Uttar Pradesh

StateCommission

C/2012/73

Fasaht Husain - Complainant(s)

Versus

Fortis Hospital - Opp.Party(s)

Alok Ranjan

25 Apr 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/2012/73
( Date of Filing : 03 Jul 2012 )
 
1. Fasaht Husain
a
...........Complainant(s)
Versus
1. Fortis Hospital
a
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 25 Apr 2022
Final Order / Judgement

सुरक्षित 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ

 

परिवाद  73 सन 2012

फसाहत हुसैन पुत्र डा0 करार हुसैन निवासी ग्राम एवं पोस्‍ट बघरा जिला मुजफ्फरनगर।

    .......परिवादी

-बनाम-

फोर्टिस हास्पिटल बी 22 सेक्‍टर 62 नोएडा उ0प्र0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्‍टर/सीईओ एवं दो अन्‍या  

. .........प्रत्‍यर्थी

 

 

समक्ष:-

मा0 विकास सक्‍सेना, सदस्‍य  ।

मा0  डा0 आभा गुप्‍ता , सदस्‍य।

परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता     -  श्री आलोक रंजन।

विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता      -  श्री सुशील कुमार शर्मा।

 

दिनांक:-09-06-2022

 

मा0  डा0 आभा गुप्‍ता , सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

निर्णय

     संक्षेप में, परिवाद इस आधार पर प्रस्‍तुत किया गया है कि परिवादी फसाहत हुसैन जैदी एक क्‍वालीफाइड यूनानी डाक्‍टर है । दिनांक 06.09.2008  को अचानक उसको अपने चेहरे के ऊपरी वाले हिस्‍से पर वायी तरफ दर्द तथा सूजन महसूस हुयी। जिसके बावत परिवादी ने दिनांक 08.09.2008 को मौलाना आजाद डेन्‍टल कालेज हास्पिटल, दिल्‍ली में दिखाया । डाक्‍टर द्वारा परीक्षण करके बताया गया कि यह दांत की समस्‍या नहीं है और उसके बाद परिवादी फोर्टिस हास्पिटल गया और वहां ई0एन0टी0 विशेषज्ञ को दिखाया जिन्‍होंने कुछ दवाऐं लिख दी लेकिन आराम न मिलने पर वह पुन: फोर्टिस हास्पिटल गया और दिनांक 09.09.2008 को भर्ती हो गया और फोर्टिस हास्पिटल के डाक्‍टर संजय सचदेवा द्वारा बिना कोई टेस्‍ट कराए आपरेशन कर दिया और आंख में दवा डालने के लिए दी। दिनांक 14.09.2008 को परिवादी ने महसूस किया कि वह अपनी वाई आंख से देख नहीं पा रहा है। परिवादी ने इसके बावत डाक्‍टर को बताया लेकिन उन्‍होने कोई ध्‍यान नही दिया और इसके बावत शिकायत करने पर स्‍टाफ ने उसके साथ बुरा व्‍यवहार किया और अपनी मर्जी से उसे डिस्‍चार्ज कर दिया । परिवादी इलाज हेतु लोकनायक हास्पिटल दिल्‍ली गया तो उन्‍होंने बताया कि आंख में म्‍यूकोमाईकोसिर हुआ था जिसके कारण आंख चली गयी और डाक्‍टर ने नर्व को हटाने के लिए उनके द्वारा तत्‍काल आपरेशन का सुझाव दिया और आपरेशन करके उसकी पूरी वाई आंख निकाल दी जिससे कि इन्‍फेक्‍शन न फैले। परिवादी का कहना है कि आपरेशन के तीन साल बाद भी उसकी आंख में लगातार खुजली हो रही है। परिवादी का कहना है कि गलत इलाज के कारण वह डिप्रेशन में चला गया और अब वह डिप्रेशन का इलाज करवा रहा है। परिवादी ने विपक्षी द्वारा चिकित्‍सा में लापरवाही वरतने के कारण 80 लाख रू0 क्षतिपूर्ति दिलाए जाने हेतु यह परिवाद योजित किया है।

      विपक्षी की ओर से वादोत्‍तर प्रस्‍तुत कर उल्लिखित किया गया कि परिवादी ने अपना इलाज वर्ष 2008 में कराया था और यह परिवाद न्‍यायालय के समक्ष वर्ष 2012 में योजित किया गया है जो समय सीमा से बाधित है। विपक्षी का कथन है कि उनकी तरफ से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। परिवादी ने बिना किसी डाक्‍टर के परामर्श के अधिक मात्रा में स्‍टीराइड्स लिए क्‍योंकि उसकी नांक में समस्‍या थी । इसकी पुष्टि जी0वी0 पंत हास्पिटल में कार्यरत परिवादी की रिश्‍तेदार नर्स ने बताया । यह भी उल्लिखित किया गया कि म्‍यूकोमाईकोसिर एक गम्‍भीर बीमारी है जिसके कारण महंगी दवाऐं परिवादी को दी गयी थीं। विपक्षी का यह भी कथन है कि परिवादी स्‍वयं ही क्‍वालीफाइड यूनानी डाक्‍टर है और वह अपनी मर्जी से नाक की एलर्जी के लिए ओरल स्‍ट्रावाइड्स ले रहा था । परिवादी के इलाज में कोई लापरवाही एवं असावधानी नहीं वरती गयी है।

