आर. एस. शर्मा)                         (सुश्री हीना ठक्कर)                         (डी. के. पोद्दार)

          अध्यक्ष                                                  सदस्या                                      सदस्य

          /02/2015                                             /02/2015                                  /02/2015

 

 
 
[HONABLE MR. JUSTICE R.S.Sharma]
PRESIDENT
 
[HONABLE MS. Heena Thakkar]
MEMBER
 
[HONABLE MR. Dharmendra Kumar Poddar]
MEMBER

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