राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2236/2012
(जिला उपभोक्ता फोरम, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्या-35/2011 में पारित निर्णय दिनांक 29.08.2012 के विरूद्ध)
रविन्द्र कुमार राय बी 201, विजया अपार्टमेन्ट, अहिंसा खण्ड 2,
इन्द्रापुरम गाजियाबाद। ......अपीलार्थी@परिवादी
बनाम
फोर्टिज हास्पिटल बी-22 सेक्टर 62, नोएडा, गौतमबुद्ध नगर,
201301 .....प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रतीक सक्सेना, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार शर्मा, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक 12.10.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 35/11 रविन्द्र कुमार राय बनाम फोर्टिज अस्पताल में पारित निर्णय/आदेश दि. 29.08.2012 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय और आदेश द्वारा विपक्षी से इलाज के मद में वसूले गए अंकन रू. 374618/- की वापसी तथा अंकन अंकन 15 लाख रूपये मानसिक प्रताड़ना के लिए दिलाए जाने हेतु प्रस्तुत किया गया परिवाद खारिज कर दिया गया।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि दिनांक 15.12.2008 से 18.12.08 की अवधि के मध्य परिवादी विपक्षी के अस्पताल में भर्ती रहा। दर्द निवारक दवाएं लेने के बाद परिवादी बहकी-बहकी बातें करने लगा तब दूसरे दिन मनोरोग चिकित्सक को दिखाने के लिए कहा गया। मनोरोग चिकित्सक ने दर्द निवारक दवाएं एवं सूई के साथ अपनी दवाएं प्रारंभ की।
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परिवादी को दिनांक 11.01.09 को पुन: अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। उपचार के मध्य दिनांक 17.01.2009 को एक जूनियर डाक्टर ने दर्द निवारक पैच लगाई, जिसका कोई मूल्य बिल में परिवादी से वसूल नहीं किया गया। इस पैच के लगाने के बाद परिवादी का मूत्र बंद हो गया। परिवादी को आई.सी.यू. में भेजा गया जहां डायलेसिस हुआ। 08 दिन तक वेन्टीलेटर पर रखा गया। परिवादी को रक्त और प्लाज्मा भी चढ़ाया गया और दूसरे अस्पताल में उपचार कराने के लिए कहा गया, जबकि परिवादी पैदल चलकर अस्पताल आया था। अस्पताल से स्ट्रेचर पर ले जाया गया। हीमोग्लोबिन 14.5 के स्थान पर 6.5 रह गया, वजन 65 के स्थान पर 48 किलो रह गया। अस्पताल से छूटते समय डिस्चार्ज समरी में सैप्टीसीमिया होने के कारण डायलेसिस पर रखा जाना, लिखा गया। यह बीमारी चिकित्सक की लापरवाही और अधिक मात्रा में दवा देने के कारण हुई और जो संक्रमित सूई परिवादी को लगा दी गई, जिसके कारण परिवादी के शरीर में जहर फैल गया था।
3. लिखित कथन में उल्लेख किया गया है कि विपक्षी की ओर से उच्च मानकों के अनुरूप उपचार किया गया। भर्ती के समय परिवादी की उम्र 53 वर्ष थी। कमर में दर्द था और अनर्गल बातें कर रहा था। मरीज ने बताया था कि वह मदिरा सेवन का आदी है। भर्ती होने के समय नासिका की हड्डी टूटी हुई थी, जिसका उपचार किया गया। पुन: न्यूरो सर्जनी विभाग में दिनांक 15.12.08 से 18.12.08 तक भर्ती रहा। अनर्गल वार्ता करने के कारण मनोरोग चिकित्सक से परामर्श करने की सलाह दी गई थी। एम.आर.आई से ज्ञात हुआ कि परिवादी को Cerebrat Atrophy थी। पांचवें दिन पेशाब कम हो रहा था और सैप्टीसीमिया के लक्षण उत्पन्न हो गए थे,
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जो गुर्दे के कार्यों के विचलित होने के परिणाम थे, इसलिए परिवादी की हीमो डायलेसिस दिनांक 17.01.09 को की गई थी। दिनांक 18.01.09 को Cevere Lactic Acidiocis के कारण वेन्टीलेटर पर रखना पड़ा। परिवादी मदिरा पीने का आदी था, इसलिए उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई। गुर्दा फेल होने के कारण सैप्टीसीमिया हुआ था।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी द्वारा इस तथ्य को साबित नहीं किया गया कि डाक्टर द्वारा इलाज में किसी प्रकार की लापरवाही बरती गई। तदनुसार परिवाद खारिज कर दिया गया।
5. इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य पर विचार नहीं किया गया। परिवादी द्वारा इलाज के दौरान अंकन रू. 374618/- खर्च किया गया, इसके बावजूद जी.वी.पंथ में इलाज करने के लिए लिख दिया गया, इसलिए जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निणर्य अपास्त किया जाना चाहिए था।
6. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना। प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. परिवाद पत्र में विपक्षी की लापरवाही एवं उपेक्षा का बिन्दु यह बताया गया कि परिवादी को दर्द निवारक सूई लगने के 2 दिन बाद परिवादी बहकी-बहकी बातें करने लगा। इसके बाद मनोरोग चिकित्सक को दिखाया गया। दर्द निवारक दवाएं तथा मनोरोग चिकित्सक की दवाएं के कारण परिवादी की हालत खराब होने लगी। इलाज के दौरान परिवादी को डायलेसिस पर रखा गया, उसका हीमोग्लोबिन और वजन कम हो गया।
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उपरोक्त वर्णित सभी त्रुटियां दूषित इलाज के कारण उत्पन्न हुई। इस तथ्य का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं। लापरवाही के किसी बिन्दु की ओर परिवादी ने स्पष्ट उल्लेख भी नहीं किया है।
8. चूंकि अपील में वर्णित तथ्यों के आधार पर लापरवाही का तथ्य स्वयं में प्रमाण की श्रेणी में नहीं आता है, इसलिए परिवादी के लिए आवश्यक था कि विशेषज्ञ साक्षी के साक्ष्य परिवाद में वर्णित तथ्यों के समर्थन में प्रस्तुत की जाती, जिनके द्वारा यह सलाह दी जाती कि रोगी का उपचार उपेक्षापूर्ण तरीके से किया गया और उपचार के माणक सिद्धांतों का अनुपालन नहीं किया गया, इसलिए लापरवाही का कोई तथ्य जाहिर नहीं होता, सबूत होने का प्रश्न ही नहीं उठता, अत: जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय में किसी प्रकार का हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं है, तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की
वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (विकास सक्सेना) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2