‘’ माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील संख्‍या-1166/2006 बलवन्‍त सिंह बनाम जगदीश सिंह तथा अन्‍य में यह अवधारित किया गया है कि समय-सीमा में छूट दिए जाने सम्‍बन्‍धी प्रकरण पर यह प्रदर्शित किया जाना कि सदभाविक रूप से देरी हुई है, के अलावा यह सिद्ध किया जाना भी आवश्‍यक है कि अपीलार्थी के प्राधिकार एवं नियंत्रण में वह सभी सम्‍भव प्रयास किए गए हैं, जो अनावश्‍यक देरी कारित न होने के लिए आवश्‍यक थे और इसलिए यह देखा जाना आवश्‍यक है कि जो देरी की गयी है उससे क्‍या किसी भी प्रकार से बचा नहीं जा सकता था। इसी प्रकार राम लाल तथा अन्‍य बनाम रीवा कोलफील्‍ड्स लिमिटेड, AIR 1962 SC 361 पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बावजूद इसके कि पर्याप्‍त कारण देरी होने का दर्शाया गया हो, अपीलार्थी अधिकार स्‍वरूप देरी में छूट पाने का अधिकारी नहीं हो जाता है क्‍योंकि पर्याप्‍त कारण दर्शाया गया है ऐसा अवधारित किया जाना न्‍यायालय का विवेक है और यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित नहीं हुआ है तो अपील में आगे कुछ नहीं किया जा सकता है तथा देरी को क्षमा किए जाने सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र को मात्र इसी आधार पर अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित कर दिया गया है तब भी न्‍यायालय को यह विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है कि न्‍यायालय के विवेक को देरी क्षमा किए जाने के लिए प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए अथवा नहीं  और  इस स्‍तर पर अपील से सम्‍बन्धित सभी संगत तथ्‍यों पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया जाना चाहिए कि अपील में हुई देरी को अपीलार्थी की सावधानी और सदभाविक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में क्षमा किया जाए अथवा नहीं। यद्यपि स्‍वाभाविक रूप से इस अधिकार को न्‍यायालय द्वारा संगत तथ्‍यों पर कुछ सीमा तक ही विचार करने के लिए प्रयुक्‍त करना चाहिए।

     हाल ही में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा आफिस आफ दि चीफ पोस्‍ट मास्‍टर जनरल तथा अन्‍य बनाम लिविंग मीडिया इण्डिया लि0 तथा अन्‍य, सिविल अपील संख्‍या-2474-2475 वर्ष 2012 जो एस.एल.पी. (सी) नं0 7595-96 वर्ष 2011 से उत्‍पन्‍न हुई है, में दिनांक 24.02.2012 को यह अवधारित किया गया है कि सभी सरकारी संस्‍थानों, प्रबन्‍धनों और एजेंसियों को बता दिए जाने का यह सही समय है कि जब तक कि वे उचित और स्‍वीकार किए जाने योग्‍य स्‍पष्‍टीकरण समय-सीमा में हुई देरी के प्रति किए गए सदभाविक प्रयास के परिप्रेक्ष्‍य में स्‍पष्‍ट नहीं करते हैं तब तक उनके सामान्‍य स्‍पष्‍टीकरण कि अपील को योजित करने में कुछ महीने/वर्ष अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्‍य में लगे हैं, को नहीं माना जाना चाहिए। सरकारी विभागों के ऊपर विशेष दायित्‍व होता है कि वे अपने कर्त्‍तव्‍यों का पालन बुद्धिमानी और समर्पित भाव से करें। देरी में छूट दिया जाना एक अपवाद है और इसे सरकारी विभागों के लाभार्थ पूर्व अनुमानित नहीं होना चाहिए। विधि का साया सबके लिए समान रूप से उपलब्‍ध होना चाहिए न कि उसे कुछ लोगों के लाभ के लिए ही प्रयुक्‍त किया जाए।

     आर0बी0 रामलिंगम बनाम आर0बी0 भवनेश्‍वरी, 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी, IV (2011) CPJ 63 (SC)  में  माननीय  सर्वोच्‍च  न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से स्‍पष्‍ट किया है, क्‍या उसका कोई औचित्‍य है? क्‍योंकि देरी को क्षमा किए जाने के सम्‍बन्‍ध में यही मूल परीक्षण है, जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई देरी स्‍वाभाविक देरी है। उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किए जाने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किए जाने के जो प्राविधान दिए गए हैं, उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किए जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गयी अपील को  बिना सदभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किए हुए अंगीकार कर लिया जाता है तो इससे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानानुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण सम्‍बन्‍धी उद्देश्‍य ही विफल हो जाएगा।‘’''

     स्‍पष्‍ट है कि परिवादी द्वारा अपना इलाज विपक्षी से वर्ष 2008 में कराया गया और न्‍यायालय के समक्ष परिवाद वर्ष 2012 में कराया गया है और विलम्‍ब का समुचित स्‍पष्‍टीकरण भी नहीं दिया गया है।

     परिणामत: प्रस्‍तुत परिवाद कालबाधित होने के कारण निरस्‍त होने योग्‍य है।   

आदेश

       परिवाद कालबाधित होने के कारण निरस्‍त किया जाता है।

       उभय पक्ष अपना अपना स्‍वयं वहन करेगें।

      निर्णय की प्रति पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाए।

             

      आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

   (विकास सक्‍सेना)                                                       (डा0 आभा गुप्‍ता )

  सदस्‍य                                                                      सदस्‍य

 

  सुबोल श्रीवास्‍तव

 (पी0ए0(कोर्ट नं0-3)

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA]
MEMBER
 

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